भीमसेन निर्जला एकादशी 2021, जानें संपूर्ण विधि

भीमसेन निर्जला सभी 26 एकादशियों में सर्वश्रेष्ठ एकादशी है। इस एकादशी का विशेष महत्व है। यह एकादशी महाभारत काल और बाहुबली भीम कि कहानियों से जुड़ा हुऐ है।


भीम सेन एकादशी की दिन कैसा रहेगा जानें, पंचांग के अनुसार


21 जून, 2021 दिन सोमवार को जेष्ठ मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को निर्जला भीमसेनी एकादशी मनायी जायेगै। एकादशी तिथि दिन के 1:31 तक रहेगा इसके बाद द्वादशी तिथि का शुभारंभ हो जाएगा।

भीमसेन एकादशी के दिन सूर्योदय 5:24 बजे पर और सूर्यास्त शाम 7:22 पर होगा। चंद्रोदय 3:29 पर और चंद्र अस्त रात 2:58 बजे पर होगा। दिनमान 13 घंटा 58 मिनट का और रात्रिमान 10 घंटा 2 मिनट का रहेगा।

सूर्य मिथुन राशि में, चंद्रमा तुला राशि में, आयन उत्तरायण और ऋतु ग्रीष्म रहेगा।

भीमसेनी एकादशी के दिन नक्षत्र स्वाति 2:40 बजे तक, प्रथम कारक बिष्टि/भद्रा 1:31 बजे तक, द्वितीय कारक बव और योग शिवा  5:34 तक रहेगा।

आनंदादि योग छत्र 4:46 बजे तक, इसके बाद मित्र योग शुरू हो जाएगा। होमाहुति शनि, दिशा शूल पूर्व, राहुवास उत्तर-पश्चिम, अग्निवास पाताल दिन के 1:30 तक इसके बाद पृथ्वी और चंद्रवास पश्चिम रहेगा।



अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:55 से लेकर दोपहर 12:51 तक है।


जाने पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त


विजया मुहूर्त 2:00 बज कर 43 मिनट से लेकर 3:29 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 7:08 बजे से लेकर 7:32 बजे तक, सायाह्य सांध्य मुहूर्त 7:22 बजे से लेकर 8:22 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 12:30 बजे से लेकर 12:45 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त 4:04 से लेकर 4:44 तक और प्रातः संध्या मुहूर्त 4:25 बजे से लेकर 5:24 बजे तक रहेगा। इस दौरान व्रतधारी चारों पहर के पूजा अर्चना शुभ मुहूर्त के अनुसार कर सकते हैं।


पंचांग अनुसार अशुभ मुहूर्त जानें


भीमसेन एकादशी के दिन सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक राहु काल, दिन के 2:08 बजे से लेकर 3:30 बजे तक गुलिक काल, सुबह 10:38 बजे से लेकर 12:23 बजे तक यमगण्ड काल, 12:00 बज के 51 मिनट से लेकर 1:47 तक और 3:39 से लेकर 4:34 तक दुर्मुहूर्त काल रहेगा। भद्रा काल दिन के 1:31 तक ही रहेगा।


चौघड़िया पंचांग से जानें शुभ मुहूर्त


भीमसेन एकादशी के दिन अमृत मुहूर्त सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे, तक शुभ मुहूर्त सुबह 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक चर मुहूर्त दिन के 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक रहेगा।

उसी प्रकार लाभ मुहूर्त 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक एक बार फिर से अमृत मुहूर्त का संयोग 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रहेगा। इस दौरान भी व्रत धारी पूजा अर्चना कर सकते हैं।


अशुभ मुहूर्त चौघड़िया पंचांग के अनुसार जानें


चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार दिन के समय 7:30 से लेकर 9:00 बजे तक काल मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक रोग मुहूर्त, 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त का संजोग रहेगा इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।


रात के समय शुभ मुहूर्त


रात के समय चर मुहूर्त 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक, लाभ मुहूर्त रात 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक, शुभ मुहूर्त 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक, अमृत मुहूर्त 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक और चर मुहूर्त 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रहेगा। इस दौरान व्रतधारी रात्रि पहर का पूजा कर सकते हैं।


रात का अशुभ मुहूर्त


रात्रि समय रोग मुहूर्त का आगमन शाम 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक, काल मुहूर्त 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक, उद्वेग मुहूर्त रात 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।


जानें भीमसेन निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा


भीमसेन व्यास जी से कहते हैं कि हे ! पिता भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करते हैं। परन्तु महाराज मैं उनसे कहता हूं कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूं। दान भी दे सकता हूं, परंतु भोजन की बिना नहीं रह सकता।


इस पर व्यास जी कहने लगे कि हे भीमसेन यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा मानते हो तो प्रति मास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो।

 

भीम कहने लगे कि हे ! पितामह, मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्ष भर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूं। क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है। सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है। इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है।


अतः आप मुझे कोई ऐसी व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक ही करना पड़ें और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। 

व्यास जी कहने लगे कि हे ! पुत्र बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं। जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इस प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।


व्यास जी के वचन सुनकर भीमसेन नर्क में जाने के नाम से भयभीत हो गए और कांपने लगे कि अब क्या करूं ? मास में दो व्रत तो मैं कर ही नहीं सकता। हां वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूं। अतः वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।


यह सुनकर व्यास जी करने लगे वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। अचमन में छह मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए। अन्यथा यह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।


यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करें तो उसे सारी एकादशियों का व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी के सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान करना चाहिए। उसके पश्चात भूखे और सत्य पात्र ब्राह्मण को भोजन करा फिर आपको भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक साल की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।


महर्षि व्यासजी कहने लगे कि हे ! भीमसेन यह मुझ को स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्थ तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल  एक दिन मनुष्य निर्जला रहने से सभी पापों से मुक्ति हो जाता है।


 जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं। उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं ले जाते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बैठा कर स्वर्ग ले जाते हैं। अतः संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए पूरे मनोभाव के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और गौ दान करना चाहिए।


इस प्रकार व्यास जी के आज्ञा अनुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे ! भगवान आज मैं निर्जला व्रत करता हूं। दूसरे दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करूंगा, तो आपकी कृपा मेरे सारे पाप नष्ट हो जाए। इस दिन जल से भरा एक घड़ा वस्त्र से ढंक कर स्वर्ण रखकर दान करना चाहिए।


 जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ों किलो सोने के दान का फल मिलता है। और जो इस दिन एक यज्ञदिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णु लोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं वह चांडाल के समान है। वे अंत में नर्क में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है। वह चाहे ब्राह्मण हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है।


हे ! कुंती पुत्र जो पुरुष या स्त्री श्रद्धा पूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन,, फिर गोदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान और दक्षिणा देना देनी चाहिए। तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र और जूता आदि का दान भी करना चाहिए। जो मनुष्य भक्ति पूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।



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