रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा, 11 अगस्त, दिन गुरुवार 2022 को मनाया जायेगा
भद्रा काल का नहीं रहेगा कोई दोष जानें मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ से
पूर्णिमा तिथि गुरुवार को सुबह 10:38 बजे से शुरू होकर शुक्रवार को सुबह 7:05 बजे तक रहेगा।
उदया तिथि में सूर्य उदय होने के कारण पूर्णिमा तिथि शुक्रवार को दिन भर रहेगा, ऐसा सनातनी परंपरा है।
कुछ स्थानों पर 12 अगस्त को रक्षाबंधन मनाया जाएगा।
निर्णय सिंधु पुराण में कहा गया है कि अगर चतुर्दशी और पूर्णिमा तिथि का मेल हो रहा है तो उस दिन रक्षाबंधन होगा।
पूर्णिमा और प्रतिपदा तिथि का अगर मेल होता है, तो उस दिन रक्षाबंधन मनाना वर्जित है।
इस प्रकार देखा जाए तो 11 अगस्त को ही रक्षाबंधन मनाना शास्त्र सम्मत होगा। ऐसा कहना आचार्य जितेन्द्र उपाध्याय का है।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त
रक्षाबंधन के संबंधित 6 कहानियां लेख में पढ़ने को मिलेगा। कृष्ण और द्रौपदी की कथा, कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा की कथा,चंद्रशेखर आजाद और गरीब बुढ़िया, हिमायू और कर्मावती, सिकंदर और राजा पुरू व राजा बलि और भगवान वामन की कथा समाहित है।
रक्षाबंधन भाईयों और बहनों के बीच अटूट प्रेम को दर्शाता है।
बहन जहां भाई की कलाई पर राखी बांधकर अपनी रक्षा की गुहार लगाती है। वही भाई उसे आजीवन रक्षा करने का वचन देता है।
इस बार का पंचांग देखें तो 11 अगस्त 2022 गुरुवार को प्रात: 10 बजकर 40 मिनट से पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो रही है। पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होते ही अर्थात् 10.40 से भद्रा काल प्रारंभ हो जाएगी जो रात्रि में 8.53 बजे तक रहेगी। अनेक विद्वानों का मत है कि रक्षाबंधन भद्रा काल में समाप्ति के बाद अर्थात् रात्रि में 8.53 बजे के बाद मनाया जाए।
दूसरी ओर अनेक विद्वानों का मत हैं कि रक्षाबंधन रात्रि में नहीं मनाया जाता है। इसलिए अगले दिन अर्थात 12 अगस्त को सूर्योदय से लेकर पूर्वाह्न 11 बजकर 12 मिनट तक रक्षाबंधन लोग मना सकते हैं। 12 अगस्त को पूर्णिमा तिथि प्रात: 7 बजकर 6 मिनट तक ही रहेगी। वास्तव में ये दोनों ही बातें उचित प्रतीत नहीं होती।
भद्रा पर क्या कहता है मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ
जानें रक्षाबंधन के दिन का पंचांग
रक्षाबंधन 11 अगस्त 2022, दिन गुरुवार, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा तिथि जो सुबह 10:38 से शुरू होगा। रक्षाबंधन के दिन नक्षत्र उत्तराषाढा सुबह 06:53 बजे तक रहेगा। इसके बाद श्रवण नक्षत्र शुरू हो जायेगा।
प्रथम करण वणिज शाम 10:38 बजे तक, द्वितीय करण विष्टि (भद्रा) रहेगा। योग आयुष्मान शाम 03:32 बजे तक रहेगा। इसके बाद सौभाग्य योग है।
सूर्योदय सुबह 05:58 बजे पर, सूर्यास्त शाम 04:04 बजे पर, चंद्रोदय 7:10 बजे शाम से शुरू होकर रात भर रहेगा। सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा मकर राशि में उपस्थित रहेंगे। सूर्य दक्षिणायन में विद्यमान है। दिनमान 13 घंटा 16 मिनट का और रात्रिमान 10 घंटे 44 मिनट का रहेगा।
