उत्पन्ना एकादशी व्रत 30 नवंबर 2021, दिन मंगलवार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाएगा।
पंचांग के अनुसार जानें उत्पन्ना एकादशी में कैसा रहेगा दिन
पंचांग के अनुसार जानें शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार जानें का अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ और अशुभ मुहूर्त, जानें दिन और रात का
चारों पहर में कब करें पूजा, जानें विस्तार से
उत्पन्ना एकादशी व्रत करने का विधान
व्रत करने का कैसे लें संकल्प, जानें पूरी विधि
जानें पूजा सामग्रियों की सूची
पूजा कर भोग लगा, लोगों के बीच करें वितरण
उत्पन्ना एकादशी के संबंध में जानें पौराणिक कथा
युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कैसे करें व्रत
एकादशी के दिन शुद्धता पर रखें ध्यान
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का ले संकल्प
रात्रि समय दीप दान करना शुभ
पुण्य का पारा बढ़ा देता है उत्पन्ना एकादशी
अश्वमेध यज्ञ से दो सौ गुना फल देता है व्रत
मुर राक्षस के भय से भागें देवतागण
निर्जला व्रत रखना सर्वश्रेष्ठ
श्रीहरि ने राक्षसों से रक्षा करने का वचन दिया
देवताओं ने की श्री विष्णु का गुणगान
श्रीहरि ने पूछा राक्षस मुर की जानकारी
राक्षस नाड़ीजंघ का पुत्र है मुर
हजारों वर्षों तक चला युद्ध
भगवान विष्णु के तेज से पैदा हुई एकादशी मां
कथा पढ़ना और सुनना दोनों पुण्य का कार्य
( इन सभी प्रश्नों का उत्तर विस्तार सेे लिखा गया है नीचे ? आवश्य पढ़ें। )मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि जो 29 नवंबर को सुबह 4:00 बज के 13 मिनट से शुरू होकर 30 नवंबर को मध्य रात्रि 2:13 बजे तक रहेगा।
उत्पन्ना एकादशी के दिन नक्षत्र हस्त रात 8:00 बज के 34 मिनट तक रहेगा। प्रथम करण बव दिन के 3:19 बजे तक रहेगा। द्वितीय कलण बालम है। योग आयुष्मान है। रात 12: 03 बजे तक है।
आनंदादि योग रात 9:00 बज के 34 मिनट तक सौम्य रहेगा, इसके बाद ध्वांक्ष हो जाएगा। होमाहुति राहु रात 8:34 बजे तक इसके बाद केतु है। दिशाशूल उत्तर, राहुवास पश्चिम, अग्निवास पाताल रात 1:13 बजे तक इसके बाद पृथ्वी हो जाएगा। चंदवास दक्षिण है।
विजय मुहूर्त दिन के 1:30 बजे से लेकर 2:36 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 5:13 बजे से लेकर 5:37 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 5:24 बजे से लेकर 6:45 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:43 बजे से लेकर 12:37 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:08 बजे से लेकर 6:02 बजे तक और प्रातः सांध्य मुहूर्त सुबह 5:35 बजे से लेकर 6:56 बजे तक रहेगा।
उत्पन्ना एकादशी के दिन पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त का आगमन सुबह 9:33 बजे से लेकर 10:51 बजे तक यमगण्ड काल के रूप में होगा। उसी प्रकार गुलिक काल दिन के 12:10 बजे से लेकर 1:28 बजे तक, राहुकाल 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक, दुर्मुहुर्त काल सुबह 9:01 बजे से लेकर 9:43 बजे तक और रात 10:49 से लेकर 11:00 बज के 43 मिनट तक रहेगा। सुबह 3:49 से लेकर 4:47 तक वज्य काल है।
उत्पन्ना एकादशी के दिन शुभ मुहूर्त सुबह 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक चर मुहूर्त के रूप में है। उसी प्रकार 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक लाभ मुहूर्त, 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक अमृत मुहूर्त और शाम 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।
उत्पन्न एकादशी के दिन अशुभ मुहूर्त का शुभारंभ सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 के बीच रोग मुहूर्त के रूप में रहेगा। उद्वेग मुहूर्त सुबह 7:30 से लेकर 9:00 तक, काल मुहूर्त दिन के 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक है। एक बार फिर से रोग मुहूर्त 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रहेगा।
