बिहार, यूपी में होने वाले विवाह की संपूर्ण रस्में और विधियां

शादी की रस्मे

बिहार और उत्तर प्रदेश में शादियां की विधियां क्या हैं।

  1. रिंग शिरोमणि,

  1.  तिलक, 

  1. हल्दी लेपन, 

  1. मटकोर, 

  1. देवी पूजन, 

  1. इमली धोटाने की विधि, 

  1. नाऊ के हाथों संदेश भेजना, 

  1. द्वार पूजा, 

  1. यज्ञा मांगना, 

  1. गुरहथी करना, 

  1. दूल्हे और साला की विधि,

  1.  धान की लावे के विधि, 

  1. शंख पानी विधि, 

  1. अग्नि परिक्रमा विधि, 

  1. सिंदूरदान विधि, 

  1. कोहवर पूजा 

  1. और अंत में विदाई।

उत्तर प्रदेश, बिहार सहित देश के अन्य प्रदेशों में रहने वाले वैसे लोग जो काशी पंचांग के अनुसार विवाह का कार्य संपन्न कराना चाहते हैं। उन लोग इन विधियों पर अमल करते हैं। गांव के लोगों को इन विधियों की जानकारी है, परंतु शहर में रहने वाले लोग इन विधियों के बारे में अधूरा ज्ञान रखते हैं। उनकी अज्ञानता को पूर्णता करने के लिए इस लेख को लिखा गया है।

रिंग शिरोमणि


विवाह का शुभारभ
 रिंग शिरोमणि से होता है। लड़का और लड़की पक्ष वाले आपस में एक जगह मिलते हैं। जहां पर लड़का लड़की को देखता है। लड़की लड़का को देखती है। दोनों एक दूसरे से भावी जीवन के बारे में बातचीत करते हैं। इसके बाद एक दूसरे के उंगलियों में अंगूठी पहनाते हैं। घरवाले आपस में वस्त्र, मिठाईयां और फलों का आदान प्रदान करते हैं। 

तिलकोत्सव


विवाह का दूसरा चरण तिलकोत्सव शुरू होता है। इस मौके पर दुल्हन के परिवार दूल्हे के घर जाते हैं। अपने सामर्थ्य अनुसार तिलक चढ़ाते हैं। तिलक के दिन दूल्हे पक्ष वाले स्वादिष्ट भोजन का उत्तम प्रबंध और घरों को भव्य रूप से सजाते हैं। 

शाम के समय सत्यनारायण पूजा के उपरांत अरवा चावल के लेप से चौका बनाया जाता है। जिस पर लड़का बैठता है। तिलकोत्सव के मौके पर पंडित जी मंत्रों उच्चारण करते हैं।

 इस बीच लड़की पक्ष घर में इस्तेमाल होने वाले सामानों सहित मिठाई, फल, आदि भगवान को साक्षी मानकर वर को समर्पित करते हैं। तिलक चढ़ाते समय कांस्य या चांदी का कटोरा में नारियल रखकर वर बैठता है।

मटकोर


मटकोर के दिन घर की महिलाएं गाजे बाजे के साथ माथे पर दौरा और कुदाल लेकर खाली मैदान में जाती है। जहां ननद कुदाल से मिट्टी खोदती है, और पांच सुहागन के आंचल में मिट्टी डालती है। उस मिट्टी से घर में बनने वाली वेदी का निर्माण किया जाता है। उसी दिन से वर वधु को हल्दी लगाने का कार्य शुरू हो जाता है। यह कार्य विवाह के दिनों तक चलता है।

हल्दी लेपन


मटकोर के दिन से ही वर और वधु को हल्दी लेपन का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। हल्दी को पीसकर पानी में मिलाकर घर की महिलाएं गीत गाते हुए वर वधु के शरीर में हल्दी का लेप लगाने लगते हैं।

 हल्दी लेप के साथ-साथ सरसों का तेल और आंखों में काजल भी लगाया जाता है। वैसे तो 24 घंटे में 5 बार महिलाएं वर और वधु को हल्दी का लेप लगाती है। परन्तु तीन बार लगाना अनिवार्य है।

मंड़पा छावन


विवाह के 1 दिन पहले घर के आंगन में बांसों से बने मंडपा छावन का कार्य घर के पुरुष करते हैं। मंड़प छावन में 5, 7 या 9 बांसों का इस्तेमाल किया जाता है। मंडवा छावन के दिन दूल्हे और दुल्हन को महिला और पुरुष हल्दी चढ़ाने की विधि भी करते हैं।

 संध्या वेला सत्यनारायण पूजा के उपरांत लोग भोजन ग्रहण करते हैं। मंडप छावन करने वाले लोगों के बीच मिठाइयों का भी वितरण किया जाता है।

 देवी पूजन


विवाह दिन घर की महिलाएं निकट के देवी स्थान गाजे बाजे के साथ गीत गाते हुए जाती है। जहां पर देवी मां के चरणों में वर वधु के वस्त्र, मिठाइयां, फल और फूल चढ़ाकर दीर्घायु की कामना करती है साथ ही वैवाहिक कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न हो गया इसकी आशीष मां से मांगती है।

इमली घोटाना


वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान इमली घोटाने का कार्यक्रम होता है। इस दौरान भाई अपने सामर्थ्य के अनुसार आभूषण, कपड़ा और पैसा अपनी बहन को दान देते हैं। विधि के अनुसार मां के साथ लड़का और लड़की बगल में बैठती है।
                             मां के भाई पानी से भरे पीतल के लोटे से आम के पत्ते से जल लेकर मुंह में डालते है। उस जल को मां अपने बेटा या बेटी के हाथ में डालती है। कहा जाता है कि आज के दिन से ही बेटे और बेटी अपना होते हुए भी पराई हो जाती है।


बरात आगमन के बाद की विधियां


वर पक्ष द्वारा बारात लेकर लड़की के घर आने के बाद शुरू होने वाले विधियों का विस्तार से नीचे जानकारियां नीचे दी जा रही है।


नाऊ के हाथों संदेश भेजना


जैसे ही वधू पक्ष के लोगों को पता चलता है की बारात आ गई है। उसी वक्त नाऊ हाथों में तलवार लेकर साथ में लड़की पक्ष के द्वारा भेजे गए पत्र लेकर लड़के के पिता के पास पहुंचता है और पत्र उन्हें देता है। पत्र में लिखा रहता है कि आपको हमारे यहां स्वागत है आपको किसी प्रकार की तकलिफ नहीं होगी हम यह वचन देते हैं। 

द्वार पूजन


बारात में आए लोग नाचते गाते ढोल बजाते बधू के घर कि ओर चल पड़ते हैं। आतिशबाजी और तरह-तरह के डांस उस दौरान नाव युवकों द्वारा किए जाते हैं। द्वार पर पहुंचने के बाद लड़की पक्ष वालों फूलों का माला पहनाकर बारातियों का स्वागत करते हैं। 

इसके बाद द्वार पूजन का विधान चालू हो जाता है। पंडित जी द्वारा लड़के को वैदिक मंत्रों के साथ स्वागत करते हैं और विभिन्न प्रकार की आहुतियां दिला मंत्र का उच्चारण करवाते हैं।

यज्ञा मांगना 


द्वार पूजन के उपरांत आज्ञा मांगने की परंपरा होती है। लड़की पक्ष वाले दो लोगों के कंधे पर घड़ा रख कर जहां पर आप ठहरे हुए हैं वहां जाते हैं और अन्य मांगने का विधान पूरा करते हैं। देहाती भाषा में इसे धूंआ पानी कहा जाता हैं। 

पंडित जी द्वारा मंत्रों उच्चारण के साथ दूल्हे का पूजन करते हैं। इसके बाद सभी बारातियों को अपने घर में भोजन पर आने को आमंत्रित करने के लिए दूल्हे का भाई पीतल का लोटा पर रुमाल ढक कर उस पर पैसे रखकर सभी वारातियों के पास जाकर खाने का निमंत्रण देता है।

