हमारे कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कोई 26 अक्टूबर को तो कोई 27 अक्टूबर को मना रहा है चित्रगुप्त पूजा।
धर्म शास्त्र के अनुसार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वितीय तिथि को चित्रगुप्त पूजा मनाया जाता है।
कार्तिक माह शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि का शुभारंभ 26 अक्टूबर दोपहर 2 बजकर 42 मिनट पर और समापन 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगा।
सिंधु निर्णय पुराण के अनुसार उदया काल में जो तिथि पड़ती है। उस तिथि का मान्यता दिनभर रहता है।
27 अक्टूबर के दिन उदया तिथि मैं कार्तिक माह के द्वितीय तिथि पड़ रहा है। इसलिए 27 अक्टूबर को ही चित्रगुप्त पूजा धर्म और शास्त्र सम्मत होगा।
यमराज किसी भी व्यक्ति के पुण्य और पाप कर्मों को देखकर दंड देने की पृष्ठभूमि भगवान चित्रगुप्त हीं तैयार करते हैं। चित्रगुप्त भगवान को सृष्टि का प्रथम न्यायाधीश कहा जाता है। सम्पूर्ण कायस्थ समाज भगवान चित्रगुप्त के हीं वंशज हैं। ब्राह्मणों की श्रवण विद्या को कायस्थ समाज ने लेखनी का रूप देकर स्थायित्व प्रदान किया
धर्मराज ने ब्रह्मा जी से मांगा योग व्यक्ति जो पाप और पुण्य की गणना करने में सक्षम हो। धर्मराज ने जब एक योग्य विद्वान सहयोगी की मांग भगवान ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानमग्न हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष को उत्पन्न किए। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया (शरीर) से हुआ था।
ब्रह्मा जी की काया ही कायस्थ है
भगवान ब्रह्मा के काया से उत्पन्न होने के कारण कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। भगवान चित्रगुप्त के चार हाथ है। इन हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल धारण किए हुए हैं।
चित्रगुप्त जी की पत्नियां थी एरावती और सूर्यदक्षिणा
एक समय की बात है ऋषियों में श्रेष्ठ ऋषि सुशर्मा ने संतान की चाहत हेतु ब्रह्माजी का घोर तपस्या किया। ब्रह्माजी के कृपा से ऋषि को एरावती अर्थात शोभावति नाम की पुत्री प्राप्त हुई। अपनी पुत्री को ऋषि सुशर्मा ने चित्रगुप्त के साथ विवाह कर दिया। इरावती ने 08 पुत्रों जन्म दिया। इन आठ पुत्रों का नाम इस प्रकार हैं। पहला चारु, दूसरा सुचारु, तीसरा चित्र, चौथा मतिमान, पांचवां हिमवान, छठा चित्रचारु, सातवां अरुण और आठवां अतीन्द्रिय है।
चित्रगुप्त जी के 12 पुत्र थे
दूसरी कन्या मनु की पुत्री सूर्यदक्षिणा अर्थात नंदनी थी। चित्रगुप्त से सूर्यदक्षिणा की विवाही हुई। सूर्यदक्षिणा से 4 पुत्र हुए। उनके नाम इस प्रकार है। प्रथम भानु, द्वितीय विभानु, तृतीय विश्वभानु और चौथे वीर्य्यावान् थे। चित्रगुप्त के ये 12 पुत्र विश्व विख्यात हुए और पृथ्वी लोक में रहने लगे।
वंश का नामकरण हुआ पुत्रों के कर्म पर
उनमें से प्रथम पुत्र चारु मथुराजी को गए और वहां रहने से मथुर वंश हुए। सुचारु गौड़ अर्थात बंगाले में बस गए। इससे वे गौड़ वंशज के हुए। पुत्र चित्रभट्ट विशाल नदी के किनारे बसे एक नगर में बस गए, इससे वे भट्टनागर वंशज कहलाए। श्रीवास नगर में जाकर पुत्र भानु बसे। इससे उनके वंशज श्रीवास्तव कहलाए।
पुत्र हिमवान, माता अम्बा दुर्गाजी की आराधन करने के लिए अम्बा नगर में बस गए। अंबा नगर में बसने के कारण उनके वंशज अम्बष्ट कहलाए। सखसेन नगर में अपनी भाई के साथ पुत्र मतिमान गए। इससे वे सूर्यध्वज कहलाएं। उनके वंशज अनेक स्थानों में बसे और अनेक जाति कहलाएं।
चित्रगुप्त पूजा के दिन कैसा रहेगा पंचांग के अनुसार
चित्रगुप्त पूजा इस बार 27 अक्टूबर 2022 दिन गुरुवार कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को पड़ रहा है। द्वितीय तिथि गुरुवार को दोपहर 12:45 बजे तक है। इसके पहले चित्रगुप्त पूजा करना धर्म और शास्त्र सम्मत होगा।
