अक्षय तृतीया 30 अप्रैल 2025 को ? क्यों है सर्वश्रेष्ठ तिथि जानें संपूर्ण जानकारी

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म हुआ था। इसी दिन हयग्रीव का अवतार और बद्रीनाथ धाम का कपाट खुलते हैं। इसी दिन परशुराम जी का जन्म हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुई थी। द्वापर युग की समाप्ति भी इसी दिन हुआ था। वृंदावन के बांके बिहारीजी मंदिर में इसी दिन श्रीविग्रह जी के चरणों के दर्शन होते हैं। नहीं तो सालों भर उनके चरण वस्त्र से ढ़के रहते हैं।

पौराणिक कथा में पढ़ें महर्षि परशुराम की जीवनी, भगवान हयग्रीव जी की जीवनी और अमीर वैश्य की कहानियां

30 अप्रैल 2025 दिन बुधवार को पड़ने वाले तृतीया तिथि का आगमन दो मई को अहले सुबह 5:00 बज के 18 मिनट पर हो जाएगा जबकि सूर्योदय 5:39 पर होगा। इस प्रकार सूर्योदय के पूर्व तृतीया तिथि के आगमन हो जाएगा। इस कारण 3 मई को दिन भर तृतीया तिथि रहने के कारण व्रत, पूजा और खरीददारी लोग कर सकते हैं।

परशुराम सतयुग के अंत और त्रेता युग के प्रारंभ में ऋषि जमदग्नि के यहां जन्म लिए थे। जो विष्णु के छठवें अवतार माने जाते हैं।

पढ़े परशुराम जी का जीवन कथा

पौरोणिक कथा के अनुसार महर्षि परशुराम जी का जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि के यहां हुआ था। परशुराम का जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान के फल स्वरूप महर्षि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को मध्यप्रदेश इन्दौर जिला के गांव मानपुर के जानापाव पर्वत पर हुआ था।

परशुराम भगवान विष्णु के क्रोधावतार हैं

परशुराम भगवान विष्णु के क्रोधावतार हैं। विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम का पहला नाम राम था। प्रभु शिव ने उन्हें अपना परशु (फरसा) नामक अस्त्र दिए थे। परशु धारण करने के कारण उनका नाम परशुराम पड़ गया।

शिव के आश्रम में रहकर विद्या अर्जन किया परशुराम ने

प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में रहकर प्राप्त किए। ऋषि ऋचीक ने शार्ङ्ग नामक दिव्य अस्त्र और वैष्णव धनुष दिए। कश्यप ब्रह्मर्षि से शास्त्रानुसार अविनाशी वैष्णव मंत्र प्राप्त किए। इसके बाद कैलाश पर्वत के गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में रहकर उन्होंने विद्या प्राप्त कर अति दुर्लभ दिव्यास्त्र, विद्युदभि नामक परशु (फरसा) प्राप्त किए। भगवान भोलेनाथ ने श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु उन्हें प्रदान किए।

पढ़े हयग्रीव की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तराखंड का पूरा क्षेत्र भगवान भोलेनाथ के आधीन था। एक समय की बात है। एक बार भगवान विष्णु सहस्रकवच धारी दुर्द्धम्भ नाम के राक्षस का वध करने के लिए बद्रीनाथ धाम में नर और नारायण के रूप में तपस्या की थी।

दुर्द्धम्भ को एक हजार कवच का वरदान मिला

इस जगह की महत्ता और अलौकिकता का ही परिणाम है कि यहां एक दिन की तपस्या का फल एक हज़ार वर्ष की तपस्या के फल के समान है। सहस्रकवचधारी दुर्द्धम्भ को भगवान सूर्य ने एक हजार रक्षा कवच धारण करने का वरदान दिए थे। एक कवच भेदने के लिए एक हजार साल तक तपस्या करना पड़ता है। अपने को अमर समझकर दानव ने संपूर्ण लोक में उपद्रव करने लगा।

