एकादशी व्रत करने के लिए चारों पहर की पूजा जरूरी
चौघड़िया और पंचांग के अनुसार जानें पूजा करने का शुभ और अशुभ समय
क्या है वरूथिनी एकादशी की पौराणिक कथा जानें विस्तार से
व्रत वाले दिन इन बातों का रखें जरूर ध्यान
वरूथिनी एकादशी के दिन ये 9 काम भुलकर भी न करें
व्रत का माहात्म्य जरूर पढ़ें, मिलेगा दस हजार गोदान का फल
कैसे करें वरूथिनी एकादशी की पूजा जानें संपूर्ण विधि
पूजा सामग्री की सूची
पंचांग के अनुसार देखें एकादशी का दिन
वरुथिनी एकादशी 26 अप्रैल, दिन मंगलवार, वैशाख कृष्ण पक्ष को पड़ रहा है। एकादशी तिथि का शुभारंभ रात्रि 12:47 बजे तक से शुरू होकर दिन भर रहेगा।
एकादशी के दिन सूर्योदय सुबह 5:43 बजे से शुरू होकर सूर्यास्त शाम 6:53 बजे पर होगा। चंद्रोदय रात 3:51 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन दोपहर 2:44 बजे पर अस्त होगा।
वरुथिनी एकादशी के दिन नक्षत्र शतभिषा शाम 4:40 बजे तक रहेगा। इसके बाद पूर्व भाद्रपद नक्षत्र हो जाएगा। योग ब्रह्म शाम 7:00 बज के 6:00 मिनट तक रहेगा। इसके बाद इंद्र हो जाएगा।
प्रथम करण बव दोपहर 12:00 बज के 47 मिनट तक रहेगा। इसके बाद कौलव हो जाएगा। सूर्य मेष राशि में और चंद्रमा कुंभ राशि में स्थित रहेंगे। सूर्य का नक्षत्र अश्विनी है। इस दिन ऋतु बसंत है। सूर्य उत्तरायण दिशा में स्थित है।
एकादशी के दिन आनंदादि योग मृत्यु है जो शाम 4:56 बजे तक रहेगा। इसके बाद काण हो जाएगा। होमाहूति राहु शाम 4:00 बज के 56 मिनट तक रहेगा। इसके बाद केतु हो जाएगा। दिशाशूल उत्तर दिशा में स्थित है। नक्षत्रशूल दक्षिण दिशा में और राहु वास पश्चिम दिशा में स्थित है। अग्निवास पाताल दिन के 12:56 बजे तक, इसके के बाद पृथ्वी हो जाएगा। चंद्रवास पश्चिम दिशा में है।
पूजा करने का शुभ और अशुभ मुहूर्त जानें पंचांग और चौघड़िया के अनुसार
जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:53 बजे से लेकर दोपहर 12:45 बजे तक है।
विजया मुहूर्त 02:30 बजे से लेकर 3:23 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 06:40 बजे से लेकर 07:04 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 06:55 बजे से लेकर 07:58 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:57 बजे से लेकर 12:40 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त अहले सुबह 04:17 बजे से लेकर 05:01 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त सुबह 04:39 बजे से लेकर 05:44 बजे तक रहेगा। इस दौरान चारों पहर की पूजा अर्चना मैं तीसरे और चौथे पहर की पूजा करना शुभ और फलदाई होगा।
पंचांग के अनुसार अशुभ महूर्त
पंचांग के अनुसार दिन के 03:36 बजे से लेकर शाम 05:15 बजे तक राहुकाल है। दोपहर के 12:19 बजे से लेकर 01:58 बजे तक गुलिक काल, सुबह के 09:2 बजे से लेकर 10:41 बजे तक यमगण्ड काल, 08:23 बजे से लेकर 09:15 बजे तक दुर्मुहूर्त काल और वज्र्य काल दिन के 11:23 बजे से लेकर 12:59 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करने से लोगों को बचना चाहिए।
अब जानें दिन के शुभ मुहूर्त चौघड़िया पंचांग के अनुसार
चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 08:29 बजे से लेकर 10:06 बजे तक चर मुहूर्त, दोपहर 10:06 बजे से लेकर 11:43 बजे तक लाभ मुहूर्त, दिन के 11:43 बजे से लेकर 01:19 बजे तक अमृत मुहूर्त एवं 02:56 बजे से लेकर 04:33 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। इस दौरान दो पहर की पूजा लोग कर सकते हैं।
रात के समय का शुभ मुहूर्त