आनंदादि योग ध्वांक्ष सुबह 08:18 बजे तक, इसके बाद केतु योग शुरू हो जाएगा। होमाहुति चंद्र, दिशाशूल दक्षिण, राहुवास उत्तर, अग्निवास पृथ्वी शाम 10:38 बजे तक रहेगा इसके बाद आकाश हो जाएगा। चंद्रवास दक्षिण दिशा में स्थित है। भद्रावास पाताल सुबह 10:38 बजे से लेकर रात 8:50 बजे तक रहेगा।
पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन के दिन राहुकाल दोपहर 02:06 बजे से लेकर 03:45 बजे तक, गुलिक काल सुबह के 09:07 बजे से लेकर 10:47 बजे तक, यमगण्ड काल अहले सुबह के 05:48 बजे से लेकर 07:27 बजे तक, दुर्मुहूर्त काल शाम 10:13 बजे से लेकर 11:06 बजे तक, वज्र्य काल 10:25 बजे से लेकर 11:50 बजे तक और भद्रा काल दिन के 10:38 बजे से शुरू होकर रात 8:50 बजे तक रहेगा। इस दौरान शुभ कार्य और राखी बांधने का काम बहनों को नहीं करनी चाहिए।
राखी बांधने का उचित समय
बहनें अपने भाइयों की कलाई में सुबह 5:48 बजे से लेकर 07:27 बजे तक रहेगा। इसके बाद सुबह के 10:47 बजे से लेकर शाम 3:45 बजे तक के बीच राखी बांध सकते हैं। यह समय काफी शुभ है। पूर्णिमा तिथि दिनभर रहेगा।
पौराणिक कथाएं रक्षाबंधन के संबंध में
राजा बलि को पहली बार माता लक्ष्मी ने बांधी थी राखी
रक्षाबंधन का संबंध वामन अवतार से संबंधित है। प्रथम बार राजा बलि के कलाई में माता लक्ष्मी ने राखी बांधकर अपने पति भगवान विष्णु को राजा बलि के दरबार से मुक्त करायी थी।
पौराणिक कथा के संबंध में कहा जाता है कि जब राजा बलि ने एक सौ यज्ञ पूर्ण कर 101 यज्ञ शुरू की तो इंद्र के आसन डोलने लगा। इंद्र को अंदेशा हो गया कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर अधिकार ना कर ले।
इंद्रादि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की गुहार लगाई। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा के रूप में दान में मांग ली।
दूसरी ओर गुरु शुक्राचार्य ने भगवान विष्णुुु को वामन केे रूप धारण किए हुए ब्राह्मण को पहचान लिया और राजा बलि को इस बारे में सावधान कर दिया कि यह ब्राह्मण नहीं भगवान विष्णु है।
परंतु दानवीर राजा बलि ने अपने वचन से नहीं मुकरा और तीन पग भूमि दान देने का वचन दे दिया।
वामन रूप धारण किए भगवान विष्णु ने एक पग में संपूर्ण स्वर्ग लोक नाप लिया। दूसरे पग में पूरी पृथ्वी को नाप दिया। तीसरा पैर प्रभु कहां रखे बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया।
अपना वचन नहीं निभाता तो वह पापी कहलाता। आखिर उसने अपना सिर भगवान के आगे रख दिया और कहा कि आप अब आपना पैैर मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन बने भगवान विष्णु ने ऐसा ही किया।
देखते ही राजा बलि पाताल लोक पहुंच गया। जब बलि पाताल लोक में चला गया। तब बलि ने अपने भक्ति के बल से भगवान को दिन रात अपने द्वारपाल बनने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को दानव राजा बलि के द्वारपाल (रक्षक) बनना पड़ा।
भगवान के पाताल लोक में निवास करने से परेशान लक्ष्मी जी ने सोचा यदि स्वामी पताल में द्वारपाल बनकर रहेंगे तो बैकुंठ का क्या होगा। इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। माता लक्ष्मी राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया।
माता लक्ष्मी ने राजा बलि से उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया। माता लक्ष्मी अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ वैकुंठ ले गई। उस दिन श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी। उसी दिन से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने की परंपरा शुरू हो गई।
