16 कलाओं से युक्त भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का जन्मोत्सव 30 अगस्त, दिन सोमवार को है।
भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन जीने की कला, अपना-पराया, धर्म-अधर्म, रिश्ते-नाते, सुख-दुःख और आत्मा-परमात्मा की ज्ञान देकर हमें जीने की राह दिखाया है।
भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे श्री कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण विष्णु के दशावतार में एक है। शास्त्रों में भगवान विष्णु के 10 अवतार का वर्णन किया गया है। जो इस प्रकार है। प्रथम मत्स्य, द्वितीय कूर्म अर्थात कछुआ, तीसरा वराह, चौथा नरसिंह, पांचवा वामन, छठा परशुराम, सातवां पुरुषोत्तम श्रीराम, आठवां श्रीकृष्ण नौवें भगवान बुद्ध और दसवां कल्कि अवतार, जो कलयुग के अंत में होना निश्चित है।
अब जानें पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा दिन
30 अगस्त, दिन सोमवार, भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि जो रात 1:39 तक है। नक्षत्र कृतिका, प्रथम करण बालव, द्वितीय करण कौलव, योग व्याधात, सूर्योदय 5:58 बजे पर और सूर्यास्त शाम 6:45 बजे होगा। चंद्रोदय रात 11:35 बजे और चंद्रास्त 12:58 बजे है। सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा वृषभ राशि में रहेगा। अयन दक्षिणायन दिशा में है। ऋतु शरद है। दिन का समय 12 घंटा 40 मिनट का और रात्रि का समय 11 घंटा 13 मिनट का रहेगा।
आनंदादि योग सुस्थिर सुबह 6:40 तक, इसके बाद प्रबर्धमान हो जाएगा। होमाहुति गुरु सुबह 6:40 बजे तक इसके बाद राहु रात 9:00 बज कर 35 मिनट तक रहेगा। दिशाशूल पूर्व दिशा में स्थित रहेंगे। राहुवास उत्तर-पश्चिम में, अग्निवास पृथ्वी और चंद्रवास दक्षिण दिशा में रहेगा।
जानें पूजा करने की सामग्री
भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा करने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं की जरूरत पड़ती है। सबसे पहले बाल गोपाल की प्रतिमा को स्नान कराने के लिए तांबे या पीतल का लोटा, जल कलश मिट्टी का, दूध, वस्त्र, आभूषण, अरवा चावल, कुमकुम (सिंदूर), दीपक, तेल, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध, मखन, मिश्री, तुलसीदल, गंगाजल, तिल, जनेऊ, प्रसाद के लिए मौसमी फल, मिठाई, नारियल, पंचमेवा, सूखे मेवा, शक्कर, गुड़, पान पत्ता, कसैली, धनिया से बना पंजीर और दक्षिणा रख ले।
पूजा के पूर्व करें संकल्प
किसी भी विशेष मनोकामना के पूरी होने की इच्छा के लिए, किए जाने वाले पूजन में संकल्प की जरूरत पड़ती है। पूजा शुरू करने से पहले संकल्प कर लें। संकल्प लेते समय हाथ में जल, कुमकुम, फूल और चावल लेकर जिस दिन पूजा कर रहे हैं उस तिथि, दिन, जगह, नाम, पिता का नाम, गोत्र के साथ ही अपनी इच्छा बोले और संकल्प लें। इसके बाद हाथों मैं लिए सामानों को भगवान के चरणों में अर्पित कर दें।
कैसे करें संकल्प
पूजा करने के पूर्व इस तरह से संकल्प लें। सबसे पहले अपना नाम बोले, पिता का नाम, गोत्र बोले, विक्रम संवत 2078 को भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को दिन सोमवार कृतिका नक्षत्र भारत देश किस प्रदेश और शहर में रहते उसका नाम लेकर पूरे मनोभाव से बाल गोपाल का पूजन कर रहा हूं यह बोलते हुए संकल्प लें। पूजा के दौरान होने वाले गलती के लिए माफी मांग लें।
पूजा करने की सरल विधि जानें
जन्माष्टमी की पूजा करने से पहले गणेश पूजन करने का विधान है। भगवान गणेश की सबसे पहले शुद्ध जल से स्नान कराएं। वस्त्र एवं आभूषण अर्पित करने के बाद गंध, पुष्प, धूप, दीपक और अक्षत से विधिपूर्वक पूजन करें।
गणेश पूजन के बाद बाल गोपाल का पूजा आरंभ करें। सबसे पहले बाल गोपाल को शुद्ध जल जिसमें गंगा जल मिला हो, स्नान कराएं। स्नान कराते समय सबसे पहले जल से कराएं। इसके बाद पंचामृत से और फिर एक बार जल से स्नान करना चाहिए। वस्त्र अर्पित करें। वस्त्र के बाद आभूषण पहनाएं। पुष्प माला पहनाएं।
