वर्ष 2023 को पड़ने वाला मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी की जगह 15 जनवरी को मनाया जाएगा। कारण 14 जनवरी रात 08:57 बजे पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करने के बाद ही मकर संक्रांति मनाया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन ही पृथ्वी पर अवतरित हुई थी गंगा। इसलिए गंगासागर और प्रयागराज में लगता है मकर संक्रांति पर मेला
भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति के मौके पर असुरों का वध किया था।
मकर सक्रांति के दिन यशोदा मां ने भगवान श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखी थी।
पितरों को करें तिल से तर्पण, मिलेगी मुक्ति
इसके अलावा जानें किस प्रदेश में किस नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति
मकर संक्रांति दिन करें इन देवताओं का पूजन
तिल खाने के औषधीय गुण
मकर संक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा
भगवान भास्कर को खिचड़ी का भोग लगाना शुभ
मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा पूरा करती है
तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई थी
मकर संक्रांति पूजा कैसे करें, जानें विधि
मकर सक्रांति के दिन किस चीजों का करें दान
मकर सक्रांति के दिन चंद्रमा तुला राशि में और सूर्य मकर राशि में गोचर करेंगे
पूजा और तर्पण करने का शुभ मुहूर्त
भूलकर भी ना करें इस समय पूजा
और कुछ ज्यादा जानें मकर सक्रांति के बारे में
पौष मास में भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाते हैं
साल भर में सूर्य 12 राशियों प्रवेश करते हैं
सूर्य को मकर राशि में प्रवेश करने के बाद दिन बड़ा और रात छोटा होने लगता है
उसी प्रकार सूर्य जब कर्क राशि में प्रवेश करते हैं, तो रात बड़ा और दिन छोटा होने लगता है
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाते हैं। कहा जाता है कि पिता सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से नाराज चल रहे थे। नाराजगी दूर करने के लिए भगवान सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव के घर गए थे।
पौराणिक कथा के अनुसार अगर पिता पुत्र के बीच में किसी प्रकार की नाराजगी हो और अगर पिता अपने बेटे के घर मकर सक्रांति के दिन पहुंच जाएं तो पुत्र का सौभाग्य जाग जाता है।
शनि देव मकर संक्रांति के देवता है। इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति कहा जाता है।
शनि देव को मकर और कुंभ राशि के स्वामी माना जाता है। जिस कारण से यह दिन पिता और पुत्र के अनोखे मिलन को दर्शाता है। कई जगहों पर इस त्यौहार को नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर मनाया जाता है।
वर्ष 2023 में 15 जनवरी को मकर संक्रांति त्योहार मनाया जाएगा। इसके अलावा मकर संक्रांति कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलता है। इसी दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे।
मकर संक्रांति के दिन पितरों के उद्धार के लिए तिल से तर्पण करना शुभ माना जाता है, क्योंकि महाराजा भागीरथ ने भी अपने पितरों के उद्धार के लिए इसी दिन तर्पण किया था।
इस दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाने की परंपरा है। परंपरा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन तिल से बने तिलकुट, चूड़ा, गुड़ और खिचड़ी खाने के साथ पतंग उड़ाने का भी विधान है। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन प्रयास और गंगासगर में स्नान का विशेष महत्व है।
जब सूर्य देव दक्षिणायन की ओर रहते हैं, तो उस समय को अशुभ माना जाता है। दक्षिण दिशा को यम का वास या यम के द्वार कहा जाता है। नरक के द्वार पहुंचते ही यमदूत मृत आत्मा को लेने आते हैं। उत्तर दिशा स्वर्ग का द्वार माना जाता है। जहां, मृत आत्मा को लेने देवदूत आते हैं।
वर्ष को दो भागों में बांटा गया है, उत्तरायण और दक्षिणायन। मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा को पूरा करता है और उत्तर की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इसलिए इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा की ओर गतिमान हो जाते हैं।
दक्षिणायन दिशा को दानव, दुष्ट और दुराचारियों का दिशा कहा जाता है जबकि उत्तरायण दिशा को देवताओं का दिशा माना गया है। इसी दिशा में स्वर्ग लोक स्थित है।
मकर संक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा
संक्रांति कथा के विषय में महाभारत में भी वर्णन मिलता है। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरव सेना के सेनानायक गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। संक्रांति की महत्ता को जानते हुए उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए इसी दिन को चुनें थे।
वे जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है और उसे इस मृत्युलोक में पुनः जन्म लेना पड़ता है। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तभी पितामह ने अपना प्राण त्यागे। वह दिन मकर संक्रांति था।
