अमृत योग में करें होलिका दहन, 2021 का

पंचांग के अनुसार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 28 मार्च 2021 अर्थात फागुन शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा तिथि के दिन संध्या 7:30 से लेकर रात 10:30 तक रहेगा।

 संध्या 7:30 बजे से लेकर रात 9:00 बजे तक अमृत मुहूर्त का संयोग है। उसी प्रकार 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक चर मुहूर्त का संयोग रहेगा। सबसे अच्छा अमृत मुहूर्त में होलिक दहन करना चाहिए।


क्यों करें, अमृत मुहूर्त में होलिका दहन ? जाने पंचांग के अनुसार


होलिका दहन में शुभ मुहूर्त का काफी महत्वपूर्ण भूमिका होता है। शुभ मुहूर्त देखकर होलिका में अग्नि की आहूति दी जाती है। इस बार शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 तक राहुकाल हैं इस दौरान होलिका दहन करना वर्जित है। इसके बाद उद्वेग काल, जो शाम 6:16 से लेकर रात 7:49 तक रहेगा। उक्त समय होलिका दहन के लिए उचित नहीं रहेगा।

 रात 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक अमृत मुहूर्त का अदभूत संयोग है। इस दौरान होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत और विश्व कल्याण के लिए उचित समय होगा। इसके बाद चर मुहूर्त रात 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक है। इस दौरान भी होलिका दहन कर सकते हैं। परंतु उचित समय शाम 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक अमृत मुहूर्त के दौरान ही रहेगा।


अब जाने सूर्य और चंद्रमा की स्थिति


उत्तरा फाल्गुनी माह के शुक्ल पक्ष, दिन रविवार, दिनांक 28 फरवरी को होलिका दहन है। इस दिन सूर्यास्त 6:36 पर होगा जबकि चंद्रोदय 6:15 से हो जाएगा।

 होलिका दहन के दिन चंद्रमा कन्या राशि में और सूर्य मीन राशि में रहेंगे। वसंत ऋतु, योग वृद्धि और करण विष्ट रहेगा। होलिका दहन के दिन शक संवत 1942, कली संवत 5122, और विक्रम संवत 2077 है।


इस दिन भूलकर भी ना करें ये शुभ कार्य


वैवाहिक कार्यक्रम, मुंडन, गृह प्रवेश, नामकरण, अन्नप्राशन अर्थात मुंह जुठी, विद्यारंभ, उपनयन, अर्थात जनेऊ संस्कार, जमीन की खरीद-फरोख्त। यह सभी शुभ कार्य करना सख्त मना है जो लोग इस दिन यह सभी कार्य करते हैं उन्हें विषम परिस्थितियों से गुजरते हुए दुख भोगना पड़ता है।

होलीका दहन के दिन शुभ मुहूर्त मायने रखता है


होलिका दहन का मुहूर्त किसी पर्व, त्यौहार या व्रत के मुहूर्त से ज्यादा महत्वपूर्ण और आवश्यक है। यदि किसी व्रत की पूजा शुभ मुहूर्त के समय न की जाए तो मात्र पूजा के लाभ से लोग वंचित रह जाएंगे।

 परंतु होलिका दहन की पूजा और होलिका में अग्नि प्रज्जवलित अगर उपयुक्त समय पर ना किया जाए तो दुर्भाग्य, पीड़ादायक और घरों में दरिद्रता लेकर आती है। इसलिए होलिक दहन शुभ मुहूर्त पर करना फलदाई और उत्तम रहेगा।

28 मार्च को दिन के 1:54 पर भद्रा समाप्त हो जाएगा ऐसे में प्रदोष काल में इस बार होलिका का दहन किया जाना काफी शुभ और फलदाई रहेगा।

होलका दहन को लेकर चार तरह की पौराणिक कथा प्रचलित है।


होलिका, पुतना, शिव-कामदेव और राजा रघु व धुधि की कथा


 पहला कथा हिरण्यकशिपु, बहन होलिका और भक्त प्रह्लाद के बीच का है। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने अपने गोद में लेकर प्रह्लाद को बैठी थी। कारण स्पष्ट था होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे कोई जला नहीं पाएगा। 

