APARA/ACHALA EKADASHI-2022 अचला या अपरा एकादशी 26 मई को, जानें संपूर्ण विधि, शुभ और अशुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा व पूजा सामग्रियों की सूची

अचला एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, गौहत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा करने से उपजे हर तरह के पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, न्यायालय या पंचायत में झूठी गवाही देना, किसी से भी झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या लिखना, झूठे ज्योतिषी बनना तथा झूठे वैद्य बनकर मरीजों को ठगना आदि सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं।

26 मई 2022 दिन गुरुवार को एकादशी तिथि सुबह 10:00 बज के 54 मिनट तक रहेगा। इसके पूर्व 24 मई को सुबह 10:45 बजे से दशमी तिथि प्रारंभ हो जाएगा जो 25 तारीख दिन के 10:32 बजे तक रहेगा। इसके बाद एकादशी तिथि प्रारंभ हो जाएगा।

पंचांग के अनुसार जानें एकादशी के दिन कैसा रहेगा

26 मई 2022, दिन गुरुवार को ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को अचला एकादशी है। सूर्य वृषभ राशि में और चंद्रमा मीन राशि में रात12:39 बजे तक इसके बाद मेष राशि में प्रवेश कर जायेंगे। सूर्य का नक्षत्र रोहिणी है।

सूर्योदय 5:00 बज के 1 मिनट पर और सूर्यास्त 6:24 बजे पर चंद्रोदय देर रात 2:52 बजे पर और चंद्रास्त दूसरे दिन के 2:52 बजे पर होगा। दिनमान 13 घंटे 22 मिनट का रहेगा और रात्रि मान 10 घंटे 37 मिनट का होगा।

अचला एकादशी के दिन आनंदादी योग मित्र रात के 12:39 बजे तक इसके बाद मानस हो जाएगा। होमाहुति राहु देर रात 12:39 बजे तक, इसके बाद केतु हो जाएगा। चन्द्र वास उत्तर, दिशाशूल दक्षिण, राहु वास दक्षिण, अग्निवास पृथ्वी सुबह के 10:54 तक इसके बाद आकाश हो जाएगा।




अब जानें कौन मुहूर्त में करें पूजन

अचला एकादशी के दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:51 बजे से लेकर 12:46 बजे तक रहेगा

काशी पंचांग के अनुसार पूजा करने का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त दोपहर 2:36 बजे से लेकर 3:31 बजे तक विजया मुहूर्त के रूप में है। उसी प्रकार गोधूलि मुहूर्त शाम 6:51 बजे से लेकर 7:21 बजे तक, संध्या मुहूर्त 7:11 बजे से लेकर 8:13 बजे तक, मध्य रात्रि का निशिता मुहूर्त 11:58 बजे से लेकर 12:39 बजे तक, ब्रह्मा मुहूर्त 04:03 बजे से लेकर 04:44 बजे तक और प्रातः मुहूर्त 04:24 बजे से लेकर 05: 25 बजे तक है। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।

पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार राहुकाल का आगमन दिन के 02:02 बजे से लेकर 03:45 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार यमगण्ड काल दोपहर 05:25 बजे से लेकर 07:09 बजे तक और गुलिकाल सुबह 08:52 बजे से लेकर 10:35 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार दुमुर्हत काल सुबह 10:01 बजे से लेकर 10:56 बजे तक और शाम 3:52 बजे से लेकर 4:26 बजे तक रहेगा। वज्य काल दिन के 11: 59 बजे से लेकर 1:40 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।

चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार दिन शुभ समय

चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। सुबह 05:25 बजे से लेकर 07:09 बजे तक का शुभ मुहूर्त का संयोग रहेगा। अमृत मुहूर्त का आगमन दोपहर 02:02 बजे से लेकर 03:45 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार लाभ मुहूर्त दोपहर 12:18 बजे से लेकर 02:02 बजे तक और चर मुहूर्त सुबह के 10:35 बजे से लेकर दोपहर 12:18 बजे तक रहेगा। शाम के समय एक बात फिर से शुभ मुहूर्त का आगमन हो रहा है जो शाम 5:28 बजे से लेकर 7:11 बजे तक रहेगा। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।

चौघड़िया मुहूर्त दिन का अशुभ मुहूर्त

चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन अशुभ मुहूर्त सुबह 07:09 बजे से लेकर 08:52 बजे तक रोग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 08:00 बज के 52 मिनट से लेकर 10:00 बज के 35 मिनट तक उद्धेग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार दिन के 03:45 बजे से लेकर शाम के 05:28 बजे तक तक काल मुहूर्त का संयोग रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित रहेगा।

रात्रि चौघड़िया शुभ मुहूर्त

रात्रि समय का चौघड़िया पंचांग के अनुसार अमृत मुहूर्त रात 07:11 बजे से लेकर 08:28 बजे तक रहेगा। 08:28 बजे से लेकर रात 09:45 बजे तक चर मुहूर्त और मध्य रात्रि 12:18 बजे से लेकर 01:35 बजे तक लाभ मुहूर्त है। देर रात 02:52 बजे से लेकर 04:08 बजे तक शुभ मुहूर्त का संयोग है। एक बार फिर से प्रातः काल 4:08 बजे से लेकर 5:25 बजे तक अमृत मुहूर्त का संजोग रहेगा। इस दौरान दो-पहर की पूजा अर्चना जातकों कर सकते हैं। इस वक़्त पूजा करना काफी लाभप्रद होगा।

चौघड़िया अशुभ मुहूर्त रात का

चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार रात 09:45 बजे से लेकर रात 11:01 बजे तक रोग मुहूर्त, मध्य रात की 11:01 बजे से लेकर रात 12:18 बजे तक काल मुहूर्त और रात 01:35 बजे से लेकर 02:52 बजे तक उद्धेग मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान भी पूजा अर्चना करना वर्जित है।

