संकष्टी गणेश चतुर्दशी व्रत पर जाने संपूर्ण विधि


संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत 22 दिसंबर 2021, दिन बुधवार, पौष मास, कृष्ण पक्ष को है।

गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत करने का सरल विधि, पूजा सामग्री, दिन कैसा रहेगा, शुभ और अशुभ मुहूर्त सहित चार पौराणिक कथाएं।


गणेश चतुर्थी व्रत करने से घर-परिवार में आ रही समस्त विपदा दूर होती है। कई वर्षों से रुके मांगलिक और धार्मिक कार्य संपन्न होते है। साथ ही भगवान गणेश की असीम कृपा, सुख और धन संपदा की प्राप्ति होती हैं।


संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के दौरान चतुर्थी व्रत की कथा पढ़ना अथवा सुनना दोनों लाभदायक और फलदाई होता है।

संकष्टी चतुर्थी से संबंधित चार पौराणिक कथाएं धर्म शास्त्रों में प्रचलित हैं। विस्तार से जानकारी नीचे के कथा में पढ़ने को मिलेगा।


इससे पहले जानें संकष्टी चतुर्दशी के दिन पंचांग और चौघड़िया पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा।


पंचांग

गणेश संकटी के दिन कैसा रहेगा पंचांग के अनुसार दिन आइए जाने 22 दिसंबर को चतुर्थी तिथि शाम 4:52 बजे से आ रहा है। इससे पहले तृतीया तिथि रहेगा। उदया काल में चतुर्थी तिथि पड़ने के कारण संकष्टी व्रत चतुर्थी बुधवार को ही पड़ेगा।


अब जानें विस्तार से

चतुर्थी के दिन नक्षत्र पुष्प रहेगा रात 12:45 बजे तक। प्रथम करण भद्रा 4:52 बजे तक एवं द्वितीय करण बव है। योग ऐन्द्र है दिन के 12:04 बजे तक रहेगा।

सूर्योदय सुबह 7:10 बजे के बाद सूर्यास्त शाम 5:00 बज के 29 मिनट पर होगा। चंद्रोदय रात 8:12 बजे पर और चंद्रास्त 23 तारीख को सुबह 9:40 बजे होगा। सूर्य धनु राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में रहेंगे। आयन दक्षिणायन है। ऋतु शिशिर है।

दिनमान 10 घंटा 19 मिनट का होगा जबकि 13 घंटा 40 मिनट का रहेगा। आनन्दादि योग मातंग रात 12:45 बजे तक रहेगा। होमाहुति मंगल, दिशा शूल उत्तर, राहुवास दक्षिण पश्चिम, अग्निवास पृथ्वी और चंद्रभास उत्तर रहेगा।


पंचांग के अनुसार शुभ और शुभ मुहूर्त

चतुर्थी के दिन अभिजित मुहूर्त का संयोग नहीं बन रहा है। विजय मुहूर्त दिन के 2:04 बजे से लेकर 2:45 बजे तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त 5:29 बजे से लेकर 5:45 बजे तक रहेगा। सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 5:29 बजे से लेकर 6:52 बजे तक एवं निशिता मुहूर्त रात 11:30 बजे से लेकर 12:47 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:21 बजे से लेकर 6:16 बजे तक और प्रातः सन्ध्या मुहूर्त सुबह 5:00 बजे 49 मिनट से लेकर 7:11 बजे तक रहेगा।


अशुभ मुहूर्त

चतुर्थी के दिन राहु काल का आगमन दिन के 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक रहेगा। गुलिक काल 11:02 बजे से लेकर 12:20 बजे तक, यमगंण्ड काल सुबह 8:28 बजे से लेकर 9:45 बजे तक, दुर्मुहूर्त काल 11:59 बजे से लेकर 12:40 बजे तक, वज्य काल सुबह 7:12 बजे से लेकर 8:00 बजे तक रहेगा। भद्रा काल तृतीया तिथि की समाप्ति तक अर्थात 4:52 बजे तक रहेगा।

चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह का शुभ और अशुभ मुहूर्त दिन और रात