श्रीकृष्ण और द्रौपदी से संबंधित कथा
महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित और द्रोपती संबंधित एक और वृतांत सुनने को मिलता है। जब कृष्ण सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था तब, उनकी तर्जनी में चोट लग गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़ कर उनकी उंगली पर पट्टी बांधी थी।
उस दिन सावन मास का पूर्णिमा तिथि था। श्री कृष्ण बाद में द्रोपती के चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था।
रक्षाबंधन का संबंध राजा पुरू और विश्व विजेता सिकंदर से जुड़ा है
युद्ध के समय सिकंदर को ना मारने का वचन ले ली थी। राजा पुरू ने युद्ध के दौरान अपने हाथ में राखी बांध राखें थे और अपनी बहन को दिए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दे दिया था।
इतिहास में सिकंदर व पोरस ने युद्ध के पूर्व रक्ष सूत्र की अदला-बदली की थी। युुद्ध के दौरान राजा पोरस ने जब घातक हथियार से प्रहार करने के लिए हाथ उठाया तो उसके हाथ में रक्षासूत्र बंधी देख कर अपना हथियार रख दिया। सिकंदर ने राजा पोरस को बंदी बना लिया। सिकंदर ने पोरस के हाथ में रक्षा सूत्र बंधा देख बंदी से मुक्त कर दिया। रक्षा सूत्र का मान रखते हुए भारत से वापस लौट गया।
हिमांयु और कर्मावती की कथा
वीर सैनिक और राजपूत राजा जब दुश्मन से लड़ाई लड़ने जाते थे तब घर की महिलाएं उनके माथे पर महावीरी का तिलक लगाने के साथ ही साथ हाथों में रक्षा सूत्र अर्थात राखी भी बांध देती थी।
क्षत्रानियों को विश्वास था कि हाथ में बंधे धागा उन्हें विजय प्राप्ति के साथ वापस ले आएगा। राखी के साथ एक और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़ा हुआ है।
मुगल शासन काल के दौरान जब मुग़ल बादशाह हिमायु चित्तौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा पत्नी कर्मावती ने हिमायू को राखी भेज कर रक्षा करने का वचन ले लिया।
हिमायुं ने इसे स्वीकार करके चित्तौड़ पर आक्रमण का ख्याल दिल से निकाल दिया। कालांतर में मुस्लिम होते हुए भी रक्षा सूत्र की लाज रखने के लिए चित्तौड़ की रक्षा हेतु मुग़ल बादशाह हिमायु ने बहादुर शाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ाई की। इसके बाद कर्मावती और मेवाड़ राज्य दोनों की रक्षा कर राखी की लाज रख दी।
कवित्री महादेवी वर्मा से जुड़ी कथा
महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एक बार साक्षात्कार के दौरान उन से पूछा गया था कि आप इस पुरुस्कार में मिले एक लाख रुपए की क्या करोगी।
कहने लगी ना तो मैं अब कोई कीमती साड़ी पहनती हूं ना कोई श्रृंगार पटा कर सकती हूं। 1,00000 रुपए पहले मिल गए होते तो भाई को चिकित्सा और दवा के अभाव में मरने नहीं देती। कहते-कहते उनका दिल भर आया।
कौन था उनका वह भाई ? हिंदी के युग प्रदर्शक, घूमक्कड़ महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला महादेवी के अपने भाई से कम नहीं थे।
एक बार वे रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह जा पहुंचे अपनी लाडली बहन के घर। रिक्शा रूकवाकर द्वार से चिल्लाते हुए बोले दीदी जरा 12 रुपए लेकर आना।
