अपने पति की दीर्घायु की कामना कर, सुहागन महिलाएं करती है बट सावित्री पूजा ?
अमृत योग में करें बट सावित्री की पूजा ?
पूजा करने का शुभ और अशुभ समय पंचांग और चौघड़िया के अनुसार ?
पूजा अर्चना करने का उचित समय 10:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक।
पूजा करने के विधि और सामग्रियों की सूची ?
पौराणिक कथा विस्तार से जानें ?
पंचांग के अनुसार बट सावित्री के दिन कैसा रहेगा ?
बट सावित्री पूजा 10 जून 2021, दिन बृहस्पतिवार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को (शाम 4:22 तक) मनेगा। उस दिन रोहिणी नक्षत्र दिन के 11:45 तक है। सूर्य वृषभ राशि में जबकि चंद्रमा वृषभ राशि में रात 1:10 तक रहेगा। इसके बाद के बाद मिथुन राशि में प्रवेश कर जाएगा।
इसलिए दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करना वर्जित है क्योंकि नरक का द्वार दक्षिण दिशा में ही स्थित है।
( बट सावित्री पूजा करने का उचित और शुभ मुहूर्त सुबह 10:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक है। इस दौरान पूजा अर्चना करना अनंत फलदाई होगा। )
पंचांग के अनुसार पूजा करने का उचित समय
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:53 बजे से लेकर 12:49 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा करना श्रेष्ठ होगा।
उसी प्रकार दिन के 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक अमृत मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान पूजा-अर्चना करना सुहागिन महिलाओ के लिए सर्वश्रेष्ठ होगी।
और भी जानें अन्य शुभ मुहूर्त
विजया मुहूर्त दोपहर 2:40 बजे से लेकर 3:36 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक शुभ मुहूर्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक चर मुहूर्त और अमृत मुहूर्त 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक है। महिलाएं बट सावित्री पूजा करने के लिए यही समय चुनें।
शाम का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार गोधनी मुहूर्त शाम 7:05 बजे से लेकर 7:29 बजे तक और सायाद्ध सांध्य मुहूर्त 7:19 बजे से लेकर 8:19 बजे तक रहेगा।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक शुभ मुहूर्त, 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक अमृत मुहूर्त और 7:30 बजे से लेकर रात 9:00 बजे तक चर मुहूर्त का आगमन होगा। इस दौरान महिलाएं पूजा अर्चना कर सकती है।
अब जानें अशुभ मुहूर्त
बट सावित्री के दिन महिलाओं को दोपहर 1: 30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक राहुकाल चल रहा है। राहू काल के समय ही विजया मुहूर्त और अमृत मुहूर्त का संयोग बन रहा है। इसलिए इस दौरान पूजा अर्चना करना उचित होगा।
इस दौरान भूलकर भी पूजा अर्चना न करें। उसी प्रकार सुबह 8:52 से लेकर 10:36 तक गुलिक काल रहेगा। चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक रोग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त और शाम 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक काल मुहूर्त का योग है।इ दौरान सुहागिन महिलाएं भूलकर भी पूजा अर्चना ना करें।
कैसें करें हैं बट सावित्री की पूजा, पूरे विधि विधान से ?
सुहागन महिलाएं सावित्री व्रत के दिन सोलह सिंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाइयां से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें।
बट वृक्ष के सामने जाकर हाथ में जल का अचमन और अक्षत लेकर के कहें जेष्ठ मास, कृष्ण पक्ष, अमावस्या तिथि, दिन गुरुवार मेरे पुत्र और पति की अयोग्यता के लिए एवं जन्म जन्मांतर में विधवा ना होऊ। इसलिए सावित्री की व्रत करती हूं। बटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा का निवास, मध्य में श्रीहरि का निवास, अग्र भाग में शिव का निवास और समग्र भाग में सावित्री का वास होता है।
बट वृक्ष को पंखा से हवा दें ? व्रतधारी महिलाएं
पीतल या तांबे के लोटे से शांति जल निवेदित करते हुए कहना है कि, मैं तुमको सींचती हूं और बट वृक्ष के जड़ में पानी डालें। इसके बाद महिलाएं भक्ति पूर्वक एक सूत के डोरे से बट बीच को 11, 21, 51 या 101 बार लपेटने की विधान करती है। बट वृक्ष को गंध, पुष्प, अक्षत, फल और मिठाइयों से पूजन कर और सावित्री को नमस्कार करके प्रदक्षिण (घूमती ) करती है। अंत में बट वृक्ष को पंखे से हवा देती है। घर आने पर पति को पैरों को धोकर और टीका लगाकर, कच्चा सूत हाथों में बंधती है।
पौराणिक कथा जानें विस्तार से
