होलिका दहन बृहस्पतिवार, मार्च 17, 2022 को है।
होलिका दहन करने का मुहूर्त रात 09:06 बजे से लेकर 10:16 बजे के बीच होगा।
होलिका दहन की अवधि 01 घंटा 10 मिनट्स का होगा।
रंगवाली होली दिन शुक्रवार, 18 मार्च, 2022 को है।
भद्रा पूंछ रात 09:06 बजे से लेकर 10:16 बजे तक रहेगा।
भद्रा मुख रात 10:16 बजे से लेकर मध्य रात्रि 12:13 बजे तक रहेगा।
प्रदोष काल के दौरान होलिका दहन भद्रा के साथ
पूर्णिमा तिथि का शुभारंभ 17 मार्च, 2022 को दिन के 01:29 बजे से प्रारंभ होगा।
पूर्णिमा तिथि की समाप्त 18 मार्च, 2022 को दोपहर 12:47 बजे होगा।
होलिका दहन का एक और समय मध्य रात्रि के बाद वैकल्पिक मुहूर्त के रूप में है। मध्य रात्रि के बाद 01:12 बजे से सुबह 06:28 तक होलिका दहन कर सकते हैं। द्वितीय होलिका दहन की अवधि - 05 घण्टे 16 मिनट्स तक रहेगा।
काशी पंचांग एवं बनारस के पण्डितों और उत्तर भारत के विद्वान लोगों द्वारा दूजे मुहूर्त का अनुसरण किया गया है।
जिसके अनुसार अगर मध्य रात्रि के बाद भी भद्रा प्रचलित हो तो भद्रा के समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। इसके बाद ही होलिका दहन किया करना चाहिए।
आधी रात के बाद के समय जो आने वाले दिन के समय को दिखाता हैं, पंचांग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और दूसरे दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
होलिका दहन 2022 को, जानें विस्तार से
भद्रा काल जो पूर्णिमा तिथि के बाद में व्याप्त होती है। वैसे समय होलिका पूजा और दहन नहीं करना चाहिये। सभी तरह के शुभ कार्य करना भद्रा काल में वर्जित हैं।
होलिका दहन के मुहूर्त कब है, इन बातों का रखें ध्यान
जो समय भद्रा काल न हो और प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि चल रही हो वैसे समय होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है।
यदि भद्रा काल हो रहित, साथ में प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये।
भद्रा काल मुख में हो ऐसी स्थिति में होलिका दहन भूलकर भी नहीं करना चाहिेए। धर्मसिन्धु पुराण में भी इस तरह की मान्यता को समर्थन किया गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा मुख में किया गया होलिका दहन भीषण दुर्भाग्य का स्वागत करने के जैसा है। जिसका परिणाम न केवल होलिका दहन करने वाले को ही नहीं बल्कि गांव, शहर, प्रांत और देशवासियों को भी बुरा फल भुगतना पड़ सकता है।
किसी साल भद्रा पूंछ प्रदोष काल के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त नहीं होती तो, ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है। यदि कभी विपरीत स्थिति में प्रदोष काल और भद्रा पूंछ दोनों में ही समय होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष काल के बीत जाने के बाद होलिका दहन करना चाहिये। इस वर्ष ऐसी कोई स्थिति नहीं है।
धर्म शास्त्र के अनुसार निर्धारित मुहूर्त
इस लेख में दिए गए होलिका दहन का मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित किया गया है। इस लेख में दिया मुहूर्त भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित किया गया है क्योंकि भद्रा मुख में होलिका दहन करना पूरी तरह से मना किया गया है।
होलिका दहन के साथ-साथ इस लेख में भद्रा मुख और भद्रा पूंछ का समय भी दिया गया है। जिससे भद्रा मुख में होलिका दहन से बचा जा सके।
यदि भद्रा पूंछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त होने के बाद और मध्य रात्रि के बीच ही समायोजित किया जाता है।
रंगवाली होली, जिसे हम गांव की भाषा में धुरखड़ी के नाम से भी जाना जाता है। रंग भरी होली का त्यौहार होलिका दहन के बाद ही मनायी जाती है।
2022 में होलिका दहन का दिन
ऐसा माना जाता है कि होली पर होलिका पूजा करने से सभी प्रकार के भय पर विजय प्राप्त की जा सकती है। होलिका पूजा शक्ति, समृद्धि और धन प्रदान करती है।
ऐसा माना जाता है कि होलिका सभी प्रकार के भय को दूर करने के लिए बनाई गई थी। इसलिए होलिका दहन से पहले होलिका, हालांकि एक राक्षसी, प्रह्लाद के साथ पूजा की जाती है।
सरस्वती पूजा के दिन होलिका की शुरुआत
जिस स्थान पर होलिका की लकड़ी गाड़ी जाती है उसके चारों ओर गाय के गोबर और गंगा के पवित्र जल से धो दिया जाता है। बीच में एक लकड़ी का खंभा रखा जाता है। सरस्वती पूजा के दिन होलिका के मुख्य लकड़ी गाड़ें जातें हैं।
