6 तिथियों को करें श्राद्ध कर्म पितर जायेंगे विष्णु धाम

श्राद्ध कर्म 12 तरह के होते हैं। अपने पितरों को कैसे करें बिदाई। छह तिथियों को पिंड दान करने से पितरों को मिलती है मुक्ति। श्राद्ध करने के बाद कौन सी वस्तुओं को करनी चाहिए दान। इन सभी विषयों पर जानें विस्तार से।

श्राद्ध कर्म एक सनातनी और संस्कृत शब्द है। जिसका अर्थ होता है ईमानदारी, धार्मिक और  विश्वास के साथ किया हुआ कार्य।

अन्य शब्दों में पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया मुक्ति कर्म को श्राद्ध करते हैं।

श्राद्ध आमतौर पर तीन पीढ़ियों द्वारा किए जाते हैं।

श्राद्ध करने के 12 तरिके होते हैं, जानें विस्तार से


श्राद्ध 12 तरह से किए जातें हैं।

नित्य श्राद्ध

नैमित्तिक श्राद्ध

काम्य श्राद्ध

वृद्धि श्राद्ध

सपिंडन श्राद्ध

पार्वण श्राद्ध

गोष्ठा श्राद्ध

शुद्वचर्य श्राद्ध

कर्मग श्राद्ध

दैविक श्राद्ध

औपचारिक श्राद्ध

सांवत्सरिक श्राद्ध


श्राद्ध एक संस्कृत शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ईमानदारी और विश्वास के साथ किया हुआ कर्म। अन्य शब्दों में पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध आमतौर पर चार तरह का होता है।

इन 6 तिथियों में करें श्राद्ध कर्म पितर जाएंगे विष्णु धाम


अश्वनी कृष्ण प्रतिपदा इस तिथि को नाना नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम माना गया है।



अश्वनी कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि को परिवार के उन पितरों का श्राद्ध करना चाहिए जिनको अविवाहित अवस्था में मृत्यु हो गई है।


अश्वनी कृष्ण पक्ष नवमी तिथि को माता एवं परिवार की महिलाओं के श्राद्ध के लिए उत्तम माना गया है।


कृष्ण पक्ष की एकादशी और द्वादशी तिथि को उत्तम माना गया है। जिन्होंने सन्यास ले लिया था। ऐसे लोगों को मृत्यु के उपरांत आज ही के दिन श्राद्ध कर्म करना चाहिए।


चतुर्दशी तिथि तिथि को वैसे लोगों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। जिनके अकाल मृत्यु हुई है।



अमावस्या स्थिति को सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है।


अपने पितर को कैसे करे बिदाई जानें संपूर्ण जानकारी

पितृ पक्ष में संपूर्ण सम्मान देने के बाद भी चौकी पूर्ण आदर भाव से श्रद्धा पूर्वक विदाई की जाती है विदाई वाला दिन अर्थात अमावस्या की रात्रि मानी जाती है।

उनके नाम से दीपदान करना बहुत जरूरी होता है और अपने पितरों को खुशी-खुशी विदाई किया जाता है। विधि के अनुसार किसी नदी तट पर उनके नाम से 14 दीप जलाकर उन्हें पानी में छोड़ दिया जाता है और उसके बाद अपने पितरों को विदा किया जाता है।

लोगों को ध्यान रखना चाहिए कि दीपक का मुख दक्षिण दिशा की ओर हो और जाने अनजाने में हुई गलती के लिए अपने पितरों से माफी भी मांग लेना चाहिए और अपने परिवार के मंगल कामना की आशीष भी मांगे।

यदि आसपास नदी नहीं हो तो यह कार्य आप पीपल के पेड़ के नीचे भी कर सकते हैं। पीपल के पेड़ के नीचे 14 दीया प्रकाशित करें और 14 दीया का मुंह दक्षिण की ओर होना चाहिए और भूल चूक के लिए माफी मांगे परिवार की समृद्धि के लिए उनसे आशीष मांगे।

श्राद्ध कर्म में किन वस्तुओं का करें दान

श्राद्ध कर्म करने के बाद कौन-कौन सी वस्तुएं दान करनी चाहिए। दान करने से कौन सा फल मिलता है। जानें विस्तार से।

 गाय का दान धार्मिक दृष्टि से सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान शुभ अवसर प्रदान करने वाला और धन संपत्ति देने वाला होता है।

तिल का काम श्राद्ध के हर कार्य में होता है। इसलिए तिल का महत्व हर तरह से श्राद्ध में महत्वपूर्ण है। दान की दृष्टि से काले तिल का दान करने से संकट काल से रक्षा करता है।

श्राद्ध में गाय का घी बर्तन में रखकर दान करना चाहिए। इसे परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

अनाज का दान के तहत अन्न दान में गेहूं, चावल और दाल का दान करना चाहिए। इसके अलावा कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल मिलता है।

भूमि का दान करने से संपत्ति और संतान लाभ मिलता है। ब्राह्मण को धोती, कुर्ता, दुपट्टा, साड़ी के दान का महत्व होता है। सोना, चांदी और गुड़ का दान देने से वंश वृद्धि होती है। नमक का दान पितरों की प्रसन्नता के लिए करना जरूरी है।

श्राद्ध की तिथियां


हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार 1 माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक अपने पितरों के मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है। अर्थात 12 महीने के मध्य में छठे माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से लेकर अश्विन माह के अमावस्या तक पितृ पक्ष चलता है।


15 दिनों में पितृ पक्ष का समापन हो जाता है। सूर्य भी अपनी प्रथम राशि मेष के भ्रमण करते हुए जब छठी राशि कन्या में 1 माह के लिए भ्रमण करता है, तब 16 दिनों का पितृपक्ष मनाया जाता है।


हिंदू शास्त्र के अनुसार जिस तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है। पितृपक्ष में उसी तिथि को उस मृतक का श्राद्ध कर्म किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु की तिथि ज्ञात ना हो, तो ऐसे किसी भी मृत व्यक्तियों का श्राद्ध कर्म अमावस्या तिथि के दिन किया जाता है।


पितृपक्ष माह में पड़ने वाले तिथियों के अनुसार ही अपने किस संबंधी का श्राद्ध किया जाता है। इसके संबंध में सारी जानकारियां दी गई है।

डिसक्लेमर

इस लेख में दी गई सारी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी हम नहीं लेते है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर यह जानकारियां आप तक पहुंच रहे हैं। हमारा उद्देश्य महज आपतक सूचना पहुंचाना है। पढ़ने वाले सिर्फ सूचना समझकर पढ़ें। इसके अलावा, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पढ़ने वाले की होगी।


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने