सरल भाषा में करें दुर्गा सप्तशती का पाठ और जानें संपूर्ण विधि
कोई जरूरी नहीं है कि संस्कृत भाषा में लिखे श्लोक का ही पाठ करें, हिंदी भाषा में भी कर सकते हैं पाठ
पाठ करने के लिए शुद्धता, स्वच्छता और समर्पण भाव जरूरी है
दुर्गा सप्तशती का पाठ क्रमांक अनुसार करें
दुर्गा सप्तशती पाठ करने के पहले पुस्तक का करें पूजन
दुर्गा सप्तशती पाठ करने के पहले के लिए 17 नियमों का करें पालन हो जाएंगे मालामाल
दुर्गा सप्तशती पाठ करने में लगने वाली सामग्रियों की सूची
चैत्र नवरात्र के दिनों बहुत से श्रद्धालु अपने घरों में मां दुर्गे की प्रतिमा स्थापित कर सप्तशती का पाठ या श्रवण करते हैं। वैसे भक्तों को पाठ करने के दौरान कुछ नियम का पालन करना चाहिए। सबसे पहला नियम है शुद्धता, साफ-सफाई और सप्तशती पुस्तक में लिखे हुए श्लोकों का सही ढ़ंग से उच्चारण करना चाहिए। साथ ही स्पष्ट आवाज में सुनाई पड़नी चाहिए। आइए जानें सरल भाषा में कैसे करें पाठ दुर्गा सप्तशती का पाठ।
दुर्गा पूजा-पाठ की विधि
उसमें यन्त्रस्थ कलश, गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी, 49 क्षेत्रपाल तथा अन्यान्य देवताओं की वैदिक विधि विधान से पूजा होती है। अखंड दीप जलाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
देवी का पूजन किस प्रकार करें
देवी भगवती प्रतिमा की अंग-न्यास और अग्न्युत्तारण सहित अन्य विधि के साथ विधिवत् पूजा की जाती है। नवदुर्गा पूजा, ज्योतिःपूजा, बटुक-गणेशादि सहित कुमारी पूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबंधन, पुण्याहवाचन, मंगलपाठ, गुरुपूजा, तीर्थावाहन एवं मंत्र-खान आदि सहित आसनशुद्धि, प्राणायाम, भूतशुद्धि, प्राण-प्रतिष्ठा, अन्तर्मातृकान्यास, बहिर्मातृकान्यास, सृष्टिन्यास, स्थितिन्यास, शक्तिकलान्यास, शिवकलान्यास, हृदयादिन्यास, षोडशान्यास, विलोम-न्यास, तत्त्वन्यास, अक्षरन्यास, व्यापकन्यास, ध्यान, पीठपूजा, विशेषार्घ्य, क्षेत्रकीलन, मन्त्र पूजा, विविध मुद्रा विधि, आवरण पूजा एवं प्रधान पूजा आदि का शास्त्रीय पद्धति के अनुसार अनुष्ठान करना चाहिए है।
अन्यान्य पूजा-पद्धतियों से करें पूजन
इस प्रकार विस्तृत विधि से पूजा करने की इच्छा रखने वाले भक्तों को अन्यान्य पूजा-पद्धतियों की सहायता से भगवती की आराधना करके पाठ आरंभ करना चाहिए।
लकड़ी के चौकी पर मां को दे स्थान
पाठ कर्ता पहले स्नान करके पवित्र हो जाना चाहिए। इसके बाद आसन-शुद्धि की क्रिया पूरा करें। तत्पश्चात शुद्ध आसन पर बैठे जाएं। इसके बाद शुद्ध जल, पूजन-सामग्री और दुर्गा सप्तशती की पुस्तक रख लें। पुस्तक को अपने सामने लकड़ी के शुद्ध आसन (चौकी) पर विराजमान कर दें। अपने ललाट में अपनी इच्छा के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा (टिक) बांध लें, फिर पूर्वा दिशा की ओर मुंह करके तत्त्व-शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें।
इन चार मंत्रों का करें जाप
पूजा करते समय इन चार मंत्रों को क्रम के अनुसार पढ़ें -
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
पाठ आरंभ करने के पहले लें संकल्प
चारों मंत्रों का जाप करने के बाद प्राणायाम करके गणेश सहित अन्य देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करे, फिर 'पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ' मंत्र से कुश की पवित्री अपने हाथ की उंगली में धारण करें। इसके बाद हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें।
नवार्ण मंत्र से पुस्तक स्थापित करें
संकल्प करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें। योनि-मुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करे। फिर मूल नवार्ण मंत्र से पीठ में आदि शक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर दुर्गा सप्तशती पुस्तक को स्थापित करें।
मंत्र का सात बार जाप करें
इसके बाद शापोद्वार करना चाहिए। इसके अनेक प्रकार हैं। 'ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा' - इस मंत्र का आदि और अन्त में सात-सात बार जप करे। यह शापोद्वारमन्त्र कहलाता है।
मंत्र का 7 और 21 बार करें जाप
