वेदव्यास के जयंती ही है गुरु पूर्णिमा महोत्सव 2021


आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। इसी दिन वेद और पुराण के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।

 गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु का आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीनें तक परिव्राजक (चतुर्मास) का आयोजन किया जाता है। 


इस आयोजन में साधु-संत एक ही स्थान पर आकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीनों में मौसम की दृष्टि से सबसे श्रेष्ठ होतें हैं। इन महीनों में न अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।

 इन महीनों में सूर्य के ताप से भूमि को बरसात से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है। वैसे ही गुरु चरणों उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति मिलती है।

यह दिन महाभारत के रचयिता गुरु और महर्षि वेदव्यास का जन्मदिन है। वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी। इस कारण उनका नाम वेदव्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्ति काल के संत घीसा दास का भी जन्म इसी दिन हुआ था। वह कबीर दास के शिष्य थे।



गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परंपरा है। जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने तथा बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक (रुपए) खर्च के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार होना है। गुरु पूर्णिमा भारत, नेपाल और भूटान में हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयाई उत्सव के रूप में मनाते हैं। हिंदू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों और अध्यापकों का सम्मान कर उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है।


वेदव्यास के जन्म कथा


पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में  सुधन्धा नाम के एक राजा थे। एक दिन शिकार करने के लिए वन गए थे। वन जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवा दिया।

 समाचार पाकर राजा सुधन्धा ने वीर्य निकालकर एक दोना में रखकर पंछी को दे दिया। पक्षी दोना को राजा की पत्नी के पास पहुंचाने के लिए आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरे शिकारी पक्षी मिल गया। दोनों पक्षियों में घमासान युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान उक्त दोना जिसमें वीर्य रखा था पक्षी के पंजे से छूटकर यमुना नदी में जा गिरा।

 यमुना में ब्रह्मा के श्राप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली दोना से बहते हुए वीर्य को निकल गई। तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। एक दिन निषाद ने मछली को अपने जाल में फंसा लिया। मछली के पेट फाड़ने के बाद एक बालक और एक बालिका निकली। 

बालक को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। राजा को कोई पुत्र नहीं होने के कारण नौनिहाल को अपने पास रख लिया। जिसका नाम मत्स्यराज हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई। उसका नाम मत्स्यगंधा रखा गया। क्योंकि उसके शरीर से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर नाव खेवने की काम करने लगीं।


 एक बार पाराशर मुनि को उक्त नाव पर बैठकर यमुना नदी पर करने का मौका मिला। पाराशर मुनि सत्यवती की रूप रंग और सौंदर्य को देखकर मोहित हो गए और बोले देवी हम तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूं। सत्यवती ने कहा कि यह संभव नहीं है। कारण आप ब्रह्मज्ञानी है और मैं निषाद कन्या हूं। हमारा सहवास संभव नहीं है। तब पाराशर मुनि कहें कि तुम चिंता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुंवारी ही रहोगी।


 इतना कहकर उन्होंने अपने योग बल से चारों ओर घने कोहरे फैला दिया और सत्यवती के साथ संभोग किया। इसके बाद उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो तुम्हारे शरीर से मछली की गंध निकलती है वह सुगंध में परिवर्तित हो जाएगी।

समय आने पर उसकी गर्भ से  वेद व्यास का जन्म हुआ। जन्म होती वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला माता तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे याद करोगी मैं उपस्थित हो जाऊंगा। इतना कहकर वेदव्यास तपस्या करने के लिए द्वैपायन द्वीप चले गए।

 द्वैपायन द्वीप पर उन्होंने घोर तपस्या करने से उनके शरीर का रंग काला होने के कारण वेदव्यास को कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। आगे चलकर वेदों का विभाजन करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुए।


हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार महर्षि वेदव्यास त्रिकालदर्शी थे। तथा उन्हें दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलयुग में धर्म क्षीण हो जाएगा। धर्म के क्षीण हो जाने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्य हीना और अल्प आयु वाले हो जाएंगे। एक विशाल वेद का अध्ययन करने में असमर्थ होंगे।

 इसलिए महर्षि वेदव्यास ने वेद को चार भागों में विभाजित कर दिया है। जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरण शक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने उसका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद रखा।

 वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुए। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को पढ़ाया। 


 वेद में कठिन ज्ञान के अत्यंत गूढ़ और शुष्क होने के कारण उन्होंने वेद के रूप में पुराणों की रचनाओं की जिसमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में प्रकाशित कराया।


पुराणों को उन्होंने अपने शिष्यों रोम हर्षण को पढ़ाया। व्यास जी के शिष्य ने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उनके रचित वेदों को अनेक शाखाएं और उप शाखाओं में बदल दी।

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