रंभा तीज व्रत कथा का संबंध समुद्र मंथन से है। इसी दिन अप्सरा रंभा समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थी।
अप्सरा रंभा और माता लक्ष्मी दोनों समुद्र मंथन में प्रकट हुए थे इसलिए आपस में दोनों बहने हुई
पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन माता पार्वती का जन्म हुई थी
रंभा तीज के दिन माता लक्ष्मी, शिव-पार्वती और अप्सरा रंभा की पूजा करने की परंपरा है
अखंड सौभाग्य की कामना और बुद्धिमान चिरंजीव पुत्र की मनोकामना कर सुहागिन महिलाएं रखती है व्रत
पूजा करने का शुभ मुहूर्त दिन और शाम
सुबह 10:30 बजे से लेकर 4:00 बजे तक चार लाभ और अमृत मुहूर्त का समावेश रहेगा। इस दौरान पूजा करना सर्वश्रेष्ठ होगा।
संध्या समय 5:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक पूजा कर सकते हैं।
जाने पंचांग के अनुसार रंभा एकादशी का दिन
तृतीया तिथि गुरुवार दिन के 12:17 बजे तक रहेगा। उदया काल में तृतीय तिथि पड़ने के कारण इसका प्रभाव दिन भर रहेगा।
तृतीय के दिन सूर्योदय सुबह 05:23 बजे एवं सूर्यास्त शाम 07:15 बजे पर होगा। चन्दोदय सुबह 07:19 बजे पर और चंद्रास्त रात 09:56 बजे पर होगा।
तृतीय तिथि के दिन नक्षत्र आद्रा शाम 04:34 बजे तक रहेगा इसके बाद पूनर्वसु नक्षत्र हो जाएगा। योग गण्ड है।
प्रथम करण तैतिल दिन के 11:02 बजे तक रहेगा। द्वितीय करण गर है। सूर्य वृषभ राशि में और चंद्रमा मिथुन राशि में स्थित रहेंगे। सूर्य का नक्षत्र रोहिणी है। इस दिन ऋतु ग्रीष्म है। सूर्य उत्तरायण दिशा में स्थित है।
रंभा तृतीया व्रत के दिन आनंदादि योग काण है जो संध्या 04:04 बजे तक रहेगा। इसके बाद सिद्धि हो जाएगा। होमाहूति सूर्य संध्या 04:04 बजे तक रहेगा। इसके बाद बुध हो जाएगा। दिशाशूल दक्षिण दिशा में स्थित है। नक्षत्रशूल पश्चिम दिशा में और राहुवास दक्षिण दिशा में स्थित है।
अग्निवास आकाश दिन के 12:17 बजे तक, इसके के बाद पाताल हो जाएगा। चंद्रवास पश्चिम दिशा में है।
पूजा करने का शुभ और अशुभ मुहूर्त जानें पंचांग और चौघड़िया के अनुसार
जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:05 बजे से लेकर दोपहर 12:47 बजे तक है।
विजया मुहूर्त 02:38 बजे से लेकर 3:33 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 07:01 बजे से लेकर 07:25 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 07:15 बजे से लेकर 08:16 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:59 बजे से लेकर 12:39 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त अहले सुबह 04:02 बजे से लेकर 04:43 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त सुबह 04:22 बजे से लेकर 05:23 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा कर सकते हैं।
पंचांग के अनुसार अशुभ महूर्त
पंचांग के अनुसार सुबह के 05:23 बजे से लेकर 07:07 बजे तक यमगण्ड है। दोपहर के 02:03 बजे से लेकर 03:47 बजे तक राहु काल, सुबह के 08:51 बजे से लेकर 10:35 बजे तक गुलिक काल, दुर्मुहूर्त काल सुबह 10:01 बजे से लेकर 10:56 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करने से लोगों को बचना चाहिए।
अब जानें दिन के शुभ मुहूर्त चौघड़िया पंचांग के अनुसार
चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 05:23 बजे से लेकर 07:07 बजे तक शुभ मुहूर्त, सुबह 10:35 बजे से लेकर 12:19 बजे तक चर मुहूर्त, दिन के 12:19 बजे से लेकर 02:03 बजे तक लाभ मुहूर्त एवं 02:03 बजे से लेकर 03:47 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। एक बार फिर से शाम 5:31 बजे से लेकर 7:00 बज के 15 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा। इस दौरान रंभा तृतीया व्रत की पूजा सुहागन कर सकती हैं।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार जानें अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार रंभा तृतीया व्रत पूजा अशुभ मुहूर्त में करना मना है। अशुभ मुहूर्त का शुभारंभ सुबह 07:07 बजे से लेकर 8:51 बजे तक रोग मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार सुबह 08:51 बजे से लेकर 10:35 बजे तक उद्धेग मुहूर्त और 03:47 बजे से लेकर 7:31 बजे तक काल मुहूर्त के रूप में रहेगा।
