शिवरात्रि पर पढ़ें तीन तरह के पौराणिक कथा, जो जानना जरूरी है

क्या आप शिवरात्रि महापर्व करना चाहते हैं, तो इस लेख को जरूर पढ़ें। इस लेख में पूजा करने का शुभ और अशुभ समय, पूजा करने की विधि, पूजा सामग्री, सहित तीन तरह की पौराणिक कथा पढ़ने को मिलेगा।

वार्षिक त्यौहारों में महा शिवरात्रि, श्रावण माह, हरतालिका तीज जैसे पर्वों का विशेष महत्व हैं।

भगवान भोलेनाथ की आराधना करने का सर्वश्रेष्ठ पर्व और दिन महाशिवरात्रि है, जो 1 मार्च 2022, दिन मंगलवार को है।


महाशिवरात्रि के दिन अमृत मुहूर्त का सुखद और अद्भुत महासंजोग बना है। अमृत मुहूर्त में पूजा करने पर कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर मिलेंगी। वहीं गृहस्थ आश्रम में रहने वाले लोगों को धन, सुुख और वैभव की प्राप्ति होगी। 

व्यापारियों को इस वर्ष शिवरात्रि व्रत करने पर लाभप्रद साल साबित होगा। अब जानें किस समय आएगा अमृत मुहूर्त ? कौन से योग का होगा मिलन ? कैसा रहेेगा कारक और नक्षत्र की स्थिति ? 

इस वर्ष महाशिवरात्रि 1 मार्च, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी। उस दिन फाल्गुन मास, कृष्णपक्ष के त्रयोदशी तिथि है। 

त्रयोदशी तिथि का शुभारंभ 28 फरवरी के अहले सुबह 03:16 बजे से शुरू होकर 1 मार्च रात 01:00 तक रहेगी। उदया तिथि में त्रयोदशी तिथि पड़ने के कारण महाशिवरात्रि 1 मार्च को मनाई जाएगी।

1 मार्च को दिन के 2:51 बजे से लेकर 04:17 बजे तक और रात 10:24 बजे से लेकर 11:58 बजे तक अमृत योग का अद्भुत संयोग है। अमृत योग का स्वामी चंद्रमा हैं।

शिवरात्रि के दिन चंद्रमा मकर राशि में रहेगा। मकर राशि में चंद्रमा को रहने पर मनुष्य का भाग्य उदय होता है। वैसे लोग यथार्थ जीवन जीने में विश्वास रखते हैं। मजबूत इरादे वाले होते हैं। ऐसी स्थिति में अमृत योग में पूजा अर्चना करना काफी फलदाई होंगे।

महाशिवरात्रि के दिन सूर्य कुंभ राशि में और चंद्रमा मकर राशि में स्थित है। सूर्योदय सुबह 6:00 बज के 6 मिनट पर और सूर्यास्त शाम 5:48 बजे पर होगा। चंद्रोदय 5:12 बजे पर और चंद्रास्त रात 4:28 बजे पर है। ऋतु शिशिर है। आयन उत्तरायण है। योग परिघ है। करण विष्टि है। नक्षत्र धनिष्ठा है।

शिवरात्रि के दिन किस समय पूजा करनी चाहिए और किस समय पूजा नहीं करनी चाहिए इसका भी वृतांत पंचांग और चौघड़िया पंचांग के अनुसार  नीचे दिया गया है।

जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:34 बजे से लेकर 12:20 बजे तक रहेगा।

अब जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त का समय। विजया मुहूर्त दोपहर 2:29 बजे से लेकर 03:16 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 06:09 बजे से लेकर 06:33 बजे तक एवं सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 06:21 से लेकर 07:35 तक रहेगा।

 मध्य रात्रि का निशिता मुहूर्त रात 12:08 बजे से लेकर 12:58 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त अहले सुबह 05:06 बजे से लेकर 05:56 बजे तक और प्रातः सांध्य मुहूर्त 05:31 बजे से लेकर 06:54 बजे तक रहेगा।

 इस दौरान पूजा अर्चना और रात्रि जागरण कर महादेव को खुश करने से, सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं।

अशुभ मुहूर्त

शिवरात्रि के दिन सुबह 9:40 बजे से लेकर 11:07 बजे तक अशुभ मुहूर्त के रूप में यमगण्ड काल रहेगा। उसी प्रकार दिन के 3:27 बजे से लेकर 4:54 बजे तक राहु काल है। दोपहर 12:34 बजे से लेकर 2:00 बजे तक गुलिक काल है। 

दूमुहूर्त काल सुबह 9:05 बजे से लेकर 9:52 बजे तक और रात की 11:19 बजे से लेकर 12:08 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार वज्य काल सुबह 9:04 बजे से लेकर 10:34 बजे तक, भद्रा सुबह 6:46 बजे दोपहर 2:06 बजे तक एवं पंचक शाम 4:32 बजे सुबह 6:45 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा करना वर्जित होगा।

शुभ और अशुभ समय, अब जानें चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार 


शिवरात्रि पूजा करने के शुभ और अशुभ समय देखने के लिए चौघड़िया मुहूर्त का भी प्रयोग करना चाहिए।

जानें दिन का शुभ चौघड़िया मुहूर्त। चर मुहूर्त 09:40 बजे से लेकर 11:07 बजे तक है। उसी प्रकार लाभ मुहूर्त सुबह 11:07 बजे से लेकर 12:34 बजे तक है। 

उसी प्रकार 12:34 बजे से लेकर 02:00 बजे तक अमृत मुहूर्त और शुभ मुहूर्त 03:27 बजे से लेकर शाम 04:54 बजे तक है। इस दौरान पूजा अर्चना करना काफी शुभ रहेगा। वैसे भी सुबह 09:40 बजे से लेकर के दिन को 02:00 बजे तक चर, लाभ और अमृत मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा करना काफी फलदाई होगा।

रात के चौघड़िया का शुभ मुहूर्त

रात के चौघड़िया मुहूर्त का शुभारंभ शाम 07:54 बजे से लेकर 09:27 तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त 11:00 बजे से लेकर रात 12:33 बजे तक, अमृत मुहूर्त मध्य रात्रि 12:33 बजे से लेकर 02:06 तक और चर मुहूर्त अहले सुबह 02:06 बजे से लेकर 3:39 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना आप कर सकते हैं।

 चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार शुभ और अशुभ मुहूर्त दिन और रात का, जानें समय

दिन का चौघड़िया अशुभ मुहूर्त सुबह 06:46 बजे से लेकर 08:13 बजे बजे तक रोग मुहूर्त, 08:13 बजे से लेकर 09:40 बजे तक उद्वेग मुहूर्त और 02:00 बजे से लेकर शाम 03:27 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा।

 एक बार फिर से रोग मुहूर्त का आगमन शाम 5:54 बजे से लेकर 6:21 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना सर्वथा वर्जित है।

रात का अशुभ चौघड़िया मुहूर्त

शाम 06:21 बजे से लेकर 07:54 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा। 09:27 से लेकर 11:00 बजे तक उद्वेग मुहूर्त और देर रात 03:39 बजे से लेकर आने सुबह 05:12 बजे तक रोग मुहूर्त का संयोग रहेगा।

 एक बार फिर से काल मुहूर्त का आगमन सुबह 5:12 बजे से लेकर 6:45 बजे तक हो रहा है। इस दौरान भी पूजा अर्चना करना वर्जित है।

जानें पूजा करने की विधि

शिवरात्रि भोलेनाथ की उपासना और आराधना का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार मानी जाती है। अब जानें कैसे करें शिवरात्रि व्रत।

शिवरात्रि के एक दिन पहले त्रयोदशी तिथि के दिन शिवजी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके उपरांत चतुर्थी तिथि को निराहार रहना चाहिए।

 शिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ को गंगाजल चढ़ाने से विशेष पुण्य मिलता है। भगवान शंकर की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर ओम् नमः शिवाय: मंत्र का जाप करते हुए पूजा-अर्चना करनी चाहिए। 

साथ में बेलपत्र, फल, फूल शिवलिंग पर चढ़ाएं। इसके बाद रात्रि के चारों पहर शिवजी की पूजा करनी चाहिए और अगले दिन प्रातः काल ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर व्रत का पारणा करना चाहिए।

शिवरात्रि व्रत में लगने वाले पूजा सामग्रियों की सूची

शिवरात्रि पूजा के दौरान लगने वाले पूजा सामग्री की सूची इस प्रकार है। गाय का दूध, अरवा चावल, दीपक, चंदन, आंकड़े का फूल, बिल्वपत्र, शमी वृक्ष के पत्तें, भांग, गन्ना का रस, गंगाजल, जनेऊ, मिठाई, नारियल, सूखे मेवे, तिल, पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद और गुड़), धतूरा, पीतल या तांबे का लोटा, अष्टगंध, रूई, धूपबत्ती आदि सामानों की जरूरत पड़ती है।

शिवरात्रि व्रत की पौराणिक कथा

शिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है। किसी समय वाराणसी के जंगल में एक भील का परिवार रहता था। उसका नाम गुरुदुह था। वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपने घर परिवार चलाता था। एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया। 

उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात हो गई। शिकारी तालाब के किनारे पेड़ पर यह सोचकर चढ़ा कि रात के समय कोई ना कोई जंगली जानवर पानी पीने जरूर आएगा।

पानी पीने के दौरान उसका शिकार कर लेंगे। जिस पेड़ पर शिकारी बैठा था। वह पेड़ बेल वृक्ष और नीचे शिवलिंग स्थापित था। तालाब में पानी पीने एक हिरनी आई।

 शिकारी ने उसको मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाया, तो उसी समय बेल पेड़ के पत्तें और पीने के लिए रखा जल शिवलिंग पर जा गिरीं। इस प्रकार शिवलिंग की पूजा हो गई। रात के पहले प्रहर में अनजाने में ही शिकारी द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई।

गर्भवती हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची. शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाकर ज्योंहि खींचा, हिरणी बोली, "मैं गर्भवती हूं. शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, तो घोर पाप लगेगा।

मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना। शिकारी ने हिरणी को जाने दिया।

थोड़े समय के बाद एक और हिरनी झील के पास पानी पीने के लिए आयी। शिकारी ने उसे देखकर फिर से अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। हिरनी बोली हम अपने पति से मिलन कर तुम्हारे पास आ जाऊंगा। शिकारी जाने दिया।

 इस बार भी रात के दूसरे पहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गई और हिरनी फिर एक बार भाग गई। इस तरह शिवलिंग पर दूसरे प्रहर की पूजा शिकारी ने कर दी।

फिर एक बार हिरनों का झुंड एक साथ झील पर पानी पीने आया। बहुत से हिरनों को एक साथ देख कर शिकारी खुश हुआ और उसने फिर से धनुष पर बाण चढ़ाया। हिरनी के अनुरोध पर उसे भी जानें दिया। इस प्रकार तीसरे प्रहर में पुनः शिवलिंग की पूजा हो गयी।

एक तंदरूस्त हिरन तालाब पर पानी पीने के लिए आया। शिकारी ने जैसे ही धनुष पर बाण चढ़ाया, उसी समय हिरन बोल पड़ा। आपने मेरे पत्नियों और बच्चों को छोड़ दिया। आप बड़े ही दयालु है।

 कृपा करके मुझे छोड़ दीजिए मैं अपने बच्चों से मिलकर शीघ्र ही पूरे परिवार के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगा। इस प्रकार चौथे पहर की पूजा अनजाने में शिकारी ने शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाकर कर दी।

इस प्रकार शिकारी दिन भर भूखा प्यासा रहकर रात भर जागरण करते हुए चारों प्रहर अनजाने में ही उसने शिवजी की पूजा की। जिससें शिवरात्रि का व्रत पूरा हो गया और व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप नष्ट हो गए। उसे पुण्य प्राप्त हुआ और उसने हिरनो को मारने का विचार त्याग दिया।

उसी समय शिवलिंग से भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए और उन्होंने शिकारी को वरदान दिया कि त्रेता युग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति मिलेगा। त्रेता युग में शिकारी सुग्रीव बना। 

इस प्रकार अनजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।

शिव रात्रि की दूसरी कथा

एक समय की बात है। भगवान शिव के क्रोध से पूरी पृथ्वी पर संकट के बादल छा गए। माता पार्वती ने भगवान शिव को शांत करने के लिए उनसे प्रार्थना और आराधना की। 

प्रार्थना करने से शिव जी का क्रोध शांत हो गया। उस समय से जातक फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर क्रोधित भोलेनाथ को प्रसन्न करते हैं। शिवरात्रि व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार के दुखों का अंत, संतान प्राप्ति और रोगों से मुक्ति मिलती है।

शिव रात्रि की तीसरी कथा

एक बार भगवान विष्णु एवम ब्रह्मा जी के बीच मत भेद हो गया। दोनों में से कौन श्रेष्ठतम हैं इस बात को लेकर दोनों के बीच झगड़ा हो गया। भोलेनाथ अग्नि के सतम्भ अर्थात लिंग रूप में प्रकट हुए। 

उन्होंने विष्णु और ब्रह्मा से कहते हैं कि मुझे इस प्रकाश स्तम्भ में कोई भी आदि और अंत दिखाई नहीं दे रहा हैं। तुम दोनों पता लगाओ।
इसके बाद विष्णु जी एवं ब्रह्मा जी को अपनी गलती का अहसास होता हैं. और वे अपनी भूल पर शिव से क्षमा मांगते हैं।
कहा जाता हैं कि शिव रात्रि के व्रत से मनुष्य का अहंकार खत्म होता है और घरों में सुख समृद्धि और वैभव आता है।

डिस्क्लेमर

शिवरात्रि व्रत कथा पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों और पंचांग पर आधारित है।

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