पापों से मुक्ति का पर्व पापमोचनी 25 मार्च 2025 दिन मंगलवार को है। इस व्रत को करने पर सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है, जातकों को।
पाप मोचनी एकादशी तिथि का शुभारंभ चैत्र माह, कृष्ण पक्ष, 24 मार्च, दिन सोमवार को सुबह 05:05 बजे से प्रारंभ होकर 25 मार्च दिन मंगलवार को दिनभर और रात भर रहते हुए अहले सुबह 03:45 बजे पर समाप्त होगी।
जानें क्या है पौराणिक कथा
एक समय की बात है। धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीहरि से पूछा भगवान चैत्र मास कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि का नाम क्या है ? इसका महत्व क्या है ? और पूजा करने की विधि विधान क्या है ? कृपा करके मुझे विस्तार से बताइए।
श्रीहरि बोले हे, राजन चैत्र मास, कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी के नाम जाना जाता हैै। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्यों को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाता है। यह सभी व्रतों में उत्तम व्रत कहलाता हैं। इस पापमोचनी एकादशी के महात्म्य के श्रवण करने और पाठन करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं।
पहली बार ब्रह्माजी ने नारद को पाप मोचनी कथा सुनाई
श्रीहरि ने पापमोचनी एकादशी व्रत के संबंध में पौराणिक कथा सुनाते हुए धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि एक समय की बात है देवर्षि नारद जगत पिता ब्रह्मा से पास गए और कहा कि हे, पिताश्री आप मुझे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी पूजा की विधान विस्तारपूर्वक कहिए।
ब्रह्मा जी ने कहा हे, पुत्र नारद चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी के नाम से मनायी जाती है। इस दिन प्रभु श्रीहरि अर्थात विष्णु भगवान की पूजा किया जाता है।
इसकी कथा के अनुसार प्राचीन समय में चित्ररथ नमक एक रमणिक वन था। इस वन में देवराज इन्द्र, गंधर्व कन्याएं, देवतागण तथा अप्सराएं स्वच्छंद विहार करने आते थे।
मेधावी ऋषि का तप भंग करने का आदेश कामदेव ने मंजू अप्सरा को दी
एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी नामक महर्षि यहां पर तपस्या कर रहे थे। मेधावी महर्षि शिव भगवान के उपासक थे। अप्सराएं शिवद्रोही अनंग दासी थी। एक दिन कामदेव ने मुनि का तपस्य भंग करने के लिए उनके पास मंजू धोषा नामक अप्सरा को भेजा।
युवावस्था वाले मुनि मेधावी अप्सरा के कला, भाव, गीत तथा नृत्य पर काम मोहित हो गए। रति क्रीड़ा करते हुए 57 वर्ष गुजर गए। मंजू धोषा ने ऋषि से स्वर्ग लोक जाने की आज्ञा मांगी। उसके द्वारा आज्ञा मांगने पर ऋषि मेधावी को भान हुआ और उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई।
उन्हें लगा कि मुझे रसातल में पहुंचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजू धोषा ही है। क्रोधित होकर ऋषि मेधावी मंजू धोषा को पिचाशनी बनने का श्राप दे दिया।
मेधावी ऋषि ने दी मंजू धोषा को श्राप
श्राप सुनकर मंजू धोषा डर से थरथर कांपते हुए ऋषि मेधावी से मुक्ति का उपाय पूछा। दयावान मुनिश्री ने मंजू धोषा को पापमोचनी एकादशी व्रत रखने को कहा।
अप्सरा को मुक्ति का उपाय बता के अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम में चले गए। पुत्र के मुख से श्राप देने की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने पुत्र की घोर निंदा की तथा उन्हें पापमोचनी एकादशी व्रत, जो चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली उस पापमोचनी एकादशी व्रत करने की आज्ञा दी।
उधर व्रत के प्रभाव से मंजू धोषा अप्सरा पुनः प्रेत योनि से मुक्त होकर स्वर्ग लोक चली गई। कथा सुनाने के बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि पुत्र नारद कोई भी मनुष्य विधि पूर्वक इस व्रत को करेगा। उसके सारे पापों से मुक्ति होना निश्चित है।
