अपने पति की दीर्घायु की कामना कर, सुहागन महिलाएं करती है बट सावित्री व्रत और पूजा ?
अगर आपको बट सावित्री पूजा करनी है तो यह लेख पढ़ना जरूरी है क्योंकि इसमें है संपूर्ण जानकारी।
शुभ और चर मुहूर्त में करें बट सावित्री व्रत की पूजा ?
पूजा करने का शुभ और अशुभ समय पंचांग और चौघड़िया के अनुसार जानें विस्तार से ?
पूजा अर्चना करने का उचित समय 09:00 बजे से लेकर 10:30 और बजे 02:02 बजे से लेकर 03:46 बजे तक।
पूजा करने के विधि और सामग्रियों की सूची ?
पौराणिक कथा जानें विस्तार से ?
पंचांग के अनुसार बट सावित्री व्रत के दिन कैसा रहेगा ?
बट सावित्री व्रत 30 मई दिन सोमवार ज्येष्ठ अमावस्या के पड़ रहा है। अमावस्या तिथि सोमवार शाम 4:59 बजे तक रहेगा।
एकादशी के दिन सूर्योदय सुबह 5:00 बजे एवं सूर्यास्त शाम 6:26 बजे पर होगा। बट सावित्री व्रत के दिन नक्षत्र कृत्तिका सुबह 7:12 बजे तक रहेगा।
इसके बाद रोहिणी नक्षत्र हो जाएगा। योग सुकर्मा रात 11 बज के 39 मिनट तक रहेगा। इसके बाद धृति हो जाएगा।
प्रथम करण नाग शाम 05:00 बज के 59 मिनट तक रहेगा। इसके बाद किंस्तुघ्न हो जाएगा। सूर्य वृषभ राशि में और चंद्रमा वृषभ राशि में स्थित रहेंगे। सूर्य का नक्षत्र रोहिणी है। इस दिन ऋतु ग्रीष्म है। सूर्य उत्तरायण दिशा में स्थित है।
बट सावित्री व्रत के दिन आनंदादि योग स्थिर है जो सुबह 07:12 बजे तक रहेगा।
इसके बाद वर्धमान हो जाएगा। होमाहूति केतु सुबह 07:12 बजे तक रहेगा। इसके बाद सूर्य हो जाएगा। दिशाशूल पूर्व दिशा में स्थित है। नक्षत्रशूल पश्चिम दिशा में और राहु वास उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित है।
अग्निवास आकाश शाम के 04:59 बजे तक, इसके के बाद पृथ्वी हो जाएगा। चंद्रवास दक्षिण दिशा में है।
पूजा करने का शुभ और अशुभ मुहूर्त जानें पंचांग और चौघड़िया के अनुसार
जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:51 बजे से लेकर दोपहर 12:46 बजे तक है।
विजया मुहूर्त 02:37 बजे से लेकर 3:32 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 07:00 बजे से लेकर 07:24 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 07:13 बजे से लेकर 08:14 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:58 बजे से लेकर 12:39 बजे तक,
ब्रह्म मुहूर्त अहले सुबह 04:02 बजे से लेकर 04:43 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त सुबह 04:23 बजे से लेकर 05:24 बजे तक रहेगा। इस दौरान बट सावित्री का पूजा कर सकते हैं।
पंचांग के अनुसार अशुभ महूर्त
पंचांग के अनुसार सुबह के 07:08 बजे से लेकर 08:51 बजे तक राहुकाल है। दोपहर के 02:02बजे से लेकर 03:46 बजे तक गुलिक काल, सुबह के 10:35 बजे से लेकर 12:19 बजे तक यमगण्ड काल, 12:46 बजे से लेकर 01:42 बजे तक दुर्मुहूर्त काल और वज्र्य काल देर रात 01:05 बजे से लेकर 02:52 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करने से लोगों को बचना चाहिए।
अब जानें दिन के शुभ मुहूर्त चौघड़िया पंचांग के अनुसार
चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 05:24 बजे से लेकर 07:08 बजे तक अमृत मुहूर्त, सुबह 08:51 बजे से लेकर 10:35 बजे तक शुभ मुहूर्त, दिन के 02:02 बजे से लेकर 03:46 बजे तक चर मुहूर्त एवं 03:46 बजे से लेकर 05:30 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। एक बार फिर से शाम 5:30 बजे से लेकर 7:00 बज के 13 मिनट तक अमृत मुहूर्त रहेगा। इस दौरान बट सावित्री व्रत की पूजा सुहागन कर सकती हैं।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार जानें अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार बट सावित्री व्रत पूजा अशुभ मुहूर्त में करना मना है। अशुभ मुहूर्त का शुभारंभ सुबह 7:08 बजे से लेकर 8:51 बजे तक काल मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार सुबह 10:35 बजे से लेकर दोपहर 12:19 बजे तक रोग मुहूर्त और 12:19 बजे से लेकर 2:02 बजे तक उद्धेग मुहूर्त के रूप में रहेगा।
कब है बट सावित्री व्रत और पूजा