अब जानें पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से
पौराणिक कथाओं और हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तृतीया व्रत करने का विधान है। इस वर्ष यह व्रत 2 जून 2022 को गुरुवार के दिन है।
इस दिन विवाहित महिलाएं इसलिए व्रत रखती हैं ताकि उन्हें भगवान गणेश जी जैसी बुद्धिमान एवं माता और पिता जैसा आज्ञाकारी पुत्र और माता पार्वती जैसी पुत्री मिले। साथ ही उन पर माता पार्वती और भोलेनाथ की कृपा बनी रहे। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक रत्न अप्सरा रम्भा भी थीं। कहा जाता है कि रम्भा अति सुंदर थी। कई साधक रम्भा के नाम से साधना कर सम्मोहनी मंत्र की सिद्धि प्राप्त करते हैं।
रम्भा तृतीया व्रत करने का क्या है विधान
अहले सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और पांच अग्नियों क्रमश: गार्हपत्य, दक्षिणाग्नि, सभ्य, आहवनीय और भास्कर को मन में स्मरण कर उसे प्रज्वलित करें। उनके मध्य में माता पार्वती, लक्ष्मी और रंभा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान और पूरी निष्ठा पूर्वक पूजन करें।
पूजा के दौरान निम्न मंत्र का जप करें
'ऊं महाकाल्यै नम:, महालक्ष्म्यै नम:, महासरस्वत्यै नम: नामक मंत्रों से पूजन करना चाहिए'
रम्भा तृतीया के दिन विवाहित स्त्रियां गेहूं, फल, मिठाईयां और फूल से लक्ष्मी जी की पूजा करती हैं। धन की चाहत रखने वाले महिलाएं इस दिन देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि विधान और निष्ठा पूर्वक पूजा करती है।
इस दिन स्त्रियां चूड़ियों के जोड़े की भी पूजा करती हैं। जिसे अप्सरा रम्भा और देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कई जगह इस दिन माता सती की भी पूजा की जाती है।
रम्भा तृतीया व्रत विशेष जानकारी
सुहागिन महिलाएं रंभा तृतीया व्रत इसलिए करतीं हैं क्योंकि रंभा तृतीया व्रत करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। रंभा तृतीया का व्रत शिव-पार्वतीजी की कृपा पाने, मां लक्ष्मी की कृपा से धन पाने, अप्सरा रंभा जैसी मोहनी शक्ति पाने और भगवान गणेशजी जैसी बुद्धिमान संतान तथा अपने सुहाग की रक्षा के लिए किया जाता है।
मंदिर में जा सके तो घर में करें पूजा
इस दिन शिव मंदिर में और नहीं तो अपने घर पर ही शिव-पार्वती, माता लक्ष्मी, अप्सरा रंभा और भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना करने के बाद अपने सास-ससुर सहित बड़े बुजुर्ग से आशीर्वाद लिया जाता हैं।
सास सहित बुजुर्ग महिलाओं को पकवान व्यंजन और वस्त्र भेंट किए जाते हैं।
पौराणिक कथाओं और धर्म ग्रंथों के अनुसार
हरवर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तृतीया व्रत सुहागिन महिलाएं श्राद्ध पूर्वक करती है। पुराणों के अनुसार इस दिन माता पार्वती इसी दिन धरती पर अवतरित हुई। इस बार यह व्रत 2 जून दिन गुरुवार को पड़ रहा है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने के लिए यह व्रत रखती हैं तथा माता पार्वतीजी की पूजन करती हैं।
रम्भा तृतीया व्रत करने का फल
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार इस व्रत को करने से अपार पूण्य तो मिलते ही हैं साथ ही अगर इस इस महात्म को पढ़ा जाए तो एक सौ यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।