 दूसरा कथा पूतना और श्रीकृष्ण की है। कंस ने पूतना को श्री कृष्ण को वध करने के लिए भेजा था और भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना का वध कर दिया। तीसरा कथा राजा रघु और धुधि की और चौथा कथा भोलेनाथ और कामदेव का है।


अग्नि में जल गयी होलिका


हिरण्यकशिपु अपने विष्णु भक्त पुत्र प्रह्लाद को मारना चाहता था। वह चाहता था कि प्रह्लाद भगवान विष्णु का नाम का सुमिरन ना कर मेरे महत्व को आगे बढ़ाएं और विष्णु के नाम किसी प्रकार से भी उसके जुबान पर ना आए।

 परन्तु प्रह्लाद नहीं माना और अंत में हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को लेकर जलती चिता में बैठने का आदेश दे दिया। दैत्यराज के आदेश मिलने पर बहन होलिक प्रह्लाद को लेकर जलती हुई आग में बैठ गई।

 क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग से नहीं जलेगी। इसी अभिमान के तहत प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी। भगवान श्रीहरि की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका आग में जलाकर राख हो गई।

शिव के प्रकोप से भस्म हुए कामदेव

दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार मां पार्वती भोलेनाथ से विवाह करना चाहती थी। परंतु भोलेनाथ गहन साधना में लीन थे। मां पार्वती को विवाह करने के लिए भगवान शिव की तपस्या भंग करनी थी। भगवान भोलेनाथ की साधना भंग करने के लिए माता पार्वती ने कामदेव का सहयोग मांगा।

 कामदेव महादेव का तपस्या भंग करने की बाद सुनते ही वह कांप उठे। उन्होंने माता को स्पष्ट रूप से मना कर दिया। परंतु माता पार्वती और देवताओं को समझाने के बाद कामदेव जी ने भगवान भोलेनाथ की तपस्या भंग करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने प्रेम का वाण चलाया जिसके कारण भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई।

 अपनी तपस्या भंग होने से शिवजी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंखें खोल दी, जिसके फलस्वरूप कामदेव भस्म हो गया। इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह कर लिया। मां पार्वती को समझने के बाद भगवान शिव ने कामदेव को जीवित कर दिया।


राक्षसी धुधि को मार डाला बच्चों ने


एक और पौराणिक कथा भविष्य पुराण से लिया गया है। राजा रघु के राज्य में धुधि नाम की राक्षसी रहती थी। उसे वरदान प्राप्त था कि उसे गली के बच्चे ही मार सकते हैं। बच्चे बड़े कमजोर होते हैं इसलिए उसे मारना असंभव था।

 अंत में राजा रघु को गुरु वशिष्ट ने उपाय बताए कि उसे मारा जा सकता है। यदि बच्चे अपने हाथ में लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े और गोबर के कंडे लेकर शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और ढेर लगा दे।

 ऐसा ही किया गया। लकड़ी और कंडें के ढेर में आग लगाकर बच्चें उत्सव मनाने लगे। उसको देखने के लिए थुंधि स्वयं आई। बच्चों ने पकड़ कर उसे आग में फेंक दिया और वह जल के भस्म हो गई।

श्री कृष्ण की हत्थे चढ़ी पुतला


होली का श्रीकृष्ण और राधा रानी का गहरा रिश्ता है। जहां इस त्यौहार में राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। वहीं पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पुतना नाम की राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा दिया।

 सुंदर नारी बन पुतना नौनिहालों को स्तनपान कराने के बहाने विषपान कराना चाहती थी। बालक त्रिलोकीनाथ भगवान श्रीकृष्ण ने पुतना की सच्चाई और चतुराई जान लिए उन्हें दूध पीने के दौरान पुतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि पुतना वध के बाद लोग होली मनाना शुरू कर दिए।

यह लेख धार्मिक ग्रंथों और पंचांग पर आधारित है। लेख पढ़कर आपको कैसा लगा हमारे ईमेल पर लिखकर भेजे।

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