शाम प 7:30 से लेकर 9:00 बजे तक लाभ मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक शुभ मुहूर्त, 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक अमृत मुहूर्त और 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा।
एकादशी के दिन रात का अशुभ मुहूर्त शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक काल मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक उद्वेग मुहूर्त, रात 3:00 बजे से लेकर सुबह 4:30 बजे तक रोग मुहूर्त और 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक काल मुहूर्त का आगमन रहेगा।
एकादशी व्रत करने वाले व्रतधारियों को चारों पहर पूजा करने का विधान है। रात्रि जागरण के अलावा सुबह, शाम, रात और अहले सुबह पूजा करनी चाहिए। किस पहर में कब करें पूजा, जानें पंचांग और चौघड़िया पंचांग के अनुसार।
सुबह और दोपहर- उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह 9:00 से लेकर 10:30 बजे तक चर मुहूर्त, 10:30 बजेेे से ले 12:00 बजे तक लाभ मुहूर्त और 12:00 बजे सेेेेे लेकर 01:30 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। शाम 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। इस बीच कभी भी आप पहले पहर की पूजा कर सकते हैं।
शाम-- उत्पन्ना एकादशी के शाम 5:00 बज के 24 मिनट पर सूर्यास्त हो जायेगा। इसके बाद पूजा अर्चना कर सकते हैं। शाम 5:24 बजे से लेकर 6:45 बजे तक सायाह्य सांध्य मुहूर्त और शाम 5:00 बज के 13 मिनट सेेे लेकर 5:00 बज 37 मिनट तक गोधूलि मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक लाभ मुहूर्त है। इस दौरान संध्या का पूजा व्रतधारी कर सकते हैं।
रात्रि-- रात्रि बेला पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। निशिता मुहूर्त रात 11:00 बज के 43 मिनट से लेकर 12:37 मिनट तक, शुभ मुहूर्त रात 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक और अमृत मुहूर्त 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान रात्रि पहर की पूजा कर सकते हैं।
प्रातः-- सुबह समय 5:08 बजे से लेकर 6:02 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त है। उसी प्रकार प्रातः सांध्य मुहूर्त सुबह 5:35 बजे से लेकर 6:56 बजे तक और चर मुहूर्त 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रहेगा। चौथे पहर के पूजा करने के बाद बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने के उपरांत व्रतधारी पारण कर सकते हैं।
उत्पन्ना एकादशी व्रत के दिन भगवान श्रीहरि का पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी व्रत करना चाहता है उसे व्रत के एक दिन पहले अर्थात दशमी के दिन एक बार ही शाकाहारी भोजन व्रतधारियों को करनी चाहिए।
एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर धूप, मौसमी फल, घी एवं पंचामृत आदि से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। उत्पन्ना एकादशी की रात सोना नहीं चाहिए बल्कि भगवान विष्णु का भजन कीर्तन एवं सहस्त्रनाम का जाप करना चाहिए। रात्रि जागरण करना व्रतधारियों के लिए काफी शुभ और अमृत तुल्य होता है।
द्वादशी अर्थात पारन के दिन भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन कर उपवास खोलिए। साथ ही बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद भी लेना चाहिए।
पूजा सामग्री के रूप में भगवान विष्णु के स्नान कराने के लिए तांबे या पीतल का पात्र,
तांबे या पीतल का लोटा,
जल का कलश, दूध,
भगवान विष्णु को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र और आभूषण, चावल,
कुमकुम, दीपक, जनेऊ, तिल, फूल,
अष्टगंध, तुलसीदाल,
प्रसाद बनाने के लिए गेहूं के आटे की पंजीरी,
फल, धूप, मिठाई नारियल, मधु, गंगा जल,
