गणेश चतुर्थी व्रत को करें 12 तरीके से पूजा, होगी धनवर्षा

सनातन पंचांग के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन गणेश चतुर्थी पर्व मनाते हैं।

30 अगस्त दिन मंगलवार तृतीया तिथि 03:33 बजे तक रहेगा। इसके बाद चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो जाएगा।

बुधवार 31 अगस्त को शाम 03:22 बजे तक चतुर्थी तिथि रहेगा। इसके बाद पंचमी तिथि प्रारंभ हो जाएगा।

गणेश चतुर्थी के दिन से 10 दिनों तक चलने वाले गणेश महोत्सव की शुरुआत भी माना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घरों में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापना दस दिनों तक पूजा-अर्चना करते हैं।

दसवें दिन अर्थात अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति को विदाई देकर उनकी प्रतिमा का विसर्जन धूमधाम से करते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा करता है। वैसे लोगों के सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। साथ ही जीवन आनंदमय हो जाता है।

गणेश चतुर्थी के दिन भूलकर भी ना देखें चांद

पौराणिक मान्यत है कि गणेश चतुर्थी के दिन चांद को देखना वर्जित है। एक बार गणेश चतुर्थी की रात भगवान श्री कृष्ण ने उगते  हुए चांद को देख लिया था। चांद देखने के उपरांत भगवान श्री कृष्ण पर चोरी का इल्जाम लगा। महर्षि नारद के बताएं अनुसार गणेश चतुर्थी व्रत कर भगवान श्री कृष्णा चोरी के पाप से मुक्त हुए।
31 दिसंबर के दिन चंद्रोदय सुबह 09:00 बजे पर और चंद्रास्त रात 09:11 बजे पर होगा। दिन के समय तो चंद्रमा का दर्शन नहीं होगा। सूर्यास्त शाम 6:00 बजे होगा। इस प्रकार लोगों को शाम 6:00 बजे से लेकर रात 9:11 बजे तक आकाश में रहने वाले चांद का दर्शन नहीं करना चाहिए।

कैसे करें गणेश पूजन

गणेश चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें।

स्नान के उपरांत भगवान गणपति की प्रतिमा घर में स्थित मंदिर में स्थापना करें।

प्रतिमा के समक्ष शुद्ध घी का दीप प्रज्वलित करें।

गणपित भगवान को गंगा जल से जलाभिषेक करें।

गणपति की प्रतिमा को ऊंचे स्थान पर स्थापना करें।

पूजा पर बैठने वाले लोगों को इस दिन व्रत रखना चाहिए।

भगवान गणेश को विभिन्न प्रकार के सुगंधित पुष्प अर्पित करें।

भगवान गणेश को दूर्वा घास विषेश रूप से पसंद है। दूर्वा अर्पित करें।

भगवान गणेश को सिंदूर जरूर लगाएं।

पूजा के उपरांत भगवान गणपति का ध्यान करें।

गणेश जी को भोग मोदक या लड्डूओं से लगाना चाहिए।

अंत में भगवान गणपति की आरती और हवन जरूर करें।

पूजा सामग्रियों की सूची

लकड़ी का स्टैंड, भगवान गणेश की एक प्रतिमा, सावा मीटर लाल कपड़ा, जनेऊ (जोड़ा) कलश (तांबे या पीतल का बर्तन), गंगा जल, रोली, पवित्र लाल धागा अर्थात मौली, चंदन, चावल, पवित्र घास दुर्वा, कलावा, इलायची, लौंग, सुपारी, घी, कपूर, मोदक अर्थात दुर्वा और हवन सामग्री। नारियल, पंचामृत (दूध, दही, गुड़, मधु और घी का मिश्रण), पांच प्रकार के सूखे मेवे अर्थात पंचमेवा,

