जया एकादशी 12 फरवरी 2022 को जानें संपूर्ण विधि और पौराणिक कथा

जया एकादशी माघ मास, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि, 12 फरवरी, 2022, दिन शनिवार को पड़ रहा है।

जबकि विजया एकादशी 27 जनवरी दिन रविवार को है।

12 फरवरी, 2022 दिन मंगलवार, माघ मास, शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है।

जया एकादशी करने वाले मनुष्यों को पितृदोष, गौ हत्या और ब्रह्म हत्या जैसे भयंकर से भयंकर पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही पिशाच, भुत और प्रेत योनि से भी मुक्ति मिल जाती है।

इस व्रत को करने का क्या है विधान, एकादशी व्रत करने का महत्व और व्रत करने से होने वाले फैयदे की बातें विस्तार से पद्म पुराण में वर्णन किया गया है।



जया एकादशी के दिन चंद्रमा मिथुन राशि में और सूर्य कुंभ राशि में है। माघ मास, शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाली जया एकादशी नक्षत्र मृगशिरा, करण बिष्ट, योग विष्काम्भ सुबह 08:41 बजे इसके बाद प्रीति हो जायेगा।

दिन शनिवार है। इस दिन ऋतु शिशिर है। सूर्य उत्तरायण दिशा में रहेंगे। विक्रम संवत 2078 है। जया एकादशी के दिन ग्रहों की स्थिति समान रहेगा नक्षत्र मृगशिरा है।


अब जानें कौन मुहूर्त में करें पूजन


जया एकादशी के दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:36 बजे से लेकर 12:26 बजे तक रहेगा


काशी पंचांग के अनुसार पूजा करने का शुभ मुहूर्त


पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त दोपहर 2:27 बजे से लेकर 3:11 बजे तक विजया मुहूर्त के रूप में है। उसी प्रकार गोधूलि मुहूर्त शाम 5:58 बजे से लेकर 6:20 बजे तक, संध्या मुहूर्त 6:09 बजे से लेकर 7:28 बजे तक, मध्य रात्रि का निशिता मुहूर्त 12:09 बजे से लेकर 01:01 बजे तक, ब्रह्मा 5:18 बजे से लेकर 6:10 बजे तक और प्रातः मुहूर्त 05:44 बजे से लेकर 07: 01 बजे तक है। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।


पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त


पंचांग के अनुसार राहुकाल का आगमन सुबह के 09:09 बजे से लेकर 10:33 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार यमधंत काल दोपहर 01:23 बजे से लेकर 02:48 बजे तक और गुलिकाल सुबह 06:19 बजे से लेकर 7:44 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।


चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार दिन शुभ समय


चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। सुबह 08:25 बजे से लेकर 09:49 बजे तक का शुभ मुहूर्त का संयोग रहेगा। अमृत मुहूर्त का आगमन शाम 03:22 बजे से लेकर 04:46 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार लाभ मुहूर्त दोपहर 01:59 बजे से लेकर 03:22 बजे तक और चर मुहूर्त दोपहर के 12:36 बजे से लेकर दोपहर 01:59 बजे तक रहेगा। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।


 चौघड़िया मुहूर्त दिन का अशुभ मुहूर्त


 चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन अशुभ मुहूर्त सुबह 7:02 बजे से लेकर 8:25 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 9:00 बज के 49 मिनट से लेकर 11:00 बज के 12 मिनट तक रोग मुहूर्त रहेगा। 

उसी प्रकार दिन के 11:12 बजे से लेकर दोपहर के 12:36 बजे तक उद्वेग मुहूर्त और शाम 4:46 बजे से लेकर 6:09 बजे तक काल मुहूर्त का संयोग रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित रहेगा।



रात्रि चौघड़िया शुभ मुहूर्त


रात्रि समय का चौघड़िया पंचांग के अनुसार लाभ मुहूर्त रात 07:045 बजे से लेकर 09:22 बजे तक रहेगा। रात 09:22 बजे से लेकर रात 10:59 बजे तक शुभ मुहूर्त और 10:59 बजे से लेकर 12:35 बजे तक अमृत मुहूर्त है। रात 12:35 बजे से लेकर 02:12 बजे तक चार मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान पूजा अर्चना करना जातकों के लिए लाभप्रद होगा।




