निर्माण के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 सितंबर 2022 दिन शनिवार को है।
विश्वकर्मा भगवान की जन्म कथा वेदों और पुराणों पर आधारित है
भगवान विश्वकर्मा के 5 पुत्र थे।
विश्व में विश्वकर्मा के 5 रूप जाने जाते हैं।
भगवान विश्वकर्मा ने द्वारिका, लंका, स्वर्गलोक, बज्र और हस्तिनापुर का निर्माण किया था।
ब्रह्मांड का पहला इंजीनियर कहें जानें वाले भगवान विश्वकर्मा तीनों लोकों का निर्माणकर्ता है।
भगवान विश्वकर्मा की जन्म कथा वेदों और पुराणों में उल्लेख है।
भगवान विश्वकर्मा महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना थी, जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी। वह अष्टम बसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उसी से संपूर्ण शिल्प (निर्माण) विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं-कहीं बृहस्पति की बहनों को योगसिद्धि और वरस्त्री नाम से भी जाना जाता है।
अब जानें ऋग्वेद, यजुर्वेद व महाभारत में भगवान विश्वकर्मा जन्म के संबंध में क्या लिखा है
ऋग्वेद में विश्वकर्मा सुक्ता के नाम से 11 श्लोक लिखी गई है। जिसके प्रत्येक मंत्र पर लिखा है। ऋषि विश्वकर्मा को भौवन देवता भी कहा गया है। यही सूक्ता यजुर्वेद में अध्याय 17 के, 16 से 31 मंत्रों के बीच भगवान विश्वकर्मा का नाम आया है। ऋग्वेद में विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र और सूर्य का स्वरूप भी बताया गया है।
परंतु महाभारत सहित अधिकांश पुराणों में प्रभास पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा के रूप में माना गया हैं। स्कंद पुराण में प्रभात खंड में यह स्लोक दिया गया है, जो प्रमाणित करता है कि प्रभास के पुत्र भगवान विश्वकर्मा थे।
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी
प्रभासस्यं तस्य भार्या बसुनामष्टमस्य च
विश्वकर्मा सुतस्तस्य शिल्पकर्ता प्रजापति।
भगवान विश्वकर्मा के 5 पुत्र थे
भगवान विश्वकर्मा के 5 पुत्र थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पांचों पुत्र अपने क्षेत्र में दक्ष थे। भगवान विश्वकर्मा के प्रथम पुत्र मनु थे, जो लोहा के औजार बनाने में कुशल थे।
दूसरा पुत्र मय थे, जो काष्ठ अर्थात लकड़ी के सामान बनाने में निपुण थे।
तीसरे पुत्र स्वष्ठा थे जो तांबा और कांस्य के वस्तु बनाने में पारांगत हासिल किए थे।
चौथा पुत्र शिल्पी थे जो पाषाण अर्थात पत्थर को तराश कर प्रतिमा बनाने में और पांचवां पुत्र दैवज्ञ थे, जो सोना चांदी के आभूषण बनाने में दक्ष थे।
भगवान विश्वकर्मा के उत्कृष्ट निर्माण
भगवान विश्वकर्मा वस्तु कला के अद्भुत निर्माता थे। भगवान विश्वकर्मा ने सतयुग में देवताओं के लिए स्वर्ग लोक बनाया था। उसी प्रकार द्वापर में कृष्ण की द्वारिका, कलियुग में पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर और त्रेता में रावण की लंका का निर्माण किया था। उसी प्रकार महर्षि दधीचि की हड्डियों से बनी ब्रज का निर्माण भी उन्होंने किया था। देवताओं के राजा इंद्र का प्रमुख हथियार बज्र है।
भगवान विश्वकर्मा के पांच स्वरूप है
भगवान विश्वकर्मा के पांच रूप है। इसका मतलब यह हुआ कि 5 तरह के भगवान विश्वकर्मा जगत में प्रसिद्ध है। भगवान विश्वकर्मा के 5 रूपों में प्रथम रूप विराट विश्वकर्मा का है, जो सृष्टि के रचयिता माने जाते हैं।
दूसरा रूप धर्म वंशी विश्वकर्मा का है, जो महान शिल्प विज्ञान के विधाता और ऋषि प्रभास के पुत्र कहे जाते हैं।
तीसरा रूप अंगिरावंशी विश्वकर्मा का है, जिसे आदि विश्वकर्मा, विज्ञान विधाता और वसु के पुत्र कहा जाता है।
चौथा रूप सुधन्वा विश्वकर्मा का है, जो महान शिल्पाचार्ज विज्ञान का जन्मदाता और अथवी के पुत्र हैं।
पांचवा भृगुवंशी विश्वकर्मा जो उत्कृष्ट शिल्प और विज्ञानाचार्य हैं जो शुक्राचार्य के पौत्र हैं।
2, 4 और 10 बहु विश्वकर्मा होते हैं
भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा दो बाहु चार बाहु और दस बाहु के होते हैं। उसी प्रकार एक मुख, चार मुख और पंचमुखी प्रतिमा भगवान विश्वकर्मा की जगत में मिलती है।
भगवान विश्वकर्मा की लीला और पुत्र प्राप्ति कथा
भगवान विश्वकर्मा की महता स्थापित करने वाली एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार वाराणसी में धर्म पर चलने वाला पुरुष रथकार अपनी पत्नी के साथ निवास करता था।
रथकार वस्तु कला में निपुण था। परंतु गरीब होने के कारण विभिन्न स्थानों में घूम घूम कर कार्य करता था। बहुत अधिक मेहनत करने के बाद भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था।
