त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा विष्णु और शिव को कहा जाता है। इन तीनों देवों कि आयु कितने वर्षों की है ? क्या उनकी भी मृत्यु होती है?
क्या भोले शिव अजर अमर और अविनाशी है ? क्या वे मृत्यु से परे हैं? इस संबंध में शिव पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है।
अब जानें अवधि की गणना
प्रलय काल आने तक की अवधि ही पूर्ण काल की अवधि है। 15 निमेष की काष्ठा होती है। 30 काष्टाओं का एक मुहूर्त अर्थात दिन और रात होता है। 15 दिन और रात का एक पक्ष होता है। इस प्रकार महीने में दो पक्ष अर्थात शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं।
पितरों के दिन और रात शुक्ल व कृष्ण पक्ष है
पितरों के दिन और रात शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं। 6 महीने का एक आयन होता है। दो आयन पूरे होने पर एक वर्ष हो जाता है। दो आयन अर्थात उत्तरायण और दक्षिणायन है। मनुष्य का एक वर्ष देवताओं के 1 दिन और रात के बराबर होता है। मनुष्य की एक आयन के दक्षिणायन होने पर देवताओं की रात और उत्तरायण होने पर देवताओं का दिन होता है।
मनुष्य के 308 वर्ष देवताओं का एक वर्ष है
इस प्रकार मनुष्य के 308 वर्ष पूरे होने पर देवताओं का एक वर्ष पूरा होता है। देवताओं के वर्षों से युग की गणना होती है। सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग चार युग कहे गए हैं। इसमें सतयुग देवताओं के चार सहस्र वर्ष का होता है। जिसमें 400 वर्ष संध्या और 400 वर्ष संध्यांश के होते हैं।
1,000 वर्ष को एक कल्प कहते हैं
सतयुग में 4,000 हजार वर्ष, त्रेता युग में 3,000 वर्ष, द्वापर युग में 2,000, कलयुग में 1,000 वर्ष होते हैं। चारों युगों के 1,000 वर्ष बीतने पर एक कल्प पूरा होता है। 71 चतुर्युगी का एक मन्वंतर होता है।
ब्रह्मा जी का एक दिन एक कल्प के बराबर है
ब्रह्मा जी का एक दिन एक कल्प के बराबर होता है। 8,000 वर्षों का एक वर्ष तथा 8,000 वर्षों का एक युग होता है। हजारों वर्षों का एक सवन होता है। ब्रह्मा जी का आयु 30,000 सवन बितने पर पूरा हो जाएगी। इस प्रकार ब्रह्मा जी की पूरी आयु श्री विष्णु के एक दिन के बराबर है।
श्रीहरि की आयु शिव के एक दिन के बराबर है
श्री विष्णु जी की आयु रूद्र (शिव) के एक दिन के बराबर मानी गई है। रूद्र की आयु पूरी होने पर ही काल की गणना पूरी होती है।
सृष्टि की आयु 5 लाख 25 हजार वर्ष है
त्रिलोकीनाथ भगवान शिव की कृपा से ही 5 लाख 25 हजार वर्षों की उनकी आयु में सृष्टि का आरंभ से अंत हो जाता है। परंतु भगवान शिव अविनाशी है। काल उनको अपने वश में नहीं कर सकता। ईश्वर का एक दिन सृष्टि की उत्पत्ति तथा रात उसका संहार होती है। इस प्रकार भगवान रुद्र अर्थात शिव अविनाशी और अजर अमर हैं।
सबसे पहले परब्रह्म से शक्ति उत्पन्न हुई
सबसे पहले परब्रह्म से शक्ति उत्पन्न हुई। वह शक्ति माया कहलाई और उससे ही प्राकृतिक पैदा हुई। भगवान शिव की प्रेरणा से यह सृष्टि उत्पन्न हुई। इस सृष्टि की उत्पत्ति अनुलोम वृतिलोम से इसका नाश होता है।
जगत 5 कलाओं से पूर्ण है
यह जगत 5 कलाओं से पूर्ण तथा अप्रगत कारण रूप है। इसके मध्यम से आत्मा अनुष्ठित है। त्रिलोकीनाथ देवों के देव महादेव शिव सर्वज्ञ है। सर्वशक्तिमान है। सर्वेश्वर और अनंत है। वे सदाशिव ही सृष्टि की रचना, पालन और संहार करते हैं। सृष्टि के आरंभ और समाप्त होने तक ब्रह्मा जी के 100 वर्ष पूरे होते हैं।
ब्रह्मा जी की आयु दो भागों में बांटा है
ब्रह्मा जी के आयु के दो भाग में बांटा गया है। प्रथम परिद्ध और द्वितीय परिद्ध है। इनकी समाप्ति पर ब्रह्मा जी की आयु पूरी हो जाती है। उस समय अव्यक्त आत्मा अपने मध्यकाल को ग्रहण कर लेती है। अव्यक्त में समावेश होने पर उत्पन्न विकार का संहार करने के लिए प्रधान तथा पुरुष धर्म सहित रहते हैं।