अचला एकादशी व्रत करने का विधान

अचला एकादशी व्रत के दिन भगवान त्रिविक्रम पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति अचला एकादशी व्रत करना चाहता है उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन दिनभर के बीच करना चाहिए।

एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर धूप, मौसमी फल, घी एवं पंचामृत आदि से भगवान त्रिविक्रम की पूजा करनी चाहिए।

अचला एकादशी की रात सोना नहीं चाहिए बल्कि रातभर भगवान का भजन कीर्तन एवं सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।

 रात्रि जागरण करना काफी शुभ और फलदाई होता है।

द्वादशी अर्थात पारन के दिन भगवान त्रिविक्रम का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद वितरण करना चाहिए। इसके बाद कुल क्षेष्ठ ब्राह्मणों को शुद्ध शाकाहारी भोजन कराकर अपने क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। अंत में प्रसाद वितरण करने के उपरांत स्वयं भोजन कर उपवास खोलना चाहिए।

पूजा सामग्रियों की सूची

तांबे या पीतल का लोटा, जल का कलश, दूध, भगवान श्रीहरि को पहनाने के लिए वस्त्र और आभूषण, चावल, कुमकुम, दीपक, जनेऊ, तिल, फूल, अष्टगंध, तुलसीदाल, प्रसादी के लिए गेहूं आटे की पंजीरी, फल, धूप, मिठाई नारियल, मधु, गंगा जल, सूखे मेवे, गुड़ और पान के पत्ते ब्राह्मणों को दक्षिणा देने के लिए रुपए रख लें।

एकादशी व्रत कथा का पद्मपुराण में विस्तार से बताया गया है।

एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवन श्रीकृष्ण से पूछा हे श्रीहरि ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष एकादशी का क्या नाम है तथा इस एकादशी व्रत करने का क्या माहात्म्य है। कृपा करके हमें विस्तार से कहिए? अचला एकादशी करने की कथा मिलती है पद्मपुराण से।

अचला एकादशी करें होगी धनवर्षा

भगवान श्रीहरि ने कहा कि हे धर्मराज युधिष्ठिर! ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी व्रत कहा जाता है। अपार एकादशी को धन देने वाली एकादशी व्रत कहा जाता है। जो मनुष्य इस व्रत को पूरे निष्ठापूर्वक और विधि-विधान से करते हैं, वे विश्व भर में प्रसिद्ध हो जाते हैं।


अचला एकादशी के दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, गौहत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा करने से उपजे हर तरह के पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, न्यायालय या पंचायत में झूठी गवाही देना, किसी से भी झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या लिखना, झूठे ज्योतिषी बनना तथा झूठे वैद्य बनकर मरीजों को ठगना आदि सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं।

अचला एकादशी करें मिलेगी विष्णु धाम

जो क्षत्रिय युद्ध क्षेत्र से भाग जाए वे नरक में जाते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत को निष्ठापूर्वक करने से वे भी विष्णु धाम को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे जरुर नरक में जाते हैं। वैसे लोग अगर अपरा एकादशी का व्रत करते हैं, तो इस पाप से मुक्त हो जाते हैं और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

पिंडदान करने का मिलता है

अपरा एकादशी व्रत करने से जो फल की प्राप्ति होती है। वह तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने पर, या गंगा एवं गया धाम के फल्गु नदी तट पर पितरों को पिंडदान करने से जो फल की प्राप्ति होती है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से हमें प्राप्त होता है। मकरसंक्रांति के दिन प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोचर करने पर गोमती नदी के स्नान से, कुंभ मेले के दौरान केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण के दौरान कुरुक्षेत्र के स्नान से, सोना दान करने से अथवा गर्भवती गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से जातकों को मिलेगा।

पापों से मिलेगी छुटकारा करें व्रत

यह अपरा एकादशी व्रत मनुष्य के पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी का काम करता है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए ‍अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान त्रिविक्रम का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकार पा कर विष्णु लोक को जाता है।

पापी भाई को मिला महापिचाश योनि

अपरा एकादशी की प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा हुआ करता था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी, अन्यायी और पापी था। वह अपने बड़े भाई से हमेशा द्वेष रखता और धृणा करता था। उस महापापी छोटे भाई ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी पार्थिव शरीर को एक जंगली पीपल वृक्ष के नीचे गाड़ (दफना) दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा प्रेतात्मा योनि में जन्म लेकर महापिचाश के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक तरह के उत्पात करके लोगों को परेशान करने लगा।

धौम्य ऋषि ने किया उद्धार

एक दिन उसी रास्ते से अचानक धौम्य ॠषि उधर से गुजर रहे थे। उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से पिचाश के उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने खूश होकर उस पिचाश को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

पिचाश योनि से मिली मुक्ति

दयालु और कृपालु धौम्य ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए उन्होंने खुद ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत विधि विधान से किया और उसे प्रेत योनि से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को समर्पित कर दिया। अचला एकादशी व्रत करने से मिले पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से छुटकारा मिल गई। राजा ने ॠषि को आभार व्यक्त करते हुए दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर विष्णु धाम को चला गया।

डिस्क्लेमर

पौराणिक कथा सुनने और पढ़ने से मिलती है मुक्ति

श्रीकृष्ण ने कहा कि हे धर्मराज ! अपरा एकादशी व्रत की कथा मैंने जनहित के लिए कहा हूं। इसे पौराणिक कथा को पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्यों के सभी पापों से मुक्ति मिल जाता है।

यह कथा पौराणिक ग्रंथों से लिया गया है। पंचांग पर आधारित है शुभ और अशुभ समय। जबकि पौराणिक कथा पद्मपुराण से लिया गया है।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने