जिउतिया व्रत 29 सितंबर को, जानें पूजा की संपूर्ण विधि



जिउतिया व्रत वंश की वृद्धि और संतान की दीर्घायु की कामना कर महिलाएं अश्विन माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती है। तीन दिवसीय व्रत के अंतिम दिन अर्थात नवमी तिथि व्रत समाप्त कर पारन करतीं हैं।


जिउतिया में पूजा करने का शुभ मुहूर्त व समय



जिउतिया के दिन शाम के समय पूजा करने की परंपरा है। व्रतधारी महिलाएं शाम के समय जिऊत वाहन भगवान और श्रीकृष्ण प्रभु की पूजा करती है। जिउतिया के दिन रात 8:30 बजे तक अष्टमी तिथि है इसके बाद नवमी तिथि प्रारंभ हो जाएगा। इसलिए जिउतिया की पूजा रात 8:30 बजे तक ही करनी चाहिए।


शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त है। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है। शाम 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक शुभ मुहूर्त और 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक अमृत मुहूर्त है।

गोधूलि मुहूर्त 5:57 बजे से लेकर शाम 6:30 बजे तक है। यह मुहूर्त भी पूजा करने के लिए उत्तम है परंतु उद्वेग मुहूर्त से सावधान के रहना चाहिए।

शाम के समय व्रतधारी महिलाएं रात 7:30 बजे के बाद ही पूजा आरंभ करें और 8:30 बजे के पूर्व समाप्त कर दें। एक घंटा पूजा करने के सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है नहीं तो फिर शाम 6:00 बजे के पहले पूजा समाप्त कर लें।


पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा जिउतिया का दिन



आश्विन माह, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि जो रात 8:29 बजे तक रहेगा। इसके बाद नवमी तिथि प्रारंभ हो जाएगा। नक्षत्र आर्द्रा रात 12:26 बजे तक है।। प्रथम करण बलव सुबह 7:26 तक रहेगा। द्वितीय करण कौलव है।



सूर्योदय सुबह 6:13 बजे और सूर्यास्त शाम 6:09 पर होगा। चंद्रोदय रात 11:48 बजे और चंद्रास्त रात 12:37 बजे पर है। सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा मिथुन राशि में स्थित रहेंगे। अयन दक्षिणायन दिशा में रहेगा। दिनमान 11 घंटा 56 मिनट और रात्रिमान 12 घंटा 4 मिनट का है।


आनन्दादि योग मुसल रात 11:26 बजे तक, इसके बाद गद हो जायेगा। होमाहुति गुरु रात 11:26 तक इसके बाद राहु हो जायेगा। दिशाशूल उत्तर, राहु वास दक्षिण-पश्चिम, अग्निवास पृथ्वी रात 10:29 इसके बाद आकाश होगा।


पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त


जिउतिया के दिन अभिजीत मुहूर्त का संजोग नहीं बन रहा है। विजय मुहूर्त दिन के 2:11 बजे से लेकर 2:58 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार गोधूलि मुहूर्त शाम 5:57 बजे से लेकर 6:30 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त 6:09 बजे से लेकर 7:22 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:45 बजे से लेकर 12:36 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त भोर के 4:30 बजे से लेकर 5:30 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त सुबह 5:11 बजे से लेकर 6:13 बजे तक रहेगा।


अशुभ मुहूर्त

उस दिन कुछ ऐसे समय है जिस समय राहुकाल, यमघंटा काल और गुली काल जैसे अशुभ मुहूर्त चलते रहेंगे। ऐसे समय पर पूजा करना वर्जित है।


राहु काल दिन के 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक, गुलिक काल सुबह 10:42 बजे से लेकर 12:11 बजे तक, यमगण्ड काल सुबह 7:42 बजे से लेकर 9:12 बजे तक और दुर्मुहूर्त काल दिन 11:45 बजे से लेकर 12:36 बजे तक रहेगा।


चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त दिन


जिउतिया के दिन चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त का आगमन सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में होगा। उसी प्रकार सुबह 7:30 से 9:00 तक अमृत मुहूर्त रहेगा। सुबह 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे बजे तक शुभ मुहूर्त, 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक चर मुहूर्त है। शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक एक बार फिर से लाभ मुहूर्त का आगमन होगा। इस दौरान पूजा करना काफी शुभ रहेगा।


