भगवान विश्वकर्मा जन्म की कथा वेद और पुराणों पर आधारित। विश्वकर्मा के 5 पुत्र थे। जगत में विश्वकर्मा के 5 रूप जाने जाते हैं। भगवान विश्वकर्मा ने द्वारिका, लंका, स्वर्गलोक, बज्र और हस्तिनापुर का निर्माण किया था।
निर्माण के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 सितंबर को है। ब्रह्मांड का पहला इंजीनियर कहें जानें वाले भगवान विश्वकर्मा तीनों लोकों का निर्माणकर्ता है।
भगवान विश्वकर्मा जन्म की कथा वेद और पुराणों पर आधारित
भगवान विश्वकर्मा महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी। वह अष्टम बसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उसी से संपूर्ण शिल्प (निर्माण) विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं-कहीं बृहस्पति की बहन को योगसिद्धि और वरस्त्री नाम से भी जाना जाता है।
अब जानें वेदों में भगवान विश्वकर्मा जन्म के संबंध में क्या लिखा है
परंतु महाभारत सहित अधिकांश पुराणों में प्रभास पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं। स्कंद पुराण में प्रभात खंड में यह स्लोक दिया गया है, जो प्रमाणित करता है कि प्रभास के पुत्र भगवान विश्वकर्मा थे।
बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी
प्रभासस्यं तस्य भार्या बसुनामष्टमस्य च
विश्वकर्मा सुतस्तस्य शिल्पकर्ता प्रजापति।
भगवान विश्वकर्मा के 5 पुत्र थे
भगवान विश्वकर्मा के 5 पुत्र थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पांचों पुत्र अपने क्षेत्र में दक्ष थे। भगवान विश्वकर्मा के प्रथम पुत्र मनु थे, जो लोहा के औजार बनाने में कुशल थे। दूसरा पुत्र मय थे, जो काष्ठ अर्थात लकड़ी के सामान बनाने में निपुण थे। तीसरे पुत्र स्वष्ठा थे जो तांबा और कांस्य के वस्तु बनाने में पारांगत हासिल किए थे। चौथा पुत्र शिल्पी थे जो पाषाण अर्थात पत्थर के समान बनाने में और पांचवां पुत्र दैवज्ञ थे, जो सोना चांदी के आभूषण बनाने में दक्ष थे।
भगवान विश्वकर्मा के पांच स्वरूप है
भगवान विश्वकर्मा दो बाहु चार बाहु और दस बाहु के होते हैं। उसी प्रकार एक मुख, चार मुख और पंचमुखी प्रतिमा भगवान विश्वकर्मा की जगत में मिलती है।
भगवान विश्वकर्मा की लीला और पुत्र प्राप्ति कथा
भगवान विश्वकर्मा की महता स्थापित करने वाली एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार वाराणसी में धर्म पर चलने वाला पुरुष रथकार अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। वह रथकार वस्तु कला में निपुण था। परंतु गरीब होने के कारण विभिन्न स्थानों में घूम घूम कर कार्य करता था। बहुत अधिक मेहनत करने के बाद भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था।
पति की तरह ही पत्नी पुत्र ना होने के कारण चिंतित कहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए पति और पत्नी ने हर तरह का प्रयास किया। साधु संत के यहां निहोरा लगाएं परंतु इच्छा पुरी नहीं हुई। अचानक एक दिन पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ। तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। अमस्या तिथि को भगवान विश्वकर्मा की महिमा सुनो। ब्राह्मण की बात सुनकर उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की विधि विधान से पूजा अर्चना कर उनकी महात्म्य सुनी।
पूजा के उपरांत उन्हें धन धन्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुुई। दोनों सुखी जीवन बिताने लगे। भगवान विश्वकर्मा की महिमा का कोई अंत नहीं है। इसलिए आज विश्व भर के लोग भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाकर पूरी आस्था रखते हैं।
पूजा सामग्री की सूची
भगवान विश्वकर्मा की पूजन करने के लिए निम्नलिखित सामानों की जरूरत भक्तों को पड़ेगी।
भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर, रोली, सिंदूर, अबीर, चंदन पाउडर, हल्दी का चूर्ण, इत्र, पीला सरसों, अक्षत, सुपारी, पान का पत्ता, फूल और माला, तुलसी पत्ता, धूपबत्ती, कच्चा सूत, रुई, कपूर, गुड़ का बतासा, मौसमी फल, नारियल, पंचामृत (दूध, दही, मधु, घी और गुड़) पंचगव्य (गोबर, गोमूत्र, दही, दूध और घी) गंगाजल, सात तरह का आनाज, मिट्टी का कलश, दीया, आम का पत्ता, केला का पत्ता, गरुड़ा, लाल कपड़ा और हवन की सामग्री।
कैसे करें भगवान विश्वकर्मा की पूजा
भगवान विश्वकर्मा की पूजा विशेष विधि विधान से होता है। पूजा करने के पूर्व कर्ता को स्नानादि और नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पत्नी सहित पूजा स्थल पर बैठे। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें। तदुपरांत हाथ को गंगाजल से पवित्र कर पुष्प और अक्षत लेकर मंत्र उच्चारण करते हुए चारों ओर छिड़के।पीला सरसों लेकर दिग्बंधन अर्थात गठबंधन करें। साड़ी के पल्लू और गमछा के पल्लू में सरसों देकर उसे बांधे।