गुरहथी करना


गुरहथी चढ़ाने का मतलब लड़की को आभूषण और वस्त्र देना। यह कार्य लड़के का बड़े भाई करता है। मंडप बाकी पहुंचते विधि विधान से वधू को वस्त्र, आभूषण सहित सिंगार के सभी समाज अर्पित करते हैं।

दूल्हे और साला का विध


दूल्हा जब दुल्हन के घर आता है तो घर की सभी महिलाएं अपनी परंपरा के अनुसार लकड़ी से बनी मुसल या लोड़ा से उसे परछती है। उसके बाद लड़की का भाई गमछा या कपड़ें से उसके कमर में बांधकर घर लेकर आता है। घर लाने के दौरान सालियां भी जमकर मजाक करती है। इसी दौरान सालियां दूल्हे का जूता भी चुरा लेती है।

धान की लावे का विधि


धान की लावे के साथ मड़प परिक्रमा करने की विधि हैं। जिसमें लड़की की भाई गमचे में लावा लेकर लड़की के पीछे और लड़का आगे-आगे रहता है। भाई अपनी बहन और बहनोई के साथ मिलकर लावा छिटते हुए मंडप के सात परिक्रमा करते हैं। इस दौरान महिलाएं विवाह की शुभ गीत गाती रहती है।


शंख पानी की विधि


विवाह के दौरान शंख पानी की विधि होती है। लड़का लड़की और मां-बाप एक दूसरे के हाथों पर हाथ रख कर पंडित जी मंत्र द्वारा शंख से पानी गिराते हैं। लगातार 1 घंटे तक चलने वाली इस विधि में सबसे पहले लड़का-लड़की और मां-बाप एक साथ यह विधि करते हैं। इसके बाद सिर्फ लड़का और लड़की इस विधि को पूर्ण करती हैं।

अग्नि परिक्रमा


वैवाहिक कार्यक्रम में सबसे महत्वपूर्ण कारक अग्नि परिक्रमा है। लड़का और लड़की गठबंधन कर अग्नि के सात फेरा लेती है और जीवन भर साथ निभाने का वादा करते हैं। अग्नि फेरा में लड़का आगे-आगे चलता है जबकि लड़की पीछे पीछे चलती है। इस दौरान पंडित जी मंत्र उच्चारण करते रहते हैं।

सिंदूर दान


अग्नि फेरा के सामान सिंदूर दान का महत्व बहुत ज्यादा है। सिंदूर दान के लिए सिन्होरा, अखरा सिंदूर और सन की जरूरत पड़ती है। सिंदूर दान के समय कपड़े की चाहरदीवारी में लड़का लड़की की मांग को 3, 5 और 7 बार सिंदूर भरता है। मान्यता है कि सिंदूर दान करते समय इसकी साक्षी लड़का लड़की और स्वयं भगवान रहते हैं। इसलिए सिंदूर दान देखना वर्जित है।

कोहबर पूजन


सिंदूरदान के बाद घर की महिलाएं लड़का और लड़की की चुमावन करते हैं। इसके बाद घर में बने कोहबर पूजन चल पड़ते हैं। जहां उन दोनों को कोहबर पूजन करनी पड़ती है। इसके पूर्व सालियों द्वारा वरका रास्ता पैसा लेने की विधि होता है।

विदाई


शादी के अंतिम कड़ी विदाई होती है। जिसका दृश्य बड़ा ही मार्मिक दिखता है। वधू अपने घर के सदस्यों से रोती बिलखती वर के साथ नया घर अर्थात मायके की ओर चल पड़ती है। अपने सुनहरे जीवन और सुनहरे भविष्य की कल्पना करते हुए।

डिस्क्लेमर 
यह लेख पूरी तरह धार्मिक, आध्यात्मिक और भारतीय परंपराओं पर आधारित है। लेख लिखने के पूर्व स्थानीय बुजुर्गों, पंडितों और आचार्यों से विचार विमर्श कर लिखा गया है। लेख लिखने के पूर्व जहां जांच प्रताप और छानबीन कर लिखा गया है। लेख पूरी तरह लोक परंपराओं पर आधारित है। लोगों को अपनी वैवाहिक परंपराओं की जानकारी देने के लिए लिखा गया है।

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