सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी व्रत विशेष स्थान रखता है
हर वर्ष चौबीस एकादशियां आती हैं। जब अधिकमास या मलमास लगता है। तब इसके बाद इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है
वर्ष 2022, दिन रविवार,10 जुलाई, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहते हैं
भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन से चार मास अर्थात चातुर्मास के दौरान पाताल लोक के राजा बलि के द्वार पर निवास करते हैं। इसके बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौट आते हैं
चार माह तक सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान, शादी-ब्याह, यज्ञ, गृह प्रवेश और भूमि पूजन आदि कार्य बंद रहेगा।
दूसरी कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखासुर राक्षस का वध कर, थकान मिटाने के लिए चार माह तक क्षीरसागर में विश्राम किए थे।
कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' एकादशी भी कहते हैं
सूर्य के मिथुन राशि में जाने पर देवशयनी एकादशी आती है
देवशयनी दिन से ही चातुर्मास का आरंभ हो जाता है। उसी दिन से भगवान श्री हरि क्षीरसागर में शयन अर्थात विश्राम करते हैं
लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर भगवान विष्णु निंद से जागते है
भगवान जिस दिन जागते हैं उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है
भगवान विष्णु के जागने के साथ ही सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं
इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। इस दौरान सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान बंद रहता है
देवशयनी एकादशी व्रत के दौरान भुलकर न करें यह काम
देवशयनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठने का प्रयास अवश्य करें
एकादशी व्रत के दिन घरों में लहसुन प्याज का उपयोग ना करें। साथ ही तामसिक भोजन बिल्कुल भी ना बनाएं और ना ही खरीद कर लाएं
एकादशी की पूजा पाठ में साफ-सुथरे कपड़ों का ही प्रयोग करें। पूजा के दौरान काले और नीले वस्त्रों का प्रयोग न करें
देवशयनी एकादशी व्रत के दिन परिवार में शांतिपूर्वक माहौल बनाएं रखें
शुद्ध और साफ पूजा सामग्री ही प्रयोग में लाएं
पूजा के दौरान श्रीहरि पर पीले फल और फूल अवश्य चढ़ाएं
घरों मे सुख और समृद्धि बनाए रखने के लिए देवशयनी एकादशी व्रत ऐसे करें
देवशयनी एकादशी के दिन एक गमले में सुबह के समय छोटा केले का पौधा लगाएं
अपने घर की उत्तर या पूर्व दिशा में केले के पौधे को रख कर उसके ऊपर रोली-मोली, पीले रंग के फल-फूल, केसर, धूप, दीप आदि से पूजा-अर्चना करें
पूजा के दौरान शुद्ध आसन पर बैठकर गाय के घी का दीपक जलाकर हल्दी बने स्वस्तिक पर रखे। इसके बाद पूजा करें
देवशयनी एकादशी की व्रत स्वयं कथा पढ़ें और परिवार के सदस्यों को भी कथा सुनाएं। भगवान विष्णु के 108 नामों का जाप करें
शाम के समय केले के पौधे के नीचे फिर से गाय के घी का दिया जलाएं। इसके बाद अपने मन की इच्छा भगवान विष्णु के सामने रखें
इसके बाद केले के पौधा को विष्णु मन्दिर या श्रीकृष्ण के मंदिर के पुजारी को दान कर दें
एकादशी व्रत के दिन इन चीजों का त्याग करें
मधुर स्वर के लिए गुड़ का प्रयोग करें
दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का दीपक जलाएं।
शत्रुनाशादि के नाश के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाएं
सौभाग्य प्राप्त करने के लिए तिल तेल का दीपक जलाएं
स्वर्ग प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु को पुष्पों से भोग लगाएं
प्रभु विष्णु के शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहां तक हो सके त्याग करें
एकादशी व्रत करने वाले व्रतधारियों को पलंग और खटिया पर सोना मना है
ब्रह्मचर्य का पालन करना, अर्थात भार्या का संग सोने से बचना चाहिए
एकादशी के दिन झूठ बोलना मना है
देवशयनी एकादशी के दिन मांस, शराब, शहद और दूसरे का दिया दही-भात का भोजन नहीं करना है।
मूली, पटल और बैंगन सब्जियों का भी त्याग कर देना चाहिए
पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के दिन से चार मास अर्थात चातुर्मास के दौरान पाताल लोक के राजा बलि के द्वार पर निवास करते हैं।