बट सावित्री पूजा 30 मई 2022, दिन सोमवार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को (शाम 6 बजे तक) मनेगा। उस दिन कृृतिका नक्षत्र दिन के 11:45 तक है। सूर्य वृषभ राशि में जबकि चंद्रमा वृषभ राशि में रात 1:10 तक रहेगा। इसके बाद के बाद मिथुन राशि में प्रवेश कर जाएगा।
पंचांग के अनुसार जानें आज का दिन
सूर्योदय सुबह 5: 23 से लेकर सूर्यास्त शाम 7: 19 बजे होगा। अमावस्या तिथि होने के चलते चंद्रोदय नहीं होगा। दिनमान 13 घंटा 55 मिनट का और रात्रिमान 10 घंटा 4 मिनट का रहेगा। बट सावित्री पूजा के दिन दिशा शूल दक्षिण, राहू वास दक्षिण, अग्नि वास पृथ्वी और चंद्र वास दक्षिण दिशा में होगा।
दक्षिण दिशा मुंह करके ना करें पूजा
दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करना वर्जित है क्योंकि नरक का द्वार दक्षिण दिशा में ही स्थित है।
बट सावित्री पूजा करने का उचित और शुभ मुहूर्त सुबह 09:00 बजे से लेकर 10:30 और बजे 02:02 बजे से लेकर 03:46 बजे तक। इस दौरान पूजा अर्चना करना अनंत फलदाई होगा। )
शाम का शुभ मुहूर्त
प्रसन्न होकर पुत्री के रूप में अश्वपति के घर जन्म लेने का वर दिया। कुछ समय बाद बड़ी रानी ने एक तेजस्विनी और अत्यंत सुंदर कन्या ने जन्म दिया।
कैसे करें बट सावित्री पूजा
बट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा करने की विधान है। सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ में सभी देवी-देवताओं निवास करते हैं।
बट सावित्री व्रत में सुहागिन स्त्रियां बरगद के पेड़ की 7, 9 एल 11 बार परिक्रमा करती हैं और साथ ही कच्चा सूत भी लपेटती हैं। पौराणिक मान्यता है कि बरगद के पेड़ की पूजा एवं आराधना करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
प्रतिमा बनाकर करें पूजा
बट वृक्ष के नीचे मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यम की मूर्ति स्थापित कर पूजा करनी चाहिए तथा बट वृक्ष की जड़ में पानी देना चाहिए।
बट वृक्ष को सींचे शुद्ध जल से
जल से बट वृक्ष को सींचकर तने को चारों ओर सात, नौ एवं ग्यारह बार कच्चा धागा लपेट कर उतने ही बार परिक्रमा करनी चाहिए। साथ ही पंखे से बट वृक्ष को हवा करें। इसके बाद उपस्थित सुहागिन स्त्रियों को सावित्री और सत्यवान की कथा सुननी चाहिए।
इसके बाद भीगे हुए चनों का बायना निकाल कर उस पर यथाशक्ति रुपए रखकर अपनी सास को देना चाहिए तथा उनके चरण स्पर्श करने चाहिए। घर आकर जल से अपने पति के पैर धोएं और आशीर्वाद लें। उसके बाद अपना व्रत खोल सकती हैं।
पूजा सामग्रियों की सूची
पूजा के लिए शुद्ध जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल, मौसम फल, गंगाजल, सत्यवान-सावित्री की मूर्ति, बांस का पंखा, लाल धागा, मिट्टी का दीपक, धूप, घी और पांच फल जिसमें लीची, केला और आम अवश्य होनी चाहिए।
अब जानें पौराणिक कथा
सावित्री ने पसंद किया सत्यवान
अपनी कन्या सावित्री के युवा होने पर पिता अर्थात मद्र देश के राजा अश्वपतिअश्वपति ने विवाह का विचार करने लगे। राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के लिए कोई योग्य वर नहीं मिला। सावित्री को अपने लिए स्वयं वर खोजने का आदेश पिता ने दिया।
पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग मंत्रियों के साथ लेकर स्वर्ण रथ पर बैठकर यात्रा के लिए निकल पड़ी।
कुछ दिनों तक ब्रह्म ऋषियों और राज ऋषियों के तपोवन और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद राज महल लौट आई। पिता के समीप देव ऋषि नारद जी को बैठे देखकर दोनों के चरणों को श्रद्धापूर्वक स्पर्श कर दंडवत प्रणाम किया।
राजा के पूछने पर सावित्री ने कहा पिताश्री तपोवन में माता-पिता के साथ निवास कर रहे धमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग है। अतः सत्यवान की कृति सुनकर उन्हें मैंने पति के रूप में वरण कर लिया है।
नारदजी ने सत्यवान की आयु बतायी एक वर्ष
