वैशाख मास, कृष्ण पक्ष, विक्रम संवत 2080, 16 अप्रैल 2023 दिन रविवार को वरुथिनी एकादशी है।
15 अप्रैल दिन शनिवार रात 08:00 बज कर 45 मिनट से एकादशी तिथि प्रारंभ हो जाएगी जो दूसरे दिन अर्थात 16 अप्रैल दिन रविवार को शाम 06:14 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी।
वरुथिनी एकादशी के दिन ये 14 काम भुलकर भी न करें, नहीं तो हो जायेंगे बर्बाद
अगर आप वरुथिनी एकादशी करना चाहते हैं, तो इन 14 नियमों का पालन जरूर करें। तभी जाकर आपको एकादशी व्रत करने का पूर्ण फल मिलेगा। व्रतधारियों को कम से कम व्रत वाले दिन तो इन नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। पूर्ण सफलता पाना हो तो, यह नियम एकादशी व्रत करने से एक दिन पहले से पालन करना होगा।
वैसे लोग जो व्रत नहीं करते हैं वे लोग भी 14 नियमों का पालन करने का कोशिश करें तो, उन्हें भी फल की प्राप्ति होगी।
1. कांसे के बर्तन में भोजन करना और पानी पीना मना है।
2. मांस का भोजन वर्जित है।
3. मसूर की दाल न खाएं
4. चने का साग नहीं खाना चाहिए
5. कोदो का साग भी नहीं खाना चाहिए
6. मधु (शहद) का सेवन वर्जित है।
7. दूसरे के घरों का अन्न नहीं खाना चाहिए
8. दूसरी बार भोजन करना मना है।
9. स्त्री प्रसंग अर्थात ब्रह्मचर्य रहना जरूरी है।
10.व्रत वाले दिन जुआ भुलकर भी नहीं खेलना चाहिए।
11.व्रत के दिन पान खाना मना है।
12.दातुन करना मना है।
13.दूसरे की निंदा करना मना है तथा चुगली करना सख्त मना है।
12.पापी मनुष्यों के साथ बातचीत करना, झूठ बोल और साथ रहना एकादशी के दिन त्याग कर देना चाहिए।
13. एकादशी के दिन क्रोध और मिथ्या भाषण का त्याग करना चाहिए।
14.इस व्रत में नमक, तेल अथवा अन्न ग्रहण करना वर्जित है।
एकादशी व्रत करने के लिए चारों पहर की पूजा जरूरी
चौघड़िया और पंचांग के अनुसार जानें चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त।
सुबह के वक्त पूजा करने का शुभ मुहूर्त
व्रतधारियों को सुबह का पूजा 07:32 बजे से लेकर 09:08 बजे तक चर सामान्य मुहूर्त में करने चाहिए। अगर संभव नहीं है, तो लाभ उन्नति मुहूर्त सुबह 09:08 बजे से लेकर 10:45 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप सुबह का पूजा कर सकते हैं।
दोपहर को पूजा करने का शुभ मुहूर्त
दोपहर के वक्त पूजा करने का उचित और शुभ मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त है। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:55 बजे से लेकर 12:47 बजे के बीच रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त 01:58 बजे से लेकर 03:30 बजे तक और विजय मुहूर्त दिन के 02:00 बज के 38 मिनट से लेकर 03:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान भी आप दोपहर का पूजा कर सकते हैं।
शाम के वक़्त पूजा करने का शुभ मुहूर्त
शाम के वक्त पूजा करने का शुभ मुहूर्त संध्या 06:34 बजे से लेकर 06:58 बजे तक रहेगा गोधूलि मुहूर्त और सायाह्य सांध्य मुहूर्त 06:47 बजे से लेकर 07:54 बजे तक है। पूजा करने के लिए ये दोनों शुभ मुहूर्त है।
मध्य रात्रि पूजा करने का शुभ मुहूर्त
वरुथिनी एकादशी के दिन तीसरे पहर अर्थात मध्य रात्रि को 11:58 बजे से लेकर 12:43 बजे तक निशिता मुहूर्त और 01:44 बजे से लेकर 03:07 बजे तक लाभ उन्नति मुहूर्त रहेगा। इस दौरान आप मध्य रात्रि का पूजा कर सकते हैं।
चौथे पहर का पूजा करने का शुभ मुहूर्त
पूजा करने का अंतिम प्रहार अर्थात चौथे पहर पर सुबह 04:30 बजे से लेकर 05:54 बजे तक शुभ उत्तम मुहूर्त, 04:25 बजे से लेकर 05:10 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त और 04:47 बजे से लेकर 05:54 बजे तक प्रातः संध्या मुहूर्त रहेगा। इस दौरान आप अंतिम पहर के पूजा करने के उपरांत व्रत का पारण कर सकते हैं।
पूजा वरुथिनी को पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा दिन
वरुथिनी एकादशी 16 अप्रैल, दिन रविवार, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष को पड़ रहा है। एकादशी तिथि का शुभारंभ 15 अप्रैल को रात्रि 08:45 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन 16 अप्रैल शाम शाम 06:14 बजे तक रहेगा।
एकादशी के दिन सूर्योदय सुबह 05:55 बजे से शुरू होकर सूर्यास्त शाम 06:47 बजे पर होगा।
वरुथिनी एकादशी के दिन नक्षत्र शतभिषा है। योग शुक्ल है। सूर्य मेष राशि में और चंद्रमा कुंभ राशि में स्थित रहेंगे। सूर्य का नक्षत्र अश्विनी है। इस दिन ऋतु बसंत है। सूर्य उत्तरायण दिशा में स्थित है।
एकादशी के दिन आनंदादि योग राक्षस है। होमाहूति राहु है। दिशाशूल पश्चिम दिशा में स्थित है। नक्षत्र शूल पश्चिम दिशा में और राहु वास उत्तर दिशा में स्थित है। अग्निवास पृथ्वी है। चंद्रवास पश्चिम दिशा में है।
दशमी तिथि को लें व्रत करने का संकल्प
वरुथिनी एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति वरुथिनी एकादशी व्रत करना चाहता है, उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए। साथ ही निष्ठापूर्वक व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।
विस्तार से जानें पौराणिक कथा
धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन् श्रीहरि ! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का क्या नाम है। साथ ही व्रत करने की विधि क्या है। तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है ? वरुथिनी एकादशी व्रत कथा के संबंध में विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए। मैं आपसे आग्रह करता हूं।
श्रीकृष्ण ने कहा कि हे धर्मराज वैशाख मास, कृष्ण पक्ष में पढ़ने वाली एकादशी का नाम वरुथिनी एकादशी है। यह व्रत सौभाग्य देने वाली है। सभी तरह के पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मुक्ति प्रदान करने वाली है।
इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करें तो वह सौभाग्यशाली बन जाती है। इसी वरुथिनी एकादश के प्रभाव से राजा मान्धाता को स्वर्ग प्राप्त हुआ था। वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर मिलता है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी व्रत करने से मिलता है। वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मनुष्य इस लोक में सुख तो भोगता ही है बल्कि परलोक जाने पर स्वर्ग की प्राप्त होता है।
अन्न दान सबसे बड़ा दान
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि हाथी का दान करना घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान श्रेष्ठ है। भूमि के दान से तिलों का दान श्रेष्ठ है। तिलों के दान से स्वर्ण का दान श्रेष्ठ है जबकि स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है। अन्नदान करने से देवता, पितर और मनुष्य तीनों को तृप्ति मिलती हैं। धर्म शास्त्रों और पुराणों में इसको कन्यादान के समान माना जाता है।
कन्यादान व अन्न दान के बराबर मिलता है फल एकादशी व्रत करने से
वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों करने के बराबर फल मिलता है। जो मनुष्य लोभ के वश में होकर अपनी कन्या का धन ले लेते हैं वे प्रलयकाल तक नरक का दुःख भोगते हैं। नरक के दुःख भोगने के बाद अगले जन्म में बिलार का जन्म लेना पड़ता है।
जो व्यक्ति अपने शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार कन्या का दान करते हैं। वैसे दान से मिलने वाले पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हो जाते हैं। वैसे व्यक्तियों को कन्यादान का अनंत फल मिलता है।
व्रत का माहात्म्य पढ़ें दस हजार गोदान का मिलेगा फल
श्रीकृष्ण ने कहा कि हे राजन् ! जो मनुष्य विधि पूर्वक वरुथिनी एकादशी व्रत करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। व्रत करने का फल गंगा स्नान करने के फल से भी अधिक है।
कैसे करें पूजा जानें विधि
वरुथिनी एकादशी व्रत करने के उपरांत सर्वप्रथम गौरी गणेश का पूजन करें। गौरी गणेश को स्नान कराएं। गंध, पुष्प और अक्षत से पूजन करें। इसके बाद श्रीहरि का पूजन शुरू करें।
भगवान विष्णु को आवाहन करें इसके बाद भगवान विष्णु को आसान दें। इसके बाद भगवान विष्णु को स्नान कराएं। स्नान कराने से पहले गंगा जल से, फिर पंचामृत से और अंत में फिर से शुद्ध जल से स्नान कराएं।
फिर भगवान को वस्त्र पहनाएं वस्त्र पहनाने के बाद आभूषण और जनेऊ पहनाएं। इसके बाद पुष्प माला पहनाना है। इसके बाद सुगंधित इत्र अर्पित करें। तिलक करें। तिलक के बाद अष्टगंध का प्रयोग करें।
अब धूप और दीप अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल विशेष प्रिय है, इसलिए तुलसी पत्ता अर्पित करें। भगवान विष्णु के पूजन में चावल का प्रयोग ना करें। तिल का प्रयोग करें। घी या तेल का दीपक जलाएं और आरती करें। आरती करने के बाद परिक्रमा करें और अंत में नैवेद्य अर्पित करें।
पूजा सामग्री की सूची
वरुथिनी एकादशी पूजा में लगने वाले सामग्रियों में देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का लोटा, जल कलश, गाय का दूध, वस्त्र, भगवान को पहनाने के लिए आभूषण, तिल, नारियल, पंचामृत, सुखा मेवा, गुड़, पान का पत्ता, पैसा, मधु, कुमकुम, दीपक, घी, तिल का तेल, रुई, धूपबत्ती, फूल, अश्वगंधा, तुलसी पत्ता, चावल, जनेऊ, दही, मिठाई, शंख, गाय का गोबर, आम का पत्ता, मौसमी फल, घर के बने पाकवान और केला के पत्ता सहित गंगाजल रहना चाहिए।
डिस्क्लेमर
यह लेख पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। कथा लिखने के दौरान पंचांगों का गहन अध्ययन कर तिथि, समय और मुहूर्त लिखा गया है। लेख कैसा लगा इमेल के द्वारा हमें प्रतिक्रिया लिखकर भेजें।
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अगर आप वरुथिनी एकादशी करना चाहते हैं
एकादशी व्रत के दौरान भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
तो यह लेख पढ़ना आपके लिए अत्यंत जरूरी है। लेख में पढ़ें 14 ऐसे काम जो