अगर आप गया तीर्थ में पिंड दान अर्थात श्राद्ध करने जा रहे हैं, तो आपको इन जानकारियों का आत्मसात करना पड़ेगा। पिंडदान के दौरान यह अनमोल जानकारियां आपको बहुत ज्यादा काम आएगा।
पिता को अष्टमी और माता की नवमी को करें श्राद्ध
पुत्र अपने पिता का श्राद्ध अश्विन माह के कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि को और माता या पत्नी का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाना चाहिए।
अकाल मृत्यु वाले को चतुर्दशी को करें श्राद्ध
जिस किसी के परिजनों की असमय अर्थात अकाल मृत्यु हुई है। मसलन किसी दुर्घटना या आत्महत्या कारने के कारण मृत्यु हुई हैं वैसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करने का विधान है।
तिथि ज्ञात ना होने पर अमावस्या को करें श्राद्ध
जिन पितरों के मरने की तिथि ज्ञात नहीं है अर्थात याद नहीं है। उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन को पितृ श्राद्ध भी कहा जाता है।
कौओं के भेस में आपके घर आते हैं पितर
कौओं को पितरों का ही रूप शास्त्रों में माना गया है। मान्यत है कि हमारे पितर कौओं का रूप धारण कर निर्धारित तिथि को दोपहर के समय हमारे घर के द्वार पर आते हैं। अगर उन्हें श्रद्धा का अन्न नहीं मिलता तो वह रूष्ट कर चले जाते हैं और श्राप देते अपने धाम को चले जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिने का शास्त्रों में विधान है।
बच्चों का श्राद्ध करना वर्जित
नौनिहाल बच्चों का श्राद्ध नहीं किया जाता है। धर्म शास्त्र के अनुसार वैसे बच्चे जिनके दांत निकले हैं। और जो अपना पराया नहीं पहचान सकते हैं। ऐसे बच्चों की मृत्यु होने के बाद उसका श्राद्ध नहीं किया जाता है।
बड़े बेटा ही करें माता-पिता का श्राद्ध
श्राद्ध के लिए योग्य कौन होता है। जानें पिता का श्राद्ध बेटा करता है। बेटा नहीं होने पर पत्नी या पुत्री श्राद्ध करने का अधिकार है। पत्नी और पुत्री नहीं होने पर सगा भतीजा श्राद्ध कर सकता है। एक से ज्यादा पुत्र होने पर बड़े पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए।
रात को श्राद्ध करना वर्जित
रात में श्राद्ध नहीं करना चाहिए। लोगों को भूलकर भी रात के समय श्राद्ध नहीं करना चाहिए। संध्या समय भी श्राद्ध कर्म करने की मनाही हमारे धर्म शास्त्रों में लिखा गया है।
श्राद्ध के भोजन में करें तिल का प्रयोग
कैसा हो भोजन श्राद्ध में। श्राद्ध के भोजन में जौ, माटर औ सरसों का उपयोग श्रेष्ठ है। भोजन में वही पकवान बनाएं जो आपके पितर की पसंद है। गंगाजल, शहद, कुश और तिल भोजन बनाने में सबसे ज्यादा जरूरी है। तिल ज्यादा होने पर उसका फल अक्षय मिलता है। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।
ब्राह्मणों को दे दक्षिणा
श्राद्ध के दौरान तर्पण में दूध, तिल, कुश, पुष्प और गंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त (तर्पण) किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन करा और पिंडदान करने से ही पितरों को गंध के रूप में भोजन मिलता है। श्राद्ध कारने फल दक्षिणा (धन) देने पर ही मिलता है।
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परंतु विस्तार से जानते न हो। इस कथा में जाने संपूर्ण जानकारी।
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