चार तरह की पतिव्रता महिलाएं जगत में पाई जाती है। जानें कौन कौन ?
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क्या पतिव्रता महिलाएं अपने पति का संकट हर सकती है जानें कैसे
पतिव्रता महिलाओं में क्या खूबियां होने चाहिए। पतिव्रता धर्म का पालन कैसे करें ? इस संबंध में शिव महापुराण में विस्तार से बातें कही गई है।
ब्राह्मणी ने दी पतिव्रता का ज्ञान
माता पार्वती का जब विदाई हो रही थी। उस समय पार्वती की मां देवी मैना ने एक ब्राह्मणी को बुलाकर पार्वती को पतिव्रता धर्म के संबंध में जानकारी देने के लिए कहा। विदाई के वक्त देवी मैना ने वैदिक रीति-रिवाज का पालन करते हुए अपने पुत्री को सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से श्रृंगार किया। इसके बाद देेवी मैना ने एक ब्राह्मण की पत्नी को बुलाकर अपनी पुत्री पार्वती को पतिव्रता धर्म की शिक्षा देने के लिए कहा।
ब्राह्मणी ने आकर पर्वती को शिक्षा देते हुए कहा हे पार्वती सुंदर संसार में नारी विशेष पूजनीय मानी जाती है। जो स्त्रियां पतिव्रता धर्म का पालन करती है वह धन्य है।
पतिव्रता स्त्री दोनों कुलों को तार देती है
पतिव्रता स्त्री दोनों कुलों को पवित्र करती है। उसके दर्शन मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। जो पति को साक्षात ईश्वर मानकर उसकी सेवा सुश्रुषा करती है। वैसी स्त्रियां इस लोक में आनंद प्राप्त कर सद्गति को प्राप्त करती है और अपने दोनों कुलों को तार देती है।
14 पतिव्रता स्त्रियां है इस संसार में
सावित्री, लोपामुद्रा, अरुंधति सांडिली, शतरूपा, अनसूया, लक्ष्मी, स्वंधा, सती, संज्ञा, सुमति, श्रद्धा, मैना और स्वाहा आदि नारियां साध्वी कहलाती है। कोई नारियां अपने पतिव्रता धर्म के कारण ब्रह्मा, विष्णु और शिव की भी पूजनीय है। इसलिए स्त्री को सदैव अपने पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। पतिव्रता स्त्री पति के भोजन कर लेने के बाद ही भोजन करें। जब तक पति खड़ा रहे, स्त्री खुद भी ना बैठे। पति के सो जाने के बाद ही सोए और उसके उठने से पहले उठ जाए।
स्त्रियां भूलकर भी ना ले पति का नाम
क्रोधित होने पर या अत्यधिक प्रसन्नता होने पर भी अपने पति का नाम ना लें। पति के बुलाने पर सभी तरह के कार्यों को छोड़कर पति के पास चली आए। उसकी हर आज्ञा को धर्म मान कर उसका पालन करें। कभी वह प्रवेश द्वार पर खड़ी ना हो। बिना किसी कागज के किसी के घर ना जाए और जाने पर बिना कहे कदापि ना बैठे। अपने घर की वस्तुएं किसी को ना दें।
श्रृंगार कर पति को ही दिखाएं अपना मुख
पतिव्रता स्त्री को वस्त्र और आभूषण से विभूषित होकर ही अपना मुख पति को दिखाना चाहिए। जब तक पति घर के बाहर या परदेस गया हो तो, उन दिनों में पतिव्रता स्त्री को सजना सवरना नहीं चाहिए। पति के सेवन की हुई चीजें ठीक स्थान पर रखें। पति को जब आवश्यकता हो, तुरंत लाकर दे दें। अपना हर काम चतुराई और होशियारी से करें। अपने पति की हर आज्ञा का पालन करना पतिव्रता स्त्री का परम धर्म होता है।
पति की आज्ञा सर्वोपरि
पति की आज्ञा लिए बिना पत्नी को कहीं भी नहीं जाना चाहिए। यहां तक कि तीर्थस्थान जैसे स्थलों पर भी नहीं जाना चाहिए। पति के चरणों को धोकर उसको पीने से ही पत्नी को तीर्थ स्नान पूरा हो जाता है। पति के द्वारा छोड़े गए जूठन भोजन को पत्नी प्रसाद समझकर खा लेना चाहिए।
