कुंवारी कन्या के गर्भ से जन्मे थे वेदव्यास
वेदव्यास और भीष्म पितामह सौतेले भाई थे
सत्यवती के पुत्र थे वेदव्यास
वेदव्यास और भीष्म के जन्म कथा जानें
पाराशर मुनि के पुत्र थे वेदव्यास
गुरु पूजन के उचित समय और मुहूर्त जानें
चौधड़िया और पंचांग से जानें शुभ और अशुभ मुहूर्त
अभिजीत मुहूर्त का समय जानें
गुरु पूर्णिमा के दिन पंचांग के अनुसार कैसा रहेगा समय (दिन) । गुरु पूजा करने की उचित समय और मुहूर्त के साथ ही पूजा की संपूर्ण विधि इस लेख में है।
आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि अर्थात दिन शनिवार दिनांक 24 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है।
गुरु पूर्णिमा के दिन सूर्योदय सुबह 5:00 बजे के 12 मिनट पर और चंद्रोदय शाम 7:01 मिनट पर होगा। सूर्य कर्क राशि में और चंद्रमा मकर राशि में रहेगा। सूर्यास्त शाम 6:30 मिनट पर और चंद्रास्त सुबह 5:04 बजे पर होगा।
नक्षत्र उत्तराषाढा दिन के 12:40 बजे तक, प्रथम करण बव सुबह 8:06 बजे तक, द्वितीय करण बालव, योग विष्कुंभ सुबह 6:12 बजे तक इसके बाद प्रीति योग शुरू हो जाएगा। सूर्य दक्षिणायन दिशा में रहेंगे। आनन्दादि योग राक्षस सुबह 7:00 बज के 7 मिनट तक रहेगा। इसके बाद चर योग शुरू हो जाएगा। होमाहुति चंद्र, दिशाशूल पूर्व, राहुवास पूर्व, अग्निवास पृथ्वी और चंद्रवास दक्षिण में रहेगा।
उदया तिथि में होगा सूर्योदय, मनेगा गुरु पूर्णिमा
पूर्णिमा तिथि 23 जुलाई को सुबह 10:44 बजे से शुरू होगा, जो 24 जुलाई को सुबह 8:07 बजे तक रहेगा। सिंधु पुराण के अनुसार जिस तिथि में सूर्योदय होता है। उस दिन उक्त तिथि को संपूर्ण माना जाता है। 24 जुलाई को पूर्णिमा तिथि में ही सूर्य उदय होगा। इसलिए गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को मनाया जाएगा।
जैन और बौद्ध धर्मावलंबी भी मनाते हैं चतुर्थ मास
जिस प्रकार सनातन धर्मालंबी 24 जुलाई से चौमास में रहेंगे। उसी प्रकार जैन और बौद्ध धर्म के अनुयाई भी इन 4 महीनों के दौरान भीक्षु किसी गुफा या किसी निर्जन स्थान पर रहकर साधना करेंगे और 4 महीने के बाद साधना केंद्र से बाहर निकलेंगे।
गुरु पूजन का शुभ समय
गुरु पूर्णिमा के दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 12:00 बजे से लेकर 12: 55 तक रहेगा।
विजया मुहूर्त 2:44 बजे से लेकर 3:39 बजे तक, गोधूल मुहूर्त 7:30 बजे से लेकर 7:27 बजे तक, सांध्य मुहूर्त 7:17 बजे से लेकर 8:19 बजे तक निशिता मुहूर्त रात 12:07 बजे से लेकर 12:48 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त 7:00 बज के 16 मिनट से लेकर 4:57 बजे तक, प्रातः कलिन मुहूर्त 4:36 बजे से लेकर 5:39 बजे तक रहेगा। इस दौरान गुरु का पूजन करना उत्तम होगा।
अशुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा का दिन अशुभ मुहूर्त का शुरुआत सुबह 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक राहुकाल के रूप में, 2:10 बजे से लेकर 3:52 बजे तक यमगण्ड काल के रूप में रहेगा। उसी प्रकार गुलिक काल सुबह 5:30 बजे से लेकर 7:20 बजे तक और वज्य काल शाम 4:27 बजे से लेकर 5:57 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजन करने से लोगों को बचना चाहिए।
अब जानें चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन का शुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार पूजा करने का शुभ समय सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक शुभ मुहूर्त के रूप में रहेगा उसी प्रकार 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक चर मुहूर्त, 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक लाभ मुहूर्त, 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक अमृत मुहूर्त का संयोग रहेगा। इस दौरान गुरु की पूजा करना अति उत्तम रहेगा।
अशुभ मुहूर्त चौघड़िया पंचांग के अनुसार
चौघड़िया पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक काल मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक रोग मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त और शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा इस दौरान पूजा करना उचित नहीं होगा।
पूर्णिमा तिथि को हुआ था वेदव्यास का जन्म
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। इसी दिन वेद और पुराण के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु का आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीनें तक परिव्राजक (चतुर्मास) का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साधु-संत एक ही स्थान पर आकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।
चतुर्थमास शिक्षा, अध्ययन व धर्म प्रचार का माह
ये चार महीनों में मौसम की दृष्टि से सबसे श्रेष्ठ होतें हैं। इन महीनों का तापमान समतुल्य रहता है। इस दौरान न अधिक गर्मी पड़ती है और न ही अधिक सर्दी लगती है। इसलिए अध्ययन, योग और शिक्षा के लिए उपयुक्त माह माने जाते हैं। इन महीनों में सूर्य के ताप से भूमि पर होने वाली बारिश से शीतलता एवं फसल उपज करने की शक्ति मिलती है। इन चार महीनें गुरु चरणों में उपस्थित होकर साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग आदि शक्ति प्राप्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति मिलती है।
वेदव्यास को आदिगुरु भी कहते हैं