इसके बाद अष्टगंध से बाल गोपाल के मस्तक पर तिलक करें। ऊं बाल गोपालाय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए बालकृष्ण को अष्टगंध का तिलक एक बार फिर लगााएं। अब धूप और दीप अर्पित करें। तेल या घी का दीपक जलाएं। आरती करें। आरती के उपरांत परिक्रमा करें। अब प्रसाद अर्पित करें। माखन और मिश्री अर्पित करें। तुलसीदल अर्पित करें और अंत में पूजा संपन्न करें और ब्राह्मणों को दक्षिणा दें।
श्रीकृष्ण के जन्म संबंध में जानें पौराणिक कथा
मथुरा नरेश अग्रसेन का पुत्र था कंस
विष्णु पुराण के अनुसार द्वापर युग में राजा उग्रसेन मथुरा में राज करते थे। राजा उग्रसेन को उनके ही पुत्र कंस ने गद्दी हड़प कर राज करने लगा। कंस की एक लाडली बहन देवकी थी। जिसका विवाह यदुवंशी राजा वासुदेव से हुआ था।
आठवां पुत्र कंस का करेगा हत्या हुई आकाशवाणी
कंस अपनी बहन देवकी से बेहद प्रेम करता था। जब देवकी की शादी वासुदेव जी से हुए तो, कंस खुद रथ हांकता हुआ बहन को ससुराल विदा करने के लिए राजमहल से निकल पड़ा। लेकिन जैसे ही कंस ने रथ हांकना शुरू किया। उसी समय एक आकाशवाणी हुई। हे ! कंस जिस देवकी के तू बड़े प्रेम से विदा करने जा रहा है उसका आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा।
देवकी और वासुदेव को बंदी बनाया कंस
आकाशवाणी सुनकर कंस अत्यंत क्रोधित हो उठा और उसने देवकी को मारने के लिए दौड़ पड़ा। कंस ने सोचा अगर मैं देवकी मार दूं, तो उसका आठवां पुत्र पैदा ही नहीं होगा और ना ही मेरा नाश होगा। कंस ने ऐसा करते देख यदुवंशी क्रोधित हो उठे और भयंकर युद्ध की स्थिति पैदा हो गई। वासुदेव नहीं चाहते थे युद्ध हो। वासुदेव जी ने कहा कि हे कंस तुम्हें देवकी से डरने की जरूरत नहीं है। समय आने पर मैं वासुदेव खुद तुम्हें देवकी की आठवीं संतान सौंप दूंगा।
युद्ध रोक कारागार में गए वासुदेव
वासुदेव के समझाने पर राजा कंस का गुस्सा शांत हो गया। कंस को पता था कि वासुदेव कभी झूठ नहीं बोलते है। कंस ने वासुदेव और देवकी को कारागार (जेल) में बंद कर दिया और पहरेदार को सतर्क रहने का आदेश दे दिया।
रोहिणी नक्षत्र में जन्म हुआ भगवान कृष्ण
देवकी गर्भ धारण करने के बाद उत्पन्न नवजातों को एक-एक करके कंस ने सातों संतानों को मार डाला। जब आठवीं संतान का समय आया तो कंस ने पहरा और कड़ा कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रोहिणी नक्षत्र था। उसी दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार का जन्म हुआ था।
यशोदा के घर पैदा हुई माया
जिस समय देवकी के पुत्र पैदा हो रहा था, उसी समय संयोग से वृंदावन में रहने वाली यशोदा के घर में एक अति सुन्दर कन्या का जन्म हुआ जो और कोई नहीं भगवान के रची हुई माया थी। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होते ही कारागार अचानक दैवीय प्रकाश से जगमगा उठा और सामने भगवान विष्णु विराट रूप लिए प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि मैं बालक के रूप में जन्मा हूं। तुम मुझे अभी इसी समय अपने परंम मित्र नंद जी के घर वृंदावन छोड़ आओ और उसके यहां जो यशोदा के गर्भ से कन्या जन्मी है उसे लाकर कंस को सौंप दो।
भगवान की महिमा खुल गई बेड़ियां
भगवान की बात सुनकर वासुदेव नवजात शिशु को सूप में रखकर वृंदावन पहुंच गए। रास्तें में अनेक कठिनाई आईं, परंतु सभी का हल निकाल गया। जैसे अपने आप सैनिक गहरी नींद में सो गए। उनके हाथों में पड़ी बेड़िया खुल गई। यमुना नदी भी उनके लिए रास्ता दे दी। जमुना नदी को पार कर वासुदेव ने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर कारागार में आ गए। कंस को सूचना मिली तो देवकी को बच्चा पैदा हुई है।
माया बोली वृंदावन में जन्म हुआ कृष्ण का
कंस ने बच्चे को उठाकर जमीन में पटकना चाहा। वह आकाश में उड़ गई और बोली मुझे क्यों मार रहे हो, तुझे मारने वाला तो वृंदावन जा चुका है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का फल देगा। कंस ने कई बार बालक को मारने का प्रयास किया लेकिन ऐसा कर नहीं पाया। अंत में जब भगवान कृष्ण युवा अवस्था में पहुंचे तब उन्होंने कंस का वध कर दिया।