रात के समय चौघड़िया मुहूर्त का आगमन शाम 07:33 बजे से लेकर 08:56 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार रात 10:19 बजे से लेकर 11:43 बजे तक शुभ मुहूर्त, रात 11:43 बजे से लेकर 01:06 बजे तक अमृत मुहूर्त, 01:06 बजे से लेकर 02:29 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। इस दौरान रात्रि पहर का पूजा लोग कर सकते हैं।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त दिन
चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 05:16 बजे से लेकर 06:22 बजे तक रोग मुहूर्त, 06:22 बजे से लेकर 08:29 बजे तक उद्धेग मुहूर्त और 01:19 बजे से लेकर 02:56 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा। शाम 04:33 से लेकर 06:09 तक एक बार फिर से रोग मुहूर्त का संयोग बन रहा है। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।
रात के समय का अशुभ मुहूर्त चौघड़िया
चौघड़िया पंचांग अनुसार शाम 06:09 बजे से लेकर 07:33 बजे तक काल मुहूर्त, 08:56 बजे से लेकर 10:19 बजे तक उद्धेग मुहूर्त और रात 02:29 बजे से लेकर 03:52 बजे तक रोग मुहूर्त का संयोग है। एक बार फिर से काल मुहूर्त का आगमन अहले सुबह 3:52 बजे से लेकर 5:16 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित होगा।
दशमी तिथि को लें व्रत करने का संकल्प
वरूथिनी एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति वरूथिनी एकादशी व्रत करना चाहता है, उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए।
विस्तार से जानें पौराणिक कथा
धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का क्या नाम है। व्रत करने की विधि क्या है। तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है ? वरूथिनी एकादशी व्रत कथा के संबंध में विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए। मैं आपको नमस्कार करता हूं। श्रीकृष्ण ने कहा कि हे धर्मराज वैशाख मास, कृष्ण पक्ष में पढ़ने वाली एकादशी का नाम वरूथिनी एकादशी है। यहश्र व्रत सौभाग्य देने वाली है। सभी तरह के पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मुक्ति प्रदान करने वाली है।
इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करें तो उसको सौभाग्यशाली बन जाती है। इसी वरूथिनी एकादश के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग प्राप्त हुआ था। वरूथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है। वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से मनुष्य इस लोक में सुख तो भोगता ही है बल्कि परलोक जाने पर स्वर्ग की प्राप्त होता है।
अन्न दान सबसे बड़ा दान
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि हाथी का दान करना घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान श्रेष्ठ है। भूमि के दान से तिलों का दान श्रेष्ठ है। तिलों के दान से स्वर्ण का दान श्रेष्ठ है जबकि स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है। अन्नदान करने से देवता, पितर और मनुष्य तीनों को तृप्ति मिलती हैं। धर्म शास्त्रों और पुराणों में इसको कन्यादान के समान माना जाता है।
कन्यादान व अन्न दान के बराबर मिलता है फल एकादशी व्रत करने से
वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों करने के बराबर फल मिलता है। जो मनुष्य लोभ के वश में होकर अपनी कन्या का धन ले लेते हैं वे प्रलयकाल तक नरक का दुःख भोगते हैं। नरक के दुःख भोगने के बाद अगले जन्म में बिलार का जन्म लेना पड़ता है।
जो व्यक्ति अपने शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार कन्या का दान करते हैं। वैसे दान से मिलने वाले पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हो जाते हैं। वैसे व्यक्तियों को कन्यादान का अनंत फल मिलता है।
वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्रतधारि को दशमी तिथि के दिन नीचे लिखे सामानों का परित्याग करना चाहिए।
वरूथिनी एकादशी के दिन ये 9 काम भुलकर भी न करें
1. कांसे के बर्तन में भोजन करना और पानी पीना मना है। 2. मांस का भोजन वर्जित है। 3. मसूर की दाल न खाएं 4. चने का साग नहीं खाना चाहिए, 5. कोदो का साग भी नहीं खाना चाहिए 6. मधु (शहद) का सेवन वर्जित है। 7. दूसरे का अन्न नहीं खाना चाहिए 8. दूसरी बार भोजन करना मना है और 9. स्त्री प्रसंग अर्थात ब्रह्मचर्य रहना चाहिए।
व्रत वाले दिन इन बातों का रखें ध्यान
व्रत वाले दिन जुआ भुलकर भी नहीं खेलना चाहिए। व्रत के दिन पान खाना मना है, दातुन करना मना है, दूसरे की निंदा करना मना है तथा चुगली करना सख्त मना है। पापी मनुष्यों के साथ बातचीत करना और साथ रहना त्याग देना चाहिए। उस दिन क्रोध और मिथ्या भाषण का त्याग करना चाहिए। इस व्रत में नमक, तेल अथवा अन्न वर्जित है।
व्रत का माहात्म्य पढ़ें दस हजार गोदान का मिलेगा फल
हे राजन्! जो मनुष्य विधि पूर्वक वरूथिनी एकादशी व्रत करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। व्रत करने का फल गंगा स्नान करने के फल से भी अधिक है।
कैसे करें पूजा जानें विधि
वरूथिनी एकादशी व्रत करने के उपरांत सर्वप्रथम गौरी गणेश का पूजन करें। गौरी गणेश को स्नान कराएं। गंध, पुष्प और अक्षत से पूजन करें। इसके बाद श्रीहरि का पूजन शुरू करें।
भगवान विष्णु को आवाहन करें इसके बाद भगवान विष्णु को आसान दें। अब भगवान विष्णु को स्नान कराएं स्नान से पहले जल से, फिर पंचामृत से और अंत में फिर से जल से स्नान कराएं।
फिर भगवान को वस्त्र पहनाएं वस्त्र पहनाने के बाद आभूषण और जनेऊ पहनाएं। इसके बाद पुष्प माला पहनाना है। इसके बाद सुगंधित इत्र अर्पित करें। तिलक करें। तिलक के बाद अष्टगंध का प्रयोग करें।
अब धूप और दीप अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल विशेष प्रिय है, इसलिए तुलसी पत्ता अर्पित करें। भगवान विष्णु के पूजन में चावल का प्रयोग ना करें। तिल का प्रयोग करें। घी या तेल का दीपक जलाएं और आरती करें। आरती करने के बाद परिक्रमा करें और अंत में नैवेद्य अर्पित करें।
पूजा सामग्री की सूची
वरूथिनी एकादशी पूजा में लगने वाले सामग्रियों में देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का लोटा, जल कलश, गाय का दूध, वस्त्र, भगवान को पहनाने के लिए आभूषण, तिल, नारियल, पंचामृत, सुखा मेवा, गुड़, पान का पत्ता, पैसा, मधु, कुमकुम, दीपक, घी, तिल का तेल, रुई, धूपबत्ती, फूल, अश्वगंधा, तुलसी पत्ता, चावल, जनेऊ, दही, मिठाई, शंख, गाय का गोबर, आम का पत्ता, मौसमी फल, घर के बने पाकवान और केला के पत्ता सहित गंगाजल रहना चाहिए।
यह लेख पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। कथा लिखने के दौरान पंचांगों का गहन अध्ययन कर तिथि, समय और मुहूर्त लिखा गया है। लेख कैसा लगा इमेल के द्वारा हमें प्रतिक्रिया लिखकर भेजें।
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क्या आप वरुथिनी एकादशी करना चाहते हैं ? तो यह लेखा पढ़ना आपके लिए जरूरी है। इस लेख में सभी तरह की जानकारी दी गई है
जो जानना ज़रूरी है।