इससे पहले जानें गणेश चतुर्थी के दिन पंचांग क्या कहता है

पंचांग

गणेश चतुर्थी के दिन कैसा रहेगा पंचांग के अनुसार, आइए आपको बताते हैं विस्तार से ? गणेश चतुर्थी के दिन 03:22 बजे तक चतुर्थी तिथि रहेगा है। इससे बाद पंचमी तिथि प्रारंभ हो जाएगा।

उदया काल में चतुर्थी तिथि पड़ने के कारण गणेश  चतुर्थी व्रत बुधवार को ही पड़ेगा। अगर लोग चतुर्थी तिथि के दिन ही भगवान गणपति का पूजन करें, तो सर्वश्रेष्ठ रहेगा। अब आपको जानते हैं आज का दिन कैसा होगा।

अब जानें विस्तार से

चतुर्थी के दिन नक्षत्र चित्रा रहेगा। प्रथम करण भद्रा 03:22 बजे तक एवं द्वितीय करण बव है। योग शुक्ल है। दिन के 10:58 बजे तक रहेगा। इसके बाद ब्रह्म हो जाएगा।

सूर्योदय सुबह 05:58 बजे और सूर्यास्त शाम 06:00 बज के 44 मिनट पर होगा। चंद्रोदय सुबह 09:00 बजे पर और चंद्रास्त रात 09:11 बजे पर होगा। सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में दिन के 12:04 बजे तक रहेगा इसके बाद तुला राशि में प्रवेश कर जाएंगे। आयन दक्षिणायन है। ऋतु शिशिर है।

दिनमान 12 घंटा 45 मिनट का होगा जबकि रात्रिमान 11 घंटा 14 मिनट का रहेगा। आनन्दादि योग कालदंड है। होमाहुति बुध, दिशा शूल उत्तर, राहु काल वास दक्षिण पश्चिम, अग्निवास आकाश दिन के 03:22 बजे तक, इसके बाद पाताल हो जाएगा। चंद्रवास दक्षिण दिशा में रहेगा दिन के 12:00 बज के 4 मिनट तक, इसके बाद पश्चिम दिशा में हो जाएगा।

 पूजा करने का शुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार

गणेश चतुर्थी के दिन अभिजित मुहूर्त का संयोग नहीं बन रहा है। विजय मुहूर्त दिन के 02:29 बजे से लेकर 03:20 बजे तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त 06:31 बजे से लेकर 06:55 बजे तक रहेगा। सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 06:44 बजे से लेकर 07:51 बजे तक रहेगा।

पंचांग के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन पूजा करने का दो मुहूर्त बन रहा है। एक दोपहर को, तो दूसरा शाम को।

चौघड़िया मुहूर्त क्या कहता है पूजा करने के संबंध में

चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार भगवान गणपति की पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 05:58 बजे से लेकर 07:34 बजे तक है। इस मुहूर्त का नाम लाभ मुहूर्त है। उसी प्रकार अमृत मुहूर्त सुबह 07:34 बजे से लेकर 09:10 बजे तक और शुभ मुहूर्त दिन के 10:46 बजे से लेकर 12:21 बजे तक है। चर मुहूर्त का आगमन दिन के 03:33 बजे से लेकर शाम 05:08 बजे तक रहेगा। यह पूजा करने का उत्तम और शुभ मुहूर्त है।

अशुभ मुहूर्त

गणेश चतुर्थी के दिन राहु काल का आगमन दिन के 12:21 बजे से लेकर 01:57 बजे तक रहेगा। गुलिक काल 10:46 बजे से लेकर 12:21 बजे तक, यमगंण्ड काल सुबह 07:34 बजे से लेकर 09:10 बजे तक, दुर्मुहूर्त काल 11:56 बजे से लेकर 12:47 बजे तक, वज्य काल सुबह 07:57 बजे से लेकर 09:35 बजे तक रहेगा। भद्रा काल सुबह 05:58 बजे से शुरू होकर दिन के 03:22 बजे तक रहेगा।