पुष्प और अक्षत पात्र में छोड़ें। दीप जलाएं। जल पैसा, सुपारी और अक्षत हाथ में लेकर संकल्प करें। गोबर से लीपे हुए भूमि पर चावल के घोल से अष्ट कमल बनाएं। उस स्थान पर सात तरह के अनाज रखें। कलश स्थापित करें। कलश में तांबे या पीतल का लोटा से जल डालें। जल में सुपारी पैसा और अक्षत डालकर कपड़े से ढक दें। चावल से भरा पात्र को आम के पत्ता डालकर उस पर नारियल रख दें।
उसी स्थान के पीछे चावल रखकर उस पर भगवान विश्वकर्मा को स्थापित करें और वरुण देवता को आह्वान करें। हाथ जोड़कर आंख बंद करना कहना चाहिए हे भगवान विश्वकर्मा इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार करें। पूजा के उपरांत औजारों का पूजा करें और अंत में हवन करें।
जानें पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा विश्वकर्मा पूजा का दिन
विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर, दिन शुक्रवार, तिथि एकादशी सुबह 8:00 बज के 7:00 मिनट तक इसके बाद द्वादशी तिथि प्रारंभ हो जाएगा। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के दिन नक्षत्र श्रवण रात 2:36 बजे तक, प्रथम करण विष्टि (भद्रा), द्वितीय करण बव, योग अतिगण्ड, सूर्योदय 6:07 बजे पर और सूर्यास्त 6:00 बज के 24 मिनट में होगा। चंद्रोदय शाम 4:25 बजे पर और चंद्र अस्त रात 3:12 बजे में होगा।
सूर्य कन्या राशि में, चंद्रमा मकर राशि में और आयन दक्षिणायन है। ऋतु शरद है। दिनमान 12 घंटा 16 मिनट का और रात्रिमान 11 घंटा 43 मिनट का रहेगा।
आनंदादि योग ध्रूम रात 3:00 बज के 36 मिनट तक इसके बाद धाता हो जायेगा। होमाहुति शनि, दिशाशूल पश्चिम, राहुवास दक्षिण पूर्व, अग्निवास पाताल सुबह 8:07 बजे तक, इसके बाद पृथ्वी हो जायेगा।चंद्रवास दक्षिण रहेगा।
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:51 से लेकर 12:40 तक रहेगा।
विश्वकर्मा पूजा के दिन पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त का शुभारंभ विजय मुहूर्त के रूप में दिन के 2:18 बजे से लेकर 3:07 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार गोधूलि मुहूर्त 6:11 बजे से लेकर 6:35 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त शाम 6:24 बजे से लेकर 7:30 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात्रि 11:52 से लेकर 12:00 बज कर 39 मिनट तक रहेगा। ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:34 बजे से लेकर 5:21 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त 4:57 बजे से लेकर 6:07 बजे तक रहेगा।
अशुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा पूजा के दिन अशुभ मुहूर्त का शुभारंभ 7:39 बजे से लेकर 9:11 बजे तक गुलिक काल के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक राहुकाल, 3:20 बजे से लेकर 4:52 बजे तक यमगण्ड काल, दुर्मुहूर्त काल सुबह 8:34 बजे से लेकर 9:30 बजे तक और दोपहर 12:40 बजे से लेकर 1:29 बजे तक रहेगा। वज्य काल सुबह 8:30 बजे से लेकर 9:37 बजे तक और भद्रा सुबह 8:07 बजे के बाद समाप्त हो जाएगा।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
विश्वकर्मा पूजा के दिन चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त का शुभारंभ सुबह 6:00 बजे से 7:30 बजे तक चर मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 7:30 बजे से 9:00 बजे तक लाभ मुहूर्त, 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक अमृत मुहूर्त, दोपहर 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। शाम को 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा करना काफी शुभ रहेगा।
चौघड़िया के अनुसार अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक काल मुहूर्त, 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक रोग मुहूर्त और 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा करना वर्जित है।
रात्रि पूजा करने का चौघड़िया शुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार विश्वकर्मा पूजा के दिन रात में 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार रात 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक शुभ मुहूर्त, 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक अमृत मुहूर्त और 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक चर मुहूर्त हो जाएगा। इस दौरान पूजा अर्चना कर सकते हैं।
रात्रि का अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार रात्रि का अशुभ मुहूर्त शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक रोग मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक काल मुहूर्त, रात 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त और सुबह 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रोग मुहूर्त रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित होगा।