Holí Special Story
विष्णु भक्त प्रह्लाद का जन्म की कथा के संबंध में अनेक प्रसंग मिलते हैं। प्रमाणित और शास्त्र सम्मत प्रसंग श्री नरसिंह पुराण में लिखा गया है। पुराण के अनुसार प्रह्लाद की मां कयाथु और उसके पिता हिरण्यकशिपु रति क्रिया करने के समय अपने, तपस्या छोड़कर आने की कहानी और श्री विष्णु भगवान से संबंधित कथा सुनाते वक्त कयाथु को गर्भधारण करने के कारण भक्त प्रह्लाद विष्णु भक्त बन गया। आइए जानते हैं, भक्त प्रह्लाद की जन्म की संपूर्ण और प्रमाणिक कथा। किस प्रकार उसके पिता हिरण्यकशिपु जिद करके वन गया और तपस्या बीच में ही छोड़कर नगर क्यों लौट आया जबकि दस हजार वर्षों तक तपस्या करने की बात सभी को कहकर गया था।
कयाथु के गर्भ से प्रह्लाद का हुआ जन्म।
विष्णु संवाद सुनते समय कयाथु ने गर्भधारण किया।
हिरण्यकशिपु ने कयाथु से सच कहने का दिया वचन।
हिरण्यकशिपु ने कयाथु को तपस्या भंग होने की कथा सुनाई।
विष्णु नाम के उच्चारण से हिरण्यकशिपु का हुआ तपस्या भंग।
ब्रह्माजी के व्याकुलता पर विराम लगाएं नारद जी।
शुभचिंतकों के लाख मना करने पर हिरण्यकशिपु तप करने गया वन।
इन सभी विषयों के संबंध में विस्तार से नीचे जानकारी दी गई है। पूरी जानकारी श्री नरसिंह पुराण से लिया गया है।
शुभचिंतकों के लाख मना करने पर हिरण्यकशिपु तपस्या करने गया वन
पूर्व काल में एक समय महाकाप हिरण्यकशिपु तपस्या करने के लिए वन में जाने के लिए उद्धत हुआ। तप करने जाने की गुंज से उस समय समस्त दिशाओं में दाह और भूकंप होने लगा। यह देखकर उसके हितकारी बंधुओं, मित्रों और भाइयों ने उसे मना किया। सभी लोगों ने मिलकर कहा राजन इस समय बुरे शगुन चारों दिशाओं में दिख रहे हैं। इसका फल अच्छा नहीं है। आप त्रिभुवन के एकछत्र स्वामी हैं। समस्त देवताओं पर अपने विजय प्राप्त की है। आपको किसी के भय भी नहीं है।
फिर किस लिए तपस्या करना चाहते हैं। हम लोगों को कोई प्रयोजन नहीं दिखाई देता, जिसके लिए आपको तप करने की आवश्यकता हो क्योंकि जिस की कामना अपूर्ण होती है वही तपस्या करता है।
ब्रह्माजी के व्याकुलता पर विराम लगाएं नारद जी
अपने बंधुओं के लाख समझाने के बाद भी वह दुर्मद और मदमस्त दैत्य अपने दो तीन मित्रों को साथ लेकर तप करने के लिए कैलाश शिखर को चला ही गया। हिरण्यकशिपु वहां जाकर जब वह परम दुष्कर तपस्या करने लगा, तब पद्मयोनि ब्रह्मा जी को उसके कारण बड़ी चिंता हो गई। वे सोचने लगे ओह? अब क्या करूं। यह दैत्य कैसे तप से निवृत हो इस चिंता से ब्रह्मा जी जब व्याकुल हो रहे थे, उसी समय उनके अंग से उत्पन्न मुनिवर नारद जी ने उन्हें प्रणाम करके कहा, पिताश्री आप तो भगवान नारायण के आश्रित हैं। फिर आप क्यों खेद कर रहे हैं। जिसके हृदय में भगवान गोविंद विराजमान हैं उन्हें इस प्रकार का सोच नहीं करना चाहिए। तपस्या में प्रवृत्त हुए उस दैत्य हिरण्यकशिपु को मैं उससे निवृत कराऊंगा। नारद जी ने कहा भगवान नारायण उसके लिए मुझे सुबुद्धि देंगे।
विष्णु नाम के उच्चारण से हिरण्यकशिपु का हुआ तपस्या भंग
