सुबाहु ने काशी में और सुदर्शन ने अयोध्या में मां दुर्गा की स्थापना की


मां भगवती की असली शक्ति पीठ काशी और अयोध्या में भी है जानें कैसे ?

आपने पढ़ा होगा या सुना होगा कि मां सती की देश विदेश में जहां-जहां शरीर के विभिन्न अंग और आभूषण गिरी वहां-वहां शक्तिपीठ बनी। परंतु आपको यह पता नहीं होगा कि मां दुर्गा आदिशक्ति की प्रतिमा को स्थापित महाराजा सुबाहु ने काशी में और राजा सुदर्शन ने अयोध्या में किया है।  दोनों राजाओं ने मां का दर्शन कर उनसे इन दिनों जगहों पर रहने का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया था। देवी भगवती महापुराण में इस कथा का वर्णन मिलता है।

मां भगवती ने सुबाहु को दर्शन दिए

काशी के राजा सुबाहु ने मां भगवती का दर्शन कर उनसे कहा कि हे माता एक ओर देव लोक तथा समस्त भूमंडल का राज्य और दूसरी और आपका दर्शन यह दोनों की तुलना कभी नहीं हो सकते है। आप के दर्शन से बढ़कर समस्त त्रिलोको में कोई भी वस्तु नहीं है। राजा को माता ने खुश होकर वर मांगने को कहा।

मां दुर्गा ने काशी में स्थायी रूप से रहने का दिया वचन

 राजा ने देवी मां से कहा हे देवी मां मैं आपसे क्या वर मांगू। मैं आपके दर्शन से ही धन्य हो गया हूं। हे माता मैं तो यही वर मांगना चाहता हूं कि आप स्थित होकर तथा अखंड शक्ति से मेरे हृदय में वास करें।

 साथ ही देवी माता आप मेरी नगरी काशी में सदा निवास करें। आप शक्ति रूपा होकर दुर्गा देवी के नाम से यहां विराजमान रहें। सर्वदा नगर की रक्षा करती रहें।

सुबाहु ने मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की काशी में

अंबिके इस समय आपने जिस तरह शत्रुदल से सुदर्शन की रक्षा की है और उसे विकार रहित बना दिया है। उसी तरह आप सदा बनारस की रक्षा करें। हे देवी, हे कृपा निधि जब तक इस भूलोक में काशी नगरी सुप्रतिष्ठित होकर विद्यमान रहे, तब तक आप यहां विराजमान रहे। आप मुझे यही वरदान दे। इसके अतिरिक्त मुझे आपसे और दूसरा वर नहीं मांगना है।

मां ने कहा कि काशी में रहने वालों के सारी मनोकामना होगी पूर्ण

 राजा ने कहा कि आप मेरे काशी नगरी में रहने वाले समस्त लोगों की सदैव रक्षा करते रहे। साथ ही विविध प्रकार की समस्त कामनाएं पूर्ण करें। जगत के सभी अमंगलों को सदा के लिए नष्ट कर डाले। राजा सुबाहु के इस प्रकार प्रार्थना करने पर माता दुर्गा भवानी काफी प्रसन्न हुई। 

अपने समक्ष खड़े राजा सुबाहु से मां दुर्गा बोली हे राजन जब तक काशी नगरी रहेगी तब तक सभी लोगों की रक्षा के लिए पूरी काशी में निवास करूंगी। माता रानी के वरदान मिलने के बाद राजा सुबाहु ने काशी नगरी में एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और विधि विधान से मां की प्रतिमा स्थापित की।

राजा सुदर्शन ने किया अयोध्या में माता की प्रतिमा स्थापित

अयोध्या के राजा रघुकुल के वंशज महाराज सुदर्शन ने एक भयंकर युद्ध लड़ी थी। जिसमें माता दुर्गा स्वयं प्रकट होकर उनकी सहायता की और वे विजय हुए। विजय होने के बाद राजा सुदर्शन अयोध्या पहुंचे।

 अयोध्या पहुंचकर राजा सुदर्शन अपने मित्रों के साथ राजभवन गए। वहां पर शत्रुओं से जीत की खुशी मनाते हुए मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित करने का संकल्प लिया।

अयोध्या पहुंच मां के भवन में गए थे सुदर्शन

अयोध्या पहुंचने पर राजा सुदर्शन उस भव्य भवन में गए जहां पहले उनकी माता मनोरमा रहा करती थी। वहां जाकर में सब मंत्रियों तथा ज्योतिषियों को बुलाकर शुभ दिन और मुहूर्त पूछा और कहा कि सोने का सुंदर सिंहासन बनाकर उस पर विराजमान देवी का मैं नित्य पूजन करूंगा।

 उस सिंहासन पर धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्रदान करने वाली भगवती की स्थापना करने के बाद ही मैं राज का संचालित करूंगा। जैसे मेरे पुर्वज श्री राम आदि राजाओं ने किया था।

 सभी नागरिक जनों को चाहिए कि वे सभी प्रकार के काम, अर्थ और सिद्ध प्रदान करने वाली कल्याणमयी भगवती आदिशक्ति का पूजन तथा सम्मान करते रहें। राजा सुदर्शन के ऐसा कहने पर मंत्रीगण राज्य आज्ञा के पालन में तत्पर हो गए। उन्होंने शिल्पियों द्वारा एक सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया। 

शुभ मुहूर्त में मां की प्रतिमा स्थापित

तदुपरांत राजा ने देवी की प्रतिमा बनवा कर शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में वैदिक विद्वानों को बुलाकर उसकी स्थापना की। इसके बाद विधिवत हवन तथा देवपूजन करके बुद्धिमान राजा ने उस मंदिर में देवी की प्रतिमा स्थापित की।

 अयोध्या में राजा सुदर्शन ने कल्याणमयी देवी की विधिवत स्थापना कराकर पूरे विधि-विधान के साथ नाना प्रकार की पूजा संपन्न की। मां की प्रतिमा स्थापित करके अपने पैतृक राज प्राप्त कर लिया। इसके बाद कौशल देश में अंबिका देवी भी विख्यात हो गई।

राजा राम के वंशज थे सुदर्शन

जिस प्रकार अपने राज्य में प्रभु श्रीराम हुए और जिस प्रकार राजा दिलीप, राजा रघु और राजा दशरथ हुए उसी प्रकार सुदर्शन भी है। जैसे उन राजाओं के राज्य में सुख था और मर्यादा थी वैसे ही राजा सुदर्शन के राज में भी था।

राजा सुदर्शन ने कौशल देश के सभी छोटे राजाओं और जमींदारों सहित अपने ग्राम वासियों को देवी का मंदिर बनवाने का आदेश दिया। उसके बाद समस्त कौशल वासी ने प्रेम पूर्वक देवी की पूजन होने लगी।

दूसरी ओर महाराजा सुबाहु ने भी काश में मंदिर का निर्माण करवाकर भक्ति पूर्वक दुर्गा देवी की प्रतिमा स्थापित की। काशी के सभी लोग प्रेम और भक्ति में तत्पर होकर विविध दुर्गा देवी की उसी प्रकार पूजा करने लगे जैसे भगवान विश्वनाथ जी का करते थे।

मां भगवती के आदेश से सुदर्शन पहुंचे अयोध्या

देवी भगवती महापुराण मैं व्यास जी बोले राजा सुदर्शन को देवी भगवती ने प्रेम पूर्वक कहे कि महाभाग्य अब तुम अयोध्या जाओ और अपने कुलदेवी की मर्यादा के अनुसार पूजन करों।

 तुम सदा श्रद्धापूर्वक मेरा पूजा करते रहना मैं तुम्हारा राज्य का सर्वदा कल्याण करती रहूंगी। सप्तमी, अष्टमी और विशेषकर नवमी तिथि को विधि विधान से मेरी पूजा अवश्य करते रहना।

 तुम अपने नगर में मेरी प्रतिमा स्थापित करवाना और भक्ति पूर्वक समय-समय पर मेरी पूजा करते रहना।

चैत्र और अश्विनी की नवरात्रा जरूर करें

देवी बोली नवरात्रि विधान के अनुसार भक्ति भाव से युक्त होकर मेरी पूजा करनी चाहिए। हे महाराज चैत्र और अश्विनी मास में पड़ने वाले नवरात्रि के अवसर पर मेरा विशेष महोत्सव मनाया जाना चाहिए। 

लोगों को चाहिए कि वह श्रद्धापूर्वक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और अष्टमी तिथि को सदा मेरी पूजा करें।

शुभ-अशुभ कर्मों का फल भोगना पड़ता है, इसी संसार में
युद्ध श्रेत्र में मां दुर्गा ने राजा सुदर्शन से कहा कि शुभ तथा अशुभ कर्मों का फल मनुष्य को अवश्य ही भोगना पड़ता है। सुख-दुख के विषय में आपको कभी भी शोक नहीं करना चाहिए।

 मनुष्य को चाहिए कि दुखों की स्थिति में अधिक दुख वालों को तथा सुख की स्थिति में अधिक सुख वालों को देखें। 

अपने आपको शोक रुपी शत्रुओं के अधीन ना करें। यह सब दैव के अधीन है। आपके अधीन कभी नहीं होता। बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि शोक से अपनी आत्मा को ना सुखाएं।

 जैसे कठपुतली नट आदि के संकेतों पर नाचती है उसी प्रकार जीव को भी अपने कर्म के अधीन होकर सवैत्र रहना पड़ता है।

डिस्क्लेमर

यह कथा भगवती महापुराण से लिया गया है। भगवती महापुराण में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि काशी और अयोध्या में मां भगवती की प्रतिमा राजा सुबाहु और सुदर्शन ने स्थापित किया था। यह लेख आपको कैसा लगा अपना रिएक्शन हमारे ईमेल पर जरूर भेजिएगा।

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