मकर संक्रांति के दिन ही अवतरित हुई थी गंगा
धार्मिक मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही मां गंगा स्वर्ग से अवतरित होकर राजा भागीरथ के पीछे पीछे कपिल मुनि के आश्रम होते हुए गंगासागर तक पहुंची थी।
मां गंगा के पवित्र जल से राजा भागीरथ ने अपने पितरों को तर्पण कर मोक्ष की प्राप्ति करा स्वर्ग लोक भेजने का काम किया था। इसलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर और प्रयागराज में स्नान करना काफी शुभ माना जाता है। भविष्य पुराण में गंगासागर और प्रयागराज में मकर संक्रांति पर्व के मौके पर गंगा स्नान करने का उल्लेख मिलता है।
भगवान विष्णु ने मकर संक्रांति के दिन असुरों का किया था वध
मकर सक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। श्रीहरि ने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
मकर सक्रांति पर माता यशोदा मैया ने रखी थी व्रत श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए
यशोदा मां ने श्रीकृष्ण जन्म के बाद, प्राप्ति लिए व्रत रखी थी। उस समय भगवान सूर्य उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। उसी दिन से मकर सक्रांति व्रत का प्रचलन शुरू हुआ था। कहा जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई थी। इसलिए इसका प्रयोग करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है। तिल खाने से शरीर निरोग रहता है और शरीर में गर्मी आती है।
पितरों को करें तिल-जल मिश्रण से तर्पण, मिलेगी मुक्ति
मकर संक्रांति के दिन पितरों को तिल से तर्पण करना काफी शुभ माना जाता है। इसी दिन महाराजा भागीरथ में अपने पितरों के लिए तर्पण किया था। तर्पण विधि पूर्वक करनी चाहिए, क्योंकि भगवान सूर्य सूर्योदय के समय धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यही कारण है कि सूर्योदय के समय ही पितरों को तर्पण करनी चाहिए। इसी दिन भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाना भी लाभप्रद होता है।
विभिन्न प्रदेश में किस नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति
भारत के विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति पर्व अलग-अलग प्रकार से मनाये जाते हैं। केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में संक्रांति कहा जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में लोग मनाते है। पंजाब और हरियाणा में लोहरी, असम में बिहू। मध्य भारत सहित बिहार और यूपी में मकर संक्रांति के नाम से प्रचलित है।
मकर संक्रांति के दिन इन देवताओं का करें पूजन
मकर संक्रांति के दिन भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान गणेश, आदि शक्ति माता और सूर्य देव की आराधना करने का दिन माना गया है। इस दिन पितरों का तर्पण करने से, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
तिल खाने के औषधीय गुण
मकर सक्रांति के दिन तिल खाने, लगाने और स्नान करने का धार्मिक, अध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। जानें तिल में और कौन-कौन से औषधीय गुण है। तिल में कई तरह के पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कैल्शियम, काम्प्लेक्स बी, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, जिंक, कॉपर और मैग्नीशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। तिल में मोनो सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है।
यह शरीर में बुरे केलेस्ट्रॉल को कम करके अच्छा केलेस्ट्रॉल को बनाने में मदद करता है। यह ह्रदय रोग, दिल का दौरा और अथेरोक्लेरोसिस की संभावना को कम करता है। आयुर्वेद में तिल मधुमेह, कफ, पीत कारक, निम्न रक्तचाप में लाभ, स्तनों में दूध उत्पन्न करने वाला, गठिया, मल रोधक और वात नाशक माना जाता है। तिल की तासीर गर्म होता है। इसका सेवन सर्दियों में करने से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है।
गुड़ सेहत के लिए है लाभदायक
गुड़ का तासीर गर्म है। गुड़ में लवण, मैग्नेशियम, आयरन, विटामिन ए, बी, लौह तत्व, पोटेशियम, गंधक, फासफोरस और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। गुड़ खाने से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
चूड़ा में पाये जाते हैं कार्बोहाइड्रेट
मकर संक्रांति के दिन तिलकुट और गुड़ के साथ चूड़ा का भी सेवन किया जाता है। चूड़ा में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी, मैंगनीज, फास्फोरस, आयरन, फाइबर, फैटी एसिड आदि तत्व पाए जाते हैं। चूड़ा खाने से पित्त को शांति मिलती है, यह शरीर को बल देता है।
दही के औषधीय गुण
आयुर्वेद के अनुसार दही भारी, चिकनाई युक्त, कफ और पाचन शक्ति बढ़ाने वाला होता है। दही को बहुत ही पौष्टिक आहार माना गया है। छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक सबके लिए दही का सेवन फायदेमंद है। दही में भरपूर मात्रा में विटामिन, कैल्शियम और प्रोटीन पाया जाता है।