पति के आज्ञा से ही रखें व्रत
देवताओं, पितरों, अतिथियों या भिखारी को भोजन का भाग देकर ही भोजन करना चाहिए। व्रत का उपवास रखने की आज्ञा पति से अवश्य ले लेना चाहिए। बिना पति की आज्ञा लिए व्रत करने से पुण्य नहीं मिलता है। किसी चीज को पाने के लिए अपने पति से झगड़ा कदापि ना करें।
पति के विश्राम में ना डाले बाधा
सुख से आराम पूर्वक बैठे हुए या सोते हुए पति को कभी ना उठाएं। यदि पति किसी बात के कारण दुखी हो, धनहीन हो, बीमार हो या वृद्धा हो गया हो, तो उसका परित्याग कभी ना करें।
रजस्वला के दौरान पति को ना दिखाएं मुंह
जब तक स्नान करके शुद्ध ना हो जाए तब तक पति से कोई बात ना करें। शुद्ध होकर सर्वप्रथम अपने पति का ही दर्शन करें।
पति के दीर्घायु के लिए धारण करें श्रृंगार
उसका पति की आयु में वृद्धि होती है। पतिव्रता स्त्री को कभी भी छिनाल, कुल्टा आदि भाग्यहीन स्त्रियों के साथ नहीं जाना चाहिए अर्थात उनसे मित्रता नहीं करनी चाहिए।
जो अपने पति से रखती है वैर उससे न रखें कोई संबंध
पति के लड़ने वाली तथा उसे वैर भाव रखने वाली स्त्री को सहेली न बनाएं। कभी भी अकेली ना रहे। वस्त्र हीन होकर कभी भी स्नान ना करें। सदा पति के कहे अनुसार चले। पति की इच्छ होने पर ही रमण करें। उनकी हर इच्छा को ही अपनी इच्छा समझे। पति के हंसने पर हंसे और दुःखी होने पर दुःखी हो। पतिव्रता स्त्री के लिए उसका पति उसका अराध्य होना चाहिए।
पति को देवता, गुरु, धर्म, तीर्थ और व्रत समझकर आराधना करें
पति स्त्रियों की जिंदगी में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसलिए उसका सदा पूजन करें। नारी को अपने पति को ही देवता, गुरु, धर्म, तीर्थ और व्रत समझकर उसकी आराधना करनी चाहिए। पति से कभी दुर्वचन ना कहें। सास, ससुर, जेठ, जेठानी, गुरु सहित सभी बड़ों का आदर करें। उनके सामने कभी ऊंची आवाज में न बोले और ना ही हंसें। बाहर से पति के आने पर आदरपूर्वक उसका चरण धोए।
पतिव्रता का रखें ध्यान ना तो मिलेगी उल्लू योनि में जन्म
जो मूढ़ बुद्धि नारी अपने पति को त्याग कर व्याभिचार करती है अथवा दुष्ट पुरुषों कि साथ सान्निध्य करती है। वह उल्लू योनि में जन्म लेती है। पति से हीन नारी सदा के लिए अपवित्र हो जाती है। तीर्थ स्नान करने पर भी वह अपवित्र रहती है। जिस घर में पतिव्रता स्त्री का वास होता है उसके पति, पिता और माता तीनों के कुल तार जाते हैं। वे सीधे स्वर्ग लोक की शोभा बढ़ाते हैं।
पतिव्रता स्त्री ही गृहस्थ आश्रम की स्तंभ है
सूर्य, चंद्रमा तथा वासुदेव भी पतिव्रतानारी का स्पर्श करते हैं ताकि वह दूसरों को पवित्र कर सकें। पतिव्रता पत्नी ही गृहस्थ आश्रम की नींव है। सुखों का भंडार है। वही धर्म को पाने का एकमात्र रास्ता है। तथा वहीं परिवार की वंश बेल को आगे बढ़ाने वाली होती है।
शिव भक्तों को ही मिलती है पतिव्रता स्त्रियां
भगवान विश्वनाथ में अटूट भक्ति रखने वाले शिव भक्तों को ही पतिव्रता नारियों की प्राप्ति होती है। पत्नी से ही पति का अस्तित्व होता है। एक दूसरे के बिना दोनों का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है। पत्नी के बिना पति देवयज्ञ, पितृयज्ञ और अतिथि यज्ञ आदि कोई भी यज्ञ अकेले संपन्न नहीं कर सकता।
पतिव्रता स्त्री गंगा की तरह पवित्र है
पतिव्रता नारियों को पवित्र पावनी गंगा के समान पवित्र माना जाता है। उसके दर्शन से ही सब कुछ पवित्र हो जाता है। पति पत्नी का संबंध अटूट है। पति प्रणव है तो पत्नी वेद की ऋचा है। एक तप है, तो एक क्षमा है। पत्नी द्वारा किए गए अच्छे कर्मों का फल है पति।
4 तरह की होती है पतिव्रता स्त्रियां
हे गिरजा नंदिनी शास्त्रों में पतिव्रता स्त्रियों को चार प्रकार का बताया गया है। पहला उत्तमा, दूसरा मध्यमा, तीसरा निकृष्ठा और चौथा अतिनिकृष्ट पतिव्रता स्त्रियों के भेद है। जो स्त्रियां सपने में भी कभी अपने पति का ही स्मरण करती है। ऐसी स्त्रियां उत्तमा पतिव्रता कहलाती है। जो स्त्रियां प्रत्येक पुरुष को पिता, भाई और पुत्र के रूप में देखती है वह मध्यमा पतिव्रता कहलाती है। जिसके मन में धर्म और लोकलाज का भय रहता है और इस कारण सैदव धर्म का पालन करती है। वह निकृष्टा पतिव्रता कहलाती है और सभी तरह के पापों का नाश करने वाली कहीं जाती है।
बदनाम होने के डर से व्यभिचार से दूर रहती है। वह स्त्री अतिनिकृष्टा पतिव्रता कहलाती है। ये चारों प्रकार की पतिव्रता स्त्रियां पावन, पवित्र और समस्त पापों का नाश करने वाली के ही जाती है।
अनुसुइया ने त्रिदेव को बनाए शिशु
मुनि अत्रि की पत्नी अनसूया ने अपने पतिव्रता के प्रभाव से त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और शिव को शिशु बना दिया था। यही नहीं उन्होंने मारे हुए एक ब्राह्मण को अपने सतीत्व के बल से जीवित कर दिया था।
ब्राह्मणी ने कहीं शिवा ज्ञान तुम्हारे लिए सर्वोपरि
हे पुत्री पार्वती मैने पतिव्रता स्त्री के सभी विशेषताएं और गुण तुम्हें बता दिए हैं। अब आप इसी के अनुरूप ही आचरण किया करें। अपने पति की हर आज्ञा को सर्वोपरि मानकर उसका पालन करें। आपका पति स्वयं भगवान शिव और वे ज्ञान के भंडार हैं। उनका ज्ञान ही आपके लिए सर्वोपरि उपहार है।
पति खुश तो मिलेगी मनोवांछित फल
पति को खुश रखने से ही सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। आप तो जगदंबा का रूप है। आपके पति तो साक्षात भगवान शिव है। आप तो यह सब बात जानती ही हैं और उनका उत्तम पालन भी करेंगी।
आपके विषय में तो सोचकर ही स्त्रिया पवित्र एवं पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली हो जाती है। इसलिए मुझे अधिक कुछ कहने की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे विश्वास है कि आप उत्तम पतिव्रता धर्म का पालन करके संसार की अन्य स्त्रियों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करेंगी।
पतिव्रता का नियम सुन पार्वती हुई खुश
ऐसा कह कर वह ब्राम्हण पत्नी चुप हो गई। उससे पतिव्रता धर्म का उपदेश सुनकर देवी पार्वती ने बहुत हर्ष का अनुभव किया। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर ब्राम्हण पत्नी को नमस्कार किया तथा उत्तम धर्म के विषय में ज्ञान देने के लिए उसका धन्यवाद दिया।
परंपराओं का करें सम्मान तभी मिलेगी मुक्ति
देवी पार्वती ने अपने आचरण से उपस्थित परिजनों को शिक्षा दी कि भले ही कोई कितना भी जानकार क्यों ना हो उसे अपनी परंपराओं का आदर पूर्वक पालन करना चाहिए। जो अहंकार के कारण लोकधर्म परित्याग करता है, उसका अपयश होता है तथा उसकी अपनी संतानों को पथभ्रष्ट करता है। इसलिए परंपराओं का सम्मान करने से ही नारियों को मुक्ति मिलती है।