मां दुर्गा की नौ दिवसीय आराधना महोत्सव 26 सितंबर 2022, दिन सोमवार, अश्विन माह शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा तिथि कलश स्थापना से आरंभ होगा।
मां दुर्गा को हाथी पर सवार होकर आना और हाथी पर सवार हो कर जाना दोनों अद्वितीय संयोग है।
शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 26 सितंबर अश्वनी माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ प्रारंभ हो जाएगा।
दिन सोमवार है, जो बड़ा ही शुभ है। कारण यह दिन भगवान भोलेनाथ का है और आराधना उनकी अर्धांगिनी मां दुर्गा जो पार्वती का रूप है उसके करते हैं।
प्रतिपदा तिथि देर रात के 03:08 बजे तक रहेगा इसके बाद द्वितीय तिथि प्रारंभ हो जाएगा। इसलिए प्रतिपदा तिथि के समय ही कलश स्थापना करना शुभ रहेगा।
कलश स्थापना के दिन कैसा रहेग
कलश स्थापना के दिन हस्त नक्षत्र रहेगा। प्रथम करण किंस्तुघ्न दिन के 03:19 बजे तक एवं द्वितीय करण बव है। उस दिन सूर्योदय सुबह 06:11 बजे पर और सूर्यास्त शाम 06:13 बजे होगा। चंद्रोदय सुबह 06:20 से लेकर चंद्रास्त शाम 06:41 बजे पर होगा। दिनमान 12 घंटा 01 मिनट का और रात्रिमान 11 घंटा 58 मिनट का रहेगा। सूर्य और चंद्र दोनों कन्या राशि में रहेंगे।
आनंदादि योग वज्र रहेगा। होमाहुति सूर्य, दिशाशूल पूर्व, राहु कालवास उत्तर-पश्चिम, अग्निवास पृथ्वी और चन्द्र वास दक्षिण दिशा में रहेगा।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना अर्थात 26 सितंबर को प्रतिपदा तिथि है। इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में रहेंगे। शरद ऋतु होने के कारण सूर्य दक्षिणायन दिशा में स्थित रहेंगे।
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:00 बज के 48 मिनट से लेकर 12:36 बजे के बीच है। उसी प्रकार विजय मुहूर्त दिन के 02:13 बजे से लेकर 03:01 बजे तक रहेगा।
अमृत मुहूर्त सुबह 06:11 बजे से लेकर 07:42 बजे तक रहेगा। शुभ मुहूर्त सुबह 09:12 बजे से प्रारंभ होकर 10:42 बजे तक, चर मुहूर्त दिन के 01:42 बजे से प्रारंभ होकर 03:13 बजे तक और लाभ मुहूर्त 03:13 बजे से प्रारंभ होकर 04:43 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप कलश स्थापना कर सकते हैं।
अमृत योग में कलश स्थापना करना काफी शुभ माना जाता है वैसे अभिजीत मुहूर्त, शुभ मुहूर्त, चर मुहूर्त और लाभ मुहूर्त में भी कलश स्थापना करना फलदाई होता है।
भूलकर भी ना करें इस दौरान कलश स्थापना
प्रतिपदा के दिन भूल कर भी इस समय ना करें धार्मिक अनुष्ठान और कलश स्थापना। इस दिन काल मुहूर्त सुबह 07:42 बजे लेकर 09:12 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा पाठ और कलश स्थापना करना वर्जित है। उसी प्रकार रोग मुहूर्त दिन के 10:42 बजे से लेकर 12:12 बजे तक, उद्वेग मुहूर्त दोपहर 12:12 बजे से लेकर 01:42 बजे तक रहेगा। इस दौरान कलश स्थापना करना अशुभ माना गया है।
कलश स्थापना में लगने वाली पूजा सामग्री
शारदीय नवरात्र 26 सितंबर दिन सोमवार को कलश स्थापना के साथ 9 दिनों का महा महोत्सव का शुभारंभ हो जाएगा। कलश स्थापना करने के लिए पूजा सामग्री की जरूरत पड़ती है। साथ ही प्रतिपदा तिथि होने के कारण मां शैलपुत्री की पूजा भी की जाती है।
कलश स्थापना करने के पूर्व इन सामग्रियों का खरीदारी कर लेनी चाहिए। कलश स्थापना के लिए जटा वाला नारियल, गाय का गोबर, दूध, दही, पान, सुपारी, रोली, मिट्टी का कलश, सिंदूर, लाल कपड़ा, फूल, उड़हुल फूल का माला, अक्षत, हवन के लिए सूखी लकड़ी, कपूर, जौ, मेवा, मधु, गंगाजल, अगरबत्ती, दीया, गुड़, इत्र, आम का पत्ता, रूई, दूर्वा, सलाई, गुड़, हल्दी, मिठाई और मौसमी फल होना जरूरी है।
नवरात्रि आत्मवल को प्रबल बनाता है
कहा जाता है कि नवरात्रि अपने अंदर शिवा और शक्ति को एकीकार करने का अनुष्ठान है। नवरात्रि आत्मवल प्रबल करने का अवसर प्रदान करता है। नवरात्रि में नौ रूपों में देवी भक्तों के बीच आती है। मन और तन के शोधन का महत्व समझा जाती है।
मां दुर्गा ही काली, लक्ष्मी व सरस्वती है
हमारे वेद पुराण और ऋषि-मनियों ने शिवा और शक्ति को सृष्टि की उत्पति का कारक मानते हैं। महादेवी का नाम देकर इस जगत की आदिशक्ति, जगत का सृजन, पालन और नाश करने वाली शक्ति कहा जाता है। सर्वमान्य है कि यह शक्ति जिसे दुर्गा, काली, सरस्वती और लक्ष्मी आदि नामों से जाना जाता है। यह एक ही शक्ति के बदले हुए रूप और स्वरूप हैं। नवरात्रि के दिन मां शक्ति की नौ रूपों की पूजा प्रत्येक दिन की जाती है।
घट (कलश) स्थापना कैसे करें, जाने संपूर्ण विधि
कलश में गंगाजल भरकर, एक सिक्का, दूर्वा, सुपारी और हल्दी की एक गांठ डाल दें। कलश और ढक्कन के बीच आम के पल्ला (पत्ता) स्थापित करें, लाल वस्त्र में नारियल को लपेट कर उस स्थान पर रख दें।
चावल अर्थात अक्षत से अष्टदल बनाकर उसपर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। मां को लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ानी चाहिए। कलश स्थापना के साथ अखंड दीप प्रज्ज्वलित करें, जो 9 दिनों तक जलेगी।
मां शैलपुत्री का करें पूजन
पहला दिन होने के कारण शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके जाप करें। फूल और चावल मां शक्ति के चरणों में अर्पित करें। मां का भोग शुद्ध घी से बनाएं साथ में मौसमी फल भी प्रसाद के रूप में रखें और मां पर चढ़ाएं। इसके बाद मां आदिशक्ति को ध्यान कर दुर्गा सप्तशती पाठ करें।
कलश के चारों ओर करें जौ की बुआई
कलश स्थापना मिट्टी और बालू के ऊपर करनी चाहिए। मिट्टी और बालू में जौ मिलाकर रखें। 9 दिनों तक सुबह और शाम पूजा के उपरांत शुद्ध जल का छिड़काव उस पर करते रहे। नित्य प्रतिदिन जौ का पौधा बढ़ता जाएगा। माना जाता है कि सृष्टि में सबसे पहले अनाज के रूप में जौ उत्पन हुआ था।
जौ सृष्टि का पहला अनाज
इस अनाज को सृष्टि के उत्पत्ति के साथ देखा जाता है। मान्यता है कि जौ के पौधों को विजयादशमी के दिन उखाड़ कर अपने प्रियजनों के बीच वितरण कर देनी चाहिए।
पौधा वितरण करने से परिजनों के यहां सुख समृद्धि और शांति आती है। इसे लोग अपने दाहिने कान पर रखते हैं। जौ का पौधा अगर खिला हुआ है और स्वस्थ्य है। खिले पौधे को देखने के बाद ऐसा प्रतित होता है कि आपके घर में सुख समृद्धि और प्रियजनों को कष्ट निवारण होगा। इसे मां का संकेतिक घोतक माना जाता है।
जौ को सुखना अथाह संकट
उसी प्रकार अगर आपका बोया हुआ जौ मुरझा गया हो या ठीक से जन्म नहीं ले पाया है, तो इसका मतलब है आपका परिवार संकट में घिर सकता है। और पहाड़ के सामान दुख आपको और आपके परिवार को बर्बाद कर सकते हैं।
दुर्गा सप्तशती पाठ करने वाले लोग रहें ब्रह्मचर्य
नवरात्रा का व्रत रखकर कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती पाठ करने वाले लोग 10 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें। सादा भोजन करें और नमक के जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें। रोजाना दुर्गा सप्तशती का पाठ कर लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें।