Special on the birth anniversary of Sant Kabir Das
संत कबीर दास की जयंती 24 जून 2021 पर विशेष।
जानें कबीर दास जी की जन्म कहां हुई।
उन्होंने मर कर प्रमाणित कर दिया है कि स्वर्ग और नरक यहीं है।
कबीरदास की रचनाएं और भाषा के संबंध में पूरी जानकारी।
कबीर दास के 12 सर्वश्रेष्ठ कविताएं जिसमें दिखती है जीवन की हर पहलू ? जानें विस्तार से।
जानें कबीरदास के बारे में
महान संत कबीर दास जी एक प्रगतिशील विचारधारा के मालिक थे। वे धर्म के पाखंड पर अपनी कविता के माध्यम से गहरा आघात किए हैं। कबीर दास ने किसी भी धर्म के अंदर व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर गहरा प्रहार, अपने कविता के माध्यम से किए हैं।
उनकी रचनाएं वर्तमान समय में लोगों को जीवन जीने का एक सीख देती है। अंधविश्वास से परे भगवान की भक्ति कैसे किया जाए, उन्होंने सरल भाषा में जनमानस को समझाने का काम किया है।
जीवन परिचय
संत कबीर दास जी का जन्म 1440 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित लहर ताल गांव में हुआ था। प्रख्यात समाज सुधारक कबीर दास जी की पिता का नाम नीमा था। माता का नाम नीरू और पत्नी की नाम लोई थी। एक पुत्र जिसका नाम कमाल और पुत्री का नाम कमली थी। उनकी मृत्यु 1578 में मगहर में हुई थी। कबीरदास जी के गुरु का नाम स्वामी रामानंद था।
अंधविश्वास पर मात दी अपनी मृत्यु से
सनातन धर्म में मान्यता है कि, कोई भी जातक (मनुष्य) की मृत्यु अगर बनारस में हो जाता है तो सीधे शिव धाम को प्राप्त कर स्वर्ग लोक वासी हो जाता है। संत शिरोमणि श्री कबीर दास ने इस मिथक को तोड़ते हुए अपना भौतिक शरीर का त्याग मगहर में किया। मगहर के मामले में प्रचलित था कि अगर कोई भी व्यक्ति मगहर में मरता है तो उसे नरक मिलता है । इसी भ्रम को तोड़ने के लिए उन्होंने अपना शरीर मगहर में जाकर त्याग किया।
कबीर दास की रचनाएं और भाषा
संत कबीरदास की रचनाएं साक्षी, शरद और रमैनी है। उन्होंने अवधि्, पंजाबी, राजस्थानी, पंचमेल, खिचड़ी ,घुमक्कड़ी और खड़ी भाषाओं में कविता लिखी। उन्होंने समाज में फैली कुर्तियां ,कर्मकांड और अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की।
कबीर दास जी के अनमोल वचन जो हमारे जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ता है। जीवन जीने का सीख देता है।भगवान से मिलाने के सीधे रास्ता बताता है। जानें उनके चंद दोहे से।
काकर पाथर जोड़ के मस्जिद लाई बनाय,,
तार चढ़ी मूला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाई,
पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़,
ताते ये चक्की भली पीस खाए संसार।
कबीर दास जी का कहना है कि कंकड़, पत्थर जोड़ कर मस्जिद बना लिए उस पर चढ़कर मुल्ला रोज बांग देता है। क्या अल्लाह बहरा हो गए है। उसी प्रकार पत्थर पूजने से जब भगवान मिल सकते हैं तो पहाड़ पूजने और जल्द मिल जाएंगे। उनका कहना यह सब मतलबी दुनिया है। उससे अच्छा चक्की में गेहूं डालो पीस और खाओ।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताएं।
कबीरदास जी कहते हैं कि जब हमारे सामने गुरु और ईश्वर दोनों एक साथ खड़े हैं तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे। गुरु ने अपने ज्ञान के द्वारा हमें ईश्वर से मिलने का रास्ता बताया है। इसलिए गुरु की महिमा ईश्वर से भी ऊपर है। अतः हमें गुरु का चरण स्पर्श करना चाहिए।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
कबीरदास जी कहते हैं कि ना तो अधिक बोलना अच्छा है और न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं है। बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।
पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
कबीरदास जी कहते हैं कि बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए पर सभी विद्वान ना हो सके। कबीरदास मानते हैं कि यदि कोई प्रेमी और प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह से पढ़ ले। अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो, वही सच्चा ज्ञानी है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई।
कबीरदास जी कहते हैं जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझसे कोई बुरा ना मिला। जब मैंने अपने मन में झांका कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।
इस संसार में आकर कबीर दास जी अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी ना हो।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए,
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।
कबीरदास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे को तो सुख पहुंचाती ही है उसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय,
जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ ना होए।
जब मृत्यु का समय नजदीक आया और राम के दूतों का बुलावा आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्योंकि जो आनंद संत और सज्जनों की संगति में है उतना आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा।
साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय,
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।
कबीरदास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए। मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार खा सकें और मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाए।
आया है सो जाएगा, राजा रंक फ़कीर,
एक सिंघासन चढ़ी चले, एक बंधे जंजीर।
कबीरदास जी कहते हैं कि जो इस दुनिया में आया है उसे एक न एक दिन जरूर जाना है। चाहे राजा हो या फकीर ? अंत समय यमदूत उसको लेने आयेंगे। अच्छे कर्म करने वाले को सिहासन पर जबकि बुरे कर्म करने वाले को जंजीर में बांधकर ले जायेंगे।
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसे हम रोए,
ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोए।
कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरे तो दुनिया रोए और हम हंसे।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर,
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
संत कबीर दास जी ने समाज के धनवान लोगों पर व्यंग कसते हुए कहा है कि ऐसा धनवान होना का क्या मतलब जो निर्धनों को सहायता ना कर सके। उसी प्रकार खजूर का पेड़ होने से क्या फायदा है ना उसमें पक्षी निवास कर सकते हैं और ना ही वह किसी राहगीर को छाया दे सकता है।
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कबीर दास के जीवनी और उनकी अलौकिक कथाओं के साथ ही उनके ख्याति प्राप्त दोहे का अनुठा संगम यहां पढ़ें।