सूखे मेवे, गुड़ और पान के पत्ते
और अंत में ब्राह्मणों को दक्षिणा देने के लिए पैसे रख लें।
उत्पन्ना एकादशी व्रत की कथा भगवान श्री कृष्ण के बाद सूतजी ने ऋषियों को सुनाई थी। उन्होंने व्रत का वृत्तांत और उत्पत्ति के संबंध में कहा कि प्राचीनकाल में भगवान कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से कही थी।
एक दिन युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि एकादशी व्रत करने का क्या है विधि और क्या फल प्राप्त होगा। उपवास के दिन कौन सी क्रिया की जाती है। कृपा करके आप मुझसे बताइए। उत्पन्ना एकादशी के संबंध में श्रीकृष्ण कहा कि युधिष्ठिर सुनो मैं तुम्हें एकादशी के व्रत का माहात्म्य बताता हूं।
हेमंत ऋतु के मार्गशीर्ष (अगहन) मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। एकादशी के दिन व्रत को आरंभ किया जाता है। दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से आम के दातुन पूरी तरह साफ करें ताकि अन्न का एक भी दाना मुंह में न रह जाए।
रात्रि को भोजन भुलाकर भी न करें। अधिक बात न करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। व्रतधारियों को चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी, हत्यारा, निंदक, कपटी, मिथ्याभाषी सहित अन्य किसी से किसी भी प्रकार से बात न करें।
स्नान कर नया वस्त्र पहनने के उपरांत धूप, दीप, नैवेद्य, मौसमी फल, मिठाई, खीर शहद, दूध, घी सहित अन्य सोलह तरह के चीजों से भगवान श्रीहरि का पूजन करें। रात को दीपदान करें। रात्रि में सोना या प्रयास न करते हुए सारी रात भजन-कीर्तन, पूजन और प्रवचन करना चाहिए। आप से पहले जो कुछ जाने-अनजाने में पाप हो गए हैं उन पापों के लिए श्रीहरि से क्षमा मांग लें। व्रतधारियों को कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले सभी एकादशियों को एक तरह समझना चाहिए।
जो मनुष्य विधि पूर्वक और चीत मन से उत्पन्ना एकादशी का व्रत करता है। वैसे लोग तीर्थों में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह उत्पन्ना एकादशी व्रत के सोलहवें भाग के बराबर नहीं है। संक्रांति से पांच लाख गुना तथा सूर्य-चंद्र ग्रहण में स्नान-दान और पूजन से जो पुण्य प्राप्त होता है। उसी प्रकार का पुण्य एकादशी के दिन व्रत और पूजन करने से मिलता है।
अश्वमेध यज्ञ करने से दो सौ गुना तथा एक लाख से अधिक तपस्वियों को साठ वर्ष तक भोजन कराने से ग्यारह गुना, दस ब्राह्मणों अथवा सौ ब्रह्मचारियों को भोजन कराने से हजारों गुना पुण्य भूमिदान करने से होता है। उससे हजार गुना पुण्य कन्यादान से प्राप्त होता है। इससे भी दस गुना पुण्य विद्यादान करने से होता है।
विद्यादान से दस गुना पुण्य भूखे और प्यासे को भोजन कराने और पानी पिलाने से होता है। अन्नदान के समान इस संसार में कोई ऐसा दूसरा दान नहीं जिससे देवता और पितर दोनों संयुक्त रूप से तृप्त होते हों परंतु एकादशी के व्रत का पुण्य सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान से अधिक मिलता है।
एकादशी व्रत करने से हजारों यज्ञ करने से भी अधिक फल प्राप्त होता है। इस व्रत करने से जो प्रभाव हमें मिलता है देवताओं के लिए दुर्लभ है। रात और दिन में एक बार भोजन करने वाले को भी व्रत करने का आधा ही फल प्राप्त होता है। जबकि निर्जल व्रत रखने वाले व्रतधारियों का तुलना देवता भी नहीं कर सकते हैं।
युधिष्ठिर कहने लगे कि भगवान विष्णु आपने हजारों यज्ञ और लाख गौदान को भी एकादशी व्रत के बराबर नहीं बताया है। आप हमको बताइए कि एकादशी तिथि सभी तिथियों से श्रेष्ठ कैसे हुई, हमें बताइए।
भगवन कहने लगे- हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, सूर्य, वसु, वायु, अग्नि, जल आदि सभी देवताओं को पराजित कर उन्हें छिपने पर मजबूर कर दिया। तब इंद्र सहित अन्य देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता पृथ्वी लोक में मारें मारे फिर रहे हैं। देवताओं के दुःख भरी बातें सुनकर भगवान शिव ने कहा कि सूनों सभी देवताओं, तीनों लोकों के प्रभु, भक्तों के दु:खों का दूर करने वाले भगवान श्रीहरि की शरण में जाओ।