चरक संहिता, सूत्र स्थान 27 में दही की उपयोगिता बताई गई है। इससे दही कैसे स्वादिष्ट एवं पौष्टिक है यह पता चलता है।
स्वाद, पाचन शक्ति, यौन शक्ति, और स्नेह शक्ति तैयार करने वाला दही ताकत और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने वाला होता है।
दही स्तंभक, स्वाद युक्त, गर्म, वात और पित्त को संतुलित करने वाला होता है। इसे पवित्र और पोषण बढाने वाला, श्वसन मार्ग को गीला रखने वाला, दस्त को नियंत्रित करने वाला, जुकाम और ज्वर को शांत करने वाला, भोजन का स्वाद बढाने वाला, मूत्र मार्ग की बाधा कम करने वाला, दुर्बलता कम करने वाला, पतझड़, गर्मी और वसंत ऋतू में अयोग्य पूर्ति, पित्त और कफ में काम आने वाला दही स्वादिष्ट, चिकना, बलवर्धक, गर्म और पौष्टिक आहार है।
मकर संक्रांति के दिन कैसे करें पूजा, जानें विधि
मकर संक्रांति के दिन अहले सुबह स्नान करने विधान है। इस दिन नदी, सरोवर, कुआं या घर में गंगाजल और तिल डालकर स्नान करने चाहिए। इसके बाद पितरों को तिल मिले जल से तर्पण देना चाहिए। भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव, आदिशक्ति माता, शनि देव, और भगवान सूर्य को विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
सुहागन महिलाएं एक थाली में गुड़, तिल से बने लड्डू, चूड़ा और अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा रख लें।
थाली को रोली और चावल से सजा दें। इसके बाद उस थाली को अपने सास को दें यदि आपकी अपनी सास नहीं है तो ननंद, जेठानी, या किसी भी ब्राह्मण स्त्री को भी दे सकते हैं।
मकर संक्रांति पूजा में लगने वाले सामग्रियों की सूची
अगरबत्ती, पान का पत्ता, नारियल, सिक्के, फूल का माला, चावल, रोली, गंगाजल, फूलों का माला, कपूर, इत्र, सूर्य भगवान की तस्वीर, गुड़, तिल, चूड़ा, तिल का तेल, घी, दीया, मौली, चंदन और आम की लकड़ी प्रमुख हैं।
मकर सक्रांति के दिन किसकी किस चीज का करें दान
मकर संक्रांति के दिन गर्म वस्त्र, तिल से बने मिठाईयां, खिचड़ी के साथ पैसा आदि दान करने से शनि से त्रस्त लोगों को कष्टों से मुक्ति मिलती है। गरीब तथा अपाहिज और मजदूर वर्ग के सभी लोग शनि के प्रतिनिधि माने जाते हैं।
इसलिए इस दिन बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेना चाहिए और उन्हें तिल से बनी मिठाइयों और गर्म वस्त्र उपहार स्वरूप देना चाहिए ऐसा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।
मकर सक्रांति के दिन चंद्रमा और सूर्य किस राशि में रहेंगे
पौष मास, शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी तिथि, रविवार दिन, 15 जनवरी को मकर संक्रांति पड़ रही है। इस दिन सूर्य मकर राशि में रहेंगे। चंद्रमा तुला राशि में रहेंगे। इस दिन नक्षत्र चित्रा, योग सुकर्मा, ऋतु शिशिर और सूर्योदय सुबह 07:15 पर होगा।
पूजा और तर्पण करने का शुभ मुहूर्त
मकर संक्रांति के दिन सुबह 8:34 बजे से लेकर 12:31 बजे तक चर मुहूर्त, लाभ मुहूर्त और अमृत मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा और तर्पण लोग कर सकते हैं। इसके बाद दिन के 12:09 बजे से लेकर के 12:52 बजे तक अभिजीत मुहूर्त है।
भूलकर भी ना करें इस समय पूजा
मकर संक्रांति के दिन कुछ समय ऐसा भी है जब पूजा-अर्चना, दान और तर्पण करना वर्जित है। सुबह 07:15 बजे से लेकर 08:34 बजे तक उद्वेग मुहूर्त का संयोग बन रहा है। उसी प्रकार सुबह 12: 31 बजे से लेकर कि 01:49 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना दान और तर्पण करना वर्जित है।
राशियों के अनुसार इन सामग्री का करें दान
मेष :काले कंबल का दान करना लाभप्रद रहेगा।
वृषभ :श्वेत वस्त्रों का दान संकटों से रक्षा करेगा।
मिथुन : हरे रंग और लाल रंगों का कंबल दान करें।
कर्क :रंग-बिरंगे नए वस्त्र दान करें।
सिंह : अशुभ प्रभाव कम करने के लिए लाल रंग का कंबल दान करें।
कन्या : हरे, गुलाबी रंग के वस्त्र या हरे फल दान करें।
तुला :श्वेत अनाज का दान करें।
वृश्चिक : खिचड़ी और फलों का दान करें।
धनु : फलों और तिल का दान करना लाभप्रद रहेगा।
मकर : काले तिल और काले कंबल का दान करें।
कुंभ :गायों को हरा चारा खिलाएं। तिल दान करें।
मीन : मूंग की दाल और चावल की खिचड़ी दान करें।
डिस्क्लेमर
मकर सक्रांति के संबंध में लिखा गया यह लेख काफी ज्ञानवर्धक और स्वास्थ्यवर्धक है। ज्योतिषाचार्य, प्रवचन कर्ता और विद्वान आचार्यों से मिलकर लिखा गया है। पौराणिक कथाओं वेद, पुराण और महाभारत से लिया गया है। पूजा करने का शुभ और अशुभ समय पंचांग से लिया गया है। यह लेख आपको अपने पर्व की महत्ता को समझाने और सनातनी परंपराओं को पहचान के लिए लिखा गया है।
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चूड़ा
दही और गुड़ जानें औषधीय गुण। सक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा सहित सभी तरह की जानकारी इस लेख में आपको पढ़ने को मिलेगा।
मकर संक्रांति के दिन क्यों खाई जाती है तिलकुट