इसके अनन्तर उत्कीलन-मंत्र'ॐ ह्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहआ, का जप किया जाता है। इसका जप शुरू और अन्त में 21-21 बार होता है। इस मंत्र जप के पश्चात् शुरू और अन्त में 7-7 बार मृत-संजीवनी विद्या का जप करना चाहिए।
ऐसे करें दुर्गा पाठ का आरंभ
इस प्रकार शापोद्धार करने के अनंतर अन्तर्मातृकाबहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर भगवती का ध्यान करके रहस्य में बताये अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी का पूजन करें, इसके बाद छः अंगो सहित दुर्गा सप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है।
दुर्गा सप्तशती का छह अंग माने गए हैं
कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य - ये ही सप्तशती के छः अंग माने गए हैं। उनके क्रम में भी मतभेद है। चिदम्बर संहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है। किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक-संज्ञा दी गई है।
जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति तथा अंत में कीलक का उच्चारण होता है। उसी प्रकार यहां भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अंत में कीलक रूप कीलक का है।
क्रमश: पाठ होना चाहिए।
यह विधि अत्यंत सरल मानी गई है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ अर्थात प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ अर्थात द्वितीय अध्याय, तीसरे दिन अर्थात तृतीय अध्याय, तीसरे दिन भी एक पाठ अर्थात चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ करनी चाहिए। अर्थात पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय रहेगा। पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ करें। नवम, दशम अध्याय का पाठ पांचवें दिन करना चाहिए। छठें दिन ग्यारहवां अध्याय का पाठ करें। सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है।
शुद्धता का रखें ध्यान
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के दौरान शुद्धता का ध्यान रखना और पालन करना अत्यंत जरूरी है। इसलिए नित्य क्रिया से निवृत्त होकर जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद साफ वस्त्र पहकर ही पाठ करें। कुशा या ऊन के बने आसन पर बैठकर ही पाठ करें। दुर्गा सप्तशती पाठ करते समय हाथों से पैर का छुना सख़्त मना है।
पाठ शुरू करने के पहले पुस्तक को करें पूजा
दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले पुस्तक को लाल कपड़े के ऊपर रखकर उस पर गंगा जल, अक्षत, प्रसाद और फूल चढ़ाकर पूजा करें। पूजा करने के बाद ही पुस्तक पढ़ना शुरू करें।
पाठ शुरू और अंत करने पर पढ़ें ये मंत्र
नर्वाण मंत्र ''ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे'' का जाप करना जरूरी होता है। मंत्र का जप नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नर्वाण मंत्र का जप करें।
श्लोक की शुद्धता ज़रूरी
दुर्गा सप्तशती के पाठ में एक-एक शब्द का उच्चारण साफ और स्पष्ट होना चाहिए। इसमें शब्दों को उल्टा-पुल्टा न बोलें और ना ही शब्दों का हेर-फेर करें। सप्तशती पढ़ते वक्त बहुत जोर-जोर से चिल्लाकर पाठ करना या धीरे-धीरे बोलकर पाठ करने की मनाही है। इस तरह करें कि आपको और सुनने वालों को एक-एक शब्द स्पष्ट सुनाई दे।
हिंदी भाषा में भी करें पाठ
अगर आप संस्कृत भाषा में दुर्गा सप्तशती के पाठ का उच्चारण ठीक ढंग से और शुद्धता के साथ करने में कठिनाई हो रही है। तो आप संस्कृति भाषा में लिखे श्लोक के नीचे हिंदी भाषा में लिखे अर्थ को ही पढ़ें। लेकिन जो भी पढ़ें उसे सही और स्पष्ट बोलें।
पाठ करते समय मन को शांत और स्थित रखें
दुर्गा सप्तशती का पाठ करते वक्त भुलकर भी जम्हाई नहीं लेनी चाहिए। जम्हाई लेना आलस को दर्शाता है। इस प्रकार आपको पाठ करना सही नहीं होगा और उचित फल भी नहीं मिलेगा। इसलिए मन को शांत और स्थिर रखकर ही दुर्गा सप्तशती पाठ शुरू करें।
कुंजिका स्तोत्र का भी कर सकते हैं पाठ
यदि आपके पास किसी दिन समय की भारी कमी है और आप दुर्गा सप्तशती का पूरा पाठ नहीं कर सकते हैं। इस स्थिति में आप दुर्गा सप्तशती के आखिर में दिए गए कुंजिका स्तोत्र का पाठ निष्ठा पूर्वक करे लें और देवी से अपनी पूजा स्वीकार करने की करवद्ध प्रार्थना करें।