
गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन चांद को देखना वर्जित है। शास्त्रों में कहा गया है की इस दिन चांद को देखने से चोरी का कलंक लगता है।
भगवान गणेश की प्रतिमा किस रंग, रूप और आकार की हो ? इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सही प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना करने पर सभी तरह के मनोकामना सिद्ध होती है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को धूमधाम से गणेश महोत्सव मनाया जाता है। इस बार 10 सितंबर दिन शुक्रवार को चतुर्थी तिथि है।
सनातन धर्म के अनुसार प्रथम पूज्य देवता गणेश भगवान हैं। हस्त नक्षत्र में पड़ने वाला चतुर्थी तिथि के दिन सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में रहेंगे।
चतुर्थी तिथि के रात चंद्रमा को देखना वर्जित है। इस दिन के रात को, जो भी लोग चंद्रमा का दर्शन करेंगे। उन्हें कलंक का भागी बनना पड़ेगा और चोरी का इल्जाम लग सकता है। इसलिए इस दिन चंद्रमा के दर्शन से लोगों को बचना चाहिए।
भगवान गणेश का जन्म चतुर्थी तिथि को दिन के मध्य में हुआ था। मां पार्वती की मैल से जन्मे भगवान गणेश प्रथम पूज्य देवता कहलाये।
कैसी होनी चाहिए गणेश की प्रतिमा
भगवान गणेशजी की प्रतिमा एक से लेकर दो फीट की होनी चाहिए । मूर्तिशास्त्र का ज्ञान नहीं होने के कारण लोग दस से लेकर बीस फीट की प्रतिमा बनाते हैं । ऐसी भव्य प्रतिमा की उचित देखभाल और विधिवत पूजन करना भी कठिन होता है। बड़े बड़े आकार के भगवान गणेश की प्रतिमा विसर्जन करते समय उसे ढकेला जाता है, इससे देवताका अनादर होता है।
धर्मशास्त्र के अनुसार गणेश भगवान की प्रतिमा को चिकनी मिट्टी से बनानी चाहिए। वह प्रदूषण के अनुकूल होती है। आज कल लोग ‘प्लास्टर ऑफ पैरिस’की प्रतिमा बनाते हैं। वह शीघ्र पानी में नहीं घुलती है। प्रतिमा के अवशेष पानी से बाहर आ जाने पर मूर्ति का अनादर होता है।
कागज की लुगदी से बनायी गयी प्रतिमा को न पूजें
शास्त्रानुसार चिकनी मिट्टी की मूर्ति में वातावरण में विद्यमान गणेश तरंगें आकर्षित करने की क्षमता अधिक होती है । वह क्षमता कागज में नहीं है। अर्थात साधकों को गणेश जी की तरंगों की पूजा करने से लाभ नहीं मिलेगा।
रासायनिक रंगों की प्रतिमा न लाकर प्राकृतिक रंगों का उपयोग की हुई प्रतिमा का पूजन करना चाहिए। मूर्ति रंगने के लिए रासायनिक रंगों का प्रयोग किया जाता है। धर्म शास्त्रा के अनुसार प्रकृतिक रंगों का प्रयोग करना चाहिए । जिससे मूर्ति विसर्जित करने पर उन रंगों के कारण प्रदूषण नहीं होगा।
गणेशजी की मूर्ति चित्र-विचित्र आकारों में न बनाकर उनका जो मूल रूप उसी रूप प्रतिमा का निर्माण करें। आजकल किसी भी आकार की मूर्ति बनाई जाती है। इस प्रकार के प्रतिमा की पूजा अर्चना करना वर्जित है।
जरा सोचें आप के अपने माता-पिताजी को अलग रूप रंग में दिखाया जाना आपको अच्छा लगेगा क्या ? भगवान गणेश जैसे मूल रूप में हैं, वैसी ही मूर्ति होनी चाहिए, तब ही भगवान गणेश की शक्ति उस मूर्ति में आएगी। लोगों को उस शक्ति से लाभ मिलेगा।
गणेश चतुर्दशी को कैसा रहेगा दिन जानें पंचांग के अनुसार
गणेश चतुर्दशी के दिन चतुर्थी तिथि रात 9:17 तक, पक्ष शुक्ल पक्ष, नक्षत्र चित्रा दिन 12:58 तक, प्रथम करण वणिज दिन 11:8 बजे तक, द्वितीय करण भद्रा, योग ब्रह्मा रहेगा।
सूर्योदय सुबह 6:04 बजे पर और सूर्यास्त 6:00 बज के 32 मिनट पर होगा। चंद्रोदय सुबह 9:12 बजे पर चंन्द्रास्त 8:53 पर है। सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा तुला राशि में रहेगा। आयन दक्षिणायन ऋतु शरद रहेगा। दिनमान 12 घंटा 28 मिनट और रात्रि मान 11 घंटा 31 मिनट का रहेगा।
आनन्दादि योग मुसल 12:58 तक इसके बाद गद, होमाहुति बुध, दिशाशूल पश्चिम, राहुवास दक्षिण पूर्व, अग्निवास पृथ्वी और चंद्रवास पश्चिम में रहेगा।
पंचांग के अनुसार पूजा करने का उचित मुहूर्त
