विद्या, ज्ञान और विवेक की जननी मां सरस्वती कि पूजा 26 जनवरी 2023 दिन गुरुवार को है।
इस दिन मां वीणा पाणी, वीणा वादनी अर्थात मां सरस्वती का जन्म हुआ था। भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्री के रूप में माध माह के, शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को मां सरस्वती अवतरित हुई थी।
अब जानें पूजा की संपूर्ण विधि
सरस्वती मां की जन्म कथा
ब्रह्मा की पुत्री होने के बाद मां सरस्वती की ब्रह्मा जी से कैसे हुई शादी
सरस्वती मां के पुत्र का नाम क्या था
क्यों 100 वर्षों तक वन में छुपी रही मां सरस्वती
क्यों कटा ब्रह्मा जी का पांचवां सर भगवान शिव ने
सरस्वती पूजा करने में कौन सी सामग्रियों की पड़ती है जरूरत
सरस्वती पूजा करने का शुभ मुहूर्त और अशुभ मुहूर्त जानें संपूर्ण जानकारी।
इन सभी जानकारियां जानें विस्तार से इस लेख में ?
25 जनवरी, दिन बुधवार को दोपहर 12:34 बजे से पंचमी तिथि का आगमन हो जाएगा, जो कि अगले दिन 26 जनवरी को दिन के 10:28 बजे समाप्त हो जायेगा। उदया तिथि में पंचमी तिथि पड़ने के कारण बसंत पंचमी महोत्सव दिन गुरुवार, 26 जनवरी को धूमधाम से मनेगा।
सरस्वती पूजा के दिन सूर्य मकर राशि में और चंद्रमा मीन राशि में रहेगा। सूर्य उत्तरायण दिशा में और योग शिवा है तथा नक्षत्र उत्तराभाद्रपद रहेगा।
अब हम बताते हैं सरस्वती पूजा के दिन कैसा रहेगा शुभ और अशुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:12
बजे से लेकर 12:55 बजे के तक रहेगा।
शुभ मुहूर्त, सुबह के पूजा की
वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने का सबसे उत्तम समय सुबह 7:12 से लेकर 8:30 के बीच रहेगा। इसके बाद दूसरा मूहूर्त पूजा करने का दिन के 11 बज के 13 मिनट से लेकर शाम 3:14 बजे तक रहेगा इस दौरान आपको चर, लाभ और अमृत मूहूर्तों का सुखद संयोग मिलेगा। यह समय भी पूजा करने का उत्तम मुहूर्त है।
संध्या आरती करने का मुहूर्त
सरस्वती पूजा के दिन 26 जनवरी, दिन गुरुवार को शाम 4:30 बजे से लेकर 7:30 बजे के बीच संध्या आरती आप कर सकते हैं। इस दौरान शुभ और अमृत मुहूर्त का संयोग रहेगा।
सरस्वती पूजा के दिन से आती है बसंत ऋतु
बसंत पंचमी के दिन से ही प्राकृतिक के रूपों में बदलाव महसूस होने लगता है। इसी दिन से पतझड़ का मौसम खत्म होकर हरियाली प्रारंभ हो जाता है। बसंत को ऋतुओं का राजा माना गया है। भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छह ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा कहा गया है।
पंचमी से बसंत ऋतु का आगमन हो जाता है, इसलिए यह दिन ऋतु परिवर्तन का दिन माना जाता है। इस दिन से प्राकृतिक में सौन्दर्य निखरना शुरू हो जाता है। स्वयं श्री कृष्ण ने कहा है कि ऋतुओं में मैं बसंत हूं।
ऐसी मान्यता हैं कि सृष्टि के प्रारंभ में भगवान श्रीविष्णु जी की आज्ञा से ब्रह्मा ने बसंत ऋतु से ही मनुष्य की रचना प्रारंभ की थी।
यह पूरा माह बहुत शांत एवं संतुलित होता है। बसंत ऋतु के दिन मुख्य पांच तत्व अर्थात जल, वायु, आकाश, अग्नि और धरती संतुलित अवस्था में रहते हैं और इनका ऐसा व्यवहार प्राकृतिक को सुंदर एवं मनमोहक बनाता है।
मसलन इन दिनों ना अधिक बारिश होती है, ना बहुत ठंड और ना ही गर्मी का मौसम होता है।
वसंत ऋतु में चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखाई पड़ती है। पतझड़ खत्म हो जाता है और चहूओर हरियाली का साम्राज्य कायम हो जाता है।
मां सरस्वती के जन्म की पौराणिक कथा
