यम का दीया निकाले त्रयोदशी तिथि को, जानें स्कंद पुराण में क्या कहा गया है

धनतेरस की रात यमराज की पूजन करने का विशेष विधान है

साल भर में सिर्फ एक ही दिन धनतेरस की रात यमराज की पूजा कर, दीप निकालने की धार्मिक परंपरा है।

धनतेरस की रात यमराज की पूजन कर अपने घर के बाहर दक्षिण दिशा में दीप का मुख रखने से भगवान यमराज खुश होते हैं और घर में अकाल-मृत्यु किसी को भी नहीं होती है।

पुराने दीया में सरसों का तेल डालकर, कपड़े का बात्ती लगाकर घर की सबसे बुजुर्ग महिला, घर के सभी सदस्यों को भोजन करने के उपरांत यम के दिए को पूरे घर के सभी कमरों में दिखाने के बाद घर के बाहर कचरे के ढेर के नजदीक दक्षिण की ओर मुख करके दीया को रख दें।

इसके बाद भगवान यमराज का नाम लेकर जल अर्पितकर, बिना पीछे देखे घर में प्रवेश कर जाए।

माना जाता है कि यम के दीया निकालने से घर के किसी भी सदस्य को अकाल मृत्यु नहीं होती है और घर के सभी नकारात्मक ऊर्जा बाहर चले जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा से पूरा घर भर जाता है।

यम दीपदान का पौराणिक कथा

स्कंद पुराण के अनुसार एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहां कि कभी ऐसा भी होता है कि जब किसी का प्राण हरण करने तुम जाते हो तुम्हारी आंखों में आंसू आ जाता है और उस व्यक्ति का प्राण हरण करने का मन नहीं करता है।

यमराज जी के समझाने के बाद एक यमदूत ने एक घटना को याद करते हुए कहा कि कहा कि किसी राज्य में एक राजकुमार रहता था राजकुमार के कुंडली के अनुसार उसके विवाह के उपरांत 4 दिन तक वह जीवित रहेगा इसके बाद उसकी मृत्यु निश्चित है। राजा को बात पता चला तो राजकुमार को ब्राह्मण के भेष बनाकर जंगल में रहने का आदेश दिया। राजकुमार सुख पूर्वक जंगल में रहने लगे। हंस देश की राजकुमारी जंगल में भ्रमण करने को आई थी।

 उस राजकुमार को देख लिया और उसके रंग रूप पर मोहित हो गई। इसके बाद दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया विवाह के उपरांत चौथे दिन राजकुमार की मौत हो गई। यमराज के दूत जब राजकुमार का प्राण लेने आए तो राजकुमारी का रूदन देखकर आंखें भर गई। होनी को कोई टाल नहीं सकता इस कारण यमराज के दूत को राजकुमार का प्राण लेकर आना पड़ा।

दूत में यमराज से पूछा कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे किसी भी व्यक्ति को अकाल मृत्यु से मृत्यु न हो। हेमराज जी ने कहा कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष के त्रियोदशी तिथि को जो मेरे नाम का दीपदान करेगा। उसके घर में अकाल मृत्यु किसी भी व्यक्ति को नहीं होगा।

यमदीप दान का श्रीकृष्ण संबंधित पौराणिक कथा

यमदीप दान को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस पर्व के महत्व को बताने के लिए बहुत सारी कथाएं प्रचलित है। जिसमें से एक कथा श्रीकृष्ण से भी संबंधित है। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मानवों को परेशान किया हुआ था। असुर ने संतों के साथ 16 हजार औरतों को बंदी भी बनाकर रखा था। उसके बढ़ते अत्याचार को देखते हुए देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भगवान श्रीकृष्ण की पास गए और बोला कि इस नरकासुर का अंत कर पृथ्वी से पाप का भार कम करें।

इसके बाद भगवान कृष्ण ने देवताओं को आश्वस्त किया परंतु नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का शाप था। इसी वजह से भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी मदद से नरकासुर का वध कर दिया। जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ था उसी दिन से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी।

यम दीप निकालने का समय और तरीका

कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को धनतेरस के दिन यम का दीया घर से निकालने का विधान है। परिवार के सभी लोग खाना खाकर सोने के लिए जाने लगे उसी समय घर की सबसे बुज़ुर्ग महिला एक बड़े सी दीया जिसमें सरसों का तेल भरा हो, दीया की बाती कपड़े का होना चाहिए। उसे लेकर घर से बाहर जाती है और कचरे के ढेर के सामने दक्षिण की ओर मुख करके दीया रखती है। दीया के नीचे तिल या अरवा चावल रखना उत्तम रहेगा। उसके बाद यमराज को जल से अर्ध्य देती है। इसके बाद यमराज से अपने परिवार के खुशहाली और अकाल मृत्यु से बचने के लिए प्रार्थना करती है। इसके बाद बिना मुड़े घर की ओर प्रस्थान कर जाती है।

डिस्क्लेमर

यम का दिया निकालने की परंपरा सनातन युग से चला आ रहा है। स्कंद पुराण में यम का दिया निकालने का विधान बताया गया है। पौराणिक कथाओं और परंपराओं पर आधारित है यह लेखक। 

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