24 अक्टूबर को दीपावली, महालक्ष्मी पूजा, काली पूजा, कुबेर पूजा व रूप चौदस पूजा जानें संपूर्ण जानकारी

दीपोत्सव का महापर्व दीपावली 24 अक्टूबर 2022, दिन सोमवार को है। 

कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष, अमावस्या तिथि को दीपावली के साथ महालक्ष्मी पूजा, कुबेर पूजा, रूप चौदश पूजा और मां काली की पूजा करने की परंपरा है।

दीपावली के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में होंगे। 

तुला राशि भगवान श्रीराम का राशि है। दीपावली भगवान श्रीराम का लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्या वासियों ने घी का दीप जलाकर श्रीराम प्रभु, भाई लक्ष्मण और माता सीता सहित सभी सैनिकों का स्वागत किए थे।


जानें पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा दिन

दीपावली के दिन अमावस्या तिथि शाम 05:27 बजे से शुरू होगी। हस्त नक्षत्र दिन के 02:42 बजे तक है, इसके बाद चित्रा नक्षत्र आ जाएगा।

 प्रथम करण शकुनि है, जो शाम 05:27 बजे तक रहेगा। इसके बाद चतुष्पद हों जायेगा। योग जिनके 02:33 बजे तक वैधृति है इसके बाद   विष्कम्भ हो जाएगा।

 ‌सूर्योदय सुबह 06:27 बजे पर और सूर्यास्त शाम 05:43 बजे पर होगा। ऋतू हेमंत है। दिनमान 11 घंटा 15 मिनट का और रात्रिमान 12 घंटे 43 मिनट का रहेगा।

आनन्दादि योग वज्र है, जो दिन के 07:43 बजे तक रहेगा। इसके बाद मुद्रर हो जायेगा। दिशा शूल पूर्व, राहु काल वास उत्तर, अग्निवास पृथ्वी और चंद्रवास दक्षिण दिशा में रहेगा।

कब करें काली पूजा जानें पंचांग से

मध्य रात्रि में होती है मां काली की पूजा। इस वर्ष मध्य रात्रि में उद्धैग मुहूर्त के आने से थोड़ी देर के लिए बाधा है। 

काली पूजा करने का शुभ मुहूर्त 10:30 बजे से शुरू होकर सुबह 6:30 बजे तक है। इस बीच 12:05 बजे से लेकर 01:41बजे तक उद्वेग मुहूर्त रहेगा, जो एक ख़राब मुहूर्त है। इस दौरान पूजा अर्चना करना ठीक नहीं होगा।

दीपावली की रात कब करें महालक्ष्मी पूजा

दीपावली के दिन शाम से लेकर देर रात तक तीन शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। जिस समय आप दीपदन और महालक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं। शाम 04:18 बजे से लेकर 05:43 बजे तक अमृत मुहूर्त और शाम 05:43 बजे से लेकर 07:18 बजे तक चर मुहूर्त है। इस दौरान आप दीपदान और दीपावली की पूजा कर सकते हैं। रात 10:30 बजे बजे से लेकर 12:30 बजे तक लाभ मुहूर्त के अलावा निशिता मुहूर्त है। इस दौरान महालक्ष्मी की पूजा, तिजोरी पूजा और बही-खाते की पूजा कर सकते हैं। यह पूजा काफी फलदाई और शुभ होगा। 

भूलकर भी ना करें इस समय मां महालक्ष्मी की पूजा

दीपावली के दिन सभी धार्मिक कार्यक्रम शाम से लेकर देर रात तक होती है। इस दौरान शुभ और अशुभ मुहूर्त देखना जरूरी रहता है। शाम 07:18 बजे से लेकर 08:54 बजे तक रोग मुहूर्त है और 08:54 बजे से लेकर रात 10:30 बजे तक काल मुहूर्त है। इस दौरान पूजा अर्चना करने से लोगों को बचना चाहिए।

