कोरोना काल में कैसे मनाएं गंगा दशहरा ? जाने सरल विधि


How to Calebrate Ganga Dussehra in Corona Ear

कोरोना काल में कैसे करें गंगा दशहरा के विधि विधान से पूजा, स्नान और तर्पण जाने सरल विधि से।

गंगा दशहरा के दिन मां गंगा स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। 

अयोध्या से जुड़ी है गंगा दशहरा का इतिहास।

 राजा भगीरथ के अथक प्रयास से गंगा पृथ्वी लोक पर अवतरित हुई।

कपिल मुनि के श्राप से सागर के साठ हजार पुत्रों की हुई थी मृत्यु।

पंचांग के अनुसार जाने आज का दिन कैसा रहेगा।

20 जून 2021, दिन रविवार, जेष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि शाम 4:30 तक रहेगा। इस दिन नक्षत्र चित्रा जो शाम 6:50 बजे समाप्त हो जाएगा। इसके बाद एकादशी प्रारंभ हो जायेगी। 

सूर्योदय सुबह 5:24 मिनट पर, सूर्यास्त शाम 7:22 मिनट पर होगा। उसी प्रकार चंद्रोदय शाम 7:22 पर और चन्द्रास्त रात 1:00 बज के 10 मिनट पर होगा। दिनमान 13 घंटा 58 मिनट और रात्रिमान 10 घंटा 2 मिनट का रहेगा।

 शक संवत 1943 (पल्लव) विक्रम संवत 2070 ( आनंद) हैं।

आनंदादि योग पद्मा है जो 6:50 तक रहेगा इसके बाद लुम्ब शुरू हो जाएगा । होमाहुति शनि है। दिशा शूल पश्चिम, राहू वास उत्तर है। अग्निवास पृथ्वी 4:21 तक इसके बाद आकाश हो जाएगा। चंद्रवास दक्षिण है शाम 7:00 बज के 43 मिनट तक इसके बाद पश्चिम हो जाएगा।

अभिजीत मुहूर्त एक 11:55 से लेकर 12:51 तक।

पंचांग के अनुसार स्नान करने का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार विजया मुहूर्त दोपहर 2:42 बजे से शुरू होकर 3:00 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 7:08 बजे से शुरू होकर 7:32 बजे तक, सायाह्म संध्या मुहूर्त शाम 7:22 बजे से लेकर 8:22 बजे तक है। 

निशिता मुहूर्त मध्य रात्रि 12:3 बजे से लेकर 12:43 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:04 बजे से लेकर 4:44 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त 4:24 बजे से लेकर 5:24 बजे तक रहेगा। इस दौरान गंगा स्नान करना श्रेष्ठ रहेगा।

चौघड़िया पंचांग के अनुसार जानें स्नान करने का शुभ मुहूर्त

चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 7:30 बजे से लेकर दिन के 12:00 बजे तक शुभ मुहूर्त है इस दौरान गंगा स्नान कर ले जितने धार्मिक कार्यक्रम में सभी को पूर्ण करने का उचित समय यही है। इसके बाद 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक शुभ मुहूर्त का भी आगमन हो रहा है इस दौरान पूजा अर्चना कर सकते हैं।

 अब जाने विस्तार से कौन से समय में कौन सा मुहूर्त है।

गंगा दशहरा के दिन सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक चर मुहूर्त, 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक लाभ मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक अमृत मुहूर्त और दिन के 1:30 से लेकर 3:00 बजे तक शुभ मुहूर्त का संयोग है।

भूलकर भी ना करें इस मुहूर्त में गंगा स्नान

गंगा दशहरा के दिन सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त, 12:00 बजे से लेकर दिन के 1:30 तक काल मुहूर्त, 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक रोग मुहूर्त और एक बार फिर से शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त है। इस दौरान गंगा स्नान और पूजा अर्चना करना उचित नहीं रहेगा।

वर्तमान समय में कोरोना कल चल रहा है इस दौरान गंगा नदी, तालाब,  कुआं या सार्वजनिक जगहों पर स्नान करना वर्जित हैै। ऐसे में हम गंगा दशहरा के दिन घर में पीतल, तांबा, कांस या स्टील की बाल्टी में शुद्ध जल भरकर उसमें गंगाजल डालकर पूूूर्व की दिशा में मुंह करके ओम गंगे, गंगे का स्मरण करते हुए स्नान करें और श्रद्धा पूर्वक दान दें।    

गंगा दशहरा की धार्मिक कथा

एक समय अयोध्या के राजा सागर थे। राजा सागर के 60,000 पुत्र थे। राजा सागर अश्वमेध यज्ञ किया। यज्ञ का भार अपने जेष्ठ पुत्र अंशुमान को सौंपा। अश्वमेध यज्ञ के उपरांत घोड़े को स्वतंत्र रूप से भ्रमण करने के लिए छोड़ दिया गया। देवराज इंद्र ने सागर के यज्ञ के घोड़े को हरण कर लिया। 

यह यज्ञ के लिए विघ्न था। अंशुमान अपने साठ हजार भाइयों के संग लेकर अश्व को खोजने का काम शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया परंतु घोड़े का कहीं पता नहीं चला। पताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा डाला।

 इन्द्र ने उस घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में ले जाकर बांध दिए थे। पृथ्वी की खुदाई के बाद देखा कि महर्षि कपिल घोर तपस्या में लीन हैं। उन्हीं के आश्रम में यज्ञ का घोड़ा बांथा हुआ था । राजा के पुत्रों और सैनिक ने घोड़े को देखकर चोर चोर चिल्लाने लगे। 

महर्षि कपिल मुनि की समाधि टूट गई और महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले तो वहां मौजूद सारे सैनिक और राजा सागर के पुत्रों जलकर भस्म हो गए।

अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए महाराजा सागर के पौत्र तथा महाराजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा तो, भागीरथ ने गंगा की मांग की। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा राजन आप तो गंगा का अवतरण तो चाहते हैं, परंतु आपने पृथ्वी से पूछा कि क्या वह गंगा के भार और वेग को संभाल पाएगी।

 मेरे विचार है कि गंगा के वेग को संभालने के लिए केवल भोलेनाथ अर्थात शिव भगवान की सक्षम है। इसलिए उचित होगा कि गंगा के भार और वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त हो। आप शिव को प्रसन्न करने में लिए तप करें।
 
महाराज भगीरथ ने ऐसा ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा जी को अपने कमंडल से छोड़ दिया। भगवान शिव ने गंगा की धाराओं को अपने जटाओं में समेट लिया और बांध दिया। गंगा भोलेनाथ की जटा से बाहर निकल नहीं पाती। भगीरथ के निवेदन करने पर  भगवान शिव ने गंगा को मुक्त कर दिया। 

मां गंगा हिमालय घाटी से होते हुए मैदान की ओर बढ़ चली। राजा भागीरथ के पूर्वजों की राख गंगा की निर्मल धारा से पवित्र हो गए और सभी लोगों को मुक्ति मिल गई।

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