भगवान विष्णु ही आप लोगों के दु:खों को दूर कर सकते हैं। शिवजी के ऐसे कथन सुनकर सभी देवतागण क्षीरसागर पहुंच गए। वहां भगवान श्रीहरि को शयन करते देख इन्द्र ने हाथ जोड़कर उनकी वीरता का गान करने लगे और कहा कि आप हम देवताओं की रक्षा करें। दैत्य राजा से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं।
आप इस संसार के कर्ताधर्ता है, हमारे माता-पिता है, उत्पत्ति और पालनकर्ता है और संहार करने वाले हैं। सबको शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश और पाताल सहित पूरे ब्रह्मांड भी आप ही हैं। सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, जल, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता, जीवन, मरन भी आप ही हैं। आप सर्वव्यापक और सर्वश्रेष्ठ हैं।
हे भगवन् श्रीहरि दैत्यों ने हम लोगों को जीतकर स्वर्ग को भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे और मारे-मारे फिर रहे हैं।आप दैत्य राजा से हम सबकी रक्षा करें।
इंद्र सहित अन्य देवताओं के ऐसे बात सुनकर भगवान श्रीहरि कहने लगे कि हे इंद्र! बताओ ऐसा कौन मायावी दैत्य पैदा हुआ है जिसने सभी देवताअओं पर विजय प्राप्त कर लिया है। उस दैत्य का नाम क्या है, उस दैत्य में कितना बल है और उसको किसने आश्रय में है तथा उसका रहने का स्थान कहां है। सभी तरह की जानकारी मुझसे साझा करों।
भगवान विष्णु के इस प्रकार के वचन सुनकर इंद्र बोले प्रभु प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था। उसके महापराक्रमी और महाअत्याचारी मुर नाम का एक पुत्र हुआ। वह चंद्रावती नगरी में रहकर राज्य करता था। उस ने स्वर्ग से सभी देवताअओं खदेड़कर वहां अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, सूर्य, काल, शनिदेव आदि देवताओं स्थान पर अधिकार कर लिया और यज्ञों में मिलने वाले आहूति भी स्वयं ग्रहण करने लगा।
इन्द्र के दुःख भरे शब्दों को सुनकर भगवान विष्णु बोले अब उस राक्षस का नाश होगा। सभी लोग हमारे साथ चंद्रावती नगर के लिए प्रस्थान करें। दानवों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। भगवान विष्णु पर वाणों का प्रहार दानवों ने करना शुरू कर दिया। भगवान विष्णु ने भी राक्षस मुर को मारने के लिए वाण चलाने लगे।
भगवान विष्णु राक्षस को मारने के लिए जो भी बाण चलाते हैं वह बाण फूल बनकर उस पर बरसने लगती थी। भगवान विष्णु और राक्षस मुर के बीच हजारों वर्षों तक युद्ध चलता रहा परंतु भगवान विष्णु मुर को मार नहीं सके।
अंत में थक हार कर भगवान विष्णु बद्रीनाथ के गुफा में विश्राम करने के लिए चले गए। वह हेमवती नामक मनमोहक और अद्वितीय गुफा था। उस गुफा में भगवान श्रीहरि चीर निद्रा में सो गए। मुर राक्षस ने भगवान विष्णु को गुफा में सोए हुए देखा तो मारने के लिए तैयारी करने लगा।
उसी समय श्रीहरि के शरीर से तेजस्वी सफेद रंग वाली और कांतिमय रूप वाली एक विशाल देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को मौत के घाट उतार दिया। श्रीहरि जब योग निद्रा से जागे तो उस देवी को देखकर बोले देवी तुम्हारा जन्म एकादशी के दिन हुआ है इसलिए तुम्हारा नाम उत्पन्ना एकादशी होगा। और तुम समस्त लोकों में पूजे जाओग।
हे युधिष्ठिर मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य आपको कहा सुनाया, जो मनुष्य इस व्रत को पूरी निष्ठा पूर्वक करते हैं, उनके ब्रह्म हत्या, अकाल मृत्यु सहित समस्त पाप खत्म हो जाते हैं। प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों ही एकादशियां एक समान हैं, इनमें किसी प्रकार का कोई मतभेद और भेदभाव नहीं है। दोनों पक्षों की एकादशियों एक समान फल देती हैं।