दीपावली पर दो पौराणिक कथा है प्रचलित

दीपावली के संबंध में दो पौराणिक कथा प्रचलित है। त्रेता युग में भगवान श्री राम का लंका विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटने पर नगर वासियों ने घी का दीप प्रज्ज्वलित कर खूशी का इजहार किया था। द्वापर युग में महाबली और वामन अवतार का प्रसंग मिलता है।

बात महाभारत काल की है।

एक बार युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा भगवन आप मुझे कृपा कर कोई ऐसा व्रत, त्योहार या अनुष्ठान बतायें, जिसके करने से मै अपने नष्ट राज्य को पुनः प्राप्त कर सकूं। क्योंकि राज्यच्युत हो जाने के कारण में अत्यन्त दुःखी हूं। श्रीकृष्ण ने कहा कि मेरा परमभक्त दैत्यराज बलि ने एक बार सौ अश्वमेघ यज्ञ करने का संकल्प लिया।

99 यज्ञ तो उसने निर्विध्न रूप से पूर्ण कर लिये, परन्तु 100 वें यज्ञ के पूर्ण होते ही उन्हें अपने राज्य से निर्वासित होने का भय सताने लगा। देवताओं को साथ लेकर इन्द्र भगवान विष्णु के पास पहुंचकर सम्पूर्ण वृत्तान्त भगवान् विष्णु से कह सुनाया। सुनकर भगवान विष्णु ने उनसे कहा, मैं तुम्हारे कष्ट को शीघ्र दूर कर दूंगा।

भगवान विष्णु ने वामन का अवतार धारण कर ब्राम्हण के भेष में राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे। राजा बलि को वचनबद्ध कर भगवान् ने तीन पग भूमि उनसे दान में मांग ली।

बलि द्वारा दान का संकल्प करते ही भगवान् ने अपने विराट् रूप से एक पग में सारी पृथ्वी को नाप लिया । दुसरे पग से अंतरिक्ष और तीसरा चरण उसके सिर पर रख दिया । राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उससे वर मांगने को कहा।

राजा के कहा - कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक अर्थात दीपावली तक इस धरती पर मेरा राज्य रहे। तीन दिनों तक सभी लोग दीप-दान कर लक्ष्मी जी की पूजा करें।

दूसरी कथा लंका विजय से जुड़ी हैं

पौराणिक कथा के अनुसार दीपावली के दिन अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे।अयोध्यावासियों प्रिय राजा के आगमन से उत्साहित थे। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। धरती पर भ्रमण करती हैं और लोगों को वैभव का आशीष देती है।

तीसरी कथा सतयुग में हुई थी दीपावली की प्रथम आयोजन

सबसे पहले दीपावली की शुरुआत सतयुग से हुई थी। देवता और दानवों ने मिलकर एक साथ समुद्र मंथन किया तो इस महा आयोजन से माता लक्ष्मी, हलाहल विष, धन्वंतरि महाराज अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इसके अलावा ऐरावत हाथी, चंद्रमा, उच्चैश्रवा, परिजात, वारुणी, रंभा आदि 14 रत्नों के की प्राप्ति हुई थी। अमृत कलश लिए धन्वंतरि महाराज भी प्रकटे। इसीलिए तो स्वास्थ्य के अनंत देव धन्वंतरि महाराज की जयंती से दीपावली का महापर्व शुरू होता है।

इसी समुद्र मंथन से माता महालक्ष्मी जन्मीं और उसी दिन से सारे देवताओं ने माता महालक्ष्मी की पृथ्वी पर आने की खुशी औऊ स्वागत करते हुए पहली बार दीपावली मनाई। 

डिसक्लेमर

इस लेख में दी गई सारी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी हम पूरी नहीं लेते है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर यह जानकारियां आप तक पहुंच रहे हैं। हमारा उद्देश्य महज आपतक सूचना पहुंचाना है। पढ़ने वाले सिर्फ धार्मिक सूचना समझकर पढ़ें। इसके अलावा, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पढ़ने वाले की होगी।




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