गाय के गोबर से बने खिलौनो होते हैं। लोकभषा रूप से गुलारी, भरभोलिये या बड़कुला के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर गाय के गोबर से बनी होलिका और प्रह्लाद की मूर्तियों को इकट्ठा किए गोबर और लकड़ी के ढेर के बीच रखा जाता है।
होलिका ढेर को ढाल, तलवार, सूर्य, चंद्रमा, सितारों और गाय के गोबर से बने अन्य खिलौनों से सजाया जाता है।
चार मानक रखने का विधान
होलिका दहन के दौरान, प्रह्लाद की मूर्ति को बाहर निकाला जाता है। साथ ही अलाव से पहले गाय के गोबर की चार मनकों को सुरक्षित रखा जाता है। एक पितरों के नाम पर, दूसरा हनुमान जी के नाम पर, तीसरा शीतला माता के नाम से और चौथा परिवार के नाम पर रखा जाता है।
पूजा विधि, जानें संस्कृति मंत्रों के माध्यम से
हमने अपने लेख में मंत्रों को संस्कृत भाषा में लिखा है। साथ ही उन मंत्रों का सरल हिंदी भाषा में समझाया गया है। यदि कोई व्यक्ति उन मंत्रों का जाप करने में सामर्थ्य नहीं है, तो वैसे लोगों को अपने भाषा के भाव से मंत्रों का जाप करना चाहिए।
पूजा सामग्रियों की सूची
होलिका दहन के दिन निम्नलिखित पूजा सामग्रियों की आवश्यकता पढ़ती है। मसलन एक लोटा पानी, गोबर से बने हुए गोइठा, रोली, अरवा चावल जो टूटे ना हो, धूप, फूल, अगरबत्ती, हल्दी, कच्चा सूता, गुड़ से बने बताशा, मूंगा, गुलाल, नारियल, घर में बने पकवान, खेत में उपजे चना और गेहूं का गोटा अनाज, गंगाजल, मधु और दूध आदि सामग्रियों की जरूरत पड़ती है।
थाली में रखें पूजा सामग्री
पूजा की सभी सामग्रियों को पीतल, कांस्य या तांबे के प्लेट या थाली में रख लें। साथ ही तांबा या पीतल के जल कलश रखें। पूजा स्थल पर बैठना चाहिए उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंख करके। उसके बाद अपने ऊपर और पूजा थाली के ऊपर नीचे दिए गए मंत्रों का तीन बार जाप करते हुए थोड़ा-थोड़ा पानी छिड़कें।
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।
इसके बाद पूजा करने का संकल्प लेना चाहिए। अपने दाहिने हाथ में अरवा चावल, जल, फूल और कुछ पैसा लेकर संकल्प लें।
ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञ्य अद्य दिन ________ (संवत्सर का नाम लें जैसे विश्वावसु) नाम संवत्सरे संवत ________ (जैसे 2078) फाल्गुन मसे शुभे शुक्ल नाम शुभ ________ (जैसे गुरुवारसरे) _______अपना गौत्र) मम ________ (अपने नाम का उच्चारण:) मम इह जन्मनि जन्मान्तर वा सर्वपापक्षी सिंह कर विपुलाधन्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविंड निवृत्यार्थं सदाभिष्टसिद्धसिद्धार्थे प्रह्लादनृंप्रमहं।
उपरोक्त मंत्र का जाप करके, कोई वर्तमान में प्रचलित हिंदू तिथि, पूजा स्थल, अपने परिवार के उपनाम और पूजा के उद्देश्य सहित अपने नाम का पाठ कर रहा है और जिसे पूजा की जाती है, ताकि पूजा के सभी लाभ व्रतधारियों को मिल सकें।
इसके बाद दाहिने हाथ में फूल और अरवा चावल लेकर गणेश जी का स्मरण करें। गणेश जी का स्मरण करते हुए जाप करने वाला मंत्र नीचे दिए गए हैं।
गजानंभूते उमासुतं विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादमजम्॥ पंचोपचार्थेंधंधाक्षतपुष्पाणि समारपायामि।
इसी मंत्र का जाप करते हुए एक फूल लें। इसके बाद रोली, इत्र और चावल लगाकर भगवान गणेश को सुगंधित कर आशीर्वाद लें।।
भगवान गणेश की पूजा करने के बाद, देवी अंबिका (मां पार्वती) को याद करें और निम्नलिखित मंत्र का जाप करें। मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर देवी अंबिका को इत्र सहित अर्पित करें।
ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गमक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि।
अब निम्नलिखित मंत्र का जाप करके भगवान नरसिंह का स्मरण करें। मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर भगवान नरसिंह को इत्र सहित चढ़ाएं।
ऊँ नृसिंहाय नम: पंचोपचारार्थे गमक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
अब भक्त प्रह्लाद को याद करें और निम्नलिखित मंत्र का जाप करें। मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर भक्त प्रह्लाद को इत्र डालकर चढ़ाएं।
ऊँ प्रह्लादय नम: पंचोपचारार्थे गमक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
अब होलिका के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करते हुए अपनी मनोकामनाएं पूरी करने का अनुरोध करें।
अश्रक्पाभयसंस्त्रस्तै: कृता त्वं होली बालिशै:अत्वं पूज्यिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:॥
इसका अर्थ है कि कुछ मूर्ख और बचकाने लोगों ने रक्त चूसने वाले राक्षसों के निरंतर भय के कारण होलिका का निर्माण किया। इसलिए, मैं आपकी पूजा करता हूं और अपने लिए, सुख, शांति, धन, शक्ति और समृद्धि चाहता हूं।
होलिका में डाले ये सामान
होलिका को चावल, सुगंध, फूल, अटूट मूंग दाल, हल्दी के टुकड़े, नारियल और भरभोलिये (सूखे गाय के गोबर से बनी माला जिसे गुलारी और बड़कुला भी कहा जाता है) का भोग लगाएं। होलिका की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत की तीन, पांच या सात फेरे बांधे जाते हैं। इसके बाद होलिका के ढेर के सामने पानी के बर्तन को खाली कर दें।
बड़े बुजुर्ग जलाए होलका
उसके बाद होलिका दहन किया जाता है। आमतौर पर होलिका जलाने के लिए सार्वजनिक जगहों का इस्तेमाल करते हैं। गांव और मोहल्ले के बड़े बुजुर्ग होलिका में आग लगाए। लोग होलिका दहन के पूूर्व उसकी परिक्रमा करते हैं। अगजा में नई फसल चढ़ाते हैं और भूनते हैं। भुने हुए अनाज को होलिका प्रसाद के रूप मेंं लोगों के बीच बांटा बांटा जाता है।
होली के सुबह अगजा में जाने रिवाज
अगली सुबह, होली के दिन, गांव के लोगों होलिका में जले राख को की एकत्र किरते हैं। राख को शरीर पर भी लगाया जाता है। राख को पवित्र माना जाता है और ऐसा माना जाता है कि इसे लगाने से शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है। शरीर निरोगी हो जाएगा।
होलिका और प्रह्लाद की पौराणिक कथा
होली की कई तरह के पौराणिक कथा प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा भक्त प्रह्लाद से संबंधित है, जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे।
हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु के पुत्र प्रह्लाद थे। प्रह्लाद का जन्म और पालन-पोषण ऋषि नारद के मार्गदर्शन में हुआ था। प्रह्लाद का जन्म उस समय हुआ जब हिरण्यकशिपु अमरता प्राप्त करने के लिए और भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहा था।
प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के परम शत्रु थे। वह अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु के भक्त होने के खिलाफ थे।
जब प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप की बात मानने से इनकार कर दिया, तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका, जो एक महिला राक्षस थी। प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन से कहा।
होलिका ने एक विशाल जलती अलाव में प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई। होलिका ने प्रह्लाद को फुसलाया अलाव में लेकर चली गई लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका के बजाय दिव्य चादर ने प्रह्लाद की रक्षा की।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब अग्नि प्रज्ज्वलित हुई तो प्रह्लाद ने भगवान विष्णु के नाम का जाप करना शुरू कर दिया। जब भगवान विष्णु ने अपने भक्त को खतरे में देखा तो उन्होंने होलिका की चादर को अपने भक्त प्रह्लाद के ऊपर ओढ़ाने के लिए हवा के झोंके को बुलाया।
इस कारण राक्षसी होलिका एक विशाल अलाव में जलकर राख हो गई। भगवान विष्णु की कृपा और दिव्य चादर के कारण प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं हुआ।
इसके बाद भी जब हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के अपनों तरह के प्रयासों करने लगा। भगवान विष्णु प्रह्लाद की रक्षा करने और राक्षस हिरण्यकशिपु को मारने के लिए नरसिंह के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए।
होली अर्थात होलिका। इस त्योहार नाम होलिका की कथा से मिला और होली के आग को होलिका के नाम से जाना जाता है।
होलिका की रात नगर भ्रमण की रीत
होलिका दहन की रात नगर भ्रमण करने की परंपरा पौराणिक काल से है। लोग अपने घर से निकालते हैं। एक दूसरे को जगाने के लिए और होलिका में जाने के लिए लोग प्रह्लाद की जय का श्री विष्णु भगवान की जयकारा लगाते रहते हैं सभी लोग एक साथ झुंड बनाकर होलिका स्थल पर दहन करने के लिए जाते हैं।
होलका दहन के उपरांत ढोल और मंजीरा बजाकर होलिका के मरने की खुशी और प्रह्लाद के जिंदा होने की खुशी को फाग के गीत में के रूप में गाते हैं।