चतुर्थी तिथि को अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:53 से लेकर 12:43 बजे तक है।
उसी प्रकार विजय मुहूर्त दिन के 2:23 बजे से लेकर 3:12 बजे तक और गोधूलि मुहूर्त शाम 6:20 से लेकर 6:44 तक रहेगा। सायाह्य सांध्य 6:32 बजे से लेकर 7:41 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:55 बजे से लेकर 12:41 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:32 बजे से लेकर 5:18 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त 4:55 से लेकर 6:04 तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना शुभ होगा।
भूलकर भी ना करें इस समय पूजा
गणेश चतुर्थी तिथि के दिन भूल कर भी राहुकाल, गुलिक काल और यमगण्ड काल में पूजा नहीं करनी चाहिए। राहु काल सुबह 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार गुलिक काल सुबह 7:37 बजे से लेकर 10:11 बजे तक और यमगण्ड काल दिन के 3:25 से लेकर 4:59 बजे तक रहेगा। उस प्रकार दुर्गुमूर्ग काल सुबह 8:33 बजे से लेकर 9:30 बजे तक और दोपहर 12:43 बजे से लेकर 1:33 बजे तक रहेगा। वज्य काल शाम 6:12 बजे से लेकर 7:41 बजे तक और भद्राकाल दोपहर 11:08 बजे से लेकर रात 9:57 तक चलेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।
चौघड़िया के पंचांग के अनुसार जाने शुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक चर मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक लाभ मुहूर्त, 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक अमृत मुहूर्त, 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक शुभ मुहूर्त और शाम को 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक चर मुहूर्त का आगमन होगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना शुभ रहेगा।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त का आगमन दिन के 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक काल मुहूर्त के रूप में होगा। उसी प्रकार 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक रोग मुहूर्त और 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त का संजोग रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित रहेगा।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार रात का शुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार रात 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक लाभ मुहूर्त है। उसी प्रकार 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक शुभ मुहूर्त, 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक अमृत मुहूर्त और 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक चर मुहूर्त का संयोग रहेगा।
रात का अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शाम 6:00 बजे से लेकर सात 7:30 बजे तक रोग मुहूर्त, शाम 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक काल मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे उद्वेग मुहूर्त का संयोग रहेगा।
भगवान गणेश के जन्म की कथा
भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती की मैल से हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती अपनी सहेलियों के साथ बैठी हुई थी। सहेलियों ने सुझाव दिया की भगवान शिव को मानने वाले उनके गण हैं, जो हमेशा उनकी सेवा में लगे रहते हैं। उसी प्रकार आपका भी एक सेवक होना चाहिए। माता को सहेलियों की बात जच गई। एक दिन गुफा के अंदर बने तालाब में माता पार्वती स्नान कर रही थी। उनके मन में विचार आया कि एक ऐसा सेवक होना चाहिए जो गुफा के द्वार पर पहरा दे सके और किसी को भी अंदर आने की अनुमति न दें। उनके मन में विचार आने के बाद उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को जन्म दिया। जिसका नाम गणेश पड़ा।
चंद्रमा को देखना क्यों है, वर्जित
