खेती बाड़ी में अषाढ़ी पूजाई का अपना एक अलग ही महत्व और विषेश पहचान है।
खेती आरंभ करने के पहले किसान की पत्नियां करती है 7 देवियों की विशेष पूजा।
आषाढ़ माह में कब की जाती है अषाढ़ी पुजाई जानें विस्तार से
भारत कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा योगदान खेती से होती है। किसान खेती-बाड़ी शुरू करने के पहले अपने देवी-देवताओं का पूजा कर, अच्छी खेती की मंगल कामना करते हैं।
7 देवियां और भैरव बाबा की होती है पूजा
खेती अच्छी हो इसके लिए किसान कि पत्नियां देवियों की पूजा करती हैं। आषाढ़ मास खेती शुरू करने का महीना होता है। धान की खेती के लिए 6 महीने प्रमुख होते हैं । आषाढ़, श्रावण, भादो, अश्विन, कार्तिक और अगहन माह धान की खेती के महीने कहा जाता हैं।
कैसे होती है अषाढ़ी पूजाई
आषाढ़ महीना खेती के लिए शुरुआत का माह कहा जाता है। इस माह में बीज अर्थात बिचड़ा बुनने का नक्षत्र आता है। आद्रा नक्षत्र आषाढ़ मास में ही आता है। इसी नक्षत्र में बिचड़ा बोने का काम किया जाता है।
इस महीने की शुरुआत बीज बोने के लिए होता है। गांव में आषाढ़ महीने के मंगल, शनि और सोमवार के दिन महिलाएं धुमधाम और विधि-विधान से देवी की पूजा करती है। महिलाएं 7 देवियों की पूजा करती है। पूजा करने के लिए दिन भर का व्रत रखाती है । विवाहिता महिलाएं ही पूजा में भाग लेती है। हर गांव में देवी की मंदिर होती है। देवी मंदिर को पूजा के दिन सजाया जाता है।
पूजा की विधि
अषाढ़ी पूजाई के लिए महिलाएं पहले से ही तैयारी करने लग जाती है। महिलाएं माता की श्रृंगार के सामान, घर में बनी पुआ, पूरी, खीर और मौसमी फलों सहित अन्य सामग्रियों से पूजा अर्चना करती है। विवाहिता महिलाएं सुबह उठ कर स्नान कर , नए कपड़ा पहनकर पूजा की थाल तैयार करती है।
इसके बाद महिलाओं का समूह गीत गाते हुए देवी माता के मंदिर जाती है। मंदिर पहुंचने के बाद महिलाएं विधि विधान से पूजा अर्चना करती है। इसके बाद गीत गाकर माता को खुश करती है। खेती के काम सुचारू ढंग से चले और धान की बम्फर पैदा हो इसके लिए देवी मां से प्रार्थना करती है। कुछ जगहों पर पूजा के उपरांत बलि देने का भी प्रथा है।
पूजा के उपरांत तोड़ती है व्रत
विधि विधान से पूजा-अर्चना करने के उपरांत घर आने के बाद घर में स्थित कुलदेवी की पूजा करती है साथ ही घर में स्थित गौशाला, हल और बैलों की पूजा करती है। पूजा के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती है। इसके बाद घर के सदस्यों के बीच प्रसाद का वितरण किया जाता है।
पूजा तिथि और समय का निर्धारण स्वयं
आषाढ़ माह के किसी भी शनि, मंगल और सोमवार के दिन आषाढ़ी पूजा करने का विधान है। गांव की महिलाएं आपस में बैठकर पूजा के दिन, तिथि और समय का निर्धारण करती है। हर गांव कि महिलाएं अपनी सुविधा के अनुसार दिन, तिथि और समय का निर्धारण करती है। पूजा करने का समय सुबह 10:00 बजे से दिन 2:00 बजे के बीच होता है। बहुत से गांवों में शाम के समय महिला और पुरुष मिलकर भजन और कीर्तन का भी आयोजन करते हैं। रात भर जागरण भी होता है।