अजा एकादशी माघ मास, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि, 23 अगस्त, 2022, दिन मंगलवार को मनाया जायेगा।
23 अगस्त, 2022 दिन मंगलवार, भाद्रपद, कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है।
अजा एकादशी करने से मनुष्यों को सारे पनौती खत्म हो जातें हैं। राजा हरिश्चंद्र ने किया था अजा एकादशी व्रत।
इस व्रत को करने का क्या है विधान, एकादशी व्रत करने का महत्व और व्रत करने से होने वाले फैयदे की बातें विस्तार से पद्म पुराण में वर्णन किया गया है।
किसी भी एकादशी व्रत करने के लिए चारों पहर पूजा करना अनिवार्य होता है।
चारों प्रहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त नीचे दिया गया है।
अजा एकादशी के दिन चंद्रमा मिथुन राशि में और सूर्य सिंह राशि में है। सूर्योदय सुबह 05:54 बजे पर सूर्यास्त 06:30 बजे और चंद्रोदय देर रात 2:00 बज के 49 मिनट पर चंद्रास्त सुबह 4:34 बजे पर होगा।
दिनमान 12 घंटे 58 मिनट का और रात्रिमान 11 घंटे 2 मिनट का होगा।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष के दिन पड़ने वाली जया एकादशी का नक्षत्र आद्रा है। प्रथम करण बिष्ट, योग विष्काम्भ सुबह 08:41 बजे तक रहेगा। इसके बाद प्रीति योग हो जायेगा।
दिन शनिवार है। इस दिन ऋतु शिशिर है। सूर्य दक्षिणायन दिशा में रहेंगे। विक्रम संवत 2079 है। जया एकादशी के दिन ग्रहों की स्थिति समान रहेगा। नक्षत्र मृगशिरा है।
अब जानें कौन मुहूर्त में करें पूजन
अजा एकादशी के दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:58 बजे से लेकर 12:49 बजे तक रहेगा
काशी पंचांग के अनुसार पूजा करने का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त दोपहर 2:27 बजे से लेकर 3:11 बजे तक विजया मुहूर्त के रूप में है। उसी प्रकार गोधूलि मुहूर्त शाम 5:58 बजे से लेकर 6:20 बजे तक, संध्या मुहूर्त 6:09 बजे से लेकर 7:28 बजे तक, मध्य रात्रि का निशिता मुहूर्त 12:09 बजे से लेकर 01:01 बजे तक, ब्रह्मा 5:18 बजे से लेकर 6:10 बजे तक और प्रातः मुहूर्त 05:44 बजे से लेकर 07: 01 बजे तक है। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।
पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार राहुकाल का आगमन दिन के 03:38 बजे से लेकर 05:15 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार गुलिक काल दोपहर 12:24 बजे से लेकर 02:01 बजे तक और दूमुहूर्त सुबह 08:30 बजे से लेकर 09:22 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।
चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार दिन शुभ समय
चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। सुबह 09:09 बजे से लेकर 10:46 बजे तक का चर मुहूर्त का संयोग रहेगा। लाभ मुहूर्त का आगमन शाम 10:46 बजे से लेकर 12:24 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार अमृत मुहूर्त दोपहर 12:24 बजे से लेकर 02:01 बजे तक और शुभ मुहूर्त दोपहर के 03:38 बजे से लेकर दोपहर 05:15 बजे तक रहेगा। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।
चौघड़िया मुहूर्त दिन का अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन अशुभ मुहूर्त सुबह 05:54 बजे से लेकर 07:32 बजे तक रोग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 07:00 बज के 32 मिनट से लेकर 09:00 बज के 09 मिनट तक उद्वेग मुहूर्त रहेगा।
उसी प्रकार दिन के 02:01 बजे से लेकर दोपहर के 03:38 बजे तक काल मुहूर्त और शाम के समय एक बार फिर से रोग मुहूर्त का संयोग बन रहा है, जो 5:15 बजे से लेकर 6:53 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित रहेगा।
रात्रि चौघड़िया शुभ मुहूर्त
रात्रि समय का चौघड़िया पंचांग के अनुसार लाभ मुहूर्त रात 08:15 बजे से लेकर 09:38 बजे तक रहेगा। रात 11:01 बजे से लेकर रात 12:24 बजे तक शुभ मुहूर्त और 12:24 बजे से लेकर 01:47 बजे तक अमृत मुहूर्त है। रात 01:47 बजे से लेकर 03:09 बजे तक चार मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान पूजा अर्चना करना जातकों के लिए लाभप्रद होगा।
चौघड़िया अशुभ मुहूर्त रात का
चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार शाम 06:53 बजे से लेकर रात 08:15 बजे तक काल मुहूर्त, रात की 09:38 बजे से लेकर रात 11:01 बजे तक उद्वेग मुहूर्त और रात 03:09 बजे से लेकर 04:32 बजे तक रोग मुहूर्त का संयोग है। एक बार फिर से अहले सुबह 04:32 बजे से लेकर 05:55 बजे तक काल मुहूर्त का संयोग रहेगा। इस दौरान भी पूजा अर्चना करना वर्जित है।
जया एकादशी व्रत करने का विधान
अजा एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति अजा एकादशी व्रत करना चाहता है उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए।
एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर धूप, मौसमी फल, घी एवं पंचामृत आदि से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
अजा एकादशी की रात सोना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का भजन कीर्तन एवं सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। रात्रि जागरण करना काफी शुभ और फलदाई होता है।
द्वादशी अर्थात पारन के दिन भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन कर उपवास खोलना चाहिए।
पूजा में भोग लगाएं,वितरण करें लोगों के बीच
द्वादशी अर्थात पारण के दिन भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद के रूप में वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन कर उपवास खोलिए। साथ ही बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए।
जानें पूजा सामग्रियों की सूची
पूजा सामग्री के रूप में भगवान श्रीहरि के स्नान कराने के लिए तांबे और पीतल का लोटा या पात्र होना चाहिए।
जल का कलश, दूध,
भगवान विष्णु को पहनाने के लिए वस्त्र और आभूषण, चावल,
कुमकुम, दीपक, जनेऊ, तिल, फूल,
अष्टगंध, तुलसीदाल,
प्रसादी के लिए गेहूं आटे की पंजीरी,
फल, धूप, मिठाई नारियल, मधु, गंगा जल,
सूखे मेवे, गुड़ और पान के पत्ते ब्राह्मणों को दक्षिणा देने के लिए रुपए रख लें।
अजा एकादशी का पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में पांडव श्रेष्ठ युधिष्ठिर को बताया था। अजा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्तियों को अश्वमेघ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। मरने के बाद विष्णुलोक में जाकर मुक्ति प्राप्त करता है।
सतयुग में सूर्यवंशी सत्यव्रती राजा हरीशचन्द्र हुआ करते थे। जो बड़े सत्यवादी राजा थे। एक बार राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में अपने संपूर्ण राजपाट ऋषि विश्वामित्र को दान में दे दिया।
अपने वचन की खातिर उन्होंने राजऋषि विश्वामित्र को बुलाकर दान कर दिया। दक्षिणा देने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी तारामती और पुत्र रोहिताश्व को ही नहीं बल्कि स्वयं तक को दास के रुप में काशी के एक धनी चण्डाल को बेच डाला।
अनेक तरह के कष्ट झेलते हुए भी वह सत्य से विचलित नहीं हुए। पुत्र के मरने के बाद भी राजा हरिश्चंद्र ने कफन के रूप में अपनी पत्नी की आधे साड़ी लेकर ही दफन करने दिया।
एक दिन कि बात है ऋषि गौतम राजा हरिश्चंद्र से मिलने श्मशान घाट आए। राजा हरिचंद के कष्टों को देखते हुए जिन्होंने उन्हें अजा एकादशी की महिमा सुनाएं।
ऋषि गौतम ने राजा हरिश्चंद्र को अजा एकादशी व्रत करने के लिए कहा। राजा हरीश्चन्द्र ने अपनी सामर्थ्यानुसार इस व्रत को निष्ठा पूर्वक किया। व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र को न केवल उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ बल्कि पत्नी और पुत्र भी प्राप्त हो गया। उन्होंने परिवार सहित सभी प्रकार के सुख भोगते हुए अंत में वह विष्णु के परमधाम को प्राप्त किए।
अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से ही राजा हरिश्चंद्र के सभी तरह के पाप नष्ट हो गए। साथ ही उन्हें अपना खोया हुआ राजपाट एवं पुत्र और पत्नी भी प्राप्त हो गया।
भगवान विष्णु को एकादशी व्रत बहुत ज्यादा प्रिय है। एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति संसार के सभी तरह के सुखों प्राप्त करते हुए अंत में विष्णु धाम को प्राप्त करते हैं।
एकादशी में रात्रि जागरण करना बहुत जरूरी है। एकादशी व्रत के दिन किए गए दान करने से कई गुणा अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। जिस कामना से कोई भी व्यक्ति एकादशी व्रत करता है उसकी सभी मनोकामनाएं बहुत जल्दी पूरी हो जाती हैं।
इस व्रत में रात को हरिकीर्तन करते हुए जागरण करने से अनंत फल मिलता है। द्वादशी तिथि के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण कर पारण करना चाहिए। ध्यान रहे द्वादशी तिथि के दिन बैंगन न खाना वर्जित है।
भगवान विष्णु सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापक हैं। बिना मांगे ही भगवान विष्णु अपने भक्तों की सारी परिस्थिति को जानकर उसके सभी तरह के कष्टों और चिंताओं को खत्म कर देते हैं।
जो भक्त केवल भगवान विष्णु की भक्ति ही सच्चे भाव से करते हैं, उन पर भगवान विष्णु वैसे ही कृपा करते हैं जैसे अपने मित्र सुदामा पर उन्होंने बिना कुछ कहे ही सब कुछ दे दिया था। इसलिए भगवान विष्णु का सेवा करने वाले भक्त सदा सुखी एवं प्रसन्न रहते हैं।