चित्रगुप्त पूजा के दिन नक्षत्र विशाखा है। योग आयुष्मान इसके बाद अनुराधा हो जाएगा। सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा सुबह 06:31 बजे तक तुला राशि में इसके बाद वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाएंगे।
सूर्योदय सुबह 06:29 बजे पर और सूर्यास्त 05:40 बजे पर। चंद्रोदय सुबह 08:16 बजे पर चंद्रास्त शाम 07:30 बजे होगा। दिनमान 11 घंटा 10 मिनट का और रात्रिमान 12 घंटा 49 मिनट का होगा।
पूजा करने का शुभ मुहूर्त
भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 06:27 बजे से लेकर 07:52 बजे तक अमृत मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 09:16 बजे से लेकर 10:48 बजे तक शुभ मुहूर्त एवं 01:30 बजे से लेकर 02:54 बजे तक चर मुहूर्त होगा। अभिजीत मुहूर्त दिन के 12:42 बजे से लेकर 12:57 बजे तक रहेगा।
अमृत काल 12:57 बजे से शुरू होकर दिन भर और रात भर रहेगा। उसी प्रकार सवार्थ सिद्धि योग दिन के 12:11 बजे से शुरू होकर दिन भर और रात भर रहेगा। इस दौरान भगवान चित्रगुप्त की पूजा करना फलदाई होगा।
भूल कर भी ना करें इस वक्त पूजा
चित्रगुप्त पूजा के दिन सुबह 07:52 बजे से लेकर 09:16 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 10:41 बजे से लेकर 12:05 बजे तक रोग मुहूर्त और दिन के 12:05 बजे से लेकर 01:30 तक उद्वेग मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करने से बचना चाहिए।
पौराणिक कथा
सौराष्ट्र अर्थात आज के गुजरात और महाराष्ट्र के क्षेत्र में एक राजा हुआ करते थे। उनका नाम राजा सौदास था। राजा अत्याचारी, अधर्मी, दुराचारी और पाप कर्मों में लिप्त रहने वाला था। राजा सौदास ने अपने जीवन काल में कभी भी पुण्य का काम नहीं किया था। एक बार राजा सौदास शिकार खेलते-खेलते घनाघोर जंगल में जाकर भटक गए। जंगल में राजा को एक तपस्वी ब्रह्मण दिखा जो पूजा कर रहे थे।
राजा सौदास ने जानने की चाहत लेकर ब्रह्ममण के पास गए और उनसे पूछा कि इस विरान जंगल में आप किनकी पूजा कर रहे हैं। ब्रह्मण ने कहा आज कार्तिक मास के शुक्लपक्ष द्वितीया तिथि है। आज के दिन हम यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा कर रहे हैं। इन दोनों के पूजा करने से नरक की यातना से मुक्ति मिलती है।
इसके बाद राजा ने ब्राह्मण से पूजा करने का विधान पूछकर उसी स्थान पर चित्रगुप्त महाराज और यमराज भगवान की विधि विधान से पूजा-अर्चना किया।
समय काल की गति से बढ़ने लगे। एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने उसके महल पहूंच गए। दूत ने राजा की आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए यमलोक ले गये।
लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचे तब चित्रगुप्त ने राजा के कर्मों की लेखा-जोखा देखा और यमराज से कहा कि यह राजा बड़ा ही पापी और अधर्मी है। इसने जीवन भर सदा पाप कर्म ही किए हैं।
राजा ने कार्तिक मास के शुक्लपक्ष द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन किया था। इस कारण राजा के सारे पाप खत्म हो गये हैं। अब राजा को धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा सकता। इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी और स्वर्ग लोक की ओर प्रस्थान कर दिए।
डिस्क्लेमर
चित्रगुप्त पूजा के संबंध में लोगों के बीच भ्रम की स्थिति फैली हुई है। कोई विद्वान पंडित 26 अक्टूबर बता है, तो कोई 27 अक्टूबर करने को कह रहा है।
पंचांग के अनुसार 26 अक्टूबर को दोपहर से लेकर 27 अक्टूबर के दोपहर तक द्वितीय तिथि है। चित्रगुप्त पूजा द्वितीय तिथि में होती है। तिथि को मानने वाले लोग 26 अक्टूबर को चित्रगुप्त पूजा करेंगे जबकि उदया तिथि में को मानने वाले लोग 27 अक्टूबर को पूजा करेंगे। सभी स्रोत सनातनी विद्वान पंडितों के मतानुसार लिया गया है। लेखक एक धार्मिक अनुष्ठान समझकर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है।