अपने पिता ब्रह्मा जी से इस प्रकार कह कर मुनि श्रेष्ठ नारदजी ने उन्हें प्रणाम किया और मन ही मन भगवान वासुदेव का स्मरण करते हुए हुए पर्वत मुनि के साथ वहां से चल दिए। वे दोनों मुनि कालविंड्क पक्षी का रूप धारण कर उस उत्तम कैलाश पर्वत पर आए जहां दैत्य श्रेष्ठ हिरण्यकशिपु को अपने दो-तीन मित्रों के साथ रहता था। वहां स्नान करके नारद मुनि और पर्वत मुनि वृक्ष के शाखा पर बैठ गया और उसी समय दैत्य राजा को सुनते सुनाते गंभीर वाणी में भगवान विष्णु के नाम का उच्चारण जोर-जोर से करने लगे।
उदर बुद्धि नारद लगातार तीन बार ओम नमो नारायण, इस मंत्र का उच्च स्वर में तीन बार उच्चारण कर मौन हो गए। भूपाल हिरण्यकशिपु कलविड्क के द्वारा किए गए उस आदर युक्त नाम कीर्तन को सुनकर वह उसी समय आश्रम को त्याग कर अपने नगर की ओर चल पड़ा।
हिरण्यकशिपु ने कयाथु को तपस्या भंग होने की कथा सुनाई
नगर में उस समय उसकी कयाथु नाम की सुंदरी पत्नी दैव योग से रजस्वला होकर ऋतुस्नाता हुई थी। रात्रि में एकांतवास के समय कयाथु ने दैत्यराज से पूछा स्वामी आप जिस समय तप करने के लिए घर से वन गए थे उस समय तो आपने यह कहा था कि मेरी तपस्या 10,000 वर्षों तक चलेगी। फिर महाराज, आपने अभी क्यों उस व्रत को त्याग दिया। स्वामी, मैं प्रेम पूर्वक आपसे यह प्रश्न करती हूं। कृपया मुझे सच सच बताइए।
हिरण्यकशिपु ने कयाथु से सच करने का दिया वचन
हिरण्यकशिपु बोला, सुंदरी सुनो मैं यह बात तुम्हें सच सच सुनाता हूं। जिसके कारण मेरा व्रत भंग हुआ है। यह बात मेरे क्रोध को अत्यंत बढ़ाने वाली और देवताओं को आनंद देने वाली थी। देवी कैलाश शिखर पर जो महान आनंद कानन है उसमें दो पक्षी ओम नमो नारायण शुभ वाणी का उच्चारण करते हुए आ गए। शुभे, उन्होंने मुझे सुनकर सुनाकर दो बार, तीन बार उस वचन को दोहराया। बारं-बार पक्षियों के उस शब्द को सुनकर मेरे मन में बड़ा क्रोध हुआ और भामिनी उन्हें मारने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाकर ज्यों ही मैंने छोड़ना चाहा त्यों ही वे दोनों पक्षी भयभीत को उड़कर कही और चले गए। तब मैंने भी भावी की प्रबलता से अपना व्रत त्याग कर यहां चला आया।
नाष्णु संवाद सुनते समय कयाथु ने गर्भधारण किया
हिरण्यकशिपु अपनी पत्नी के साथ जब इस प्रकार की बातें कर रहा था उसी समय उसका वीर्य स्खलित हुआ और पत्नी का ऋतुकाल तो प्राप्त था ही तत्काल गर्भ भी स्थापित हो गया। माता के उदर मैं बढ़ते हुए उस गर्भ से बुद्धिमान नारदजी के उपदेश के कारण विष्णु भक्त पुत्र उत्पन्न हुआ। हिरण्यकशिपु का भक्त पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही वैष्णव था।
कयाथु के गर्भ से प्रह्लाद का हुआ जन्म
जैसे पापपूर्ण कलयुग में संसारिक बंधन से मुक्त करने वाले भगवान श्री हरि की भक्ति बढ़ती रहती है, उसी प्रकार उस मलिन कर्म करने वाले असुर वंश में भी प्रह्लाद निर्मल भाव से रहकर दिनों दिन बढ़ने लगा। वह बालक त्रिलोकीनाथ भगवान विष्णु के चरणों में बढ़ती हुई भक्ति के साथ ही स्वयं भी बढ़ता हुआ शोभा पा रहा था। प्रह्लाद अन्य बालकों के साथ खेलते, पहेली बुझाते और खिलौने आदि से मनोरंजन करते समय तथा बातचीत के प्रसंग में भी सदा भगवान विष्णु की ही चर्चा करता था क्योंकि उसका स्वभाव विष्णुमय हो गया था।