अशुभ मुहूर्त


जिउतिया के दिन सुबह 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक काल मुहूर्त, 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक रोग मुहूर्त, 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त का आगमन रहेगा। शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त रहेगा।



शाम का शुभ मुहूर्त


शाम का शुभ मुहूर्त 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक शुभ मुहूर्त के रूप में स्धित रहेगा। उसी प्रकार रात 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक अमृत मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा इस दौरान पूजा अर्चना करना लाभप्रद होगा।


28 सितंबर को है नहाए खाए


नहाए खाए के दिन क्या खाएं व्रती महिलाएं जानें विस्तार से। छठ की तरह जिउतिया व्रत पर नहाए खाए की परंपरा है। यह पर्व भी तीन दिवसीय है। पहला दिन सप्तमी तिथि को नहाए खाए, दूसरा दिन अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत और तीसरा दिन नवमी तिथि को पारन किया जाता है।

इस बार नहाए खाए 28 सितंबर दिन मंगलवार को पड़ रहा है। सुबह व्रती महिलाएं तालाब, नदी या घर में गंगाजल डालकर स्नान करें। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते हुए जिउतियां पर्व करने का संकल्प लें। संकल्प लेने के उपरांत नोनी का साग, मडुआ आटा से बनी रोटी, कंदा और सत्पुतिया झिंगी से बनी सब्जियां व्रत धारी महिलाएं खाती है। इस बार रात 6:16 बजे तक ही भोजन और पानी व्रती महिलाएं खा और पी सकती है।

27 सितंबर शाम 6:00 बज कर 16 मिनट तक सप्तमी तिथि है। इसके बाद अष्टमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी। अष्टमी तिथि प्रारंभ होने के साथ ही निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा। इसलिए महिलाएं 6:30 बजे के पहले पानी भोजन इत्यादि ग्रहण कर लें।


व्रत करने की विधि


जिउतिया व्रत रखने वाली महिलाएं सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें। इसके बाद चील और सियार की पूजा करनी चाहिए। मिट्टी के बने चील और सियार को पाकुड़ के डाल पर स्थापित कर पूजा करने का विधान है। नये वस्त्र पहनकर महिलाएं निर्जला व्रत रख शाम के समय पूजा करती है। पूजा के उपरांत व्रत की कथा सुननी चाहिए है। सुबह सूर्योदय के बाद महिलाएं पानी में फुलाए हुए बाजरे या जिंदा मछली को सबसे पहले निगलती है। इसके बाद भोजन करती है।


पारन करने का उचित समय

जिउतिया व्रत धारी महिलाएं 29 सितंबर की रात 8:30 बजे के बाद भोजन कर सकती है। रात 8:30 बजे के बाद नवमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी परंतु बहुत सी महिलाएं सूर्योदय के बाद ही पालन करती है। वैसे 30 सितंबर को सुबह 6:13 बजे सूर्योदय होगा। उसके बाद ही पारन करना उचित होगा।



जिउतिया पर्व पर महाभारत की कथा


जिउतियां को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। इस कथा का प्रसंग महाभारत काल से जोड़ा गया है। महाभारत युद्ध के बाद अश्वत्थामा पांडवों पर काफी क्रोधित था, क्योंकि पांडवों के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठिर ने झूठ बोलकर उनके पिता द्रोणाचार्य की हत्या कर दी थी। उसी का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ताक में रहता था।

एक रात पांडव शिविर में घुस कर उसने देखा पांच व्यक्ति सोए हुए हैं। उसने पांच भाई पांडव समझ कर उनकी हत्या कर दी। सुबह पता चला कि यह पांचों पुत्र द्रोपदी की है। इसके बाद अश्वत्थामा ने निर्णय ले लिया कि जैसे द्रोपदी के पांचों पुत्रों की हत्या कर दी। उसी तरह उत्तरा के गर्भ में पलने वाले शिशु की भी हत्या कर देते हैं।


यही सोच कर उसने एक कठोर निर्णय लिया और अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र चला दी। ब्रह्मास्त्र के सामने भगवान श्री कृष्ण की सुदर्शन चक्र भी काम नहीं आया। उत्तरा के गर्भ नष्ट होने के बाद श्री कृष्ण ने अपने तपोबल से एक शिशु का जन्म करा उत्तरा का गोद भर दिया। जिसका नाम पड़ा जीवित्पुत्रिका। इसीलिए इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। श्री कृष्ण एक बच्चे का जान बचाई इसी परंपरा को निभाते हुए व्रती भगवान श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना करती है।