बट सावित्री पूजा महिलाओं की अखंड सौभाग्य से जुड़ी हुई है। महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए इस व्रत को बड़े निष्ठा से संपन्न करती है। निर्जला व्रत नारियों की पहचान बन चुकी है।बट सावित्री पूजा आज भी भारतीय नारियों की आदर्श का प्रतीक है।
राजा अश्वपति ने किया 18 वर्षों तक तप, तब हुई सावित्री
कथा के संबंध में कहा गया है कि प्राचीन काल के भद्र देश में अश्वपति नाम का एक राजा राज्य करते था। यह बड़ा ही धर्मात्मा, ब्राम्हण भक्त, सत्यवादी और जितेंद्र थे। राजा को सब प्रकार का सुख था किंतु कोई भी संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने संतान की प्राप्ति की कामना कर 18 वर्षों तक पत्नी सहित देवी सावित्री की विधि पूर्वक व्रत रखकर, विधि विधान से पूजा-अर्चना कर, कठोर तपस्या की। देवी सावित्री ने प्रसन्न होकर पुत्री के रूप में अश्वपति के घर जन्म लेने का वर दिया। कुछ समय बाद बड़ी रानी ने एक तेजस्विनी और अत्यंत सुंदर कन्या ने जन्म दिया।
सावित्री ने पसंद किया सत्यवान
कन्या के युवा होने पर अश्वपति ने सावित्री के विवाह का विचार करने लगे। राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला। सावित्री को स्वयं वर खोजने के लिए पिता ने आदेश दिया। पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग मंत्रियों के साथ लेकर स्वर्ण रथ पर बैठकर यात्रा के लिए निकल पड़ी। कुछ दिनों तक ब्रह्म ऋषियों और राज ऋषियों के तपोवन और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद राज महल लौट आई। पिता के साथ के साथ ऋषि नारद जी को बैठे देखकर दोनों के चरणों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया।
राजा के पूछने पर सावित्री ने कहा पिताश्री तपोवन में माता-पिता के साथ निवास कर रहे धमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग है। अतः सत्यवान की कृति सुनकर उन्हें मैंने पति के रूप में वरण कर लिया है।
नारदजी ने सत्यवान की आयु बताई 1 वर्ष
वे लोग वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके थे । सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु अब केवल 1 वर्ष की शेष रह गया है। नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्याग्र हो गए और उन्होंने सावित्री को कहा बेटी अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग वर का वरण करो। सावित्री सती कन्या थी। उसने दृढ़ता से कहा पिताश्री मैं आर्य कन्या होने के नाते जब मैं सत्यवान का वरण कर चुकी हूं तो, अब सत्यवान चाहे अल्प आयु हो या दीर्घायु अब तो वही मेरे पति बनेंगे। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरुष का वरण कैसे कर सकती हूं।
सावित्री ने सत्यवान से शादी करने को ठान ली
सावित्री नाम की धर्मनिष्ठ महिला जिसे पता था उसका पति की आयु मात्र 1 साल है। फिर भी उसे अपने नारी और सतीत्व पर यकीन था। उसमें यमराज से भी लड़ने कि शक्ति थी।
घटना के दिन पति और पत्नी दोनों जंगल में लकड़ी काटने गए थे। सत्यवान के पिता राजा थे, परंतु नियति ने उन्हें आंधा और गरीब बना दिया था। सत्यवान लकड़ी काटने के उपरांत उसने सावित्री से कहा। सर में दर्द हो रही है । सावित्री कुछ समझ पाती उसी बीच उसके पति के शरीर से प्राण निकल चुके थे। थोड़ी देर में सावित्री ने देखी एक दिव्य व्यक्ति पति की आत्मा को ले जाने के लिए आए हैं। उसने सत्यवान की आत्मा को लेकर चलने लगे। उसके पीछे पीछे सावित्री भी चलने लगी।
सावित्री ने मांगी आंखों की रोशनी और खोया राज्य
यमराज ने कहा पुत्री कुछ मांग लो और लौट जाओ। सावित्री ने अपने नेत्र हीन सास ससुर की आंखें और खोया हुआ विरासत मांग लिया। इसके बाद भी वह यमराज की पीछा नहीं छोड़ी। तो यमराज ने कहां की पुत्री स्वस्थ्य शरीर लेकर स्वर्ग लोक में कोई नहीं जाता है। इसलिए तुम लौट जाओ। विधि का विधान है पति की इतना ही आयु बची थी। मुझे तुम्हारे पति को ले जाना मेरी मजबूरी है।
सावित्री ने मांगी यमराज से 100 पुत्र प्राप्ति की वरदान
सावित्री ने कहा कि मुझे एक सौ पुत्र होने का वरदान दे। यमराज ने वरदान दे दिया। फिर भी जब सावित्री पीछा नहीं छोड़ी तो यमराज ने कहा अब क्या चाहिए ? सावित्री कही प्रभु आपने मुझे पुत्रवती होने का वरदान तो दे दिया है, परंतु मेरे पति को आप लेकर जा रहे हैं। ऐसे में मुझे पुत्र की प्राप्ति कैसे होगी। यमराज अपने वचन से हार चुके थे। और उन्होंने सावित्री के पति का प्राण वापस कर दिया और फिर लौट गए।