चौघड़िया अशुभ मुहूर्त रात का


चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार शाम 07:45 बजे से लेकर रात 09:22 बजे तक उद्वेग मुहूर्त, मध्य रात की 02:11 बजे से लेकर रात 03:48 बजे तक रोग मुहूर्त और रात 03:48 बजे से लेकर 05:25 बजे तक काल मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान भी पूजा अर्चना करना वर्जित है।


जया एकादशी व्रत करने का विधान


जया एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति जया एकादशी व्रत करना चाहता है उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए। 

एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर धूप, मौसमी फल, घी एवं पंचामृत आदि से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। 

जया एकादशी की रात सोना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का भजन कीर्तन एवं सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। रात्रि जागरण करना काफी शुभ और फलदाई होता है। 

द्वादशी अर्थात पारन के दिन भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन कर उपवास खोलना चाहिए। 


 पूजा में भोग लगाएं,वितरण करें लोगों के बीच  


द्वादशी अर्थात पारन के दिन भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद के रूप में वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन कर उपवास खोलिए। साथ ही बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए।


जानें पूजा सामग्रियों की सूची


पूजा सामग्री के रूप में भगवान श्रीहरि के स्नान कराने के लिए तांबे और पीतल का लोटा या पात्र

तांबे या पीतल का लोटा, 

जल का कलश, दूध, 

भगवान श्रीहरि को पहनाने के लिए वस्त्र और आभूषण, चावल, 

कुमकुम, दीपक, जनेऊ, तिल, फूल, 

अष्टगंध, तुलसीदाल, 

 प्रसादी के लिए गेहूं आटे की पंजीरी, 

फल, धूप, मिठाई नारियल, मधु, गंगा जल, 

सूखे मेवे, गुड़ और पान के पत्ते ब्राह्मणों को दक्षिणा देने के लिए रुपए रख लें।


जया एकादशी की जाने पौराणिक कथा

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान 26 एकादशी व्रत की कथा धर्मराज युधिष्ठिर और धनुर्धर अर्जुन को बारी-बारी से सुनाएं थे और समझाऐ थे।

 जया एकादशी के संबंध में धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीहरि से पूछा कि हे, भगवान श्रीकृष्ण आपने माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली षट्तिला एकादशी के संबंध में हमें विस्तार से समझाये थे।  कृपया कर अब मुझे माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली जया एकादशी के संबंध में विस्तार से समझाइए। एकादशी व्रत करने से जातकों को कौन-कौन सा फल मिलता है।


युधिष्ठिर ने जया एकादशी के संबंध में पूछे अनेक प्रश्न


धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा कि हे, श्रीहरि आप मनुष्य के अंदर व्याप्त स्वदेज, अंडे, उद्धेज और जरायुज चारों प्रकार के उत्पन्न, पालन और नाश करने वाले हैं। अब आप कृपा करके माघ शुक्ल पक्ष एकादशी का वर्णन करें। इस एकादशी का क्या महत्व है ? इस व्रत करने का क्या है विधि ? उचित समय क्या है ? और इसमें कौन-कौन से देवताओं को पूजन करने का विधान है।


पिशाच, ब्रह्महत्या व गौ हत्या योनि से मिलती है मुक्ति


श्रीकृष्ण ने कहा हे, धर्मराज इस एकादशी का नाम जया एकादशी है। इस व्रत को करने से मनुष्य ब्रह्म हत्या और गौ हत्या जैसे महा पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है, तथा इसके प्रभाव से पिशाच और भूत जैसी योनियों से मुक्त मिल जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। अब मैं तुम्हें पद्म पुराण में वर्णित महिमा की एक कथा सुनाता हूं।


इन्द्र अप्सराओं और गंधर्व के साथ विहार करने आये थे वन


श्रीहरि ने पौराणिक कथाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि देवराज इन्द्र स्वर्ग के राजा थे। सभी देवताओं के साथ वे सुख पूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक दिन यह अपने सभी अप्सराओं के साथ नंदन वन में विहार करने गए।

 वहां अप्सराएं नृत्य और गंधर्व गान कर रहे थे। उसी नृत्य गान में गंधर्व में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उनकी कन्या पुष्पावती और चित्रसेन तथा उसकी पत्नी मालिनी भी उपस्थित थी। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और माल्यवान भी उपस्थित थे। पुष्पावती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम वाण चलाने लगी। अपने रूप, लावण्य और हाव-भाव से मल्लवान को अपने वश में कर लिया।


 इन्द्र को पुष्पवती ने किया नाराज


पुष्पवती अत्यंत सुंदर थी। वह इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए नृत्य गान प्रस्तुत करने लगी, परंतु मल्वायन पर मोहित हो जाने के कारण उसका चित्त गान में नहीं लग रहा था। उसके ठीक प्रकार से गान और नृत्य में मन नहीं लगने के कारण पुष्पावती और मल्लवान के प्रेम को देवराज इन्द्र समझ गए। 


इंद्र ने दोनों को प्रेत द्वारा योनि का दिया श्राप


इन्द्र क्रोधित होकर बोले, अरे मूर्ख तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। इसलिए तुम्हें धिक्कार है। मैं श्राप देता हूं तुम दोनों स्त्री और पुरुष के रूप में पृथ्वी लोक जाकर प्रेत योनिधारण करों और अपने द्वारा किए गए कर्मों का फल भोगों।

इंद्र का ऐसा श्राप सुनकर दोनों अत्यंत दुःखी हो गए और हिमालय पर्वत पर दुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस और स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं रहा। वहां पर उन दोनों को महान दुःख हो रहा था उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी।


इन्द्र के श्राप से हिमालय पर्वत पहुंचे दोनों


हिमालय पर्वत होने के कारण यहां अत्यंत ठंड थी। उससे उनके रोंगटे खड़े रहते थे और ठंड में दांत कांपते रहते थे। एक दिन पिशाच ने अपनी पत्नी से कहा पिछले जन्म में हमने ऐसा कौन सा पाप किए थे जिससे हम को यह दुःखदाई पिशाच योनि प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि से अच्छा तो नर्क का दुखदाई जीवन है। हमें किसी प्रकार का पाप नहीं करना है। इस प्रकार विचार करते हुए दोनों दिन बिताने लगे। 


अज्ञान वश पति-पत्नी के किया एकादशी व्रत

 

देव योग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नाम की एकादशी आई। उस दिन उन दोनों ने ना कुछ खाया और ना ही पानी पीएं। साथ ही ना कोई पाप ही किया। केवल फल फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और संध्या समय दुखी होकर पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय भगवान भास्कर अस्त हो रहे थे। उस रात को अत्यंत ठंड पड़ रही थी। इस कारण वे दोनों आपस में लिपटे हुए पड़े रहे। उस रात दोनों को नींद भी नहीं आई।


जया एकादशी व्रत का रहा प्रभाव से मिली प्रेत योनि से मुक्ति


श्रीहरि ने कहा हे, धर्मराज जया एकादशी के निर्जला उपवास करने और रातभर हरिकीर्तन करने से दूसरे दिन सुबह होते ही उन दोनों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। अति सुंदर गंधर्व और अप्सरा के रूप धारण कर सुंदर वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्ग लोक को प्रस्थान किया। देवता गण दोनों पर पुष्प की बारिश करने लगे। स्वर्ग लोक में जाकर दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। भगवान इंद्र ने दोनों को पहले जैसा रूप देखकर घोर आश्चर्य चकित हुए और पूछने लगे कि तुम दोनों ने अपनी प्रेत योनि से किस तरह छुटकारा पा सके ? सही सही बताना।


इन्द्र ने दोनों को ईश्वर तुल्य माना


माल्यवान कहा कि हे, देवेंद्र भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी व्रत के प्रभाव से ही हमें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है। इसके बाद इन्द्र ने कहा कि हे, माल्यवान भगवान श्रीहरि की कृपा और एकादशी व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई। बल्कि हम देवता गण के भी वंदनीय हो गए हो क्योंकि भगवान विष्णु और भोलेनाथ के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं। अतः तुम दोनों धन्य हो। अब आप पुष्पावती के साथ प्रेम पूर्वक जीवन व्यतीत करों।


जया एकादशी व्रत करने से हजार वर्षों तक स्वर्ग की प्राप्ति


भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि युधिष्ठिर जया एकादशी व्रत करने से बुरी से बुरी योनि से मुक्ति मिल जाती है।

 जो मनुष्य जया एकादशी व्रत किया है उसे मानो सभी तरह के यज्ञ, जप, दान आदि कर लिया है। जो जातक जया एकादशी व्रत करता है, 

वह अवश्य ही हजार वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है। जया एकादशी व्रत को पूरे विधि विधान  और निष्ठा से करने पर हजार वर्षो तक स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है।


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