जिउतिया पर पौराणिक व्रत कथा


नर्मदा नदी के पास एक नगर था जिसका नाम है कंचनबटी। उस नगर के राजा का नाम मलयकेतु था। नर्मदा नदी के पश्चिम में बालूहटा नाम की मरू भूमि थी। जिसमें एक विशाल पाकड़ का पेड़ था। पेड़ पर एक चील रहती थी। उसी पेड़ के नीचे एक बिल में सियारिन भी रहती थी। दोनों पक्की सहेली थी। दोनों जो भी खाने का सामान लेकर आते थे, आपस में मिल बांट कर खाते थे।


एक दिन चील किसी गांव में गया और उसने जिउतिया व्रत और कथा सुनी। महिलाओं को पूजा करते हुए देखकर चील ने निश्चित किया कि वह भी जिउतिया व्रत करेेंगी। उसने सियारिन से कहा कि हम दोनों को जिउतियां व्रत करनी चाहिए। व्रत करने से अगले जन्म में हम दोनों का कल्याण होगा। चील और सियारिन दोनों ने दिन भर निर्जला व्रत रखा, परंतु शाम को सियारिन को भूख बर्दाश्त नहीं हुई और उसने भोजन कर लिया।


उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई। उसका दाह संस्कार उसी स्थान पर कर दिया गया। सियारिन को जब भूख लगने लगी थी मुर्दा देखकर वह खुद को रोक ना सके और जमकर दावत उड़ाई। मांस खाने से उसकी व्रत टूट गयो। पर चील ने संयम रखा और नियम पूर्वक पूजा अर्चना कर अगले दिन व्रत का पारन किया।


मृत्यु के बाद अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने एक ज्ञानी ब्राह्मण परिवार में सूंदर पुत्रियों के रूप में जन्म लिया। दोनों बहनों के पिता का नाम भास्कर था। चील बड़ी बहन बनी और उसका नाम शीलवती रखा गया। शीलवती की शादी बुद्धिसेन से हुआ।


सियारिन छोटी बहन के रूप में जन्मी और उसका नाम कपुरावती रखा गया। उसकी शादी उसी राज्य के राजा मलयकेतु के साथ हुई। अब कपुरावती कंचनबटी नगर की रानी बन गई। भगवान जीऊतवाहन के आशीर्वाद से शीलवती को सात बेटे हुए।


परन्तु कपूरावती के बच्चें जन्म लेते ही मर जाते थे। कुछ समय बाद शीलवती के सातों बेटें बड़े हो गए। सभी राजा के दरबार में काम करने लगे। कपूरावती के मन में शीलवती के पुत्रों को देखकर ईर्ष्या की भावना आ गई। उसने राजा से कहकर सभी बेटों की सर कटवा दी। उन कटे सिर को नये बर्तन में रख दिया और लाल कपड़े से ढककर अपनी बहन शीलवती के पास भिजवा दी।


यह दृश्य देखकर भगवान जीऊतवाहन ने सातों भाइयों के सिर मिट्टी से बनाकर धड़ से जोड़ दिया। साथ ही मृतक शरीर पर अमृत छिड़ककर जिंदा कर दिएं।


दूसरी ओर रानी कपुरावती बुद्धी सेन अर्थात अपनी बहन के घर से सूचना पाने को काफी उत्साहित थी। जब काफी देर बाद भी सूचना नहीं आई तो स्वयं कपुरावती बड़ी बहन के घर गई। वहां सातों भाइयों को जिंदा देखकर वह दंग रह गई। जब उसे होश आया तो बड़ी बहन को उसने सारा सारी बात दी। अब उसे अपनी गलती पर शर्मिंदगी आ रही थी।


भगवान जिऊतवाहन की कृपा से शीलवती को पूर्व जन्म की बातें याद आ गई। वह कपुरावती को लेकर उसी पाकड़ बृक्ष के पास गई और उसे सारी बातें बताई। कपुरावती बेहोश होकर वहीं पर गिरकर मर गई। जब राजा को मरने की खबर मिली तो, उसने उसी जगह पर जाकर पाकड़ वृक्ष के नीचे कपुरावती का दाह संस्कार कर दिया मेरे ब्लॉॉग में एक से बढ़कर एक लेख पढ़ें



















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