ब्रह्मांड की संरचना का कार्य शुरू करते समय ब्रह्माजी ने मनुष्य को बनाया, लेकिन उसके मन में दुविधा थी उन्हें चारों तरफ सन्नाटा सा महसूस हो रहा था। तब उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़क कर एक ऐसी देवी को जन्म दिया है जो उनकी मानस पुत्री कहलायी, जिसे हम सरस्वती देवी के रूप में जानते हैं।
इस देवी का जन्म होने पर उनके एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक और तीसरे में माला थी। चौथे हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में खड़ी थी। उनके जन्म के बाद मां सरस्वती को वीणा वादन करने को कहा गया।
तब देवी सरस्वती ने जैसे ही स्वर बिखेरा वैसे ही धरती में कंपन हुआ और मनुष्य को वाणी मिली और धरती की सन्नाटा खत्म हुई। धरती पर पनपे हर जीव, जंतु, वनस्पति और जल धार में एक आवाज शुरू हो गई और तब से चेतना का संचार होने लगा। इसलिए इस दिवस को सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा करने से मुश्किल से मुश्किल मनोकामना पूरी होती है। पौराणिक मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं। इसलिए बसंत पंचमी में मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
आज के दिन विद्यार्थी, कलाकार, संगीतकार और लेखक आदि मां सरस्वती की उपासना करते हैं। स्वरसाधक मां सरस्वती की उपासना कर उनसे स्वर प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। ब्रह्माजी के अनेक पुत्र और पुत्रियां हुई थी। सरस्वती देवी को शतरूपा, वाग्देवी, वागेश्वरी, शारदा, वाणी और भारती भी कहा जाता है।
क्यों कटा था ब्रह्माजी का सिर, जानें मत्स्य पुराण के अनुसार
मत्स्य पुराण कथा के अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे। कहा जाता है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया।
ब्रह्मा अपनी ही बनाई हुई रचना, सरवस्ती के प्रति आकर्षित होने लगे और लगातार उन पर अपनी कूदृष्टि डाले रहते थे। ब्रह्मा की दृष्टि से बचने के लिए मां सरस्वती चारों दिशाओं में छिपती रहीं लेकिन वह उनसे नहीं बच पाईं।
इसलिए सरस्वती आकाश में जाकर छिप गईं लेकिन अपने पांचवें सिर से ब्रह्माजी ने उन्हें आकाश में भी खोज निकाला। प्रजापति ब्रह्मा का अपने ही पुत्री के प्रति आकर्षित होना और उनके साथ संभोग करना अन्य सभी देवताओं के नजरों में अपराध था।
सभी ने मिलकर पापों का सर्वनाश करने के लिए शिव से आग्रह किया कि ब्रह्मा ने अपनी पुत्री के लिए यौनाकांक्षाएं रखीं, जोकि एक बड़ा पाप है, ब्रह्मा को उनके किए का फल मिलना ही चाहिए। क्रोध में आकर शिव ने उनके पांचवें सिर को उनके धड़ से अलग कर दिया था।
जानें शिव पुराण के अनुसार
शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मा के सर्वप्रथम पांच सिर थे। लेकिन जब अपने पांचवें मुख से उन्होंने सरस्वतीजी, जोकि उनकी पुत्री थी, को उनके साथ संभोग करने के लिए कहा तो क्रोधावश सरस्वती ने उनसे कहा कि तुम्हारा यह मुंह हमेशा अपवित्र बातें ही करता है जिसकी वजह से आप भी विपरीत ही सोचते हैं।
इसी घटना के बाद एक बार भगवान शिव, अपनी अर्धांगिनी पार्वती को ढूंढ़ते हुए ब्रह्माजी के पास पहुंचे तो पांचवें सिर को छोड़कर उनके अन्य सभी मुखों ने उनका अभिवादन किया, जबकि पांचवें मुख ने अमंगल आवाजें निकालनी शुरू कर दी। इसी कारण क्रोध में आकर शिव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को उनके धड़ से अलग कर दिया था।
सरस्वती मां 100 वर्षों तक छुपी रही वन में, पुत्र मनु हुआ
मां सरस्वती ने विशेष आग्रह करने पर ब्रह्मा जी से शादी की और श्रृष्टि की रचना में लग गई। पौराणिक कथा के अनुसार मां सरस्वती ने ब्रह्माजी के साथ 100 वर्षों तक जंगल में पति-पत्नी के रूप में छिप कर रही।
ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती से सृष्टि की रचना में सहयोग करने का निवेदन किया। इसके बाद सरस्वती के गर्भ से स्वयंभु मनु को जन्म हुआ। ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है। यहीं से मानव जाति का श्रृजन शुरू हुआ।
पूजा सामग्रियों का नाम
कमलगट्टा, सात तरह के अनाज, कुश, धुर्वा, पंचमेवा, कपूर, घी, दूध, दही, मिठाई, आम का मंजर, तांबा का लोटा, मधु, गंगा जल, गाय का गोबर, पीपल, चंदन, यज्ञोपवीत, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, कपड़ा, नारियल, रोली, सिंदूर, पान के पत्ते, पुष्पमाला, मां सरस्वती की प्रतिमा, कलश है।
सरस्वती पूजा करने का अनेक विधियां
वसंत पंचमी को एक मौसमी त्यौहार के रूप में भिन्न-भिन्न प्रांतों की मान्यता के अनुसार मनाया जाता है। अनेक प्रकार के पौराणिक कथाओं के महत्व को ध्यान में रखते हुए लोग अपने विधान से इस त्यौहार को मनाते हैं।
इस दिन सरस्वती मां की प्रतिमा की पूजा की जाती है। उन्हें कमल पुष्प और आम का मंजर भक्त अर्पित करते हैं। इस दिन वाद्य यंत्रों और पुस्तकों की पूजा की जाती है।
सरस्वती पूजा के दिन पीले वस्त्र पहने जाते हैं। खेत खलिहान में भी हरियाली का मौसम रहता है। यह पूजा किसानों के लिए भी बहुत महत्व रखता है। इसी बसंत ऋतु के दौरान खेतों में पीले सरसों के फूल लहराने लगते हैं।
किसान भाई भी फसलों के आने की खुशी में यह त्यौहार मनाते हैं।
बसंत पंचमी के दिन अन्न दान, वस्त्र दान और विद्या सामग्रियों का दान करने वालों से मां सरस्वती खुश होती है। बसंत पंचमी पर गुजरात सूबे में गरबा करके मां सरस्वती की पूजा-अर्चना किया जाता है। यहां खासकर वहां के किसान भाई गरवा का आयोजन करते हैं।
पश्चिम बंगाल में भी बसंत उत्सव की धूम रहती है। यहां संगीत, कला और नृत्य को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है और पूजा की जाती है। इसलिए बसंत पंचमी के मौके पर बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं। जिसमें भजन, कीर्तन, नृत्य गान आदि होते हैं।
बसंत पंचमी के दिन पवित्र स्थलों के दर्शन करने का महत्व है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पूण्य की प्राप्ति होती है।
काशी, हरिद्वार और प्रयाग सहित अन्य जगहों पर गंगा स्नान करना काफी शुभ माना जाता है। बसंत पंचमी के दिन कई स्थानों पर मेले का आयोजन किया जाता है। जहां पर देशभर के भक्तजन एकत्र होते हैं।
भगवान कामदेव और देवी रति की पौराणिक कथा का भी महत्व बसंत पंचमी से जुड़ा हुआ है। मना जाता है कि बसंत ऋतु के समय कामदेव का वेग तेज हो जाता है।
इसलिए सरस्वती पूजा के दिन देश के विभिन्न हिस्सों में रासलीला उत्सव का आयोजन किए जाते हैं। पतंगबाजी प्रथा गुजरात और पंजाब सूबे से जुड़ी है। बसंत पंचमी के दिन महाराजा रंजीत सिंह पतंग उत्सव का आयोजन का शुभारंभ किए थे। इस दिन बच्चे दिनभर रंग-बिरंगे पतंग उड़ाते हैं।
मुस्लिम इतिहास में बसंत ऋतु की चर्चा
यह एक ऐसा पहला त्यौहार है, जिसे मुस्लिम इतिहास में भी मनाए जाने का उल्लेख मिलते हैं। अमीर खुसरो जो कि एक सूफी संत थे।
उनकी रचनाओं में भी वसंत की झलक देखने को मिलती है।
एतिहासिक प्रमाण के अनुसार बसंत को जामा औलिया की बसंत, ख्वाजा बख्तियार काकी का नाम से भी जाना जाता है। मुगल साम्राज्य में इसे सूफी धार्मिक स्थलों पर मनाया जाता था।
डिस्क्लेमर
यह कथा धर्म शास्त्रों से लिया गया है। मां सरस्वती के संबंध में पुराणों में वर्णित कथा का भी इस लेख में उल्लेख किया गया है। पंचांग से शुभ और अशुभ मुहूर्त की स्टिक जानकारी दी गई है। सरस्वती पूजा कैसे मनाया जाता है इस संबंध में धार्मिक और परंपरिक जानकारी आप तक पहुंचाया गया हैं।