शिव पुराण कथा के अनुसार माता पार्वती अपने गुफा के अंदर स्थित तालाब में स्नान कर रही थी। गुफा के द्वार पर पहरा देने के लिए भगवान गणेश को बैठा दी थी। माता पर्वती ने गणेशजी को आदेश दिया कि किसी को भी, किसी भी कीमत में, गुफा के अंदर प्रवेश नहीं करने देना। मां स्नान करने में मशगूल थी।
उसी समय भगवान भोलेनाथ गुफा के द्वार पर आए और अंदर जाने की चेष्टा करने लगे। भगवान गणेश ने उन्हें रोक दिया। भगवान भोलेनाथ काफी देर तक समझाते रहे की मैं तुम्हारा पिता हूं । इसलिए अंदर जाने दो। भगवान गणेश किसी भी कीमत पर भोलेनाथ को अंदर जाने नहीं देना चाहते थे। अंत में भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से भगवान गणेश का सर काट दिया।
जब यह समाचार माता पार्वती को मिली, तो मां ने रौद्र रूप धारण कर पृथ्वी को नष्ट करने पर तुल गई। भगवान विष्णु के सुझाव के बाद भोलेनाथ ने गणेश के सिर के जगह हाथी के सिर जोड़ दिए। इस प्रकार भगवान गणेश सर हाथी के सिर जैसा हो गया।
भगवान गणेश को हाथी के रूप में अवतरित देखकर चंद्रमा मंद मंद मुस्कुराने लगे। उन्हें अपने रूप और रंग पर गर्व था। भगवान गणेश ने चंद्रमा के कुटिल हंसी को देखते हुए श्राप दे दिया। तुम हमेशा के लिए काला हो जाओ। चंद्रमा को अपनी गलती का एहसास हुआ और काफी विनती करने लगा।
भगवान गणेश ने दया कर उसे 1 दिन के लिए पूर्ण रूप दे दिए। बाकि 15 दिन कटते रहना है और 15 दिन जुड़ते जाना है। यह वाक्य चतुर्थी के दिन हुआ था। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को देखने से जातक को भगवान गणेश का कोप भाजन बनना पड़ेगा।
भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण ने चतुर्थी तिथि को चंद्रमा देख लिए थे। उससे उन पर चोरी का झूठा इल्जाम लगा। इसलिए चतुर्थी का चांद देखना वर्जित है।
कैसे करें गणेश प्रतिमा का विसर्जन
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार गणेश प्रतिमा का विसर्जन बहती जलधारा में करनी चाहिए। विसर्जन करने के पूर्व उन्हें पूजा अर्चना करें। टोली में लोग उनकी प्रतिमा को उठाकर पूरब की ओर मुख कर उनका विसर्जन पीछे की ओर से करना चाहिए। मुंह की ओर से कभी भी विसर्जन नहीं करना चाहिए। भगवान गणेश की प्रतिमा का निर्माण चिकनी मिट्टी से होनी चाहिए।
शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान गणेश की प्रतिमा का पूजन और प्राण प्रतिष्ठा करने से उनमें चैतन्य उत्पन्न हो जाता है। प्रतिमा का विसर्जन के बाद जितनी दूर तक वह जल बहकर जाता है। पूरा जल चैतन्य हो जाता है और उसमें स्नान करने वाले लोग को काफी फायदा होता है।
व्रतधारी कब करें पारन
गणेश चतुर्दशी व्रत करने वाले व्रतधारियों को सूर्योदय के बाद पालन करना चाहिए। पंचमी तिथि को सुबह 6:04 बजे पर सूर्योदय होगा। 6:04 बजे के बाद आप पारन कर सकते हैं। पंचमी तिथि को सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक काल योग का संयोग है। इसलिए 7:30 से 9:00 के बीच पारन करने का शुभ मुहूर्त बन रहा है। व्रतधारी इसी दौरान व्रत अनुष्ठान कर पारन करें।
कैसे तोड़ें व्रत
गणेश चतुर्थी व्रत करने वाले व्रतधारियों को पंचमी तिथि के दिन सूर्योदय के पूर्व हो सके तो ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर नया वस्त्र धारण करके पूर्व दिशा में मुंह करके भगवान गणेश, माता पार्वती और भोलेनाथ का ध्यान का पूजा अर्चना करें। धूप, दीप फूल, नैवेद्य चढ़ाएं भगवान भोलेनाथ और भगवान गणेश को चन्दन टीका लगाया और माता पार्वती को कुमकुम का टीका लगाकर पूजन करें। इसके बाद खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर मन ही मन
श्राद्ध पूर्वक व्रत के दौरान मुझसे जो गलती हुई है उसे क्षमा करें और अपना आशीष हमेशा हमारे ऊपर बनाएं रखें। इसके बाद गाय को ग्रास निकाल कर खुद भोजन करें। सात्विक भोजन ग्रहण करना श्रेष्ठ रहेगा।