गणेश चतुर्थी का महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि चोरी करने का झूठा तोहमत लगा था और वे समाज में अपमानित हुए थे। नारद जी ने श्रीकृष्ण को देखा और उनकी यह दुर्दशा देखकर उन्हें एक उपाय बताया। उन्होंने श्रीकृष्ण को कहा कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गलती से आप ने चंद्र दर्शन किए थे। इसलिए वे समाज से तिरस्कृत हुए हैं।

नारद मुनि ने श्रीकृष्ण को यह भी बताया कि एक दिन चंद्रमा को भगवान गणेश ने श्राप दिया था। इसलिए जो इस दिन चंद्र दर्शन करता है उसपर झूठा तोहमत लगता है। नारद मुनि की सुझाव पर भगवान श्रीकृष्ण ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया और चोरी के दोष से मुक्त हुए। इसलिए गणेश चतुर्थी के दिन पूजा और व्रत रखने से मनुष्यों को झूठे आरोपों से निजात मिलती है।

पौराणिक भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को विद्या-बुद्धि का प्रदाता, रक्षाकारक, सिद्धिदायक, समृद्धि, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, शक्ति और सम्मान प्रदायक माना गया है। वैसे तो प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है जबकि शुक्लपक्ष की चतुर्थी को वैनायकी गणेश चतुर्थी  म रूप में मनाई जाती हैैैै।

 वार्षिक गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश जी को अवतार लेने के कारण उनके अनुयायी इस तिथि के आने पर व्रत रखकर उनकी विशेष पूजा करके पुण्य अर्जित करते हैं। 

 मंगलवार को यह गणेश चतुर्थी पड़ता है, तो उसे अंगारक गणेश चतुर्थी कहते हैं। जिसमें पूजा व व्रत करने से अनेक पापों का दमन होता है। उसी प्रकार अगर रविवार को यह चतुर्थी तिथि पड़े तो भी बहुत शुभ और श्रेष्ठ फलदायी मानी गई है।

गणेश जी से जुड़ी पौराणिक कथाएं

गणेश जी का कैसे हुआ जन्म

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती  स्नान करने के लिए जा रही थीं। उसी समय माता पार्वती की सखियों ने कहा कि हे माता पार्वती भगवान शिव के अनेक दूत है। दूत उनकी गोपनीयता की रक्षा करते हैं। जबकि आपके पास ऐसा कोई नहीं है। जब आप स्नान करती है, तब भगवान भोलेनाथ कभी भी आपके पास आ जाते हैं। इन्हें रोकने के लिए एक सुंदर, वरिष्ठ और तेजस्वी पुत्र की जरूरत है।

सखियों के कहने पर उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतला निर्मित कर उसमें प्राण फूंके और गृहरक्षा (घर की रक्षा) के लिए उसे द्वारपाल के रूप में नियुक्त कर दिया। 

माता स्नान कर रही थी। द्वारपाल गणेश जी पहरा दे रहे थे। गृह में प्रवेश करने के लिए शिवजी के आने के बाद गणेश जी ने शिवजी को घर के अंदर प्रवेश करने पर रोका तो शंकरजी ने रुष्ट होकर युद्ध किया और उन्होंने उनका मस्तक काट दिया। जब पार्वती जी को इसका पता चला तो वह दुःख के मारे विलाप करने लगीं।

माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने गज(हाथी) के बच्चें का सर काटकर गणेश जी के धड़ पर जोड़ दिया। गज का सिर जुड़ने के कारण ही उनका नाम गजानन पड़ा।

शनि के कुदृष्टि से कटा गणेश का सर

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती और भोलेनाथ के विवाह हुए बहुत दिनों बाद भी एक भी संतान नहीं हुआ। संतान के सुख नहीं होने के कारण पार्वती जी ने श्रीकृष्ण के व्रत से गणेश जी को उत्पन्न किया। कैलाश में उत्सव का माहौल था।

शनि ग्रह बालक गणेश को देखने आए और उनकी दृष्टि पड़ने से गणेश जी का सिर कटकर ज़मीन पर गिर पड़ा। भगवान विष्णु जी के कृपा से दोबारा गणेश जी के धड़ को हाथी का सिर जोड़ दिया।