शुभ मुहूर्त

चतुर्थी के दिन चौघड़िया पंचांग अनुसार सुबह का शुभ मुहूर्त सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक अमृत मुहूर्त और 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक शुभ मुहूर्त है। 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा।
एक बार फिर से संध्या समय शुभ मुहूर्त का आगमन हो रहा है, जो 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा।

दिन का अशुभ मुहूर्त
चतुर्थी के दिन अशुभ मुहूर्त का शुभारंभ काल मुहूर्त के रूप में सुबह 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक रहेगा। उसी तरह 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक रोग मुहूर्त और 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त का संयोग बन रहा है।

शुभ मुहूर्त रात का

रात का शुभ मुहूर्त का शुभारंभ शाम 7:30 बजे से लेकर कर 9:00 बजे तक रहेगा। अमृत मुहूर्त 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक और चर मुहूर्त 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक रहेगा। एक बार फिर रात 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक लाभ मुहूर्त का सुखद संयोग बन रहा है।

रात का अशुभ मुहूर्त

चतुर्थी की रात अशुभ मुहूर्त का आगमन शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त के रूप में रहेगा। इसके बाद रात्रि 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक काल मुहूर्त और रात 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक रोग मुहूर्त रहेगा। इसके बाद सुबह 4:30 बजे तक 6:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त रहेगा।

अगर आप गणेश चतुर्थी व्रत और पूजा-पाठ पूरे विधि विधान से कर चाहते हैं तो पूजा सामग्री की सूची जानना जरूरी है।

पूजा सामग्रियों की सूची

सिंदूर, नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, फूल, पांच सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, कलश, आम के पत्ते, मौसमी फल, बताशा, मिठाईयां खासकर लड्डू का, पूजा पर बैठने के लिए आसन, हल्दी, धूपबत्ती, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दूध, दही, शहद, गुड़, शुद्ध जल, भगवान गणेश के लिए वस्त्र, सफेद फूल, अष्टगंधा, दीपक, आरती की थाली, पीतल या तांबे का लोटा और गंगाजल।


गणेश पूजा करने का सरल विधि

भगवान गणेश की पूजा करने के लिए सबसे पहले व्रतधारियों को स्नान कर नए वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद अपने घर में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद स्थापित प्रतिमा में भगवान गणेश का आवाहन करें। अर्थात भगवान गणेश को अपने घर बुलाए।

कलश स्थापित करें। इसके बाद भगवान गणेश को स्नान कराएं। सबसे पहले जल से फिर पंचामृत से अर्थात दूध, दही, घी, शहद और गुड़ के मिश्रण से इसके बाद पुनः जल से स्नान कराएं। श्री गणेश को वस्त्र पहनाएं। इसके बाद आभूषण पहनाएं। इसके बाद जनेऊ धारण कराएं।

पुष्प माला अर्पित करें। अष्टगंधा या सिंदूर से तिलक करें। इसके बाद धूप और दीप अर्पित करें। आरती के बाद परिक्रमा करें। उसके बाद नवेद्ध अर्पित करें। पंचामृत अर्पित करें। लड्डू, फल और गुड़ का भोग लगाएं। दुर्वा अर्पित करें और अंत में दक्षिण अर्पित करें।

अब पढ़ें धर्मशास्त्र में 4 तरह की पौराणिक कथा का विस्तार से वर्णन

(पहली कथा)

माता पार्वती और भोलेनाथ की के साथ चौपड़ खेलने की कथा
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत पूजा की कथा के मुताबिक एक दिन की बात है भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर अकेले बैठे थे। माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से बोली कि क्यों न समय बीतने के लिए चौपड़ का खेल खेला जाए।

माता पार्वती के अनुरोध पर भगवान भोलेनाथ चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए। परंतु सबसे बड़ा सवाल यह था कि खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा।

इस प्रश्न का हल स्वयं निकल लिया। उन्होंने आस पास से कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बना लिए और उस पुतले में जान डाल दी। जीवित पुतले से भोलेनाथ ने कहा कि पुत्र हम दोनों चौपड़ खेलना चाहते हैं।

हमारे बीच होने वाले चौपड़ के खेल में हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं था। इस स्थिति से निपटने के लिए तुम्हें बनाना पड़ा। हम दोनों खेल में कौन हारा और कौन जीता यही तुम्हें बताना है।

