मां उमा की जन्म कथा शिव पुराण में विस्तार से दिया गया है। देवताओं के घमंड तोड़ने के लिए मां ने कूप तेज के रूप में जन्म लिया।
मां उमा की उत्पत्ति के संबंध में ऋषियों ने सुतजी से पूछा। हे सुत जी, अब आप हमें देवी उमा के अवतार और प्रादुर्भाव की कथा का वर्णन कीजिए।
युद्ध में विजय देवता हुए घमंडी
तब ऋषियों के प्रश्न का उत्तर देते हुए सुत जी बोले एक बार की बात है देवताओं की युद्ध में विजय हुई। विजय मिलने पर देवताओं को बहुत ज्यादा घमंड हो गया और वह अपनी बहादुरी की प्रशंसा आपस में करने लगे।
मां उमा कूप के रूप में प्रकट हुए
तभी एक कूप के रूप में तेज प्रकट हो गया। उस तेज को एकाएक देखकर देवतागण घबरा गए। देवताओं को समझ में नहीं आ रहा था कि कूप के रूप में कौन प्रगट हो गया है। यह कूप देवता है या दानव। इसकी परीक्षा लेना चाहिए।
वायु देव मां उमा से
इंद्रदेव ने उस तेज की परीक्षा लेने के लिए सर्वप्रथम वायु देव को वहां भेज दिया। वायु देव उस तेज की परीक्षा लेने के लिए वहां पहुंचे। उन्होंने तेज के पास जाकर पूछा तुम कौन हो अपना परिचय दो। तभी तेज ने भी यही प्रश्न वायु देव से किया। वायु देव ने अहंकार भरे शब्दों में कहा, मैं इस जगत का प्राण दाता हूं। मेरे कृपा से ही यह जगत चलता है।
मां उमा के आगे शक्ति हीन दिखें वायु देव
यह सुनकर तेज ने कहा कि इस तिनके को जला कर दिखाओ तो मैं तुम्हें शक्तिशाली समझ सकता हूं। इसके बाद वायु देव अपनी सारी ताकत लगाकर भी उस तिनके को जलाना तों दूर उसे हिला भी नहीं सके। तब वायुदेव लज्जित होकर और हारे हुए देवराज इंद्र के पास पहुंचे।
इन्द्र को हुआ अपनी गलती का एहसास
इन्द्र को जब यह सब बातें ज्ञात हुई तो उन्होंने एक-एक करके सभी देवताओं को उस तेज की परीक्षा लेने के लिए भेजा लेकिन सभी देवता परास्त होकर वापस आ गए। तब स्वयं इन्द्र देव उस दिव्य तेज की परीक्षा लेने के लिए गए। जैसे ही उस स्थान पर पहुंचे वह तेज अंतर्धान हो गया। यह देखकर देवराज इन्द्र आश्चर्यचकित रह गए। तब उस तेज को दिव्य शक्तिशाली जानकर मन ही मन उनकी स्तुति करने लगे।
चैत मास के, शुक्ल पक्ष की, नवमी तिथि दोपहर के समय देवी मां ने प्रकट हुए
वे बोले, मैं आपकी शरण में आया हूं। कृपा करके मुझे दर्शन दो। वह समय चैत मास के, शुक्ल पक्ष की, नवमी तिथि दोपहर के समय देवी मां ने प्रकट होकर देवराज इंद्र को दर्शन दिए। देवी बोली हे देवराज इन्द्र ब्रह्मा, विष्णु और शिव मेरी स्तुति करते हैं। सभी देवता मुझे पूजते हैं। मैं परमब्रह्म प्रणव स्वरूपा देवी हूं। मेरी ही कृपा से तुम्हें विजयश्री प्राप्त हुई है। इसलिए अपने अभिमान और घमंड को त्याग कर मेरा स्मरण करो। देवी शांत हो गई।