विष्णु को भाया शिव का निवास स्थान

भगवान विष्णु अपनी तपस्या के लिए सही जगह की खोज कर रहे थे तब उन्हें अलकनंदा नदी के किनारे का यह स्थान बहुत पसंद आया। लेकिन वहा पर भगवान शिव तपस्या कर रहे थे और उनका पूरा परिवार वहां रह रहा था।

चारों धाम का निर्माण चार युग में

जब-जब धरती पर अधर्म का बोझ बढ़ा है, तब-तब अपने भक्तो को कष्ट से उबारने के लिए विश्व के पालन कर्ता भगवान विष्णु ने जन्म लिया है। जिस प्रकार त्रेता युग में रामेश्वर धाम बना था। उसी प्रकार द्वापर युग में द्वारका धाम, कलियुग में जग्गन्नाथ पुरी धाम और सतयुग में बदरीनाथ धाम की महत्ता का वर्णन मिलता है।

एक दिन तपस्या करने का फल हजार दिनों का मिलता है

वहां भगवान विष्णु ने नर और नारायण रूप में तप किया था। बदरीनाथ में एक दिन की तपस्या करने का फल एक हज़ार साल की तपस्या के बराबर माना जाता है। दुर्द्धम्भ राक्षस के वध के लिए भगवान ने यहां एक सौ दिन तक तपस्या नर और नारायण के रूप में की थी।

बद्रीनाथ में होती है सारी मनोकामनाएं पूरी

बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु, बद्री नारायण के रूप में आज भी तप कर रहे है। कहते है यहां जो भी भक्त आता है और सच्चे मन से भगवान बद्रीनाथ का ध्यान करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

भगवान विष्णु ने बालक रूप धारण किया

भगवान विष्णु को उसी स्थान पर तपस्या करना था परंतु वहां भोलेनाथ के परिवार निवास करते थे। उन्हें वहां से कैसे हटाया जाए यही सोचकर उन्होंने बालक का रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु ने बालक रुप धारण करके रोना शुरु कर दिया। रोते हुए बालक की आवाज सुन कर मां पार्वती बालक को चुप कराने बालक के पास गई।

बालक ने मांगा अलकनंदा का किनारा

तब उन्होनें बालक से कहा कि उसे क्या चाहिए तो बालक ने अलकनंदा किनारे की जगह मांग ली।

भगवान शिव और मां पार्वती ने बालक को वो स्थान दे दिया। इसके बाद भगवान विष्णु अपने असल रुप में आ गए और वहां पर तप करने लगे। तपस्या के दौरान भगवान विष्णु इतने ज्यादा लीन हो गए थे कि उन्हें ये भी ध्यान नहीं रहा कि उनके ऊपर बर्फ जमने लग गई है।

मां लक्ष्मी बन गई बेर का पेड़

ये सब देख भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ और वो एक बेर के पेड़ के रुप में भगवान विष्णु के पास खड़ी हो गई। और सारी बर्फ पेड़ पर गिरने लगी। तपस्या खत्म होने के बाद जब भगवान विष्णु ने देखा की उनकी पत्नी ने सारी बर्फ खुद पर ले ली है तो उन्होनें उस स्थान को बद्रीनाथ धाम का नाम दे दिया।

राजा कनक ने निर्माण कराया था बद्रीनाथ 

बद्रीनाथ धाम का निर्माण आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकाराचार्य ने परमार राजा कनक के हाथों करवाया था। इस मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति को लेकर चर्चा  है कि उसे आदि गुरु शंकराचार्य ने अलकनंदा नदी से खोजा था और मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित किया था।

बद्रीनाथ में स्वयं प्रकट प्रतिमा स्थापित है

बद्रीधाम में स्थापित प्रतिमा को भगवान विष्णु के  स्वंय प्रकट हुई आठ प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। बद्रीनाथ में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति को पंच बद्री अर्थात भगवान बद्रीनाथ के पांच रुपों को दर्शाता है और उसी प्रतिमाओ कि पूजा की जाती है। इस मंदिर में माता लक्ष्मी और अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित है।

