हर तरह के मनोकामना पूर्ण करेगा कामदा एकादशी, जो 01 अप्रैल दिन शनिवार को है

अगर आप हर तरह के कार्यों में सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं तो कामदा एकादशी जरूर करें।
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष, 01 अप्रैल को दिन शनिवार कामदा एकादशी पड़ रही है।
कोई भी जातक अगर एकादशी व्रत करते हैं, तो वैसे व्रतधारियों को चारों पहर पूजा करना अनिवार्य है। तब जाके आपको मनचाहा फल मिलेगा।
कामदा एकादशी के दिन कैसा रहेगा दिन। साथ ही जानें चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त।
कामदा एकादशी को कैसा रहेगा दिन जानें पंचांग के अनुसार
कामदा एकादशी के दिन नक्षत्र अश्लेषा रहेगा। प्रथम करण वणिज दिन के 03:10 बजे तक है। द्वितीय करण भद्रा रहेगा। योग रहेगा धृति जो रात के 02:42 बजे तक है। इसके बाद शूल योग हो जाएगा।
सूर्योदय सुबह 06:12 बजे और सूर्यास्त शाम 06 बज के 39 मिनट पर होगा। चंद्रोदय रात 02:20 बजे पर और चंद्रास्त अहले सुबह 04:14 बजे पर होगा। सूर्य मीन राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में सुबह 04:48 बजे तक रहेगा। इसके बाद सिंह राशि में प्रवेश कर जाएंगे। आयन उत्तरायण है। ऋतु बसंत है।
दिनमान 12 घंटा 27 मिनट का होगा जबकि रात्रिमान 11 घंटा 31 मिनट का रहेगा। आनन्दादि योग मानस है। होमाहुति शनि, दिशा शूल पूर्व, राहु काल वास पूर्व, अग्निवास पृथ्वी है। चंद्रवास उतर दिशा में रहेगा सुबह के 04:00 बज के 48 मिनट तक, इसके बाद पूर्व दिशा में हो जाएगा।
कामदा एकादशी के दिन जानें पूजा करने का शुभ मुहूर्त
जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त दिन के 12:00 बजे से लेकर दोपहर 12:50 बजे तक है।
विजया मुहूर्त 02:30 बजे से लेकर 3:20 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त 06:26 बजे से लेकर 06:50 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त 06:39 बजे से लेकर 07:48 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 12:09 बजे से लेकर 01:00 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:38 बजे से लेकर 05:24 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त सुबह 05:01 बजे से लेकर 06:11 बजे तक रहेगा। इस दौरान चारों पहर की पूजा अर्चना करना शुभ होगा।
अब जानें शुभ मुहूर्त चौघड़िया पंचांग के अनुसार चारों पहर के लिए
एकादशी व्रत करने वाले व्रतधारियों को चारों पहर की पूजा करना अनिवार्य होता है। तभी व्रत करने से आपको सभी तरह के फल प्राप्त होते हैं। जानें चौघड़िया पंचांग के अनुसार चारों पहर का शुभ मुहूर्त का समय।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह की पूजा करने का शुभ मुहूर्त। सुबह 07:45 बजे से लेकर 09:18 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।
दोपहर 12:25 बजे से लेकर 01:59 बजे तक चर मुहूर्त एवं दिन के 01:59 बजे से लेकर 03:32 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। इस दौरान दो पहर की पूजा लोग कर सकते हैं।
शाम के वक्त पूजा करने के लिए लाभ मुहूर्त 06:39 बजे से लेकर 08:05 बजे तक एवं गोधूलि मुहूर्त 06:26 बजे से लेकर 06:50 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप संध्या पूजन करें।
तीसरे पहर अर्थात मध्यरात्रि को पूजा करने का शुभ मुहूर्त रात 10:58 बजे से लेकर 12:25 बजे तक अमृत मुहूर्त और 12:25 बजे से लेकर 01:51 बजे तक चर मुहूर्त है। इस दौरान आप तीसरे पहर का पूजा करना शुभ होगा। चौथे पहर अर्थात सुबह का अंतिम पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 04:44 बजे से लेकर 06:11 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। इस विधि से पूजा करने से आपके ऊपर भगवान श्री हरि कृपा बना रहेगा।
कामदा एकादशी के पौराणिक कथा
कामदा एकादशी के संबंध में धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा और कहा कि हे भगवन् श्रीहरि ! मैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल पक्ष एकादशी का महात्म्य हमें विस्तार से बताइए। श्रीकृष्ण कहा कि हे धर्मराज ! यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से पूछा था और जो उपाय उन्होंने बताया था उसे मैं तुम्हें विस्तारपूर्वक और संपूर्ण जानकारी देता हूं।
श्रीकृष्ण ने पौराणिक कथा का शुभारंभ करते हुए कहा कि प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। जहां पर अनेक विद्याओं और ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व निवास करते थे। राज्य के एक स्थान पर ललिता और ललित नाम के गंधर्व स्त्री-पुरुष अत्यंत शुभ और वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह और प्रेम था। जहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गाना गा रहा था। गाना गाते-गाते ललित को अपनी प्रिय पत्नी ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन में उपजे भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने गाना के पद भंग होने का कारण राजा को बता दिया। तब राजा पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग।
पुण्डरीक के श्राप से उसी क्षण ललित विशाल राक्षस बन गया। उसका मुंह अत्यंत भयंकर, आंख सूर्य और चंद्रमा की तरह प्रकाशित तथा मुंह से आग निकलने लगी। उसकी नाक पहाड़ की गुफा के समान विशाल हो गई और गर्दन पहाड़ के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान दिखने लगे तथा भुजाएं अत्यंत लंबी-चौड़ी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के समान विस्तार ले लिया। इस प्रकार वह विशाल राक्षस बनकर अनेकों प्रकार के दुःख भोगने लगा।
जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के कठोर दुःख सहता हुआ घने जंगलों में विचरण करने लगा। उसकी स्त्री ललिता उसके पीछे-पीछे घूमती रही और हमेशा विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति ललित के पीछे-पीछे घूमती-फिरती विन्ध्याचल पहाड़ पर पहुंच गई, जहां पर ऋषि श्रृंगी का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही ऋषि श्रृंगी के आश्रम में आ गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।
उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे परोपकारी सुंदरी ! तुम कौन हो, किस नगर की रहने वाली हों और यहां किस लिए आई हो ? ‍ललिता बोली कि हे मुनीश्वर ! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इस कारण मुझे महान दुःख हो रहा है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या ! अब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष को एकादशी व्रत तिथि आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इस व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे दो, तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी आवश्य शांत हो जाएगा।
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर पूर्ण निष्ठा और विधि विधान से कामदा एकादशी व्रत किया और द्वादशी को आचार्य ब्राह्मणों के सामक्ष अपने व्रत का संपूर्ण फल अपने पति को देती हुई भगवान श्रीहरि से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी - हे प्रभु विष्णु ! मैंने जो कामदा एकादशी व्रत किया है इसका संपूर्ण फल मेरे पतिदेव ललित को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए और अपने पहले स्वरूप में दिखने लगें। एकादशी का फल प्राप्त होते ही उसका पति ललित राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप में आ गया। इसके बाद अनेक सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण कर ललिता के साथ विहार और विचरण करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।
वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन् ! इस व्रत को विधि विधान और निष्ठा पूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस और भूत-प्रेत की योनि से छूटकारा मिल जाती है। इस भौतिक संसार में कामदा एकादशी के समान कोई और दूसरा व्रत नहीं है। कामदा एकादशी की कथा पढ़ने या सुनने से लोगों को वाजपेय यज्ञ करने जैसा फल प्राप्त होता है।
डिस्क्लेमर
कामदा एकादशी व्रत कथा धार्मिक पुस्तक और वेद पुराण में वर्णित कथाओं से लिया गया है। कुछ आचार्य विद्वानों का राय भी इसमें समावेश किया गया है। पूजा करने का शुभ मुहूर्तों का समय पंचांग से देखकर लिखा गया है। यह लेख पूरी तरह लोगों के बीच सनातनी परंपरा कायम रखने के लिए लिखा गया है। लेख धार्मिक पुस्तकों पर आधारित है इसलिए की जवाबदेही लेखक पर नहीं बनता है।

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