चौपड़ खेल में हुई वैमानी माता गई रूठ

तत्पश्चात भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती चौपड़ खेलने लगे। चौपड़ का खेल दोनों के बीच दर्जनों बार खेला गया, परंतु संयोग देखिए हर बार माता पार्वती की जीत हुईं। दोनों के बीच खेल समाप्त होने के बाद भोलेशंकर ने उक्त बालक को हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा, तो उक्त बालक ने बेमानी कर भोलेनाथ को विजयी बताया।

बालक के छल पूर्वक दिए गए निर्णय सुनकर माता पार्वती क्रोधित से भर गई गईं और आवेश में आकर उन्होंने उक्त बालक को लंगड़ा होकर कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। श्राप मिलने के बाद बालक ने माता पार्वती से माफी मांगने लगा और कहा कि यह मुझ अज्ञानी से भारी गलती हो गया है। मैंने किसी प्रकार के द्वेष भाव में ऐसा कुछ नहीं किया। मुझे माफ कर दें, जगत जननी माता।

बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता पार्वती ने कहा इस जगह पर संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी। नाग कन्याओं के कहे अनुसार तुम विधि विधान से भगवान गणेशजी का व्रत करो। ऐसा करने से तुम श्राप से मुक्त होकर मुझे प्राप्त करोंगे। यह कहकर माता पार्वती और भोलेनाथ कैलाश पर्वत जाने के लिए प्रस्थान कर गए।

एक वर्ष के उपरांत उस स्थान पर नाग कन्याएं समुह में आईं। नाग कन्याओं ने भगवान गणेश का विधि विधान से पूजा अर्चना कर व्रत रखी। नाग कन्याओं को देखकर उस बालक ने लागातार 21 दिन तक गणेश भगवान का व्रत पूरे विधि विधान और निष्ठा पूर्वक किया।

बालक के कठोर व्रत करने से भगवान गणेश प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा। उस बालक ने श्रद्धा पूर्वक कहा हे प्रथम पूज्य भगवान विघ्नहर्ता आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं, तो मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर कैलाश पर्वत पर पहुंच जाऊं। जहां माता पर्वती और भोलेनाथ का दर्शन कर सकूं।

बालक को वरदान देकर भगवान गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी सारी बातें उसने भगवान भोलेनाथ को कह सुनाया।


भोलेनाथ ने गणेश चतुर्थी व्रत कर माता को मनाया

चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती भगवान भोलेनाथ से विमुख हो गई थीं। देवी पार्वती के रुठ जाने पर भगवान भोलेनाथ ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक भगवान गणेश का व्रत पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की। संकष्टी चतुर्थी व्रत के प्रभाव ऐसा हुआ कि माता पार्वती के मन में भोलेनाथ के लिए जो खिन्नता और शिकायत थी, वह पूरी तरह खत्म हो गया।

भगवान शंकर ने माता पार्वती को संकष्टी चतुर्थी व्रत करने की विधि बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में एक विचार आया कि क्यों न अपने पुत्र कार्तिकेय से मिला जाएं। माता के मन में बेटे से मिलने की तीव्र इच्छा जागृत हो गई। माता पार्वती ने भी 21 दिन तक भगवान गणेश का व्रत पूरे विधि विधान से किया।

कपूर, दूर्वा, फूल, फल और मोदक से पूजन करने से 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से मिलने कैलाश पर्वत आ गए। उस दिन से गणेश संकष्टी चतुर्थी का यह व्रत मनुष्य के सभी तरह के इच्छाओं की पूर्ति करने वाला व्रत कहलाने लगा।


(दूसरी कथा)

भगवान गणेश को प्रथम देव बनने की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं पर विपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा। देवताओं ने मदद मांगने भगवान भोलेनाथ के पास पहुंच गए। उस समय भोलेशंकर के साथ दोनों पुत्र कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं पर आई विपदा को सुनकर भोलेनाथ ने कार्तिकेय और गणेश जी से पूछा कि तुम दोनों में से कौन देवताओं पर आएं संकटों का निष्पादन कर सकता है। पिताश्री की बात सुनकर कार्तिकेय और गणेश दोनों ने ही स्वयं को इस महान कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया।