पुराण में यह भी उल्लेख किया गया है कि भगवान श्रीहरि ने वामन रूप धारण करके दैत्य राजा बलि के यज्ञ में आएं। तीन पग भूमि दान के रूप में राजा बलि से मांग लिया। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को लांध दिया।
दूसरे पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक नाप दिया। तीसरे पग में राजा बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए भगवान विष्णु से अपने सिर पर पग रखने को कहा। राजा बलि को इस प्रकार के दान देने से भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न होकर पाताल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने को भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा।
बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान श्रीहरि आप मेरे महल में नित्य निवास करें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी अर्धांगिनी माता लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और बलि से भगवान विष्णु को मुक्त करने का वचन ले लिया।
इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वचन का पालन करते हुए तीनों देवता चार-चार माह पाताल लोक में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक पाताल लोक में निवास करते हैं।
इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल एकादशी को अपने धाम लौट आते हैं। इस प्रकार द्वार पर निवास करने वाले दिन को 'देवशयनी' एकादशी कहते हैं।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं क्योंकि भगवान विष्णु राजा बलि के महल से आज के दिन ही लौटे थे।
इस चार महीने के दौरान यज्ञोपवीत संस्कार अर्थात जनेऊ संस्कार, शादी विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, भूमिपूजन सहित जितने भी शुभ कार्य है।
सभी धार्मिक अनुष्ठानों पर पूर्ण विराम लग जाता है। भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है।
हरि का मतलब होता है विष्णु
संस्कृत भाषा में हरि शब्द का मतलब सूर्य, चन्द्रमा, वायु, विष्णु के नाम से है। हरिशयन का मतलब है। इन चार माह के दौरान बादल और वर्षा के कारण सूर्य और चन्द्रमा का तेज काफी क्षीण हो जाना हरि के शयन का ही द्योतक होता है।
इस समय में पित्त और वात स्वरूप अग्नि की गति मध्यम पड़ जाने के कारण शरीर की गति और शक्ति क्षीण हो जाती है।
वर्तमान युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि चातुर्मास्य में अर्थात वर्षा ऋतु में विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं। जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प मात्रा आना ही इनका कारण है।
दूसरी धार्मिक कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य को श्रीहरि ने मार डाला था। अधिक थकान और नींद के कारण उसी दिन से आरम्भ करके भगवान विष्णु चार मास तक क्षीर सागर में विश्राम करते हैं। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को भगवान विष्णु जागते हैं।
देवशयनी एकादशी व्रतविधि
एकादशी को प्रातःकाल उठ जाएं। इसके बाद घर की साफ-सफाई करके नित्य कार्य से निवृत्त हो जाएं। स्नान कर पवित्र जल में गंगा जल मिलाकर घर में छिड़काव करें।
पवित्र जगह पर करें विष्णु प्रतिमा स्थापित
घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र जगह पर भगवान विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल से बने प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद उसका षोड्शोपचार विधि से पूजन करें।
विष्णु को पितांबरी वस्त्र से विभूषित करें
पूजन के दौरान भगवान विष्णु को पीतांबर वस्त्र से विभूषित करें। व्रत कथा सुनने के उपरांत आरती करें और भक्तों के बीच प्रसाद वितरण करें। अंत में सफेद चादर से बने गद्दे और तकिए वाले पलंग पर श्रीहरि विष्णु को सुता देना चाहिए।
व्यक्ति को इन चार महीनों अपनी रुचि के अनुसार शाकाहारी भोजन करें और नित्य भगवान विष्णु का स्मरण करते रहे।
देवशयनी एकादशी की कथा
एक बार देवऋषि नारद ने भगवान ब्रह्माजी से पूछा पिताश्री देवशयनी एकादशी क्या है और इसे करने का विधान क्या है। ब्रह्माजी ने कहा पुत्र सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा सुख पूर्वक रहते थे।
मनुष्य के भाग्य में क्या लिखा है कोई नहीं जानता
