नाग पंचमी पर होती है 12 नागों की पूजा
वासुकी नाग की पूजा के साथ 11 नागों की होती है पूजा
02 अगस्त 2022 दिन मंगलवार को नाग पंचमी है। इस अवसर पर 12 नाग देवताओं की पूजा करने की परंपरा है। सावन मास में मनाएं जानें वालें इस पूजा में दूध और लावा की जरूरत पड़ती है।
नाग पंचमी मनाने के क्या है परंपरा
नाग पंचमी का त्यौहार सावन माह में मनाई जाती है। यह महीना भगवान भोलेनाथ का है। भोलेनाथ का प्रिय वस्तु नाग देवता है, जो उनके गले में लिपटे रहते हैं। मान्यता है की नाग देवताओं की पूजा करने से भगवान शिव बेहद खुश होते हैं।
सावन माह में क्यों होती है नागों की पूजा
श्रवण माह में बारिश अपनी चरम पर रहती है। इस दौरान चारों ओर हरियाली और जल समागम रहती है। सांप अधिकातर बिल में रहते हैं। बारिश होने के कारण हुए सांप बिल से बाहर निकलते हैं। बिल से बाहर निकलने के बाद नागों का आश्रय किसी के घर या किसी सुखे स्थान होती है। इस दौरान बड़ी संख्या में गांव देहात के घरों में नाग आश्रय लेते हैं। मनुष्यों को उनको डसने का डर हमेशा सताते रहता है। इसलिए नाग देवता प्रसन्न हो और घर के सदस्यों को किसी प्रकार से नुकसान न पहुंचे। इसलिए उनकी पूजा की जाती है।
अनंत, वासुकी, शेषनाग, पद्म, कम्बल, ककींटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शड्गंकपाल, कालिया, तक्षक और पिड्गल है। इन सभी नाग देवताओं की सामूहिक पूजा को ही नाग पंचमी पूजा करते हैं।
क्यों प्रिय थे भोलेनाथ को वासुकी
वासुकी को ही नागलोक का राजा माना जाता है। वासुकी भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे। पौराणिक मान्यता के अनुसार शिवलिंग की पूजा सबसे पहले नाग जाति के लोग ही प्रारंभ किया था। इसलिए शिवलिंग का के साथ नाग देवता की भी पूजा होती है। प्रचलित मान्यता के अनुसार नागों के देवता वासकी की भक्ति से भगवान शिव बेहद खुश थे साथ ही वासुकी की साहस और पराक्रम को भी भगवान भोले का प्रिय बना दिया था नाग देवता को।
समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को मेरु पर्वत के चारों ओर रस्सी की तरह लपेट का समुद्र मंथन किया गया था। वासुकी के पूछ को देवताओं और सिर को दानव पकड़ें हुए थे। मथनी की तरह इस्तेमाल हुए थे बासुकीनाथ समुद्र मंथन के दौरान। पर्वत के धर्षण से उनका पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। भगवान शिव ने मानवता के हित में वासुकी के कष्ट को देखकर वे बेहद खुश हुए और उन्होंने वासुकी को अपने गले की माला बनकर शोभा बढ़ाने का वरदान दे दिया।
कैसे करें नाग पंचमी के दिन पूजा
नाग पंचमी के दिन स्नान कर भगवान भोलेनाथ, वासुकी सहित 11 नागों का स्मरण कर व्रत रखने की संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद पूजा अर्चना करने के लिए कच्चा दूध, सफेद फूल, मौली, लावा, मिठाई, फल, मिट्टी से बने दीया और कटोरा, धूप, घी और पीतल या तांबे के लोटे में जल आदि चीजों को रख लेनी चाहिए।
अगर हो सके तो खेत खलियान या जंगल में जाकर बिल के समक्ष दूध और लावा से भरा मिट्टी का कटोरा रखकर भगवान भोलेनाथ, वासुकी सहित ग्यारह नागों को स्मरण करते हुए पूजा अर्चना करनी चाहिए। धूप और जल अर्पित कर वहां से चल देना चाहिए।
अगर आप जंगल नहीं जाना चाहते हैं तो घर में भी पूजा करनी चाहिए। घर में लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर हल्दी और आटे से बने नाग-नागिन को स्थापित कर शिव भगवान और नाग देवता का स्मरण करते हुए मंत्रों का उच्चारण के बीच पूजा-अर्चना करनी चाहिए। सर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति को नाग पूजा जरूर करनी चाहिए। अंत में लावा और कच्चे दूध का मिश्रण का भोग लगाना चाहिए। इस दिन ताबे को अग्नि पर रखना वर्जित है।
पूजा करने का उचित और फलदाई समय
नागपंचमी के दिन लोग दिन के 10:45 बजे से लेकर 03:30 बजे के बीच पूजा कर सकते हैं। इस दौरान चर मुहूर्त, लाभ मुहूर्त, अमृत मुहूर्त, विजय और अभिजित का सुखद संयोग मिल रहा है। अब जानें मुहूर्त का सुखद संयोग।
12 बजे से लेकर 12:54 बजे तक अभिजित मुहूर्त है और दोपहर 2:42 से लेकर 3:36 तक विजया मुहूर्त है। इस दौरान पूजा करना काफी सालदाई होगा।
शाम के समय अगर नाग पंचमी की पूजा करनी है, तो शुभ मुहूर्त का आगमन शाम 3:41 बजे से लेकर 5:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप नाग पंचमी के मौके पर नाग देवता की पूजा कर सकते हैं।
अब जानें पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा नागपंचमी का दिन
श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, दिन मंगलवार, पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार मनाया जायेगा। इस दिन अहले सुबह 05:41 बजे से पंचमी तिथि का आगमन हो जायेगा। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र शाम 5:29 बजे तक रहेगा। प्रथम करण बव है जबकि द्वितीय करण कौलवा है। योग शिव है, शाम के 06:38 बजे तक।
सूर्योदय सुबह 5:43 बजे पर, सूर्यास्त 07:11 बजे तक। चंद्र उदय सुबह के 09:37 पर और चंद्र अस्त रात 10:07 पर होगा। सूर्य कर्क राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में है। सूर्य दक्षिणायन दिशा में स्थित है।
आनंदादि योग दाता/ प्रजापति है, जो शाम 05:29 बजे तक रहेगा। इसके बाद सौम्य हो जायेगा। होमाहुति बुध, दिशाशूल उत्तर, राहुवास पश्चिम, अग्निवास आकाश है। चंद्रवास दक्षिण दिशा में रहेगा।