दोनों के बात सुनकर भगवान भोलेनाथ ने दोनों की परीक्षा लेने को सोचने लगें। काफी सोंच विचार कर उन्होंने कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा। उसी को देवताओं की मदद करने के लिए हम भेजेंगे।

भगवान शिवशंकर के मुंह से ऐसा बात सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर तीनों लोकों की परिक्रमा के लिए निकल पड़े। दूसरे ओर भगवान गणेश सोचने लगें कि हम चूहे के ऊपर सवार होकर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो यह कार्य संपन्न करने में उन्हें बहुत दिन लग जाएगा। उसी समय उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की तीन बार परिक्रमा करके वापस भोलेनाथ और माता पार्वती के समकक्ष बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर भगवान कार्तिकेय ने स्वयं को विजेता बताने लगे। इसके बाद भोलेनाथ ने भगवान गणेश से तीनों लोकों की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।

गणेश ने माता पिता की परिक्रमा कर प्रथम देव बने

इस विषय पर भगवान गणेश ने कहा माताश्री और पिताश्री के चरणों में ही तीनों लोक और चारों धाम हैं। यह सुनकर भगवान शिवशंकर ने गणेश भगवान को देवताओं के संकट दूर करने की आदेश दिया। इस प्रकार भगवान शिव ने भगवान गणेश को आशीर्वाद देते हुए कहा कि संकष्टी चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन, व्रत और भजन विधि विधान से करेगा और रात्रि समय में चंद्रमा को देखकर पीतल और तांबे के बर्तन से अर्घ्य देगा उसे तीनों ताप से मुक्ति मिल जायेगा। तीनों ताप का मतलब दैविक, दैहिक तथा भौतिक ताप कहलाता है। चतुर्थी व्रत करने से व्रतधारियों के सभी तरह के संकट दूर होंगे और उसे जीवन में समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। जातकों की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्र को धन-ऐश्वर्य की कमी कभी नहीं रहेगी।

(तीसरी कथा)

जलती अलाव से बच्चे को जीवित निकलने की कथा

एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था। वह मिट्टी के बर्तन बनाकर अपना जीवन यापन करता था। लेकिन दुखद पहलू यह था कि उसके बर्तन कच्चे रह जाते थे। कुम्हार हमेशा दुखी रहता था। एक दिन एक पुजारी की सलाह पर उसने इस विकट समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों पकाने के लिए तैयार किए गए आग के अंगारों के बीच रख दिया।

वह दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे को नहीं मिलने से वेहद परेशान थी। उसने भगवान गणेश के व्रत रखकर अपने बेटे की कुशलता की प्रार्थना करने लगी।


संकष्टी चतुर्थी व्रत ने बचाया बालक की जान

दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आग में उसके बर्तन तो पूरी तरह से पक गए थे। भीषण आग से बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। कुम्हार डर गया और राजा हरिश्चंद्र के दरबार में जाकर सारी घटना सच-सच बता दिया।

इसके बाद राजा ने मां और उस बच्चे अपने पास बुलया और कहा कि इस कुम्हार को क्या सजा देना चाहिए। मां ने कुम्हार को माफ़ करते हुए कहा कि सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाली संकष्टी चतुर्थी व्रत सभी को करना चाहिए। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चौथ का व्रत करने लगीं।


(चौथी कथा)

भगवान विष्णु गणेश को विवाह समारोह में ना बुलाने की कथा

एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्‍मीजी के साथ होने वाली थी। विवाह की तैयारी जोर शोर से चल रही थी। सभी देवी देवताओं को निमंत्रण पत्र भेजे गया। परंतु भगवान गणेश को निमंत्रण पत्र नहीं दिया गया। कारण उनका भोजन बन रहा था। भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया।

सभी देवता अपनी-अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में भाग लेने के लिए विष्णु धाम आ गए। देवताओं ने देखा कि भगवान गणेश विवाह स्थल दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब सभी देवतागण मिलकर आपस में चर्चा करने लगे कि क्या बात है गणेशजी को नहीं न्योता नहीं दिया गया है कि या स्वयं भगवान गणेश ही नहीं आए हैं?