इतना ही नहीं बल्कि जो कोई भी इस व्रत के महात्म्य को पड़ता है या सुनता है उसे सारे कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
पापमोचनी एकादशी के दिन अभिजीत मुहूर्त का संयोग नहीं रहेगा।
चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार अशुभ समय दिन और रात
चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार सुबह के समय 9:00 बज के 1 मिनट से लेकर 10:30 तक कॉल मोहित रहेगा उसी प्रकार दिन के 12:00 बजे से लेकर दोपहर 1:30 बजे तक योग मुहूर्त रहेगा उसी प्रकार दोपहर के 1:30 बज के लेकर 3:00 बजे तक खुद एक मुहूर्त रहेगा इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।
शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त जो चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार अशुभ मुहूर्त के रूप में गिना जाता है। उसी प्रकार रोग मुहूर्त मध्य रात्रि 12:00 बजे से लेकर रात 1:30 बजे तक और काल मुहूर्त रात 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक रहेगा। इस दौरान जातक पूजा ना करें तो व्रत फलदाई होगा।
अब जाने क्यों जरूरी है सही पूजा पद्धति
पूजा का किसी भी धार्मिक व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक महत्व रखता है। जिस प्रकार हर काम करने की एक विधि होती है। एक तरीका होता है। उसी प्रकार पूजा की भी विधियां होती है।
जिस प्रकार गलत तरीके से किया गया कोई भी कार्य फलदाई नहीं होता है। उसी प्रकार गलत विधि से की गई पूजा भी निष्फल होती है। जिसे की वैज्ञानिक प्रयोग में रसायनों का उचित मात्रा अथवा उचित मेल ना किया जाए तो वह दुर्घटना के कारण भी बन जाते हैं।
उसी प्रकार गलत मंत्रोच्चारण अथवा गलत पूजा पद्धति के प्रयोग से विपरीत प्रभाव भी जातक पर पड़ते हैं।
पापमोचनी एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति पापमोचनी एकादशी व्रत करना चाहता है उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए।
एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर धूप, मौसमी फल, घी एवं पंचामृत आदि से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पापमोचनी एकादशी की रात सोना नहीं चाहिए बल्कि भगवान का भजन कीर्तन एवं सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।
रात्रि जागरण करना काफी शुभ और फलदाई होता है। चौथे प्रहर की पूजा मध्य रात्रि में करनी चाहिए। पापमोचनी एकादशी के दिन चारों पहर पूजा करने का विधान है। द्वादशी अर्थात पारन के दिन भी भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन कर उपवास खोलना चाहिए।
पूजा सामग्रियों की सूची:
- पूजा सामग्री के रूप में भगवान विष्णु के स्नान कराने के लिए तांबे का पात्र,
- तांबे का लोटा,
- जल का कलश, दूध,
- भगवान विष्णु को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र और आभूषण, चावल,
- कुमकुम, दीपक, जनेऊ, तिल, फूल,
- अष्टगंध, तुलसी दल,
- प्रसाद के लिए गेहूं के आटे की पंजीरी,
- फल, धूप, मिठाई नारियल, मधु, गंगा जल,
- सूखे मेवे, शक्कर और पान के पत्ते
- और अंत में दक्षिणा के लिए पैसे रखें।
- हवन सामग्री
डिस्क्लेमर
पाप मोचनी एकादशी के संबंध में लिखा गया लेख पुरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है शुभ मुहूर्त की जानकारी पंचांग से लिया गया। पुरानी कथा की जानकारी धर्मशास्त्र विद्वान बह्मणों और इंटरनेट से सहयोग लिया गया है। लेख लिखने का मुख उद्देश्य सनातन धर्म वालों को अपने पर्व और त्योहार के संबंध में सही जानकारी उपलब्ध कराना मार्च उद्देश्य है। पिया कथा सिर्फ सूचनाप्रद है। इसकी सत्यता की जवाब देही हम नहीं लेते हैं।