मनुष्य के भविष्य में क्या हो जाएगा, यह कोई नहीं जानता। राजा मान्धाता भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में जल्द ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।
उनके राज्य में पूरे तीन वर्षों तक बारिश नहीं हुई जिसके कारण राज्य में भयंकर अकाल पड़ गया। इस दुर्भिक्ष अकाल से जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि धार्मिक में कमी आने लगी।
मुसीबत पड़ने पर लोगों में धार्मिक कार्यों के प्रति रुचि कम हो जाती है। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना और दुःख दर्द की दुहाई दी।
कष्ट निवारण के लिए राजा वन में गए
राजा तो अकाल को लेकर पहले से ही दुःखी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन सा पाप किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर इस अकाल रूपी कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।
राजा पहुंच अंगिरा ऋषि के आश्रम में
वन में भ्रमण करते-करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। राजा ने साष्टांग दंडवत किया। ऋषिवर ने आशीर्वाद देकर राजा से कुशल क्षेम पूछा। फिर जंगल में भ्रमण करने और आश्रम में आने का कारण जानना चाहा।
राजा ने अपना कष्ट ऋषि को सुनाया
राजा ने हाथ जोड़कर कहा हे 'महात्मन्! मैं सभी तरह से धर्म का पालन करता हूं। इसके बाद भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूं। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है, कृपया करके इसका समाधान हमें बताइए।
तब करने का अधिकारी सिर्फ ब्राह्मण
यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा 'हे राजन! सभी युगों में यह सतयुग सबसे उत्तम युग है। इसमें छोटे से पाप करने पर भी बड़ा भयंकर पाप मिलता है।
इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है।
इसके बाद भी आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यही कारण है कि आपके राज्य में बारिश नहीं हो रही है। जब तक इसका मृत्यु नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष अकाल खतै नहीं होगा। अकाल खत्म करने के लिए उसे मारने से ही होगा।
राजा का हृदय एक निरपराध शूद्र तपस्वी को मारने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा- 'हे ऋषिवर मैं उस निरपराधी तपस्वी को मार दूं, यह संभव नहीं है। मेरा मन इसे स्वीकार नहीं कर रहा है। कृपा करके आप दूसरा कोई और उपाय बताएं।' महर्षि अंगिरा ने कहा कि 'आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की देवशयनी एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही आपके राज्य में बारिश होगी।'
राजा का कष्ट दूर लौटे अपने नगर में
राजा अपने राज्य लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी (देवशयनी एकादशी) का विधि विधान और पूरी निष्ठा पूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार बारिश हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
व्रत करने से क्या मिलता है फल
ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होते हैं। यदि व्रती चातुर्मास का पालन विधिपूर्वक करे तो महाफल प्राप्त होता है।
सनातन धर्म में वर्णित सभी व्रतों में आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का व्रत सबसे उत्तम और महान माना जाता है। मान्यता है कि इस देवशयनी एकादशी व्रत को करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं और इच्छा पूर्ण होती हैं और उनके सभी पापों का विनाश हो जाता है।
देवशयनी एकादशी पर भगवान श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करने का विशेष फल मिलता है।
देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी और 'पद्मनाभा' एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार इसी रात्रि से भगवान का शयन काल आरंभ हो जाता है जिसे चातुर्मास या चौमासा का प्रारंभ भी कहते है।
यह कथा पूरी तरह से धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं पर आधारित है।
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क्या आप देवशयनी एकादशी करना चाहते हैं
तो यह कथा आपके लिए है। जानें संपूर्ण जानकारी धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों से।