गुरु पूर्णिमा के दिन महाभारत, वेदों, पुराणों सहित अन्य धार्मिक ग्रंथों के रचयिता आदिगुरु और महर्षि वेदव्यास का जन्मदिन है। वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी। इस कारण उनका नाम वेदव्यास पड़ा। वेदव्यास को आदिगुरु कहा जाता है और इसके साथ ही गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्ति काल के संत घीसा दास का भी जन्म इसी दिन हुआ था। वह कबीर दास के शिष्य थे।
गुरुपूर्णिमा भारत, नेपाल और भूटान में भी मानते हैं
गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परंपरा है। जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने तथा बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक (रुपए) खर्च के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार होना है। गुरु पूर्णिमा भारत, नेपाल और भूटान में हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयाई उत्सव के रूप में मनाते हैं। हिंदू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों और अध्यापकों का सम्मान कर उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाते हैं।
वेदव्यास के जन्म कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में सुधन्धा नाम के एक राजा थे। एक दिन शिकार करने के लिए वन गए थे। वन जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। रानी ने उक्त समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवा दिया। समाचार पाक राजा सुधन्धा ने वीर्य निकालकर एक पत्तों से निर्मित कटोरा में रखकर पंछी को दे दिया।
रानी ने शिकारी पक्षी को भेजा राजा के पास
पक्षी कटोरी को राजा की पत्नी के पास पहुंचाने के लिए आकाश में उड़ चला। राजमहल जाने वाले मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरे शिकारी पक्षी मिल गया। दोनों पक्षियों में घमासान युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान उक्त कटोरी जिसमें वीर्य रखा था पक्षी के पंजे से छूटकर यमुना नदी में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के श्राप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली कटोरी से बहते हुए वीर्य को अपने मुंह से निगल गई। तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई।
मछली के पेट से निकली बालिक और बालका
एक दिन निषाद ने मछली को अपने जाल में फंसा लिया। मछली के पेट फाड़ने के बाद एक बालक और एक बालिका निकली। बालक को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। राजा सुधन्वा को कोई पुत्र नहीं होने के कारण नौनिहाल को अपने पास रख लिया। जिसका बालक का नाम मत्स्यराज रखा गया। बालिका निषाद के पास ही रह गई और बालिका का नाम मत्स्यगंधा हुआ। क्योंकि उसके शरीर से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर नाव खेवने की काम करने लगीं।
पाराशर मुनि ने सत्यवती से किया भोग
एक समय की बात है पाराशर मुनि को सत्यवती के नाव पर बैठकर यमुना नदी पर करने का मौका मिला। पाराशर मुनि सत्यवती की रूप रंग और सौंदर्य को देखकर मोहित हो गए और बोले देवी हम तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूं। सत्यवती ने कहा कि यह संभव नहीं है। कारण आप ब्रह्मज्ञानी है और मैं निषाद कन्या हूं। हमारा सहवास संभव नहीं है। तब पाराशर मुनि कहें कि तुम चिंता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुंवारी ही रहोगी।
सत्यवती के शरीर से निकलने लगी सुगंध
इतना कहकर उन्होंने अपने योग बल से चारों ओर घने कोहरे फैला दिया और सत्यवती के साथ संभोग किया। इसके बाद उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा कि हे सत्यवती जो तुम्हारे शरीर से मछलियों की गंध निकलती है वह खुशबू में बदल जाएगी।
कुंवारी कन्या की गर्भ से जन्मे वेदव्यास
समय आने पर उसकी गर्भ से वेद व्यास का जन्म हुआ। जन्म होती वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला माता तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे याद करोगी मैं उपस्थित हो जाऊंगा। इतना कहकर वेदव्यास तपस्या करने के लिए द्वैपायन द्वीप चले गए। द्वैपायन द्वीप पर उन्होंने घोर तपस्या करने से उनके शरीर का रंग काला पड़ गया। इस कारण वेदव्यास को कृष्ण द्वैपायन कहा जाता है। आगे चलकर एक विशाल वेद को चार भागों में विभाजन करने के कारण उनका नाम वेदव्यास पड़ गया।
धर्म बचाने के लिए कि चारों वेदों की रचना
हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार महर्षि वेदव्यास त्रिकालदर्शी थे। तथा उन्हें दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलयुग में धर्म क्षीण हो जाएगा। धर्म के क्षीण हो जाने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्य हीना और अल्प आयु वाले हो जाएंगे। एक विशाल वेद का अध्ययन करने में असमर्थ होंगे। इसलिए महर्षि वेदव्यास ने वेद को चार भागों में बांट दिया। जिससे कि कम बुद्धि और स्मरण शक्ति कम रखने वाले भी वेदों का अध्ययन सुचारू रूप से कर सकें।
सामवेद, चतुर्भुज, अथर्ववेद व ऋग्वेद की हुई रचनाएं
व्यास जी ने उसका नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद रखा। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुए। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को पढ़ाया।
वेदों के बाद पुराणों की हुई रचना
वेद में कठिन ज्ञान के अत्यंत गूढ़ और शुष्क होने के कारण उन्होंने वेद के रूप में पुराणों की रचनाओं की जिसमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में प्रकाशित कराया।
पुराणों को उन्होंने अपने शिष्यों रोम हर्षण को पढ़ाया। व्यास जी के शिष्य ने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उनके रचित वेदों को अनेक शाखाएं और उप शाखाओं में बदल दी।