अधर्मी को नाश करने भगवान लेते है जन्म

जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है भगवान किसी न किसी रूप में अवतार अवश्य लेते हैं. श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाने वाली हयग्रीव जयंती का महत्व और भगवान विष्णु के इस अवतार की कथा जानने के लिए जरूर पढ़ें ये कथा।  

जानें हयग्रीव की पौराणिक कथा

 हयग्रीव के पौराणिक कथा के अनुसार कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर माता भगवतीने उसे अपनी तामसी शक्ति के रूप में दर्शन दिया। भगवती महामाया ने उससे कहा, ये राक्षस कुलश्रेष्ठ तुम्हारी तपस्या सफल हुई। मैं तुम पर अती प्रसन्न हूं। तुम्हारी जो भी इच्छा हो मैं उसे पूरा करने के लिए तैयार हूं। वर मांगो। राक्षस कुलश्रेष्ठ भगवती की मधुर वाणी सुनकर हयग्रीव बहुत ज्यादा खुश हुआ। और कहा हे ममतामयी देवी भगवती आपको नमस्कार है। आप महामाया हैं।  आपकी कृपा से सब कुछ कुछ संभव है। यदि आप मुझ पर अति प्रसन्न हैं तो मुझे अमर होने का वरदान दें।

जिसका जन्म हुआ है उसका मृत्यु निश्चित है

देवी महामाया ने कहा, राक्षस राजा पृथ्वी में जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु होती है। यह परम सत्य है। ईश्वर के इस विधान को कोई नहीं तोड़ सकता। किसी भी सांसारिक व्यक्ति को सदा के लिए अमर होना असंभव है। तुम अमरत्व के अलावा कोई अन्य वर मांग लो।

राक्षस ने कहा मेरी मृत्यु हयग्रीव के हाथों हो

हयग्रीव बोला, तो ठीक है मेरी मृत्यु हयग्रीव के हाथों हो। दूसरे मुझे कोई न मार सकें। देवी महामाया ने कहा ‘ऐसा ही होगा’। यह कह कर भगवती अंतर्ध्यान हो गईं। हयग्रीव के वरदान के प्रभाव से वह अजेय हो गया। त्रिलोक में कोई भी ऐसा नहीं था, जो उस दुष्ट राक्षस को मार सके।

हयग्रीव ने ब्रह्मा जी से वेदों को छीन लिया 

हयग्रीव देवताओं तथा ऋषि, मुनियों को सताने लगा। यज्ञादि कर्म-कांड बंद हो गए और सृष्टि की व्यवस्था बिगडऩे लगी। ब्रह्मा सहित अन्य देवी देवताओं ने भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन थे। उनके धनुष की डोरी चढ़ी हुई थी। भगवान वाण पर सर रखकर सोए हुए थे। ब्रह्मा जी ने उनको जगाने के लिए वम्री नामक एक कीड़ा उत्पन्न किया। ब्रह्मा जी के आदेश से उस कीड़ा नेे उनके धनुष की प्रत्यंचा काट दी।

विष्णु जी का कटा सिर, मचा हाहाकार

धनुष की प्रत्यंचा कटने से बड़ा भयंकर टंकार और आवाज हुआ और भगवान विष्णु का मस्तक कटकर अदृश्य हो गया। सिर रहित भगवान के धड़ को देखकर देवताओं स्तंभ और दुःखी हो गए। सभी देवी देवताओं ने मिलकर भगवती की स्तुति की। भगवती प्रकट हुई। उन्होंने कहा देवगणों चिंता करने की जरूरत नहीं है।

राक्षस के हाथों लगे वेदों को किया मुक्त

मेरी कृपा से तुम्हारा मंगल ही होगा। ब्रह्मा जी एक घोड़े का मस्तक काटकर भगवान के धड़ से जोड़ दें। इससे भगवान का हयग्रीवावतार हुआ। फिर भगवान का हयग्रीव दैत्य से भयानक युद्ध हुआ। अंत में भगवान के हाथों हयग्रीव की मारा गया। हयग्रीव को मारकर भगवान ने वेदों को ब्रह्मा जी दे दिया। 

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार किसी राज्य में एक अमीर वैश्य रहता था। अमीर होने के बाद भी वह गरीब था। एक दिन किसी ब्राह्मण ने उसे अक्षय तृतीया व्रत रखने की सलाह दी। वैश्य ने अक्षय तृतीया व्रत रखा गंगा स्नान किया और अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा दिया। 

कुछ ही दिनों के बाद इसका व्यापार बढ़ने लगा और वह अमीर बन गया। अगले जन्म में वह कुशावती का राजा बना। वह इतना धनी बन गया कि अक्षय तृतीया के दिन त्रीदेव अर्थात ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और शिव भगवान ब्राह्मण का भेष धारण कर यज्ञ में भाग लेते हुए, यज्ञ की शोभा बढ़ाते थे।

 अनबूझ मुहूर्त इसी दिन है। निर्भिक होकर करें शादी

 अक्षय तृतीया के दिन अनबूझ मुहूर्त रहता है। इस दिन बिना लग्न, मुहूर्त और गणना के विवाह संपन्न हो सकते हैं। जिसका विवाह किसी कुंडली दोष के कारण नहीं हो रहा है। ऐसे जातक भी इस दिन शादी कर सकते हैं। इस दिन वाहन खरीदना, आभूषण खरीदना, घर और जमीन खरीदना काफी शुभ होता है।

दान देना सर्वश्रेष्ठ रहेगा।

अक्षय तृतीया के दिन दान देना अच्छा रहेगा। उस दिन दान करने से मनुष्य को अनंत फल की प्राप्ति होती है।

अक्षय तृतीया का दिन कैसा रहेगा जानें पंचांग के अनुसार

अक्षय तृतीया बैसाख शुक्ल पक्ष के तृतीय तिथि दिन मंगलवार, तीन मई को मनाया जाएगा। तृतीया तिथि का आगमन सुबह 5:19 बजे से आरंभ होकर 4 मई सुबह 7:30 बज के 33 मिनट तक रहेगा।

अक्षय तृतीया के दिन सूर्योदय 5:39 बजे पर और सूर्यास्त 6:57 बजे पर होगा। नक्षत्र रोहिणी है। योग शोभना है। प्रथम करण तैलिक है। द्वितीय करण गर है।

 चंद्रमा वृषभ राशि में और सूर्य मेष राशि में स्थित है। सूर्य का नक्षत्र भरणी है। आनंदादि योग मतंग 3:00 बज के 18 मिनट के तक, इसके बाद राक्षस हो जाएगा। होमाहुति सूर्य है। दिशाशूल उत्तर, राहुकाल पश्चिम, अग्निवास पृथ्वी और चन्द्र वस दक्षिण दिशा में स्थित है।

पंचांग और चौघड़िया के अनुसार जानें शुभ और अशुभ मुहूर्त और विधियां करने का उचित समय।

देर रात लाभ और चर मुहूर्त का संजोग बन रहा है। इस दौरान सिंदूर दान करना शुभ होगा।

अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:16 बजे से लेकर 12:09 बजे तक रहेगा।

रात 10 बजे से लेकर 02:30 बजे भोर तक रहेगा शुभ मुहूर्त। सिंदूरदान के लिए रहेगा उचित समय।

अक्षय तृतीया की रात शुभ मुहूर्त का सिलसिला रात 10 बजे से शुरू होकर 02:30 बजे भोर तक है। इस दौरान सबसे पहले शुभ मुहूर्त इसके बाद अमृत मुहूर्त और अंत में चार मुहूर्त का अद्भुभूत संयोग बन रहा है। इस समय वैवाहिक कार्यक्रम मसलम सिंदूर दान और अग्नि परिक्रमा संपादित करना अक्षय होगा।

रात्रि का शुभ मुहूर्त

अब जानें चौघड़िया पंचांग के अनुसार रात के समय कौन सा मुहूर्त का आगमन किस समय हो रहा है। सबसे पहले लाभ मुहूर्त शाम 07:35 बजे से लेकर 08:57 बजे तक, शुभ मुहूर्त 10:19 बजे से लेकर 11:42 बजे तक, अमृत मुहूर्त 11:42 बजे से लेकर 01:04 बजे और चर मुहूर्त रात 1:04 बजे से लेकर 2:26 बजे तक रहेगा। इस समय सभी तरह के शुभ काम करना चाहिए।

रात्रि का अशुभ मुहूर्त

रात का अशुभ मुहूर्त शाम 06:12 बजे से लेकर 07:35 बजे तक काल मुहूर्त के रूप में, 08:57 से लेकर 10:19 बजे तक उद्धेग मुहूर्त के रूप में, 02:26 बजे से लेकर 03:48 बजे तक रोग मुहूर्त के रूप में है। एक बार फिर से सुबह 03:48 बजे से लेकर 05:11 बजे तक काल मुहूर्त का संयोग बन रहा है। इस दौरान शादी विवाह करना अशुभ है।

दिन का शुभ मुहूर्त

चर मुहूर्त का आगमन सुबह 08:26 बजे से लेकर 10:04 बजे तक, लाभ मुहूर्त का आगमन 10:04 बजे से लेकर 11:42 बजे तक और अमृत मुहूर्त का आगमन 11:42 बजे से लेकर 01:19 बजे तक है। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त 02:57 बजे से लेकर 04:35 बजे तक है। इस समय अक्षय तृतीया व्रत का पूजा कर सकते हैं।

अशुभ मुहूर्त दिन

दिन का अशुभ मुहूर्त सुबह 05:11 बजे से लेकर 06:48 बजे तक रोग मुहूर्त के रूप में, 06:48 बजे से लेकर 08:26 बजे तक उद्धेग मुहूर्त के रूप में और 01:19 बजे से लेकर 02:57 बजे तक काल मुहूर्त के रूप में है। शाम को एक बार फिर से रोग मुहूर्त का आगमन हो रहा है। जो शाम 4:35 बजे से लेकर 6:12 बजे तक रहेगा। इस दौरान वैवाहिक कार्यक्रम करना अशुभ होगा।

पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार विजया मुहूर्त दिन के 02:31 बजे से लेकर 3:25 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 06:44 बजे से लेकर 07:08 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 06:57 बजे से लेकर 08:02 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:56 बजे से लेकर 12:39 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त 04:13 बजे से लेकर 04:55 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त 04:34 बजे से लेकर 05:38 बजे तक है। इस दौरान विवाह का कार्यक्रम संपन्न करना काफी शुभ होगा

 पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त

पंचांग के साथ अशुभ काल सुबह 03:38 बजे से लेकर 05:18 बजे तक राहू काल के रूप में है। उसी प्रकार गुलिक काल 12:18 बजे से लेकर 01:58 बजे तक, दुर्महूर्त काल 08:59 बजे से लेकर 10:38 बजे तक। इसके बाद यमगण्ड 11:14 बजे से लेकर 11:56 बजे तक और वज्य काल 06:23 बजे से लेकर 08:10 बजे तक रहेगा। इस दौरान शुभ काम करना वर्जित है।

अक्षय तृतीया के दिन आंवला वृक्ष के नीचे खाना खाए

अक्षय तृतीया के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाना चाहिए। वहीं पर बैठकर  भोजन करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है। आंवला वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर विधि विधान से पूजा करें। ब्राह्मनों को गुप्त दान दें।

यह कथा देवी पुराण, विष्णु पुराण सहित अन्य पुराणों से लिया गया है। कथा में शुभ और अशुभ मुहूर्त, तिथि यह सब पंचांगों का गहन अध्ययन कर लिखा गया है। कृपया यह कथा कैसा लगा ई-मेल द्वारा जरूर सूचित कीजिएगा।

डिस्क्लेमर 
अक्षय तृतीया का महत्व सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा है इस दिन पूजा करने से सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है और किया गया पूर्ण अक्षय होता है इसलिए को लिखने पूर्व विद्वान ब्राह्मणों और आचार्यों से विचार-विमर्श कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट से भी सहयोग लिया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातनियों के   बीच त्यौहार का प्रचार-प्रसार करना है। यह लेख सिर्फ सूचना प्रद है। इस लेख की सत्यता की गारंटी हम नहीं लेते हैं।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने