इस वर्ष मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएगी और भैंसे पर सवार होकर जाएगी।
घोड़े पर आगमन देश विदेश में हाहाकार मचा देगा
मनुष्य के जीवन में पड़ेगा खास प्रभाव, उथल-पुथल रहेगा दैनिक जीवन
मां दुर्गा को भैंस पर जाने का मतलब है कि इस वर्ष बारिश अच्छी होगी।
2 अप्रैल है कलश स्थापना का दिन
नवरात्रा में तिथि का क्षय ना होना काफी सुखद
9 दिनों में मां दुर्गा की नौ रूपों की होगी पूजा
दशमी तिथि को करें हवन
महाअष्टमी और महानवमी को कराएं कुंवारी कन्याओं को भोजन
इस साल चैत्र नवरात्र 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है। 11 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाएगी। इन 9 दिनों में मां जगदम्बे की विधि विधान से पूजा अर्चना करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है।
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि में कई बड़े बदलाव हो रहे हैं। इस वर्ष नवरात्र के दौरान एक भी तिथि का क्षय नहीं हो रहा है। खास बात यह है कि इन 9 दिनों में कई ऐसे योग बन रहे हैं जो काफी फलदाई हैं। ऐसे योग कम ही आते हैं।
इस बार मां दुर्गा की सवारी अनहोनी की ओर इशारा कर रही है क्योंकि इस बार मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही है। घोड़े पर सवार होकर माता रानी का धरती पर आगमन शुभ नहीं माना जाता है। इससे कई गंभीर परिणाम देखने को मिलते हैं। घोड़े की सवारी का मतलब है कि इस वर्ष शासन सत्ता को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। विश्व के कई देशों में सत्ता परिवर्तन भी देखने को मिल सकता है।
इसके अलावा देश-विदेश में विवाद, तनाव, दुर्घटनाएं और प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएं हैं। घोड़ा युद्ध का प्रतीक माना जाता है घोड़े पर माता का आगमन शासन और सत्ता के लिए अशुभ माना गया है।
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पूजा-पाठ या कर्मकांड आदि के लिए श्रेष्ठ अवधि होती है। मां भगवती की उपासना के लिए भी यह समय श्रेष्ठ माना जाता है। चैत्र नवरात्रा पर घरों में कलश स्थापना की प्राचीन परंपरा है। चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि 2 अप्रैल 2022, दिन शनिवार को हो रही है।
नवरात्रा का व्रत 2 अप्रैल से शुरू हो जाएगा। प्रतिपदा से लेकर 10 मई तक माता भगवती के नौ रूपों की उपासना की जाती है। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से लेकर प्रतिपदा तिथि अर्थात 12:28 बजे तक श्रेष्ठ है। पूरे दिन भर कलश स्थापना की जा सकती है। फिर भी प्रतिपदा तिथि में ही कलश स्थापना का विशेष विधान है।
कलश स्थापना कब करें
सूर्योदय से लेकर दिन के 12:28 बजे तक कलश स्थापना हो जाए तो अति उत्तम होगा। उसमें भी यदि कलश स्थापना के दौरान शुभ चौघड़िया प्राप्त हो जाए तो अति उत्तम है।
सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक और दोपहर 12:00 बजे से लेकर 12:30 बजे तक शुभ चौघड़िया है, जो कलश स्थापना के लिए काफी शुभ होगा। धर्म को मानने वाले लोग इस नवरात्रा में मंगल गान से अपने घर को सुसज्जित कर सकते हैं।
नवरात्रि में मां भगवती के साथ-साथ माता गौरी सहित अन्य रूपों का दर्शन और पूजन प्रतिदिन क्रमानुसार किया जाता है।
घर घर में होने वाली नवमी पूजा अर्थात महा नवमी 10 अप्रैल को होगी। नवरात्रि से संबंधित हवन पूजन नवमी अर्थात 10 अप्रैल रात 12:00 बजे से लेकर सुबह 8:00 बजे तक किया जाएगा। रामावतार का रामनवमी 10 अप्रैल दिन रविवार को धूमधाम के साथ परंपरा के अनुसार मनाया जाएगा।
किस समय करें कलश स्थापना, जानें चौघड़िया और पंचांग के अनुसार
2 अप्रैल को कलश स्थापना होगा। इस दिन 12:28 बजे तक प्रतिपदा तिथि है। इसके पूर्व कलश स्थापना करना काफी शुभ रहेगा। जानें कौन समय शुभ है और कौन समय अशुभ है। 2 अप्रैल को अभिजीत मुहूर्त का आगमन 12:00 बजे से लेकर 12:50 बजे तक रहेगा। इसी प्रकार शुभ मुहूर्त सुबह 7:00 बचकर 9 मिनट से लेकर 8:42 बजे तक और चर मुहूर्त 11:48 बजे से लेकर 1:30 बजे तक है। अमृत काल सुबह 8:43 बजे से लेकर 10:32 बजे तक रहेगा। इस दौरान कलश स्थापना करना काफी शुभ और फलदाई होगा।
अब जाने अशुभ मुहूर्त का आगमन सुबह 5:36 बजे से लेकर 7:09 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 8:42 बजे से लेकर 10:15 बजे तक रोग मुहूर्त और 10:15 बजे से लेकर 11:48 बजे तक उद्धेग मुहूर्त का आगमन रहेगा। इस दौरान कलश स्थापना करना वर्जित है।
घट (कलश) स्थापना कैसे करें, जाने संपूर्ण विधि
कलश स्थापना करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। 9 दिनों तक मां की आराधना करने के लिए कलश स्थापना करनी चाहिए। कलश की स्थापना घर में बने मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा में होनी चाहिए। मां की चौकी जो लकड़ी से बनी रहती है उसी पर कलश स्थापित करें। सबसे पहले उस जगह को गंगाजल छिड़क कर और गोबर से लिपकर पवित्र कर लें। लकड़ी की बनी चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें और स्वास्तिक का चिन्ह बना कर कलश स्थापित करें।
जानें कलश स्थापना की विधि
कलश में गंगाजल भरकर, एक सिक्का, दूर्वा, सुपारी और हल्दी की एक गांठ डाल दें। कलश और ढक्कन के बीच आम के पल्ला (पत्ता) स्थापित करें, लाल वस्त्र में नारियल को लपेट कर उस पर रख दें। चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। मां को लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ानी चाहिए। कलश स्थापना के साथ अखंड दीप प्रज्ज्वलित करें, जो नौ दिनों तक लगातार जलती रहे।
मां शैलपुत्री का करें पूजन
पहला दिन होने के कारण माता शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके जाप करें। फूल और चावल मां भगवती के चरणों में अर्पित करें। मां का भोग शुद्ध घी से बनाएं साथ में मौसमी फल भी प्रसाद के रूप में रखें और मां पर चढ़ाएं। इसके बाद मां आदिशक्ति को ध्यान कर दुर्गा पाठ करें।
कलश के चारों ओर करें जौ की बुआई
कलश स्थापना मिट्टी और बालू के ऊपर करनी चाहिए। मिट्टी और बालू में जौ मिलाकर रखें। 9 दिनों तक सुबह और शाम पूजा के उपरांत शुद्ध जल का छिड़काव उस पर करते रहे। नित्य प्रतिदिन जौ का पौधा बढ़ता जाएगा। माना जाता है कि सृष्टि में सबसे पहले अनाज के रूप में जौ उत्पन हुआ था।
जौ सृष्टि का पहला अनाज
इस अनाज को सृष्टि के उत्पत्ति के साथ देखा जाता है। इसे सृष्टि का पहला अनाज भी कहा जाता है। मान्यता है कि जौ के पौधों को विजयादशमी के दिन उखाड़ कर अपने प्रियजनों के बीच बांट देनी चाहिए।
जौ के पौधे से आती है सुख और समृद्धि
पौधा वितरण करने से परिजनों के यहां सुख समृद्धि और शांति आती है। इसे लोग अपने दाहिने कान पर रखते हैं। जौ का पौधा अगर खिला हुआ है और स्वस्थ्य है। खिले पौधे को देखने के बाद प्रतित होता है कि आपके घर में सुख समृद्धि और प्रिय जनों को कष्ट नहीं होगा। इसे मां का संकेतिक शुभ का घोतक माना जाता है।
जौ को सुखना अथाह संकट
उसी प्रकार अगर आपका बोया हुआ जौ मुरझा गया हो या ठीक से जन्म नहीं ले पाया हो, तो इसका मतलब है आपका परिवार संकट में घिर सकता है। और पहाड़ के सामान दुख आपको और आपके परिवार को बर्बाद कर सकता है।
ब्रह्मचर्य का करें पालन
नवरात्रा का व्रत रखकर कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती पाठ करने वाले लोग 10 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें। सादा भोजन करें और नमक के जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें। रोजाना दुर्गा सप्तशती का पाठ कर लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें।
कलश स्थापना में लगने वाली पूजा सामग्री
चैत्र नवरात्र प्रतिपदा तिथि जो दो अप्रैल, दिन शनिवार को कलश स्थापना के साथ 9 दिनों का महा महोत्सव का शुभारंभ हो जाएगा।
कलश स्थापना करने के लिए पूजा सामग्री की जरूरत पड़ती है। साथ ही प्रतिपदा तिथि होने के कारण मां शैलपुत्री की पूजा भी की जाती है।
पूजा सामग्रियों की सूची
कलश स्थापना के लिए जटा वाला नारियल, गाय का गोबर, हवन के लिए सूखी लकड़ी, कपूर, जौ, मेवा, मधु, गंगाजल, अगरबत्ती, मिट्टी का कलश, आम का पत्ता, गुड़, हल्दी, रूई, दूर्वा, सलाई, मिठाई और मौसमी फल होना जरूरी है।
साथ ही दूध, दही, पान, सुपारी, रोली, लाल सिंदूर, लाल कपड़ा, फूल, उड़हुल फूल का माला, अक्षत, हल्दी, मिठाई और मौसमी फल होना जरूरी है।
साथ ही प्रतिपदा तिथि होने के कारण मां शैलपुत्री की पूजा भी की जाती है। इन पूजा सामग्रियों से मां शैलपुत्री की भी पूजा हो जाएगी।
ये हैं मां दुर्गा के नौ रूप
मां दुर्गा के प्रथम रूप को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी, तीसरा रूप चंद्रघंटा, चौथा रूप कूष्मांडा, माता की पांचवीं रूप का नाम स्कंदमाता है। मातारानी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं, सातवां रूप को कालरात्रि, आठवां रूप को महागौरी और नौवां स्वरूप को सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है। नवरात्रा के दौरान इन नौ रूपों का पूजा अर्चना किया जाता है।