पति की तरह ही पत्नी पुत्र ना होने के कारण चिंतित कहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए पति और पत्नी ने हर तरह का प्रयास किया। साधु संत के यहां निहोरा लगाएं परंतु इच्छा पुरी नहीं हुई। अचानक एक दिन पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ।
तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। अमावस्या तिथि को भगवान विश्वकर्मा की महिमा सुनो। ब्राह्मण की बात सुनकर उसकी पत्नी ने अमावस्या तिथि को भगवान विश्वकर्मा की विधि विधान से पूजा अर्चना कर उनकी महात्म्य सुनी।
पूजा के उपरांत उन्हें धन धन्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुुई। दोनों सुखी जीवन बिताने लगे। भगवान विश्वकर्मा की महिमा का कोई अंत नहीं है। इसलिए आज विश्व भर के लोग भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाकर पूरी आस्था रखते हैं।
पूजा सामग्री की सूची
भगवान विश्वकर्मा की पूजन करने के लिए निम्नलिखित सामानों की जरूरत भक्तों को पड़ेगी।
भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर, रोली, सिंदूर, अबीर, चंदन पाउडर, हल्दी का चूर्ण, इत्र, पीला सरसों, अक्षत, सुपारी, पान का पत्ता, फूल और माला, तुलसी पत्ता, धूपबत्ती, कच्चा सूत, रुई, कपूर, गुड़ का बतासा, मौसमी फल, नारियल, पंचामृत (दूध, दही, मधु, घी और गुड़) पंचगव्य (गोबर, गोमूत्र, दही, दूध और घी) गंगाजल, सात तरह का आनाज, मिट्टी का कलश, दीया, आम का पत्ता, केला का पत्ता, गरुड़ा, लाल कपड़ा और हवन की सामग्री।
जानें पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा विश्वकर्मा पूजा का दिन
विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर, दिन शनिवार, तिथि सप्तमी दिन के 02:00 बज के 14:00 मिनट तक इसके बाद अष्टमी तिथि प्रारंभ हो जाएगा। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के दिन नक्षत्र रोहिणी दिन के 12:21 बजे तक रहेगा। इसके बाद मृगशिरा नक्षत्र हो जायेगा।
प्रथम करण बव, द्वितीय करण बालव है। योग सिद्धि रहेगा। सूर्योदय 06:07 बजे पर और सूर्यास्त 06:00 बज के 24 मिनट में होगा। चंद्रोदय 11:00 बजे पर और चंद्र अस्त रात 12:42 बजे में होगा।
सूर्य सिंह राशि में सुबह 07:36 बजे पर इसके बाद कन्या राशि में प्रवेश कर जाएंगे। चंद्रमा वृषभ राशि में और आयन दक्षिणायन है। ऋतु शरद है। दिनमान 12 घंटा 17 मिनट का और रात्रिमान 11 घंटा 43 मिनट का रहेगा।
आनंदादि योग श्रीवत्स दिन के 12:00 बज के 21 मिनट तक इसके बाद वज्र हो जायेगा। होमाहुति गुरु, दिशाशूल पूर्व, राहुवास पूर्व, अग्निवास पाताल दिन के 02:14 बजे तक, इसके बाद पृथ्वी हो जायेगा। चंद्रवास दक्षिण दिशा में रहेगा।
पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
और अमृत सिद्धि योग का शुभ और सुखद संयोग बन रहा है। इस दौरान पूजा अर्चना करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। सुबह 06:07 बजे से लेकर दिन के 12:21 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग रहेगा।
सुबह 07:39 बजे से लेकर 09:11 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। दिन के 12:15 बजे से लेकर 01:48 बजे तक चार मुहूर्त, 01:48 बजे से लेकर 03:20 बजे तक लाभ मुहूर्त, 03:20 बजे से लेकर 04:52 बजे अमृत मुहूर्त रहेगा। शाम के समय पूजा करने वाले लोगों के लिए लाभ मुहूर्त जो संध्या 06:24 बजे से शुरू होकर 07:52 बजे तक रहेगा इस दौरान भी आप भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
कैसे करें भगवान विश्वकर्मा की पूजा
अपने हाथ में और पत्नी के हाथ में रक्षा सूत्र बांधने के बाद भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें।
पुष्प और अक्षत पात्र में छोड़ें। दीप जलाएं। जल पैसा, सुपारी और अक्षत हाथ में लेकर संकल्प करें। गोबर से लीपे हुए भूमि पर चावल के घोल से अष्ट कमल बनाएं। उस स्थान पर सात तरह के अनाज रखें। कलश स्थापित करें। कलश में तांबे या पीतल का लोटा से जल डालें। जल में सुपारी पैसा और अक्षत डालकर कपड़े से ढक दें। चावल से भरा पात्र को आम के पत्ता डालकर उस पर नारियल रख दें।
उसी स्थान के पीछे चावल रखकर उस पर भगवान विश्वकर्मा को स्थापित करें और वरुण देवता को आह्वान करें। हाथ जोड़कर, आंख बंद कर, कहना चाहिए हे भगवान विश्वकर्मा इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार करें। पूजा के उपरांत औजारों का पूजा करें और अंत में हवन करें।