जानें सस्तें में कैसे करें पिंडदान श्राद्ध

हिंदु धर्म में उल्लेखित ईश्वर प्राप्ति के मूलभूत सिद्धांतों में से एक सिद्धांत ‘देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण एवं समाज ऋण होता है। इन चार ऋणों को चुकाना है। इनमें से पितृ ऋण चुकाने के लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है।


माता-पिता तथा अन्य निकटवर्ती संबंधियों की मृत्योपरांत, उनकी आगे की यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद् गति  प्राप्त हो, इस उद्देश्य से किया जानेवाला संस्कार को ‘श्राद्ध’ कर्म कहते हैं।



पितृपक्ष के काल में कुल के सभी पूर्वज अन्न एवं जल (पानी) की अपेक्षा लेकर अपने वंशजों के द्वार पर आते हैं। पितृपक्ष के दिनों में पूर्वज पितृलोक से पृथ्वीलोक के सबसे निकट आपके द्वार पर आ जाते है। आपके द्वारा पूर्वजों को दिए जाने वाले अन्न, जल, तिल और पिंडदान उन तक जल्दी पहुंचते हैं ।


पिंडदान से संतुष्ट होकर हमारे पूर्वज आशीर्वाद और स्नेह देते हैं। श्रद्धा पूर्वक पिंडदान करने से पितृदोष का निवारण होता है। जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होकर, पूर्वजों से हर तरह की सहायता मिलती है।


अगर कोई व्यक्ति गया धाम जाकर श्राद्ध करने में असमर्थ है और निर्धन है। तो उसके लिए भी तीन तरह का श्राद्ध हमारे विधान में लिखा है। कम खर्च में अपने पितरों को मुक्ति प्रदान किया जा सकता है।


आम श्राद्ध करना


संकटकाल में, पत्नी के अभाव में, तीर्थस्थान पर और संक्रांति के दिन आम श्राद्ध करना चाहिए। यह ऋषि कात्यायन का वचन है । कुछ कारण वश पूरा श्राद्ध विधि करना संभव न हो, तो संकल्प पूर्वक ‘आम (साधारण) श्राद्ध’ करना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार अनाज, चावल, तेल, घी, चीनी, अदरक, नारियल, एक सुपारी, दो बीडे के पत्ते, एक सिक्का आदि सामग्री बरतन में रखें । ‘


आमान्नस्थित श्री महाविष्णवे नमः नाम मंत्र बोलते हुए उस पर गंध, अक्षत, फूल और तुलसी का पत्ता एक साथ समर्पित करें। यह सामग्री किसी पुरोहित को दें। पुरोहित उपलब्ध न हो, तो धर्मशाला, गोशाला अथवा मंदिर में दान दें। 


हिरण्य श्राद्ध’ करना


उक्त प्रकार से करना भी संभव नहीं हुआ, तो संकल्पूर्वक ‘हिरण्य श्राद्ध’ करना चाहिए अर्थात अपनी क्षमता के अनुसार एक बरतन में व्यावहारिक द्रव्य (पैसे) रखें । ‘हिरण्य स्थित श्री महाविष्णवे नमः अथवा ‘द्रव्यस्थित श्री महाविष्णवे नमः बोलकर उस पर एकत्रित गंध, अक्षत, फूल और तुलसी का पत्ता समर्पित करें और उसके पश्‍चात उस धन को पुरोहित को अर्पण करें । पुरोहित उपलब्ध न हो, तो धर्मशाला, गौवंश पालक अथवा मंदिर को दान दें ।


गोग्रास श्राद्ध करना



जिनके लिए आम श्राद्ध और हिरण्य श्राद्ध करना संभव नहीं है, वे गोग्रास दें । जहां गोग्रास देना संभव न हो, वे निकट की गोशाला से संपर्क कर गोशाला में गोग्रास हेतु कुछ पैसे अर्पण करें ।


उक्त में से आम श्राद्ध, हिरण्य श्राद्ध अथवा गोग्रास समर्पित करने के उपरांत तिल अर्पित करें। पंचपात्र (तांबे का लोटा) में पानी लें। उसमें थोडे से काले तिल मिश्रित कर दें। इससे तिल और जल का मिश्रण बनता है। मिश्रण बनने पर मृत पूर्वजों के नाम लेकर दाहिने हाथ का अंगूठा और तर्जनी के मध्य से उन्हें तिल और जल का मिश्रण समर्पित करें । 


मृतक व्यक्ति का नाम ज्ञात न हो, परंतु वह व्यक्ति ज्ञात हो और वह हमारा पूर्वज है, तो उस व्यक्ति का स्मरण (ध्यान) कर तिल और जल का मिश्रण समर्पित करें । जिस समय इन सभी विधियां कर रहे हैं उस समय पुरोहित मंत्रोच्चारण करते हैं। पुरोहित के बताएं अनुसार हम कार्य करते रहे। पुरोहित अगर नहीं मिल रहा हों, तो इस लेख में दी गई जानकारी के अनुसार स्वयं भाव रखकर पिंडदान विधि सम्पन्न करें ।




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