नारादजी सत्यवान तथा सावित्री के ग्रहों की गणना कर राजा अश्वपति से बोले राजन सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। सत्यवान के पिता शत्रुओं द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए थे।
वे लोग वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके थे । सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु अब केवल 1 वर्ष की शेष रह गया है।
नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्याग्र हो गए और उन्होंने सावित्री को कहा बेटी अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग वर का वरण करो। सावित्री सती कन्या थी।
उसने दृढ़ता से कहा पिताश्री मैं आर्य कन्या होने के नाते जब मैं सत्यवान का वरण कर चुकी हूं तो, अब सत्यवान चाहे अल्प आयु हो या दीर्घायु अब तो वही मेरे पति बनेंगे। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरुष का वरण कैसे कर सकती हूं।
सावित्री ने सत्यवान से शादी करने को ठान ली
सावित्री नाम की धर्मनिष्ठ महिला जिसे पता था उसका पति की आयु मात्र 1 साल है। फिर भी उसे अपने नारी और सतीत्व पर यकीन था। उसमें यमराज से भी लड़ने कि शक्ति थी।
वन में सत्यवान ने प्राण त्यागा
घटना के दिन पति और पत्नी दोनों जंगल में लकड़ी काटने गए थे। सत्यवान के पिता राजा थे, परंतु नियति ने उन्हें आंधा और गरीब बना दिया था। सत्यवान लकड़ी काटने के उपरांत उसने सावित्री से कहा।
सर में दर्द हो रही है । सावित्री कुछ समझ पाती उसी बीच उसके पति के शरीर से प्राण निकल चुके थे। थोड़ी देर में सावित्री ने देखी एक दिव्य व्यक्ति पति की आत्मा को ले जाने के लिए आए हैं। उसने सत्यवान की आत्मा को लेकर चलने लगे। उसके पीछे पीछे सावित्री भी चलने लगी।
सावित्री ने यमराज से मांगी अपने सास और ससुर के आंखों की रोशनी और खोया राज्य
यमराज ने कहा पुत्री कुछ मांग लो और लौट जाओ। सावित्री ने अपने नेत्र हीन सास ससुर की आंखें और खोया हुआ विरासत मांग लिया। इसके बाद भी वह यमराज की पीछा नहीं छोड़ी। तो यमराज ने कहां की पुत्री स्वस्थ्य शरीर लेकर स्वर्ग लोक में कोई नहीं जाता है।
इसलिए तुम लौट जाओ। विधि का यहू विधान है। तुम्हारे पति की इतना ही आयु बची थी। मुझे तुम्हारे पति को ले जाना मेरी मजबूरी है।
सावित्री ने मांगी यमराज से 100 पुत्र प्राप्ति की वरदान
सावित्री ने कहा कि मुझे एक सौ पुत्र होने का वरदान दे। यमराज ने वरदान दे दिया। फिर भी जब सावित्री पीछा नहीं छोड़ी तो यमराज ने कहा अब क्या चाहिए ?
सावित्री ने कहा कि मुझे एक सौ पुत्र होने का वरदान दे। यमराज ने वरदान दे दिया। फिर भी जब सावित्री पीछा नहीं छोड़ी तो यमराज ने कहा अब क्या चाहिए ? सावित्री कही प्रभु आपने मुझे पुत्रवती होने का वरदान तो दे दिया है, परंतु मेरे पति को आप लेकर जा रहे हैं।
ऐसे में मुझे पुत्र की प्राप्ति कैसे होगी। यमराज अपने वचन से हार चुके थे। और उन्होंने सावित्री के पति का प्राण वापस कर दिया और फिर लौट गए।
सावित्री की धर्मिनष्ठा, ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर रखा था। सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा।
सावित्री की धर्मिनष्ठा, ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर रखा था।
सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा। प्रसन्नचित सावित्री अपने सास−श्वसुर के पास पहुंची तो उन्हें नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई। इसके बाद उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हें मिल गया।
आगे चलकर सावित्री सौ पुत्रों की मां बनी। इस प्रकार चारों दिशाएं सावित्री के पतिव्रत धर्म के पालन की कीर्ति से गूंज उठीं।
कथा का सारांश है कि अगर कोई भी नारी निश्चय कर ले ,तो कुछ भी कर सकती है। वैसे भी भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति रूपा मानते हैं।
यह कथा पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। साथ ही पूजा करने का उचित समय पंचांग के अनुसार दिया गया है। यह कथा आपको कैसा लगा, ईमेल से जरूर सूचित कीजिएगा
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