श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 19 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।
सिंधु पुराण में उदयातिथि की मान्यता है कि उदया तिथि में अगर पूर्णिमा तिथि पड़ता है, तो उक्त तिथि को दिनभर माना जायेगा। इसके तहत 19 अगस्त को मनाया जायेगा जन्माष्टमी, क्योंकि 19 अगस्त को अष्टमी तिथि में सूर्योदय हो रहा है। इसलिए 19 अगस्त दिन और रातभर अष्टमी तिथि की मान्यता रहेगी।
सबसे सुखद पहलू यह है कि इस बार भगवान श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में होगा।
18 अगस्त को अष्टमी तिथि प्रात: 09.20 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 19 अगस्त को दिन के 10.59 बजे तक रहेगी।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि 12 बजे हुआ था।
इस बार भी यह संयोग जन्माष्टमी के दिन बन रहा है।
पंचांग के अनुसार इस बार भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 18 अगस्त गुरुवार को प्रात: 9.20 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 19 अगस्त दिन शुक्रवार को प्रात: 10.59 बजे तक रहेगी।
19 अगस्त को कृतिका नक्षत्र दिन के 01:53 बजे तक रहेगा। इसके के बाद रोहिणी नक्षत्र हो जाएगा।
19 अगस्त को सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा मेष राशि में सुबह 06:07 बजे तक रहेगा इसके बाद वृषभ राशि में गोचर करेंगे। सूर्य दक्षिणायन दिशा में रहेंगे।
उसी रात 12:03 बजे से लेकर रात 12:47 बजे बजे तक निशिता मुहूर्त भी है। यह संयोग अद्भुत है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म शुभ लग्न की छाया में होगा। शुभ लग्न रात्रि 12:25 से प्रारंभ होकर 01:00 बज के 47 मिनट तक रहेगा।
जन्माष्टमी के दिन सूर्योदय सुबह 05:52 बजे पर और सूर्यास्त शाम 06:57 बजे पर होगा। उसी प्रकार चंद्रोदय रात 11:40 बजे पर और चद्रास्त देर रात 12:58 बजे पर होगा। दिनमान 13 घंटा 04 मिनट और रात्रि मान 10 घंटा 56 मिनट का होगा।
श्रीकृष्णा जन्माष्टमी की पूजा सामग्री
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को पूजा सामग्री बाजार से खरीदारी कर लेनी चाहिए। पूजा सामग्री के रूप में अगरबत्ती, कपूर, केसर, चंदन, फूल, अरवा चावल, हल्दी, रूई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्तें, गाय का गोबर, माला, गोटा धनिया, कुश, दूर्वा, मेवा, दूध, मौसमी फल, गंगाजल, शहद, शुद्ध घी, दही, मिठाई, सिहासन, आम का पत्ता, श्री कृष्ण की प्रतिमा, वस्त्र, जल कलश तांबा या मिट्टी का, दीपक, माखन, नारियल, खीरा और मिश्री आदि वस्तुओं से भगवान श्री कृष्ण की विधि विधान से और वैदिक मंत्रों के बीच पूजा अर्चना करनी चाहिए।
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भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा स्वच्छ और सुंदर आसन पर स्थापित करनी चाहिए। लाल, पीले और केसरिया रंग का कपड़ों को रत्नों से सजाकर उस आसन पर बिछाना चाहिए।
पाघ अर्थात पैर या चरण गंगाजल और शुद्ध जल में मिलाकर धोना चाहिए। जल में फूलों की पंखुड़ियां सुगंधित रहने के लिए डालनी चाहिए।
पंचामृत का निर्माण शहद, घी, दही, दूध और गुड़ को मिलाकर तैयार करनी चाहिए। फिर शुद्ध बर्तन में पंचामृत को रखकर भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाना चाहिए। इस विधि को अनुलेपन करना कहा जाता है।
पूजा में उपयोग होने वाले दूर्वा, कुमकुम, अरवा चावल, अबीर, अगरू, सुगंधित फूल और गंगा जल को मिलाकर भगवान श्री कृष्ण को पूजा करनी चाहिए। इस विधि को अनुलेपन करना कहते हैं।
भगवान श्री कृष्ण को आचमनीय अर्थात शुद्धिकरण करने के लिए शुद्ध जल जिसमें गंगाजल मिला होना चाहिए। सुगंधित इत्र और फूलों की पंखुड़ियां डालकर करनी चाहिए।
भगवान कृष्ण के स्नान के लिए प्रयोग में आने वाले पदार्थों या द्रव्यों जैसे शुद्ध जल, दूध, इत्र या अन्य सुगंधित पदार्थों को मिलाकर करना चाहिए। इसे शास्त्रीय भाषा में स्नानीर कहा जाता है।
भगवान श्री कृष्ण की पूजा में सुगंधित और ताजे फूलों का विशेष महत्व होता है। इसलिए शुद्ध और ताजे फूलों का ही प्रयोग पूजा में करनी चाहिए।
जन्माष्टमी की पूजा के लिए बनाए जा रहे भोग में मिश्री, ताजी मिठाईयां, ताजे और मौसमी फल, लड्डू, खीर, तुलसी के पत्ते और धनिया से बने अंजीर को शामिल करना चाहिए।
जन्माष्टमी पूजा के दौरान धुप देने के लिए विभिन्न पेड़ों के अच्छे गोंद तथा अन्य सुगंधित पदार्थों से बनी अगरबत्ती का उपयोग करने चाहिए। साथ ही हवन के लिए चंदन की लकड़ी गुगुल और गाय के शुद्ध घी का प्रयोग करने चाहिए।
जन्माष्टमी के मौके पर दीपदान करने के लिए चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी के बने दिए में गाय का शुद्ध घी डालकर भगवान की आरती, हवन और विधि विधान से पूजा करनी चाहिए।
श्री कृष्ण की जन्म की कहानी संक्षेप में
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भादो माह कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मथुरा के कारागार में हुआ था। श्री कृष्ण के माता का नाम देवकी और पिता का नाम वासुदेव था। मामा कंस के कारागार में उनके माता-पिता क़ैद थे।
श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार जब देवकी की शादी बासुदेव के साथ हुई थी, उस समय देवकी के भाई कंस अपनी बहन की विदाई स्वयं रथ चलाकर नगर के बाहर ले जा रहा था। उसी वक्त आकाशवाणी हुई। हे कंस तुम जिसको विदाई कर रहे हो उसी का आठवां पुत्र तुम्हारे मृत्यु का कारण बनेगा।
आकाशवाणी की बात सुन तत्काल कंस ने अपनी बहन और बहनोई को कारागार में डाल दिया। कारावास के दौरान देवकी और वासुदेव का जो भी संतान हुए, उसे कंस ने हत्या कर डाली।
मां देवकी के गर्भ से आठवां पुत्र के रूप में श्री श्रीकृष्ण का जन्म जब कारागार में हुआ उस समय पूरे कारागार में दिव्य प्रकाश फैल गया।
स्वयं भगवान विष्णु अपने रूप में प्रकट हुए और बोले की मां मैं आपके घर बालक के रूप में आ रहा हूं। आप तत्काल मुझे नंद नगरी में यशोदा और नंद के यहां भेज दो, क्योंकि यशोदा को अभी-अभी पुत्री हुई है।
जिस समय भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उस समय भयानक बारिश हो रही थी। वासुदेव जी ने श्री कृष्ण को दउरा में लेटा कर अपने सर पर रखकर नंद गांव की ओर चल दिए। उफनती यमुना को पार कर मध्य रात्रि में ही नंद के घर पहुंच कर श्रीकृष्ण को यशोदा के बगल में लेट दिए और उस समय जन्मी हुई पुत्री को लेकर कारागार लौट आए।
कैसे करें जन्माष्टमी का व्रत
18 अगस्त को व्रतधारी सुबह गंगा, नदी या तालाब मैं स्नान कर जन्माष्टमी व्रत रखने का प्रण करें। जिस जातक के नजदीक गंगा नदी या तालाब ना हो वह अपने घर में गंगाजल मिलाकर स्नान कर भगवान कृष्ण का विधि विधान से पूजा अर्चना कर शाकाहारी भोजन ग्रहण करें।
दूसरे दिन निर्जला व्रत रखकर मध्य रात्रि को मंदिर या स्वयं अपने घर में श्री कृष्ण की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना करें। पूजा स्थल को रंगीन बल्ब और फूलों से सजाये।
भगवान श्री कृष्ण का सिहासन सुंदर ढंग से सजा, उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण से सुसज्जित करें। इसके बाद विधि विधान से पूजा अर्चना कर हवन करें । 20 अगस्त को सूर्योदय के बाद व्रत का समापन स्नान और पूजा पाठ करने के बाद करें। अंत में भोजन कर लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें।
जन्माष्टमी करने से क्या मिलता है फल
भविष्य पुराण के अनुसार जन्माष्टमी व्रत के पुण्य से मनुष्य के सभी प्रकार की इच्छाएं पूर्ण होती है। इसके अलावा माना जाता है कि जो एक बात भी इस व्रत को कर लेता है। वैसे प्राणियो विष्णु लोक को प्राप्त करता है। अर्थात मोक्ष को प्राप्त करना कहते हैं।