सभी देवताओं को इस बात को लेकर इस बात को लेकर आश्चर्य होने लगा। सभी देवताओं ने विचार कर भगवान विष्णु से भगवान गणेश के नहीं आने का कारण पूछा।

विष्णु भगवान ने देवताओं के पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश के पिताश्री भोलेनाथ को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिताश्री के साथ आना चाहते तो आ सकतें हैं। अलग से न्योता देने की कोई जरूरत नहीं है। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन बेंसन से बने लड्डू का भोजन भगवान गणेश को दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आना चाहते तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा भोजन कराना ठीक नहीं लगता।

भगवान विष्णु इस बिंदु पर बात कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया। गणेश भगवान अगर आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे। आपके घर की रखवाली करने के लिए। भगवान गणेश की आने पर देवताओं ने कहा कि आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे, तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। देवताओं की ओर से दिए गए सुझाव पर कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों ने अपनी सहमति दे दिए। देवताओं के सुझाव भगवान विष्णु को पसंद आया। उन्होंने अपनी ओर से बारात में गणेशजी को चलने की सहमति दे दी।

नारद ने भड़काया गणेश को

बारात गाजे-बाजे के साथ विवाह समारोह की ओर कूच कर गया। बारात जाने के बाद नारदजी ने देखा कि गणेश भगवान महल के दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं। नारदजी गणेश जी के पास गए और दरवाजे पर बैठे रहने का कारण पूछा। गणेश जी कहा कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत ज्यादा अपमान किया है।

नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को बारात से आगे भेज दें। मूषक सेना बारात जाने वाले रास्तें में बड़े-बड़े गड्ढे खोद दें जिससे उनके रथ धरती में धंस जाएंगे, तब ही आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।

गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और मूषक सेना ने जमीन में बड़े-बड़े गड्ढे खोद दिया। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करने के बाद भी गड्ढे से पहिए नहीं निकल पाए। सभी देवताओं ने अपने-अपने उपाय लगाएं, परंतु पहिए नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से पहिए टूट गए। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।

नारद जी ने कहा- आप देवताओं ने भगवान गणेश का घोर अपमान करके बुरा किया है। यदि भगवान गणेश को मनाकर लाना होगा। तब ही जाकर आप लोगों का कार्य सिद्ध हो सकता है और आयी बला टल सकती है। शंकर भगवान ने अपने विश्वासी दूत नंदी को भेजा और वे भगवान गणेश को लेकर आए। भगवान गणेश को पूरी निष्ठा और आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया तब जाकर रथ के पहिए निकले। गड्ढे से रथ के पहिए निकला गया सभी टूटे-फूटे थे, तो उन्हें कौन बनाएगा?

गणेश की कृपा से बारात पहुंची समारोह में

जहां रथ के पहिए धसा हुआ था वहीं पर स्थित खेत में एक बड़ही काम कर रहा था। देवताओं ने उसे बुलाया और अपना दुखड़ा सुनाया। बड़ही अपना कार्य करने के पहले 'श्री गणेशाय नम:' कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते बड़ही ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।

तब बड़ही ने कहा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी की पूजन नहीं की होगी। इसीलिए तो आप लोगों के ऊपर यह संकट आया है। हम तो मूर्ख और अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजा कर उनका ध्यान करते हैं। इसके बाद ही कोई काम शुरू करते हैं। आप लोग तो ज्ञानी और देवतागण हैं, फिर भी आप लोग भगवान गणेश को कैसे भूल गए ?

अब आप लोग भगवान गणेश की पूजा-अर्चना कर जयकारा बोलिए तब आपके सब काम पूर्ण हो जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और भगवान विष्णु का विवाह माता लक्ष्मी जी के साथ विधि विधान और वैदिक मंत्रों के बीच पूर्ण हुआ। बारात सकुशल विष्णु लोक लौट आया।

संकष्ट चतुर्थी व्रत की चारों पौराणिक कथा, संपूर्ण विधि और शुभ-अशुभ मुहूर्त विस्तार से दिया गया है। आपको कैसा लगा यह जरूर कमेंट बॉक्स में कमेंट करके दें।

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