महादेवी रुपए लेकर आयी और पूछा। भाई बताओ तो सुबह सुबह 12 रुपए की क्यों जरूरत पड़ गई। जबकि आज तो रक्षाबंधन है। आज क्यों पैसे की जरूरत हैं।
निराला जी सरलता से बोले रिक्शे वाले को 2 रुपए देना है। राखी बांधने के बाद 10 रुपए तुम्हें देना है। आज राखी है ना ? राखी बंधन पर तुम्हें भी तो पैसे देने होंगे। ऐसे घूमक्कड़ सूर्य कांत त्रिपाठी निराला जी और उनकी मुंह बोली बहन महादेवी वर्मा थी।
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी कथा
अंग्रेजों से बचने के लिए चन्द्रशेखर आजाद ने भारी बारिश की एक रात अपरिचित गांव में विधवा के घर शरण लेने पहुंच गए।
जहां विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। पहलवान जैसे आजाद को देखकर डाकू समझ कर पहले तो वृद्धा ने अपने घर में शरण देने से इनकार कर दिया। लेकिन जब चंद्रशेखर आजाद ने अपना परिचय एक क्रांतिकारी के रूप में दिया तो उन्हें सम्मान पूर्वक विधवा ने अपने घर में शरण दे दी।
बातचीत से आजाद को पता चला कि अत्यंत गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में दिक्कत आ रही है।
आजाद ने महिला से कहा कि मेरे सिर पर 5,000 रुपए का इनाम रखा है फिरंगियों ने ? अंग्रेज सरकार को मेरी आने की सूचना देकर पांच हजार रुपए का इनाम पा सकती हो।
इससे आप अपनी बेटी का विवाह संपन्न करवा सकती हैं। यह सुन कर विधवा रो पड़ी और बोली भैया तुम भारत देश की आजादी के लिए अपनी जान हथेली पर रखकर दर-दर घूमते हो और ना जानें देश के कितने बहू बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है।
मैं ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकती या कहते उसने एक रक्षा सूत्र आजाद के हाथों में बांधकर देश सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आंखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे पांच हजार रुपए पड़े थे। इसके साथ एक चिट्ठी में लिखा था, छोटी सी भेंट चंद्रशेखर आजाद की ओर से।
अब जानें राखी या रक्षासूत्र कैसी होनी चाहिए
अपने भाईयों के कलाईयों में राखी बांधने के लिए कैसी होनी चाहिए रक्षा सूत्र और राखी जानें विस्तार से ?
रक्षा सूत्र तीन धागों का होना चाहिए। लाल, पीला और सफेद। अगर नहीं हो तो लाल और पीला धागा भी चल सकता हैै। काले धागे से बने राखी बांधना वर्जित है।
रक्षा सूत्र पर चंदन के लेप लगाना बेहद शुभ होता हैै। अगर आपके पास राखी या रक्षा सूत्र नहीं है तो कलावा अर्थात कच्चे धागे भी श्रद्धा पूर्वक अपने भाई के कलाई में बांध सकती हैं बहनें।
जानें कैसे बांधे राखी
रक्षाबंधन के दिन बहनें स्नान कर नए कपड़े पहनकर, पीतल या तांबे के थाली में रोली, चंदन, अक्षत, दही, रक्षा सूत्र, मिठाइयां और दीपक रख लें। रक्षा सूत्र और पूजा की थाली सबसे पहले भगवान को समर्पित कर विधि विधान से पूजा कर लें। इसके बाद भाई को पूर्व या उत्तर की दिशा में मुंह करके बैठने को कहें।
पहले भाई को तिलक लगाएं, फिर रक्षा सूत्र बांधें। इसके बाद आरती करने के उपरांत मिठाई खिलाकर भाई की मंगल कामना करें। रक्षाबंधन की विधि करते समय भाई और बहन का सर खुला नहीं होना चाहिए। रक्षा बांधने के बाद माता, पिता और गुरु का आशीर्वाद लेने के तत्पश्चात बहन को समर्थ अनुसार उपहार देना चाहिए।
उपहार में ऐसी सामग्री दें जो दोनों के लिए हितकर और शुभकारी हो। काला कपड़ा, तीखा सामान और नमकीन खाद्य पदार्थ उपहार में देने से बचें।