परशुराम ने तोड़े थे गणेश के दांत

पौराणिक मान्यता है कि एक बार परशुराम जी शिव-पार्वती जी के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर आते थे। उस समय माता पार्वती और भोलेनाथ घोर निद्रा में थे।

 दूसरी ओर गणेश जी घर के बाहर पहरा दे रहे थे। उन्होंने परशुराम जी को घर के अंदर जाने से रोका। इस पर दोनों में विवाद हुआ और अंततः परशुराम जी ने अपने अस्त्र परशु से उनका एक दांत तोड़ दिया। इसलिए गणेश जी ‘एकदन्त’ के नाम से जाना जाता है।

सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा

 किसी भी देव की आराधना या पूजा पाठ करते समय भगवान गणेश की प्रथम पूजा करने की परंपरा है। साथ ही किसी भी सत्कर्म व अनुष्ठान में, उत्तम-से-उत्तम और साधारण-से-साधारण कार्य में भी भगवान गणपति का स्मरण कर उनका विधिवत पूजन किया जाता है।

 इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य को शुरु नहीं होता  है। यहां तक की किसी भी कार्यारम्भ के लिए लोग कहते हैं कि ‘श्री गणेश’ करे क्या ? यह एक मुहावरा बन गया है। हमारे धर्म शास्त्रों में इनकी पूजा सबसे पहले करने का स्पष्ट आदेश दिया गया है।

ऋग्वेद-यजुर्वेद में लिखा है गणेशजी के मंत्र

गणेश जी की पूजा वैदिक, पौराणिक और अति प्राचीन काल से होती आ रही है। गणेश जी वैदिक काल के देवता हैं। ऋग्वेद-यजुर्वेद आदि शास्त्रों में गणपति जी के मन्त्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।

 भगवान विष्णु, भगवान भोलेनाथ, भगवान ब्रह्मा, सूर्यदेव के साथ-साथ गणेश जी का नाम सनातन धर्म के पांच प्रमुख देवों (पंच-देवता) में शामिल है। जिससे गणपति जी की प्रमुखता साफ़ पता चलती है।

 ‘गण’ का अर्थ होता है समुदाय, समुह, वर्ग और ईश का अर्थ होता है स्वामी या प्रमुख। देवगणों और शिवगणों के स्वामी होने के कारण उन्हें भगवान गणेश कहते हैं।

 भगवान गणेश के पिता भगवान भोलेनाथ है जबकि मां पार्वती उनकी माता है। कार्तिकेय  बड़ा भाई है। ऋद्धि-सिद्धि जो प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएं हैं। वे दोनो बहने गणेश जी की पत्नियां हैं।क्षेम व लाभ के गणेश जी का पुत्र है।

 गणेश जी के बारह प्रसिद्ध नाम जो शास्त्रों में बताए गए हैं

 इस प्रकार हैं: पहला सुमुख, दूसरा एकदंत, तीसरा कपिल, चौथा गजकर्ण, पांचवां लम्बोदर, छठा विकट, सातवां विघ्नविनाशन, आठवां विनायक, नौवां धूम्रकेतु, दसवां गणाध्यक्ष, ग्यारहवां. भालचंद्र और बारहवां गजानन।

 गणेश जी ने महर्षि वेदव्यास के कहने पर महाभारत का लेखन-कार्य भी किया था। महर्षि वेदव्यास जब महाभारत की रचना करने का विचार कर रहे थे, तो उन्हें महाभारत लिखवाने की चिंता हुई। ब्रह्माजी के कहने पर यह कार्य महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी से करवाया था।

ऊं गणेश जी का स्वरूप है

 पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऊं को साक्षात गणेश जी का स्वरुप माना गया है। जिस प्रकार प्रत्येक मंगल कार्य से पहले गणेश-पूजन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र से पहले ऊं शब्द लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है।

डिसक्लेमर

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