आदिकाल से दशहरा अर्थात विजयादशमी पर अपराजिता पूजा, शमी पूजन, शस्त्र पूजन, सिंदूर खेल पूजन व सीमा उल्लंघन करने की परंपरा रही है।
दशमी के दिन मां दुर्गा की विदाई होती है।
मां दुर्गा 9 दिनों तक पृथ्वी लोक में रहन के बाद के कैलाश पर्वत जानें के लिए प्रस्थान करती है
इस दौरान महिलाएं सिंदूर से पूजन कर मां दुर्गा की विदाई करती है। इसे सिंदूर पूजन भी कहा जाता है।
जानें अपराजिता पूजा करने का विधान
घर के पूर्वोत्तर दिशा में पवित्र स्थान देख लें, अगर नहीं हो तो मंदिर या किसी गार्डन को साफ सुथरा कर अपराजिता पूजा करने के लिए स्थान चयन कर लेना चाहिए। उसके बाद उस स्थान को गोबर से लीपकर शुद्ध करना चाहिए।
अक्षत से निर्मित अष्ट दल पर मृतिका की मूर्ति स्थापना करके 'ॐ अपराजितायै नमः मंत्र का जाप कर दक्षिण भाग में अपराजिता की , ॐ क्रियाशक्तयै नम: वाम भाग में जया की एवं ॐ उमायै नम: विजया का आह्वान करते हुए मंत्रों का जाप करना चाहिए। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करनी चाहिए।
शमी का पूजन कैसे करें
शस्त्र पूजन करने का विधान
सीमा उल्लंघन करने की परंपरा
सीमा उल्लंघन का इतिहास रहा है। क्षत्रिय राजा विजयादशमी के दिन सीमा उल्लंघन करने के लिए दूसरे राज्यों पर आक्रमण कर देते थे। हालांकि अब यह परंपरा पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। शास्त्रीय परंपरा के अनुसार यह प्रगति का घोतक है। यह परंपरा एक तरह के संदेश देने का काम करते हैैं। मानव जाति को एक परिधि से संतुष्ट न होकर सदा आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है।
आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को शस्त्र पूजन करने का विधान है। नौ दिनों तक शक्ति उपासना के बाद दसवें दिन मनुष्य अपने जीवन के हर क्षेत्रों में विजय प्राप्ति की कामना करने के साथ मां चंद्रिका की स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन करनी चाहिए।
शस्त्र पूजन की परंपरा का आयोजन रियासतों में आज भी बहुत धूमधाम के साथ होता है। शासकीय शस्त्रागारों के साथ आम लोग भी आत्मरक्षार्थ अपने घरों में रखें जाने वाले शस्त्रों का पूजन सभी तरह के विजय की कामना के साथ करते हैं।
दशहरा पर्व के चलते हथियारों के पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन हथियारधारी अपने-अपने हथियारों का पूजन करते हैं। इस पूजा-अर्चना के पूर्व हथियारों की साफ-सफाई सावधानी से करनी है।
दशहरा पर शस्त्र पूजन विधि
विजयादशमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि कर साफ-सुथरी कपड़े धारण करना चाहिए।
शुभ मुहूर्त में शस्त्रों की पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद सभी शस्त्रों पर हल्दी या कुमकुम से तिलक कर अपराजिता के फूल व शमी के पत्ते समर्पित करें।
इस दिन गरीबों को दान-दक्षिणा देकर भोजन कराएं।